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VIDEO: दरभंगा में बंगाली समाज की महिलाओं ने सिंदूर खेलकर मां दुर्गा को दी विदाई

दरभंगा के लालबाग के बंगला मिडिल स्कूल में दुर्गा पूजा के अवसर पर बंगाली समाज की महिलाओं ने सिंदूर खेला के साथ माता को विदाई दी. सभी ने माता और एक-दूसरे को सिंदूर लगाया. हर्षोल्लास के सथ सिंदूर खेला का आयोजन हुआ. पढ़ें पूरी खबर

Sindur khela In Darbhanga
Sindur khela In Darbhanga
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Published : Oct 15, 2021, 4:36 PM IST

दरभंगा: आज विजयादशमी (Vijaya Dashami 2021) है और 9 दिनों तक मां के विभिन्न रूपों की पूजा के बाद माता को विदा किया गया. इस मौके पर दरभंगा में सिंदूर खेला (Sindur khela In Darbhanga) ने माहौल को और भक्तिमय कर दिया. दरभंगा में बंगाली समुदाय की महिलाओं ने माता की विदाई के दौरान सिंदूर खेला के रिवाज को निभाया. ये रिवाज सुख समृद्धि और सौभाग्यवती होने की कामना के लिए सिंदूर की होली खेलकर मनाया जाता है.

यह भी पढ़ें- बिहार में बंगाल की छटा, सिंदूर खेला कर महिलाओं ने कहा- 'आसछे बछोर आबार होबे'

लालबाग के बंगला मिडिल स्कूल में आयोजित सिंदूर खेला समारोह में बड़ी संख्या में बंगाली समाज की महिलाएं शामिल हुईं. महिलाओं ने माता के ललाट और उनके पैरों पर सिंदूर चढ़ाया और उसके बाद उसी सिंदूर से एक दूसरे की मांग भर कर सबके अक्षत सुहाग की कामना की.

देखें रिपोर्ट

यह भी पढ़ें- बिहार के इस गांव में होती है दशानन की पूजा, ग्रामीण बोले- 'रावण पूरी करते हैं हमारी मनोकामना'

श्रद्धालु नीलू सेन ने कहा कि हर साल माता का आगमन होता है और विजयदशमी को उनकी ससुराल के लिए विदाई हो जाती है. हमलोग मां की विदाई के समय कामना करते हैं कि अगले साल भी जब माता आएं तो सभी खुशी से नाचते गाते रहे. माहौल हमेशा सुखद बना रहे.

"दरभंगा से बहुत से बंगाली परिवार पलायन करके जा चुके हैं लेकिन फिर भी 50-60 परिवार आज भी दरभंगा में हैं. इन परिवारों की महिलाएं बंगला मिडिल स्कूल में इकट्ठा होती हैं और सिंदूर खेलकर मां को भावभीनी विदाई दी जाती है. यह बंगाली समुदाय की बहुत पुरानी परंपरा है."- नीलू सेन, स्थानीय

यह भी पढ़ें- ग्राउंड रिपोर्ट: मूर्ति विसर्जन के लिए गंगा घाट पर नगर निगम ने बनाया कृत्रिम तालाब

वहीं एक अन्य महिला सुजाता बोस ने कहा कि माता की विदाई के अवसर पर वे सभी पारंपरिक ढंग से सिंदूर खेलती हैं और एक दूसरे की मांग में सिंदूर लगाती हैं. उन्होंने कहा कि माता अगले साल फिर से हंसी-खुशी से आएं और उन्हें अक्षत सुहाग का आशीर्वाद दें, इस अवसर पर यही कामना की जाती है.

यह भी पढ़ें- राबड़ी देवी ने बिहार वासियों को दी दशहरा की शुभकामनाएं, मुस्कुराते लालू भी नजर आए साथ

पौराणिक मान्यता के अनुसार इस त्यौहार का नाम दशहरा इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन भगवान पुरुषोत्तम राम ने 10 सिर वाले आतताई रावण का वध किया था. तभी से दशानन रावण के पुतले को हर साल दशहरा के दिन इसी प्रतीक के रूप में जलाया जाता है. दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की प्रेरणा देता है.

बता दें कि दशहरे का दिन साल के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है. यह मुहूर्त साल के अच्छे मुहूर्तों में से एक है. साल का सबसे शुभ मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्वनी शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा यह अवधि किसी भी चीज की शुरुआत करने के लिए उत्तम है. हालांकि कुछ निश्चित मुहूर्त किसी विशेष पूजा के लिए भी हो सकते हैं.

दरभंगा: आज विजयादशमी (Vijaya Dashami 2021) है और 9 दिनों तक मां के विभिन्न रूपों की पूजा के बाद माता को विदा किया गया. इस मौके पर दरभंगा में सिंदूर खेला (Sindur khela In Darbhanga) ने माहौल को और भक्तिमय कर दिया. दरभंगा में बंगाली समुदाय की महिलाओं ने माता की विदाई के दौरान सिंदूर खेला के रिवाज को निभाया. ये रिवाज सुख समृद्धि और सौभाग्यवती होने की कामना के लिए सिंदूर की होली खेलकर मनाया जाता है.

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लालबाग के बंगला मिडिल स्कूल में आयोजित सिंदूर खेला समारोह में बड़ी संख्या में बंगाली समाज की महिलाएं शामिल हुईं. महिलाओं ने माता के ललाट और उनके पैरों पर सिंदूर चढ़ाया और उसके बाद उसी सिंदूर से एक दूसरे की मांग भर कर सबके अक्षत सुहाग की कामना की.

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श्रद्धालु नीलू सेन ने कहा कि हर साल माता का आगमन होता है और विजयदशमी को उनकी ससुराल के लिए विदाई हो जाती है. हमलोग मां की विदाई के समय कामना करते हैं कि अगले साल भी जब माता आएं तो सभी खुशी से नाचते गाते रहे. माहौल हमेशा सुखद बना रहे.

"दरभंगा से बहुत से बंगाली परिवार पलायन करके जा चुके हैं लेकिन फिर भी 50-60 परिवार आज भी दरभंगा में हैं. इन परिवारों की महिलाएं बंगला मिडिल स्कूल में इकट्ठा होती हैं और सिंदूर खेलकर मां को भावभीनी विदाई दी जाती है. यह बंगाली समुदाय की बहुत पुरानी परंपरा है."- नीलू सेन, स्थानीय

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वहीं एक अन्य महिला सुजाता बोस ने कहा कि माता की विदाई के अवसर पर वे सभी पारंपरिक ढंग से सिंदूर खेलती हैं और एक दूसरे की मांग में सिंदूर लगाती हैं. उन्होंने कहा कि माता अगले साल फिर से हंसी-खुशी से आएं और उन्हें अक्षत सुहाग का आशीर्वाद दें, इस अवसर पर यही कामना की जाती है.

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पौराणिक मान्यता के अनुसार इस त्यौहार का नाम दशहरा इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन भगवान पुरुषोत्तम राम ने 10 सिर वाले आतताई रावण का वध किया था. तभी से दशानन रावण के पुतले को हर साल दशहरा के दिन इसी प्रतीक के रूप में जलाया जाता है. दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की प्रेरणा देता है.

बता दें कि दशहरे का दिन साल के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है. यह मुहूर्त साल के अच्छे मुहूर्तों में से एक है. साल का सबसे शुभ मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्वनी शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा यह अवधि किसी भी चीज की शुरुआत करने के लिए उत्तम है. हालांकि कुछ निश्चित मुहूर्त किसी विशेष पूजा के लिए भी हो सकते हैं.

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