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रिश्तों पर भारी कोरोना, पिता का शव लेने से बेटे का इनकार, मुस्लिम युवक ने किया अंतिम संस्कार

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Published : Apr 20, 2021, 11:17 PM IST

Updated : Apr 21, 2021, 5:04 PM IST

दरभंगा में कोरोना महामारी के इस दौर में मानवीय रिश्तों की भी मौत हो रही है. डीएमसीएच में कोरोना से जिनकी मौत हो चुकी है उनके परिजन अपनों के शवों को छोड़कर भाग खड़े हो रहे हैं. लेकिन कबीर सेवा संस्थान ऐसे कामों के लिए आगे आकर मिसाल पेश कर रहा है. देखिए ये रिपोर्ट.

दरभंगा
दरभंगा

दरभंगा: जिले के दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के कोरोना आइसोलेशन वार्ड में दिल को झकझोर देने वाले ऐसे कई दृश्य दिखे जहां कोरोना महामारी ने मानवीय रिश्तों को तार-तार करके रख दिया. कहीं, बेटा बाप के शव को लेने से लिखित रूप से इनकार कर रहा है. तो कहीं, पत्नी पति के शव को देखने तक नहीं आ रही है. ऐसे शवों के अंतिम संस्कार करने में जिला प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं.

ये भी पढ़ें- कोरोना संकट : देश को लॉकडाउन से बचाना है- पीएम मोदी

कोरोना से मौत, पिता का शव लेने से बेटे का इनकार
दरभगा के केवटी प्रखंड में एक बुजुर्ग की कोरोना से मौत हो गई. अस्पताल प्रशासन ने इसकी सूचना उनके घरवालों की दी. लेकिन, उनके तीन बेटों में से दो ने बॉडी लेने से मना कर दिया. दो बेटे और उनका पूरा परिवार कोरोना संक्रमित थे. तीसरे बेटे ने पिता का शव लेने से लिखित रूप से इनकार कर दिया और अपना मोबाइल बंद कर लिया. इसके बाद कबीर संस्थान ने मानव धर्म निभाते हुए इस बुजुर्ग के अंतिम संस्कार का फैसला लिया. संस्थान के एक मुस्लिम युवक ने बेटे का फर्ज निभाते हुए हिंदू रीति रिवाज से बुजुर्ग का अंतिम संस्कार किया.

विधि विधान से अंतिम संस्कार
विधि विधान से अंतिम संस्कार

शव को देखने तक नहीं आई पत्नी
वहीं, दूसरी घटना 10 अप्रैल को हुई जब दरभंगा के मनीगाछी प्रखंड के एक गांव के 30 वर्षीय युवक की कोरोना से डीएमसीएच में मौत हो गई. युवक मुंबई में काम करता था. उसके परिवार में उसकी पत्नी और दो छोटे बच्चे थे. अस्पताल प्रशासन इसकी सूचना परिवार को दी. लेकिन, पत्नी अपने पति का शव लेने नहीं आई. इन दोनों शवों का अंतिम संस्कार कबीर सेवा संस्थान के लोगों ने किया.

अनजान फरिश्ते बने साथी
अनजान फरिश्ते बने साथी

इंसानियत की मिसाल
इस मुश्किल घड़ी में कबीर सेवा संस्थान नामक एक स्वयंसेवी संगठन इंसानियत की मिसाल पेश कर रहा है. कबीर सेवा संस्थान के 12 सदस्य अपनी जान की बाजी लगाकर ऐसे शवों का उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार कर रहे हैं. इस संस्थान के लोगों ने कोरोना काल में अब तक करीब दो दर्जन हिंदू धर्म के मृतकों और करीब एक दर्जन मुस्लिम धर्म के मृतकों के शवों का अंतिम संस्कार किया है. ऐसे शवों के अंतिम संस्कार के लिए विशेष रूप से श्मशान और कब्रिस्तान का चयन किया गया है.

ये भी पढ़ें- Bihar Corona Update: कोरोना के कहर से कराह रहा बिहार, आज 10455 नये केस और 51 की मौत

अनजान लोगों ने दिया अंतिम साथ
कबीर सेवा संस्थान के एक प्रमुख सदस्य नवीन सिन्हा ने बताया कि इस संस्था की स्थापना 2014 में लावारिस शवों के अंतिम संस्कार के लिए की गई थी. 2014 से लेकर अब तक करीब सवा सौ लावारिस शवों के अंतिम संस्कार उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार संस्था कर चुकी है. कोरोना काल में इस बीमारी से परिजन अपनों का शव छोड़कर चले जा रहे हैं, ऐसी स्थिति में भी कबीर सेवा संस्थान उन शवों का अंतिम संस्कार कर रहा है.

''पिछले साल से लेकर अब तक करीब दो दर्जन हिंदुओं और एक दर्जन मुस्लिमों के शवों का अंतिम संस्कार उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ किया जा चुका है, जिनकी मौत कोरोना से हुई थी और जिनके परिजन उनका अंतिम संस्कार किसी वजह से नहीं करना चाहते थे. समाज में लोग उनकी टीम के सदस्यों से दूरी बनाकर रहते हैं. लेकिन ऐसी स्थिति में भी वो शवों का अंतिम संस्कार करते हैं. इससे हमें संतुष्टि मिलती है. ये उनका सामाजिक दायित्व है, जिसे वे निभाते हैं''- नवीन सिन्हा, सदस्य, कबीर सेवा संस्थान

देखिए ये रिपोर्ट

''पिछले साल से लेकर अब तक कबीर सेवा संस्थान ने कोरोना से मृत ऐसे अनेक लोगों का अंतिम संस्कार किया है, जिनके परिजन उनके शव लेने से इनकार कर चुके थे. इस संस्था का कार्य सराहनीय है. कबीर सेवा संस्थान को जिला प्रशासन की ओर से सम्मानित किया जाएगा''- डॉ. त्यागराजन एसएम, डीएम, दरभंगा

ये भी पढ़ें- तेजस्वी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की मांग, दीजिए ऑक्सीजन

इंसानियत अब भी जिंदा है
कोरोना महामारी के इस दौर में मानवीय रिश्तों की भी मौत हो रही है. बेटे अपने पिता की डेडबॉडी नहीं ले रहे हैं. ऐसे शवों का अंतिम संस्कार करने में जिला प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं, लेकिन ऐसे में कबीर सेवा संस्थान आगे आकर मिसाल पेश कर रहा है. कोरोना से मौत हो जाने के बाद जब अपनों ने उनको ठुकरा दिया तब अनजान लोगों ने अंतिम साथ देकर उनको मुक्ति देने का काम किया और इनके इसी मानवीयता के चलते कहा जा सकता है कि इंसानियत अब भी जिंदा है.

दरभंगा: जिले के दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के कोरोना आइसोलेशन वार्ड में दिल को झकझोर देने वाले ऐसे कई दृश्य दिखे जहां कोरोना महामारी ने मानवीय रिश्तों को तार-तार करके रख दिया. कहीं, बेटा बाप के शव को लेने से लिखित रूप से इनकार कर रहा है. तो कहीं, पत्नी पति के शव को देखने तक नहीं आ रही है. ऐसे शवों के अंतिम संस्कार करने में जिला प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं.

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कोरोना से मौत, पिता का शव लेने से बेटे का इनकार
दरभगा के केवटी प्रखंड में एक बुजुर्ग की कोरोना से मौत हो गई. अस्पताल प्रशासन ने इसकी सूचना उनके घरवालों की दी. लेकिन, उनके तीन बेटों में से दो ने बॉडी लेने से मना कर दिया. दो बेटे और उनका पूरा परिवार कोरोना संक्रमित थे. तीसरे बेटे ने पिता का शव लेने से लिखित रूप से इनकार कर दिया और अपना मोबाइल बंद कर लिया. इसके बाद कबीर संस्थान ने मानव धर्म निभाते हुए इस बुजुर्ग के अंतिम संस्कार का फैसला लिया. संस्थान के एक मुस्लिम युवक ने बेटे का फर्ज निभाते हुए हिंदू रीति रिवाज से बुजुर्ग का अंतिम संस्कार किया.

विधि विधान से अंतिम संस्कार
विधि विधान से अंतिम संस्कार

शव को देखने तक नहीं आई पत्नी
वहीं, दूसरी घटना 10 अप्रैल को हुई जब दरभंगा के मनीगाछी प्रखंड के एक गांव के 30 वर्षीय युवक की कोरोना से डीएमसीएच में मौत हो गई. युवक मुंबई में काम करता था. उसके परिवार में उसकी पत्नी और दो छोटे बच्चे थे. अस्पताल प्रशासन इसकी सूचना परिवार को दी. लेकिन, पत्नी अपने पति का शव लेने नहीं आई. इन दोनों शवों का अंतिम संस्कार कबीर सेवा संस्थान के लोगों ने किया.

अनजान फरिश्ते बने साथी
अनजान फरिश्ते बने साथी

इंसानियत की मिसाल
इस मुश्किल घड़ी में कबीर सेवा संस्थान नामक एक स्वयंसेवी संगठन इंसानियत की मिसाल पेश कर रहा है. कबीर सेवा संस्थान के 12 सदस्य अपनी जान की बाजी लगाकर ऐसे शवों का उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार कर रहे हैं. इस संस्थान के लोगों ने कोरोना काल में अब तक करीब दो दर्जन हिंदू धर्म के मृतकों और करीब एक दर्जन मुस्लिम धर्म के मृतकों के शवों का अंतिम संस्कार किया है. ऐसे शवों के अंतिम संस्कार के लिए विशेष रूप से श्मशान और कब्रिस्तान का चयन किया गया है.

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अनजान लोगों ने दिया अंतिम साथ
कबीर सेवा संस्थान के एक प्रमुख सदस्य नवीन सिन्हा ने बताया कि इस संस्था की स्थापना 2014 में लावारिस शवों के अंतिम संस्कार के लिए की गई थी. 2014 से लेकर अब तक करीब सवा सौ लावारिस शवों के अंतिम संस्कार उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार संस्था कर चुकी है. कोरोना काल में इस बीमारी से परिजन अपनों का शव छोड़कर चले जा रहे हैं, ऐसी स्थिति में भी कबीर सेवा संस्थान उन शवों का अंतिम संस्कार कर रहा है.

''पिछले साल से लेकर अब तक करीब दो दर्जन हिंदुओं और एक दर्जन मुस्लिमों के शवों का अंतिम संस्कार उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ किया जा चुका है, जिनकी मौत कोरोना से हुई थी और जिनके परिजन उनका अंतिम संस्कार किसी वजह से नहीं करना चाहते थे. समाज में लोग उनकी टीम के सदस्यों से दूरी बनाकर रहते हैं. लेकिन ऐसी स्थिति में भी वो शवों का अंतिम संस्कार करते हैं. इससे हमें संतुष्टि मिलती है. ये उनका सामाजिक दायित्व है, जिसे वे निभाते हैं''- नवीन सिन्हा, सदस्य, कबीर सेवा संस्थान

देखिए ये रिपोर्ट

''पिछले साल से लेकर अब तक कबीर सेवा संस्थान ने कोरोना से मृत ऐसे अनेक लोगों का अंतिम संस्कार किया है, जिनके परिजन उनके शव लेने से इनकार कर चुके थे. इस संस्था का कार्य सराहनीय है. कबीर सेवा संस्थान को जिला प्रशासन की ओर से सम्मानित किया जाएगा''- डॉ. त्यागराजन एसएम, डीएम, दरभंगा

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इंसानियत अब भी जिंदा है
कोरोना महामारी के इस दौर में मानवीय रिश्तों की भी मौत हो रही है. बेटे अपने पिता की डेडबॉडी नहीं ले रहे हैं. ऐसे शवों का अंतिम संस्कार करने में जिला प्रशासन के पसीने छूट रहे हैं, लेकिन ऐसे में कबीर सेवा संस्थान आगे आकर मिसाल पेश कर रहा है. कोरोना से मौत हो जाने के बाद जब अपनों ने उनको ठुकरा दिया तब अनजान लोगों ने अंतिम साथ देकर उनको मुक्ति देने का काम किया और इनके इसी मानवीयता के चलते कहा जा सकता है कि इंसानियत अब भी जिंदा है.

Last Updated : Apr 21, 2021, 5:04 PM IST
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