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बांग्लादेश जेल में कैद दरभंगा का सतीश 11 सालों बाद आज लौटेगा वतन, पूरे गांव में खुशी

10 सितंबर को बांग्लादेश के भारतीय दूतावास से फोन आया कि 12 सितंबर को सतीश को रिहा किया जा रहा है. इस खबर के बाद परिवार सहित पूरे गांव में खुशी का माहौल है. सतीश के भाई मुकेश बांग्लादेश के लिए रवाना हो चुके हैं.

सतीश 11 सालों बाद लौटेगा वतन
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Published : Sep 12, 2019, 9:25 AM IST

दरभंगा: जिले के हायाघाट प्रखंड के मनोरथा गांव निवासी सतीश चौधरी पिछले 11 वर्षों से बांग्लादेश के जेल में कैद थे. आज यानि 12 सितंबर को वो बांग्लादेश के जेल से आजाद हो रहे हैं. इस बात की जानकारी मिलते ही सतीश के भाई मुकेश बांग्लादेश के लिए रवाना हो चुके हैं. परिवार सहित पूरे गांव में खुशी का माहौल है.

बता दें कि, बांग्लादेश की सरकार ने ढाका स्थित हाई कमीशन ऑफ इंडिया को इस बात की जानकारी टेलीफोन से दी है. दर्शना गेंडे बॉर्डर पर बॉर्डर गार्ड्स बांग्लादेश सतीश चौधरी को बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स इंडिया के हवाले कर देगा. मानसिक रूप से बीमार चल रहे सतीश चौधरी 12 अप्रैल 2008 को अपने छोटे भाई मुकेश चौधरी के साथ इलाज कराने के लिए पटना गये थे. ठीक 3 दिन बाद 15 अप्रैल 2008 को गांधी मैदान स्थित कृष्ण मेमोरियल हॉल के पास से वो अचानक गायब हो गये.

सतीश के वापस आने की खबर से परिजनों में खुशी का माहौल

2012 में बांग्लादेश रेड क्रॉस सोसायटी का आया था पत्र
इसके बाद सतीश के परिजनों ने काफी खोजबीन की लेकिन सतीश का कुछ पता नहीं चला. थक हार कर 8 मई 2008 को गांधी मैदान थाना सतीश के परिजनों ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी. लंबे समय लापता सतीश चौधरी का जब कहीं कुछ पता नहीं चला तो घर वाले निराश हो गये. लगभग 4 वर्षों के बाद 2012 में सतीश के परिजनों को जान में जान तब आई जब उन्हें बांग्लादेश रेड क्रॉस सोसायटी का पत्र इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी के माध्यम से प्राप्त हुआ. जिसमें सूचित किया गया था कि सतीश ढाका के लक्ष्मीपुर स्थित जेल में बंद है.

darbhanga
2012 में रेड क्रॉस सोसायटी का आया था पत्र

सतीश के भारत लाने की किसी ने नहीं की कोशिश
सतीश की मां कला देवी ने बताया कि सतीश की खोज में उनलोगों ने स्थानीय जिला प्रशासन दरभंगा, पटना के जिला प्रशासन से कई बार गुहार लगाई. 2 जुलाई 2012 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दरबार में भी उन्होंने मदद की गुहार लगाई लेकिन कुछ नहीं हुआ. हालांकि गृह विभाग के प्रधान सचिव अमीर सुहानी ने विदेश मंत्रालय को पत्र लिखा लेकिन इसके बाद भी सरकारी स्तर पर सतीश को भारत लाने का किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं किया गया.

वापस आने की खबर से परिजनों में खुशी का माहौल
सतीश की मां ने बताया कि उनके छोटे बेटे के मोबाइल पर फोन आया कि 12 सितंबर को बांग्लादेश की जेल से सतीश को रिहा किया जा रहा है. इस खबर के बाद सभी बेहद खुश हैं. वहीं सतीश के पुत्र आशिक ने कहा कि बचपन में हमने अपने पिता को देखा था. अब उनका चेहरा भी ठीक से याद नहीं है. उनके आने की खबर सुनकर बहुत खुश हूं.

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परिजनों में खुशी का माहौल

10 सितंबर को बांग्लादेश के भारतीय दूतावास से फोनकर दी जानकारी
सतीश के मित्र संजय ने कहा कि जानकारी के अभाव में मुकेश अपने भाई की खोज में 6 वर्षों तक भटकता रहा. फिर वो पासपोर्ट और वीजा बनवाकर कोलकाता के रास्ते ढाका के लक्ष्मीपुर सेंट्रल जेल पहुंचा. वहां पहुंचने के बाद मुकेश को पता चला कि सतीश की सजा पूरी होने के बाद उसे छोड़ दिया गया है. इस खबर पर मुकेश को विश्वास नहीं हुआ. उसने बांग्लादेश के कई जेलों में अपनी भाई की खोजबीन की लेकिन जब उसका कुछ पता नहीं चला तो वह वहां से लौट आया. लेकिन जानकारी के अभाव में वह ढाका के एंबेसी में नहीं जा सका. 10 सितंबर को बांग्लादेश के भारतीय दूतावास से फोन आया कि 12 सितंबर को सतीश को रिहा किया जा रहा है.

दरभंगा: जिले के हायाघाट प्रखंड के मनोरथा गांव निवासी सतीश चौधरी पिछले 11 वर्षों से बांग्लादेश के जेल में कैद थे. आज यानि 12 सितंबर को वो बांग्लादेश के जेल से आजाद हो रहे हैं. इस बात की जानकारी मिलते ही सतीश के भाई मुकेश बांग्लादेश के लिए रवाना हो चुके हैं. परिवार सहित पूरे गांव में खुशी का माहौल है.

बता दें कि, बांग्लादेश की सरकार ने ढाका स्थित हाई कमीशन ऑफ इंडिया को इस बात की जानकारी टेलीफोन से दी है. दर्शना गेंडे बॉर्डर पर बॉर्डर गार्ड्स बांग्लादेश सतीश चौधरी को बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स इंडिया के हवाले कर देगा. मानसिक रूप से बीमार चल रहे सतीश चौधरी 12 अप्रैल 2008 को अपने छोटे भाई मुकेश चौधरी के साथ इलाज कराने के लिए पटना गये थे. ठीक 3 दिन बाद 15 अप्रैल 2008 को गांधी मैदान स्थित कृष्ण मेमोरियल हॉल के पास से वो अचानक गायब हो गये.

सतीश के वापस आने की खबर से परिजनों में खुशी का माहौल

2012 में बांग्लादेश रेड क्रॉस सोसायटी का आया था पत्र
इसके बाद सतीश के परिजनों ने काफी खोजबीन की लेकिन सतीश का कुछ पता नहीं चला. थक हार कर 8 मई 2008 को गांधी मैदान थाना सतीश के परिजनों ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी. लंबे समय लापता सतीश चौधरी का जब कहीं कुछ पता नहीं चला तो घर वाले निराश हो गये. लगभग 4 वर्षों के बाद 2012 में सतीश के परिजनों को जान में जान तब आई जब उन्हें बांग्लादेश रेड क्रॉस सोसायटी का पत्र इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी के माध्यम से प्राप्त हुआ. जिसमें सूचित किया गया था कि सतीश ढाका के लक्ष्मीपुर स्थित जेल में बंद है.

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2012 में रेड क्रॉस सोसायटी का आया था पत्र

सतीश के भारत लाने की किसी ने नहीं की कोशिश
सतीश की मां कला देवी ने बताया कि सतीश की खोज में उनलोगों ने स्थानीय जिला प्रशासन दरभंगा, पटना के जिला प्रशासन से कई बार गुहार लगाई. 2 जुलाई 2012 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दरबार में भी उन्होंने मदद की गुहार लगाई लेकिन कुछ नहीं हुआ. हालांकि गृह विभाग के प्रधान सचिव अमीर सुहानी ने विदेश मंत्रालय को पत्र लिखा लेकिन इसके बाद भी सरकारी स्तर पर सतीश को भारत लाने का किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं किया गया.

वापस आने की खबर से परिजनों में खुशी का माहौल
सतीश की मां ने बताया कि उनके छोटे बेटे के मोबाइल पर फोन आया कि 12 सितंबर को बांग्लादेश की जेल से सतीश को रिहा किया जा रहा है. इस खबर के बाद सभी बेहद खुश हैं. वहीं सतीश के पुत्र आशिक ने कहा कि बचपन में हमने अपने पिता को देखा था. अब उनका चेहरा भी ठीक से याद नहीं है. उनके आने की खबर सुनकर बहुत खुश हूं.

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परिजनों में खुशी का माहौल

10 सितंबर को बांग्लादेश के भारतीय दूतावास से फोनकर दी जानकारी
सतीश के मित्र संजय ने कहा कि जानकारी के अभाव में मुकेश अपने भाई की खोज में 6 वर्षों तक भटकता रहा. फिर वो पासपोर्ट और वीजा बनवाकर कोलकाता के रास्ते ढाका के लक्ष्मीपुर सेंट्रल जेल पहुंचा. वहां पहुंचने के बाद मुकेश को पता चला कि सतीश की सजा पूरी होने के बाद उसे छोड़ दिया गया है. इस खबर पर मुकेश को विश्वास नहीं हुआ. उसने बांग्लादेश के कई जेलों में अपनी भाई की खोजबीन की लेकिन जब उसका कुछ पता नहीं चला तो वह वहां से लौट आया. लेकिन जानकारी के अभाव में वह ढाका के एंबेसी में नहीं जा सका. 10 सितंबर को बांग्लादेश के भारतीय दूतावास से फोन आया कि 12 सितंबर को सतीश को रिहा किया जा रहा है.

Intro:दरभंगा जिला के हायाघाट प्रखंड के मनोरथा गांव निवासी कला देवी का पुत्र सतीश चौधरी पिछले 11 वर्षों से बांग्लादेश के जेलों में कैद था, जो 12 सितंबर को बांग्लादेश के जेल से आजाद हो रहा है। इस बात की जानकारी बांग्लादेश की सरकार ने ढाका स्थित हाई कमीशन ऑफ इंडिया को टेलीफोन से सूचित किया है कि 12 सितंबर को दर्शना गेंडे बॉर्डर पर बॉर्डर गार्ड्स बांग्लादेश सतीश चौधरी को बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स इंडिया के हवाले कर देगा। इस बात की जानकारी मिलते ही सतीश के भाई मुकेश बांग्लादेश के लिए रवाना हो चुके हैं। इस बात की जानकारी मिलते ही परिवार सहित पूरे गांव में खुशी का माहौल है।


Body:गौरतलब है कि मानसिक रोगी सतीश चौधरी 12 अप्रैल 2008 को अपने छोटे भाई मुकेश चौधरी के साथ गांव से पटना रोजी रोटी के साथ साथ इलाज कराने के लिए गया था। ठीक 3 दिन बाद 15 अप्रैल 2008 को गांधी मैदान स्थित कृष्ण मेमोरियल हॉल के पास से अचानक गायब हो गया। जिसके बाद सतीश को उसके परिजनों ने काफी खोजबीन किया एवं थक हार के 8 मई 2008 को गांधी मैदान थाना में उसके गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराया। लंबे समय तक लापता सतीश चौधरी का जब कहीं पता नहीं चला तो घर वाले घर बैठ गए। गुमशुदगी की घटना के लगभग 4 वर्षों के बाद 2012 में सतीश के परिजनों को जान में जान तब आई जब उन्हें बांग्लादेश रेड क्रॉस सोसायटी का एक इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी के माध्यम से प्राप्त हुआ। जिसमें उसे सूचित किया गया था कि सतीश ढाका के लक्ष्मीपुर स्थित जेल में बंद है।

वही सतीश की मां कला देवी ने बताया कि सतीश की खोज में उनलोगों ने स्थानीय जिला प्रशासन दरभंगा, पटना के जिला प्रशासन के साथ-साथ 2 जुलाई 2012 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दरबार में गुहार लगाने के साथ ही गृह विभाग के प्रधान सचिव अमीर सुहानी ने विदेश मंत्रालय को भी पत्र लिखा। परंतु इसके बाद भी सरकारी स्तर पर सतीश को भारत लाने का किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं हुआ। जिसके बाद भी सतीश के छोटे भाई मुकेश चौधरी ने वर्षों तक विभिन्न कार्यालयों में अपने विक्षिप्त भाई को वतन वापस लाने के लिए विनती करते रहा। लेकिन सबों ने सिर्फ भरोसा दिया किया कुछ नहीं। वहीं उन्होंने कहा कि कल उनके छोटे पुत्र के मोबाइल पर फोन आया कि 12 सितंबर को बांग्लादेश की जेल से सतीश को रिहा किया जा रहा है जिससे वह लोग काफी खुश हैं।


Conclusion:वही सतीश के पुत्र आशिक ने कहा कि बचपन में हमने अपने पिता को देखा था अब उनका चेहरा भी ठीक से हमें याद नहीं है और जब वह आएंगे तो उनके साथ बाजार के साथ साथ खेलने का भी काम करेंगे।

वही सतीश के मित्र संजय ने कहा कि जानकारी के अभाव में मजदूर क्लास का मुकेश अपने भाई की खोज में 6 वर्षों बस भटकता रहा। फिर उसने पासपोर्ट और वीजा बनाकर कोलकाता के रास्ते ढाका के लक्ष्मीपुर सेंट्रल जेल पहुंचा। वहां पहुंचने के बाद मुकेश को पता चला कि सतीश सजा पूरी होने की वजह से उसे यहां से छोड़ दिया गया है। जिस पर मुकेश को विश्वास नहीं हुआ और वह बांग्लादेश के कई जेलों में अपनी भाई की खोजबीन की, लेकिन जब उसका किसी प्रकार का पता नहीं चला तो, वह वहां से लौट आया। लेकिन जानकारी के अभाव में वह ढाका के एंबेसी में नहीं जा सका। वही कल यानी 10 सितंबर को बांग्लादेश स्थित भारतीय दूतावास से टेलीफोन आया कि कल यानी 12 सितंबर को आपके भाई को बांग्लादेश के जेल से छोड़ा जा रहा और आपलोग उन्हें आकर ले जाये।

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कला देवी, सतीश की मां
आशिक कुमार चौधरी, सतीश का पुत्र
संजय कुमार दास, सतीश के मित्र
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