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मिथिला संस्कृत शोध संस्थान उपेक्षा का शिकार, दरभंगा महाराज ने 1951 में की थी स्थापना - दरभंगा की ताजा खबर

पांडुलिपि विभाग के प्रभारी प्रकाश चंद्र झा ने कहा कि इस संस्थान का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. यहां दुनिया के कई देशों के शोधार्थी शोध के लिए आते रहे हैं. उन्होंने कहा कि यहां से निकले छात्र देश-विदेश के शिक्षण संस्थानों में परचम लहरा रहे हैं.

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Published : Dec 2, 2020, 1:14 PM IST

दरभंगा: जिले का मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर और शोध संस्थान संस्कृत भाषा की शिक्षा और उसमें शोध के लिए पूरी दुनिया में मशहूर रहा है. इस संस्थान में करीब साढ़े 12 हजार दुर्लभ पांडुलिपियों हैं. इनमें संस्कृत साहित्य, न्याय शास्त्र, मीमांसा और धर्म के अलावा कई विषयों की दुर्लभ पांडुलिपियां शामिल हैं, जो मिथिलक्षर, संस्कृत, उड़िया और पाली जैसी भाषाओं में लिखी गई हैं. इस संस्थान की स्थापना दरभंगा महाराज सर कामेश्वर सिंह ने 1951 में की थी.

भारत के प्रथम राष्ट्रपति ने किया था शिलान्यास
महाराजा ने इस संस्थान की स्थापना के लिए 62 बीघा जमीन और साढ़े 3 लाख रुपये दान दिए थे. इस संस्थान का शिलान्यास भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 21 नवंबर 1951 को किया था. इस संस्थान में दुनिया भर से छात्र अध्ययन और शोध के लिए आते थे, संस्थान के रिकॉर्ड के अनुसार यहां रूस, ब्रिटेन, अमेरिका, जापान, फ्रांस और दूसरे यूरोपियन देशों से भी शोधार्थी आते थे. लेकिन आज यह संस्थान बदहाल स्थिति में है. यहां की पांडुलिपियां पिछले कई साल से एक कमरे में बंद पड़ी हैं. संस्थान में शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मियों के अधिकतर पद खाली होने की वजह से यहां अध्ययन-अध्यापन में परेशानी हो रही है. इस वजह से शोध के लिए छात्रों का आना भी कम हो गया है. संस्थान के निदेशक और यहां के पांडुलिपि प्रभारी का कहना है कि उन्होंने यहां की पांडुलिपियों के डिजिटाइजेशन और संस्थान के विकास के लिए सरकार से अपील की है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

संस्थान में हैं 12 हजार दुर्लभ पांडुलिपियां
मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन और शोध संस्थान के प्रभारी निदेशक डॉ. राजदेव प्रसाद ने कहा कि इस संस्थान में 12 हजार दुर्लभ पांडुलिपियां हैं जो कई भाषाओं और लिपियों में लिखी गई हैं. उन्होंने कहा कि यहां ताल पत्र और कागज पर लिखी कई दुर्लभ पांडुलिपियों हैं जो संस्कृत साहित्य, न्याय शास्त्र, दर्शन, मीमांसा और धर्म शास्त्र पर लिखी गई है. साथ ही कहा कि इन दुर्लभ पांडुलिपियों के डिजिटाइजेशन का प्रयास संस्थान की ओर से शुरू किया गया है. प्रभारी निदेशक ने कहा कि इसके लिए कई संस्थाओं से संपर्क किया गया है. निदेशक ने कहा कि संस्थान में शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मियों के पद खाली होने की वजह से अध्ययन-अध्यापन में बाधा आ रही है. उन्होंने कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए सरकार से अपील की गई है.

darbhanga
दुर्लभ पांडुलिपियां

'संस्थान का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है'
वहीं, संस्थान के पांडुलिपि विभाग के प्रभारी प्रकाश चंद्र झा ने कहा कि इस संस्थान का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. यहां दुनिया के कई देशों के शोधार्थी शोध के लिए आते रहे हैं. उन्होंने कहा कि यहां से निकले छात्र आज देश-विदेश के शिक्षण संस्थानों में परचम लहरा रहे हैं. यहां से निकले लोगों ने भारत में राष्ट्रपति पुरस्कार समेत कई सम्मान प्राप्त किए हैं. दरभंगा के सांसद गोपाल जी ठाकुर ने मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन और शोध संस्थान के विकास के लिए पहल की है. सांसद गोपलजी ठाकुर ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दरभंगा के मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन और शोध संस्थान का अधिग्रहण करने की अपील की है.

दरभंगा: जिले का मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर और शोध संस्थान संस्कृत भाषा की शिक्षा और उसमें शोध के लिए पूरी दुनिया में मशहूर रहा है. इस संस्थान में करीब साढ़े 12 हजार दुर्लभ पांडुलिपियों हैं. इनमें संस्कृत साहित्य, न्याय शास्त्र, मीमांसा और धर्म के अलावा कई विषयों की दुर्लभ पांडुलिपियां शामिल हैं, जो मिथिलक्षर, संस्कृत, उड़िया और पाली जैसी भाषाओं में लिखी गई हैं. इस संस्थान की स्थापना दरभंगा महाराज सर कामेश्वर सिंह ने 1951 में की थी.

भारत के प्रथम राष्ट्रपति ने किया था शिलान्यास
महाराजा ने इस संस्थान की स्थापना के लिए 62 बीघा जमीन और साढ़े 3 लाख रुपये दान दिए थे. इस संस्थान का शिलान्यास भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 21 नवंबर 1951 को किया था. इस संस्थान में दुनिया भर से छात्र अध्ययन और शोध के लिए आते थे, संस्थान के रिकॉर्ड के अनुसार यहां रूस, ब्रिटेन, अमेरिका, जापान, फ्रांस और दूसरे यूरोपियन देशों से भी शोधार्थी आते थे. लेकिन आज यह संस्थान बदहाल स्थिति में है. यहां की पांडुलिपियां पिछले कई साल से एक कमरे में बंद पड़ी हैं. संस्थान में शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मियों के अधिकतर पद खाली होने की वजह से यहां अध्ययन-अध्यापन में परेशानी हो रही है. इस वजह से शोध के लिए छात्रों का आना भी कम हो गया है. संस्थान के निदेशक और यहां के पांडुलिपि प्रभारी का कहना है कि उन्होंने यहां की पांडुलिपियों के डिजिटाइजेशन और संस्थान के विकास के लिए सरकार से अपील की है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

संस्थान में हैं 12 हजार दुर्लभ पांडुलिपियां
मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन और शोध संस्थान के प्रभारी निदेशक डॉ. राजदेव प्रसाद ने कहा कि इस संस्थान में 12 हजार दुर्लभ पांडुलिपियां हैं जो कई भाषाओं और लिपियों में लिखी गई हैं. उन्होंने कहा कि यहां ताल पत्र और कागज पर लिखी कई दुर्लभ पांडुलिपियों हैं जो संस्कृत साहित्य, न्याय शास्त्र, दर्शन, मीमांसा और धर्म शास्त्र पर लिखी गई है. साथ ही कहा कि इन दुर्लभ पांडुलिपियों के डिजिटाइजेशन का प्रयास संस्थान की ओर से शुरू किया गया है. प्रभारी निदेशक ने कहा कि इसके लिए कई संस्थाओं से संपर्क किया गया है. निदेशक ने कहा कि संस्थान में शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मियों के पद खाली होने की वजह से अध्ययन-अध्यापन में बाधा आ रही है. उन्होंने कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए सरकार से अपील की गई है.

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दुर्लभ पांडुलिपियां

'संस्थान का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है'
वहीं, संस्थान के पांडुलिपि विभाग के प्रभारी प्रकाश चंद्र झा ने कहा कि इस संस्थान का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. यहां दुनिया के कई देशों के शोधार्थी शोध के लिए आते रहे हैं. उन्होंने कहा कि यहां से निकले छात्र आज देश-विदेश के शिक्षण संस्थानों में परचम लहरा रहे हैं. यहां से निकले लोगों ने भारत में राष्ट्रपति पुरस्कार समेत कई सम्मान प्राप्त किए हैं. दरभंगा के सांसद गोपाल जी ठाकुर ने मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन और शोध संस्थान के विकास के लिए पहल की है. सांसद गोपलजी ठाकुर ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दरभंगा के मिथिला संस्कृत स्नातकोत्तर अध्ययन और शोध संस्थान का अधिग्रहण करने की अपील की है.

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