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दरभंगा: प्राचीन संस्कृति और धरोहरों के प्रति ग्रामीणों को किया गया जागरूक

दरभंगा के महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय की ओर से प्राचीन संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान और धरोहरों के लिए जागरूक करने का अभियान चलाया जा रहा है. इसके लिए भंडारिसम और मकरंदा गांव में एकदिवसीय अभियान चलाया गया.

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Published : Jun 15, 2021, 7:57 AM IST

प्राचीन संस्कृति और धरोहरों के प्रति ग्रामीणों को किया गया जागरूक
प्राचीन संस्कृति और धरोहरों के प्रति ग्रामीणों को किया गया जागरूक

दरभंगा: मिथिला अपनी प्रसिद्ध प्राचीन संस्कृति, ( Mithila Ancient Culture ) ज्ञान-विज्ञान ( Science Technology ) और धरोहरों के लिए पूरी दुनिया में विख्यात ( World Famous ) है. धरोहरों के संरक्षण ( Protection of Heritage ) के लिए दरभंगा ( Darbhanga News ) के महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय की ओर से आम लोगों को जागरूक करने का अभियान चलाया जा रहा है. इसी कड़ी में जिले के भंडारिसम और मकरंदा गांव में एकदिवसीय अभियान चलाया गया.

ये भी पढ़ें- दरभंगा न्यूज: जल संसाधन मंत्री ने बांधों का किया निरीक्षण, बाढ़ पूर्व निर्माण कार्य कराने के दिए आदेश

प्राचीन प्रतिमाओं का अवलोकन
संग्रहालयाध्यक्ष डॉ. शिव कुमार मिश्र के नेतृत्व में इतिहासकार डॉ. सुशांत कुमार, क्षेत्रीय अभिलेखागार के प्रभारी पदाधिकारी डॉ. सचिन चक्रवर्ती, संग्रहालय के तकनीकी सहायक चंद्र प्रकाश और मकरंदा के कुणाल कुमार मिश्र ने दोनों गांवों के पुरास्थल व प्राचीन प्रतिमाओं का अवलोकन किया. इस अवसर पर संग्रहालयाध्यक्ष डॉ शिवकुमार मिश्र ने गांवों की प्राचीन मूर्तियों को चोरों से रक्षा की अपील की. उन्होने धरोहरों की महत्ता के बारे में जानकारी दी.

ये भी पढ़ें- दरभंगाः कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव से मिले सांसद गोपाल जी ठाकुर, कई अहम मुद्दों पर हुई चर्चा

भगवान की दुर्लभ मूर्ति

'अभी तक मिथिला में हरिहर की तीन ही मूर्ति मिली है. इसलिए हाल में मिली यहां की हरिहर की मूर्ति जिसका आकार 86x48x12 सेमी है , यह दुर्लभ है. ग्रामीण उमेश झा के घर में रखी हुई इस मूर्ति की सुरक्षा के लिए उनके परिवारजनों को आगाह किया गया है. वाणेश्वरी देवी की आंखों में धातुओं को लगाना कही से भी उचित नहीं है. मूर्ति पर पानी, सिंदूर, दूध, दही, मिठाई, फूल आदि अन्य चढ़ावे से परहेज करना चाहिए. यह सिंहवाहिनी दुर्गा की मूर्ति करीब 8 सौ वर्ष पूर्व की है. यह मिथिला के कर्णाट वंशीय राजाओं के समय में बनी होगी.' : डॉ. शिव कुमार मिश्र, संग्रहालयाध्यक्ष

ये भी पढ़ें- आखिरी जून में उड्डयन मंत्री का दरभंगा दौरा, बाबा विद्यापति के नाम से होगा एयरपोर्ट का नामकरण

मूर्ति पर पानी चढ़ाने से होती है क्षति

'देवी मंदिर में पानी समेत अन्य चढ़ावे से मूर्ति को क्षति पहुंचाई जा रही है, जिस पर रोक लगाने के लिए पुजारी से आग्रह किया गया है. मिथिला की प्रसिद्ध पंजी में भंडारिसम एवं मकरंदा का उल्लेख मूलग्राम के रूप में किया गया है. इससे स्पष्ट है कि कर्णाट काल अर्थात करीब एक हजार साल पहले यहां एक सुव्यवस्थित बस्ती रही होगी. यहां के टीले, जो करीब 20 एकड़ में फैले हुए हैं, उनमें प्राचीन मूर्तियों के अवशेषों के अलावा मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े और पुरानी ईंटें मिल रही हैं. इससे संकेत मिलता है कि यह एक महत्वपूर्ण पुरास्थल है. इसकी सुरक्षा के लिए राज्य सरकार को इसे संरक्षित स्मारकों की सूची में सम्मिलित कर उत्खनन और अनुसंधान की व्यवस्था की जानी चाहिए.' : डॉ. शिव कुमार मिश्र, संग्रहालयाध्यक्ष

दरभंगा: मिथिला अपनी प्रसिद्ध प्राचीन संस्कृति, ( Mithila Ancient Culture ) ज्ञान-विज्ञान ( Science Technology ) और धरोहरों के लिए पूरी दुनिया में विख्यात ( World Famous ) है. धरोहरों के संरक्षण ( Protection of Heritage ) के लिए दरभंगा ( Darbhanga News ) के महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय की ओर से आम लोगों को जागरूक करने का अभियान चलाया जा रहा है. इसी कड़ी में जिले के भंडारिसम और मकरंदा गांव में एकदिवसीय अभियान चलाया गया.

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प्राचीन प्रतिमाओं का अवलोकन
संग्रहालयाध्यक्ष डॉ. शिव कुमार मिश्र के नेतृत्व में इतिहासकार डॉ. सुशांत कुमार, क्षेत्रीय अभिलेखागार के प्रभारी पदाधिकारी डॉ. सचिन चक्रवर्ती, संग्रहालय के तकनीकी सहायक चंद्र प्रकाश और मकरंदा के कुणाल कुमार मिश्र ने दोनों गांवों के पुरास्थल व प्राचीन प्रतिमाओं का अवलोकन किया. इस अवसर पर संग्रहालयाध्यक्ष डॉ शिवकुमार मिश्र ने गांवों की प्राचीन मूर्तियों को चोरों से रक्षा की अपील की. उन्होने धरोहरों की महत्ता के बारे में जानकारी दी.

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भगवान की दुर्लभ मूर्ति

'अभी तक मिथिला में हरिहर की तीन ही मूर्ति मिली है. इसलिए हाल में मिली यहां की हरिहर की मूर्ति जिसका आकार 86x48x12 सेमी है , यह दुर्लभ है. ग्रामीण उमेश झा के घर में रखी हुई इस मूर्ति की सुरक्षा के लिए उनके परिवारजनों को आगाह किया गया है. वाणेश्वरी देवी की आंखों में धातुओं को लगाना कही से भी उचित नहीं है. मूर्ति पर पानी, सिंदूर, दूध, दही, मिठाई, फूल आदि अन्य चढ़ावे से परहेज करना चाहिए. यह सिंहवाहिनी दुर्गा की मूर्ति करीब 8 सौ वर्ष पूर्व की है. यह मिथिला के कर्णाट वंशीय राजाओं के समय में बनी होगी.' : डॉ. शिव कुमार मिश्र, संग्रहालयाध्यक्ष

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मूर्ति पर पानी चढ़ाने से होती है क्षति

'देवी मंदिर में पानी समेत अन्य चढ़ावे से मूर्ति को क्षति पहुंचाई जा रही है, जिस पर रोक लगाने के लिए पुजारी से आग्रह किया गया है. मिथिला की प्रसिद्ध पंजी में भंडारिसम एवं मकरंदा का उल्लेख मूलग्राम के रूप में किया गया है. इससे स्पष्ट है कि कर्णाट काल अर्थात करीब एक हजार साल पहले यहां एक सुव्यवस्थित बस्ती रही होगी. यहां के टीले, जो करीब 20 एकड़ में फैले हुए हैं, उनमें प्राचीन मूर्तियों के अवशेषों के अलावा मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े और पुरानी ईंटें मिल रही हैं. इससे संकेत मिलता है कि यह एक महत्वपूर्ण पुरास्थल है. इसकी सुरक्षा के लिए राज्य सरकार को इसे संरक्षित स्मारकों की सूची में सम्मिलित कर उत्खनन और अनुसंधान की व्यवस्था की जानी चाहिए.' : डॉ. शिव कुमार मिश्र, संग्रहालयाध्यक्ष

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