पटना : बेगूसराय लोकसभा सीट इस समय हॉट सीट बन गई है. सबकी नजर है कि इस सीट पर कौन-कौन नेता ताल ठोकेंगे. खासकर जबसे भाकपा की बिहार शाखा ने कन्हैया कुमार को यहां से प्रत्याशी घोषित किया है, तब से ही चर्चा का बाजार गर्म है. हालांकि अभी तक महागठबंधन में सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है.
इधर, बताया जा रहा है कि लालू यादव कन्हैया कुमार के नाम पर तैयार नहीं हैं. सूत्र बता रहे हैं कि लालू भाकपा और माकपा से गठबंधन के पक्ष में भी नहीं हैं, लेकिन माले के प्रति वो नरम हैं. बिहार की सियासत में लालू के इस रूख के कई मायने निकाले जा रहे हैं.
बेगूसराय पर जारी है रार
बेगूसराय लोकसभा सीट से जेएनयू के पूर्व छात्र नेता चुनाव लड़ना चाहते हैं. भाकपा की बिहार शाखा ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि कन्हैया कुमार बेगूसराय से चुनाव लड़ेंगे. जबकि आरजेडी यहां से तनवीर हसन को चुनाव में उतारने की तैयारी कर चुका है. सूत्र ये भी बता रहे हैं कि पार्टी ने हसन को संकेत भी दे दिया है.
बेगूसराय में कन्हैया पर क्यों तैयार नहीं हो रहा आरजेडी?
कन्हैया के नाम से सिर्फ बीजेपी ही नहीं, कथित तौर पर जो उनके सहयोगी हैं, वो भी परेशान हैं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है कन्हैया का तेवर और उनकी उम्र. दरअसल, लालू परिवार के वारिस तेजस्वी यादव हों या पासवान परिवार के दीपक चिराग पासवान. तीनों की उम्र लगभग एक समान है. कन्हैया के तेवर और राष्ट्रीय पहचान को देखते हुए लालू नहीं चाहते कि कन्हैया कुमार को बेगूसराय से महागठबंधन का उम्मीदवार बनाया जाए, जो आने वाले समय में उन्हीं के लिए खतरा बन जाएं.
कन्हैया के लिए बेगूसराय है सेफ?
कन्हैया कुमार राष्ट्रीय स्तर की राजनीति करने के लिए जिस जमीन की तलाश में हैं, वो बेगूसराय से बेहतर कोई और हो ही नहीं सकती. क्योंकि बेगूसराय को बिहार का 'मिनी मास्को' कहा जाता है. माना जाता है यहां पर भाकपा का अपना जनाधार भी है.
अपने कन्हैया के क्यों बने विरोधी?
अब तक कन्हैया को अपना बताने वाले विरोधी हो गए हैं. इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही वजह है वो है सियासी अदावत. दरअसल कन्हैया हों या तेजस्वी, दोनों की सियासत आरएसएस, बीजेपी और पीएम मोदी के विरोध पर ही अब तक टिकी हुई है. दोनों ने ही खुलकर संघ और संघ की विचार-धारा का विरोध किया और अपनी पहचान बनाई है.
लालू का तर्क- नहीं है जनाधार
इधर, लालू का कहना बिहार में भाकपा का कोई जनाधार नहीं है. लालू के तर्क में कितना दम है ये तो भविष्य पर निर्भर करता है. लेकिन 2014 लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो यहां भाकपा को लगभग एक लाख 92 हजार वोट मिले थे और भाकपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर थे. ऐसे में लालू के तर्क के संकेत को समझा जा सकता है.