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कार नहीं नाव है यहां स्टेटस सिंबल, इसी पर पिता के घर से विदा होती है बेटी

दरभंगा (Darbhanga) के कुशेश्वरस्थान इलाके में स्टेटस सिंबल कार नहीं, नाव है. इतना ही नहीं, यहां बेटी की बारात नाव पर ही आती है और उसकी विदाई भी नाव पर ही होती है.

life on boat in darbhanga
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Published : Jun 16, 2021, 8:13 PM IST

दरभंगा: आज के जमाने में एसयूवी (SUV) और होंडा सिटी (Honda City) जैसी कारें स्टेटस सिंबल होती हैं. जिनके दरवाजे पर ये कारें लगी होती हैं, उन्हें रसूखदार माना जाता है. लेकिन बिहार में एक ऐसा इलाका भी है जहां के लोगों के लिए स्टेटस सिंबल लक्जरियस कार नहीं बल्कि नाव मानी जाती है. जिस व्यक्ति के दरवाजे पर जितनी बड़ी और मजबूत नाव खड़ी होगी, वह उतना ही रसूखदार माना जाएगा.

ये भी पढ़ें: पटना पहुंचे लोजपा सांसद पशुपति कुमार पारस, एयरपोर्ट पर कार्यकर्ताओं ने किया भव्य स्वागत

बाढ़ के पानी में डूबा रहता है इलाका
हम बात कर रहे हैं दरभंगा (Darbhanga) जिले के कुशेश्वरस्थान इलाके (Kusheshwar Sthan) की. जहां साल के छह महीने बाढ़ के पानी में डूबे रहने वाले इस इलाके की जिंदगी नाव (Life on Boat) पर ही चलती है.

नेपाल से होकर आने वाली अधवारा समूह की दर्जनों नदियों का यहां जाल फैला है. इस इलाके में आजादी के बाद से आज तक एक बड़ी आबादी को सड़क मयस्सर नहीं है.

life on boat in darbhanga
नाव पर चलती है जिंदगी

बड़े पैमाने पर नावों का निर्माण
यहां जब बाढ़ का पानी नहीं होता है, तब इस पूरे इलाके में रेत ही रेत नजर आती है. ऐसे में यहां के लोगों के लिए आवागमन बेहद कठिन होता है. इसलिए कुशेश्वरस्थान के लोगों के लिए पानी और नाव ही लाइफलाइन मानी जाती है. ये नावें ही यहां जन्म से लेकर मृत्यु की अंतिम यात्रा तक सहारा होती है. कुशेश्वरस्थान में बड़े पैमाने पर नावों का निर्माण होता है.

ये भी पढ़ें: भतीजे पर चाचा पशुपति पारस का बड़ा हमला, पूछा- किस हैसियत से पार्टी से बाहर निकाला?

सरकारी स्तर पर भी नाव की खरीद
बरसात शुरू होने के पहले ही यहां के नाव कारोबारियों को बड़ी संख्या में नाव के ऑर्डर मिलते हैं. यहां नाव खरीदने के लिए दूसरे जिलों से भी ऑर्डर मिलते हैं. सरकारी स्तर पर भी नाव की खरीद होती है. स्थानीय अमित कुमार ने बताया कि कुशेश्वरस्थान के इलाके में साल के 6 माह बाढ़ का पानी होता है.

life on boat in darbhanga
नाव बनाते कारीगर

"जब बाढ़ का पानी इस इलाके में होता है, तो बेटी की बारात नाव पर ही आती है और उसकी विदाई भी नाव पर होती है. कोई बीमार पड़ता है, तो उसे नाव पर ही रख कर कुशेश्वर स्थान से पीएचसी ले जाते हैं. बाढ़ के दिनों में अगर किसी का देहांत हो जाता है तो, उसकी अंतिम यात्रा नाव पर ही निकाली जाती है और अंतिम संस्कार के लिए नाव ही घाट तक ले जाती है"- अमित कुमार, स्थानीय

ये भी पढ़ें: पटना नाव हादसा: बालू से लदी नाव पलटी, 15 बचाये गये, 3 की तलाश जारी

"कुशेश्वरस्थान पूर्वी प्रखंड की 10 में से 8 पंचायतों में साल के 6 महीने बाढ़ का पानी रहता है. इस इलाके में जीवन नाव पर ही चलता है. इस इलाके में फॉर्च्यून या इनोवा जैसी लक्जरियस कार नहीं, बल्कि नाव स्टेटस सिंबल मानी जाती है. जो लोग लक्जरियस कार रखते हैं, उनकी कार साल के 6 महीने बेकार खड़ी रहती है. यहां के लोग आवागमन से लेकर व्यापार तक के लिए नाव का ही प्रयोग करते हैं"- संतोष पोद्दार, स्थानीय पत्रकार

क्या कहते हैं कारीगर
नाव के एक कारीगर उपेंद्र प्रसाद ने कहा कि जामुन की नाव की कीमत 15 हजार तक होती है. जबकि शीशम की छोटी नाव 50 हजार तक में बिकती है. बाढ़ के पहले हर साल उनका नाव बना कर बेचने का अच्छा धंधा चलता है. वे हर साल 25 से 50 नाव बना कर बेच लेते हैं.

ये भी पढ़ें: कोरोना का कहर: बच्चों के सिर से छीन गया पिता का साया, अब कैसे होगी परवरिश

"हर साल यहां बरसात के पहले 100-150 कारीगर काम करने आते हैं. हर साल करीब डेढ़ सौ नाव बना कर बेचते हैं. 15 हजार से लेकर डेढ़-पौने दो लाख तक की नाव बना कर बेचते हैं. दूसरे जिले से भी नाव के खरीदार यहां आते हैं"- लाल मोहम्मद, नाव कारोबारी

नाव से होता है आवागमन
कुशेश्वरस्थान पूर्वी अंचल के सीओ त्रिवेणी प्रसाद ने बताया कि इस साल बाढ़ के पहले यहां 87 नावें सूचीबद्ध की गई हैं. जिनमें से 27 का रजिस्ट्रेशन हुआ है. उन्होंने कहा कि इन्हीं नावों से बाढ़ के समय आवागमन होगा. यहां के लोगों के लिए नाव ही आवागमन का सबसे बड़ा सहारा है.

ये भी पढ़ें: लोजपा में टूट का मामला पहुंचा कोर्टः पशुपति कुमार पारस पर धोखाधड़ी का परिवाद दर्ज

दरभंगा: आज के जमाने में एसयूवी (SUV) और होंडा सिटी (Honda City) जैसी कारें स्टेटस सिंबल होती हैं. जिनके दरवाजे पर ये कारें लगी होती हैं, उन्हें रसूखदार माना जाता है. लेकिन बिहार में एक ऐसा इलाका भी है जहां के लोगों के लिए स्टेटस सिंबल लक्जरियस कार नहीं बल्कि नाव मानी जाती है. जिस व्यक्ति के दरवाजे पर जितनी बड़ी और मजबूत नाव खड़ी होगी, वह उतना ही रसूखदार माना जाएगा.

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बाढ़ के पानी में डूबा रहता है इलाका
हम बात कर रहे हैं दरभंगा (Darbhanga) जिले के कुशेश्वरस्थान इलाके (Kusheshwar Sthan) की. जहां साल के छह महीने बाढ़ के पानी में डूबे रहने वाले इस इलाके की जिंदगी नाव (Life on Boat) पर ही चलती है.

नेपाल से होकर आने वाली अधवारा समूह की दर्जनों नदियों का यहां जाल फैला है. इस इलाके में आजादी के बाद से आज तक एक बड़ी आबादी को सड़क मयस्सर नहीं है.

life on boat in darbhanga
नाव पर चलती है जिंदगी

बड़े पैमाने पर नावों का निर्माण
यहां जब बाढ़ का पानी नहीं होता है, तब इस पूरे इलाके में रेत ही रेत नजर आती है. ऐसे में यहां के लोगों के लिए आवागमन बेहद कठिन होता है. इसलिए कुशेश्वरस्थान के लोगों के लिए पानी और नाव ही लाइफलाइन मानी जाती है. ये नावें ही यहां जन्म से लेकर मृत्यु की अंतिम यात्रा तक सहारा होती है. कुशेश्वरस्थान में बड़े पैमाने पर नावों का निर्माण होता है.

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सरकारी स्तर पर भी नाव की खरीद
बरसात शुरू होने के पहले ही यहां के नाव कारोबारियों को बड़ी संख्या में नाव के ऑर्डर मिलते हैं. यहां नाव खरीदने के लिए दूसरे जिलों से भी ऑर्डर मिलते हैं. सरकारी स्तर पर भी नाव की खरीद होती है. स्थानीय अमित कुमार ने बताया कि कुशेश्वरस्थान के इलाके में साल के 6 माह बाढ़ का पानी होता है.

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नाव बनाते कारीगर

"जब बाढ़ का पानी इस इलाके में होता है, तो बेटी की बारात नाव पर ही आती है और उसकी विदाई भी नाव पर होती है. कोई बीमार पड़ता है, तो उसे नाव पर ही रख कर कुशेश्वर स्थान से पीएचसी ले जाते हैं. बाढ़ के दिनों में अगर किसी का देहांत हो जाता है तो, उसकी अंतिम यात्रा नाव पर ही निकाली जाती है और अंतिम संस्कार के लिए नाव ही घाट तक ले जाती है"- अमित कुमार, स्थानीय

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"कुशेश्वरस्थान पूर्वी प्रखंड की 10 में से 8 पंचायतों में साल के 6 महीने बाढ़ का पानी रहता है. इस इलाके में जीवन नाव पर ही चलता है. इस इलाके में फॉर्च्यून या इनोवा जैसी लक्जरियस कार नहीं, बल्कि नाव स्टेटस सिंबल मानी जाती है. जो लोग लक्जरियस कार रखते हैं, उनकी कार साल के 6 महीने बेकार खड़ी रहती है. यहां के लोग आवागमन से लेकर व्यापार तक के लिए नाव का ही प्रयोग करते हैं"- संतोष पोद्दार, स्थानीय पत्रकार

क्या कहते हैं कारीगर
नाव के एक कारीगर उपेंद्र प्रसाद ने कहा कि जामुन की नाव की कीमत 15 हजार तक होती है. जबकि शीशम की छोटी नाव 50 हजार तक में बिकती है. बाढ़ के पहले हर साल उनका नाव बना कर बेचने का अच्छा धंधा चलता है. वे हर साल 25 से 50 नाव बना कर बेच लेते हैं.

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"हर साल यहां बरसात के पहले 100-150 कारीगर काम करने आते हैं. हर साल करीब डेढ़ सौ नाव बना कर बेचते हैं. 15 हजार से लेकर डेढ़-पौने दो लाख तक की नाव बना कर बेचते हैं. दूसरे जिले से भी नाव के खरीदार यहां आते हैं"- लाल मोहम्मद, नाव कारोबारी

नाव से होता है आवागमन
कुशेश्वरस्थान पूर्वी अंचल के सीओ त्रिवेणी प्रसाद ने बताया कि इस साल बाढ़ के पहले यहां 87 नावें सूचीबद्ध की गई हैं. जिनमें से 27 का रजिस्ट्रेशन हुआ है. उन्होंने कहा कि इन्हीं नावों से बाढ़ के समय आवागमन होगा. यहां के लोगों के लिए नाव ही आवागमन का सबसे बड़ा सहारा है.

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