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कन्हैया की 'जमीन' पर लालू ने ठोका दावा, सियासी दांव-पेंच में फंसा बिहार का 'मिनी मास्को'

महागठबंधन में सीटों को लेकर विवाद थमता नहीं दिख रहा है. बुधवार को दिल्ली में महागबंधन के नेताओं की बैठक भी हुई लेकिन सीटों पर फैसला न हो सका. सूत्रों के मुताबिक, राजद और कांग्रेस के बीच कई सीटों को लेकर मतभेद है. खासकर दरभंगा और बेगूसराय को लेकर माथापच्ची जारी है.

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Published : Mar 14, 2019, 11:09 PM IST


पटना: महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. आरजेडी और कांग्रेस के नेता भले ही दावा करे कि महागठबंधन में सब ठीक है लेकिन पटना पहुंचे मांझी ने जो संकेत दिया है, उससे साफ है कि अभी तक कुछ भी ठीक नहीं है.

बुधवार को दिल्ली में महागठबंधन के नेताओं की बैठक हुई थी, आठ घंटे तक चली इस बैठक के बाद महागठबंधन के नेता जब बाहर आये तो सभी ने एक सुर में कहा ऑल इज वेल, लेकिन मांझी के तेवर देख नहीं लगता कि सब कुछ ठीक है.

एक-दो दिन में हो जाएगा फैसला
पटना पहुंचे मांझी ने कहा कि सीट शेयरिंग पर बात चल रही है, लेकिन अभी भी कुछ सीटों पर अड़चन है, जिसे दूर कर लिया जाएगा. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम पार्टी की 16 मार्च को पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक होगी, उसके बाद फैसला लिया जाएगा. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि एक-दो दिन में महागठबंधन के नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीटों का ऐलान कर देंगे.


कहां फंसा है पेंच?
बिहार में दो ऐसी सीट है, जहां पर महागठबंधन में सहमति नहीं बन पा रही है. पहली सीट दरभंगा तो दूसरी बेगूसराय की है. दरअसल, महागठबंधन में शामिल वीआईपी के नेता मुकेश सहनी दरभंगा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. हालांकि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सहनी ने अब चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया है. बताया जा रहा है कि वे नाराज हैं, इसी कारण वे चुनाव नहीं लड़ेंगे. जबकि इस सीट पर कांग्रेस भी दावा कर रही है, क्योंकि बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए कीर्ति आजाद यहां से सांसद हैं और इसी सीट से चुनाव भी लड़ना चाहते हैं.

kanhaiya
फाइल

अगर बेगूसराय की बात किया जाए तो यहां से जेएनयू के पूर्व छात्र नेता चुनाव लड़ना चाहते हैं. भाकपा ने ऐलान भी कर दिया है कि कन्हैया कुमार बेगूसराय से चुनाव लड़ेंगे. जबकि आरजेडी यहां से तनवीर हसन को चुनाव में उतारने की तैयारी कर चुका है. सूत्र ये भी बता रहे हैं कि पार्टी ने हसन को संकेत भी दे दिया है.


बेगूसराय में कन्हैया पर क्यों तैयार नहीं हो रहा आरजेडी?
कन्हैया के नाम से सिर्फ बीजेपी ही नहीं, कथित तौर पर जो उनके सहयोगी हैं, वो भी परेशान हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है कन्हैया का तेवर और उनकी उम्र. दरअसल, लालू परिवार के वारिस तेजस्वी यादव हों या पासवान परिवार के दीपक चिराग पासवान. तीनों की उम्र लगभग समान है. कन्हैया के तेवर और राष्ट्रीय पहचान को देखते हुए लालू नहीं चाहते कि कन्हैया कुमार को बेगूसराय से महागठबंधन का उम्मीदवार बनाया जाए, जो आने वाले समय में उन्हीं के लिए खतरा बन जाएं.


कन्हैया के लिए बेगूसराय है सेफ?
कन्हैया कुमार राष्ट्रीय स्तर की राजनीति करने के लिए जिस जमीन की तलाश में हैं, वो बेगूसराय से बेहतर कोई और हो ही नहीं सकती. क्योंकि बेगूसराय को बिहार का 'मिनी मास्को' कहा जाता है. माना जाता है यहां पर भाकपा का अपना जनाधार भी है.


अपने कन्हैया के क्यों बने विरोधी?
अब तक कन्हैया को अपना बताने वाले विरोधी हो गए हैं. इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है वो है सियासी अदावत. दरअसल कन्हैया हों या तेजस्वी, दोनों की सियासत आरएसएस, बीजेपी और पीएम मोदी के विरोध पर ही अब तक टिकी हुई है. दोनों ने ही खुलकर संघ और संघ की विचार-धारा का विरोध किया और अपनी पहचान बनाई है.


लालू का तर्क- नहीं है जनाधार
इधर, लालू का कहना बिहार में भाकपा का कोई जनाधार नहीं है. लालू के तर्क में कितना दम है ये तो भविष्य पर निर्भर करता है. लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो यहां भाकपा को लगभग एक लाख 92 हजार वोट मिले थे और भाकपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर थे. ऐसे में लालू के तर्क के संकेत को समझा जा सकता है.


पटना: महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. आरजेडी और कांग्रेस के नेता भले ही दावा करे कि महागठबंधन में सब ठीक है लेकिन पटना पहुंचे मांझी ने जो संकेत दिया है, उससे साफ है कि अभी तक कुछ भी ठीक नहीं है.

बुधवार को दिल्ली में महागठबंधन के नेताओं की बैठक हुई थी, आठ घंटे तक चली इस बैठक के बाद महागठबंधन के नेता जब बाहर आये तो सभी ने एक सुर में कहा ऑल इज वेल, लेकिन मांझी के तेवर देख नहीं लगता कि सब कुछ ठीक है.

एक-दो दिन में हो जाएगा फैसला
पटना पहुंचे मांझी ने कहा कि सीट शेयरिंग पर बात चल रही है, लेकिन अभी भी कुछ सीटों पर अड़चन है, जिसे दूर कर लिया जाएगा. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम पार्टी की 16 मार्च को पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक होगी, उसके बाद फैसला लिया जाएगा. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि एक-दो दिन में महागठबंधन के नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीटों का ऐलान कर देंगे.


कहां फंसा है पेंच?
बिहार में दो ऐसी सीट है, जहां पर महागठबंधन में सहमति नहीं बन पा रही है. पहली सीट दरभंगा तो दूसरी बेगूसराय की है. दरअसल, महागठबंधन में शामिल वीआईपी के नेता मुकेश सहनी दरभंगा सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं. हालांकि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सहनी ने अब चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया है. बताया जा रहा है कि वे नाराज हैं, इसी कारण वे चुनाव नहीं लड़ेंगे. जबकि इस सीट पर कांग्रेस भी दावा कर रही है, क्योंकि बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए कीर्ति आजाद यहां से सांसद हैं और इसी सीट से चुनाव भी लड़ना चाहते हैं.

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अगर बेगूसराय की बात किया जाए तो यहां से जेएनयू के पूर्व छात्र नेता चुनाव लड़ना चाहते हैं. भाकपा ने ऐलान भी कर दिया है कि कन्हैया कुमार बेगूसराय से चुनाव लड़ेंगे. जबकि आरजेडी यहां से तनवीर हसन को चुनाव में उतारने की तैयारी कर चुका है. सूत्र ये भी बता रहे हैं कि पार्टी ने हसन को संकेत भी दे दिया है.


बेगूसराय में कन्हैया पर क्यों तैयार नहीं हो रहा आरजेडी?
कन्हैया के नाम से सिर्फ बीजेपी ही नहीं, कथित तौर पर जो उनके सहयोगी हैं, वो भी परेशान हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है कन्हैया का तेवर और उनकी उम्र. दरअसल, लालू परिवार के वारिस तेजस्वी यादव हों या पासवान परिवार के दीपक चिराग पासवान. तीनों की उम्र लगभग समान है. कन्हैया के तेवर और राष्ट्रीय पहचान को देखते हुए लालू नहीं चाहते कि कन्हैया कुमार को बेगूसराय से महागठबंधन का उम्मीदवार बनाया जाए, जो आने वाले समय में उन्हीं के लिए खतरा बन जाएं.


कन्हैया के लिए बेगूसराय है सेफ?
कन्हैया कुमार राष्ट्रीय स्तर की राजनीति करने के लिए जिस जमीन की तलाश में हैं, वो बेगूसराय से बेहतर कोई और हो ही नहीं सकती. क्योंकि बेगूसराय को बिहार का 'मिनी मास्को' कहा जाता है. माना जाता है यहां पर भाकपा का अपना जनाधार भी है.


अपने कन्हैया के क्यों बने विरोधी?
अब तक कन्हैया को अपना बताने वाले विरोधी हो गए हैं. इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है वो है सियासी अदावत. दरअसल कन्हैया हों या तेजस्वी, दोनों की सियासत आरएसएस, बीजेपी और पीएम मोदी के विरोध पर ही अब तक टिकी हुई है. दोनों ने ही खुलकर संघ और संघ की विचार-धारा का विरोध किया और अपनी पहचान बनाई है.


लालू का तर्क- नहीं है जनाधार
इधर, लालू का कहना बिहार में भाकपा का कोई जनाधार नहीं है. लालू के तर्क में कितना दम है ये तो भविष्य पर निर्भर करता है. लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो यहां भाकपा को लगभग एक लाख 92 हजार वोट मिले थे और भाकपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर थे. ऐसे में लालू के तर्क के संकेत को समझा जा सकता है.

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