बक्सर: बिहार के बक्सर में धान की फसल में अज्ञात बीमारी (Disease In Paddy In Bihar) से पूरे जिले के किसानों में हड़कंप मचा हुआ है. बीते कुछ ही दिनों पहले धान की फसल में पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में धान में रस चूसक कीट (Pest sucking in paddy crop) की वजह से बीमारी की शुरुआत हुई थी. फिलहाल धान की फसल को आगे बढ़ने से रुकने और अन्य बीमारियों से प्रभावित खेतों में तीस फीसदी तक फसल अबतक बीमारी की चपेट में आई है. जिले में प्रकृति के मार से बेहाल अन्नदाता कभी बाढ़ तो कभी सुखाड़ से परेशान थे लेकिन अब अज्ञात बीमारियों की दस्तक से परेशान हो गये हैं.
बांका: धान की फसल में लगने वाली बीमारी से किसान परेशान, कई गांव प्रभावित
जिलाधिकारी ने दिया कृषि वैज्ञानिकोंं को निर्देश: इस पूरे मामले पर जिलाधिकारी अमन समीर (DM Aman Samir In Buxar) के निर्देश पर कृषि विज्ञान केंद्र बक्सर के तीन सदस्यीय वैज्ञानिकों की टीम ने कई गांवों में किसानों की समस्या को देखा और उनकी बातें सुनी है. उनलोगों ने किसानों को बताया कि उर्वरक और दवा का छिड़काव कर अपने फसलों को इस तरह की बीमारी से बचा सकते हैं.वहीं, किसानों ने बताया है कि भयंकर सुखाड़ के बाद भी निजी संसाधनों से जिले के किसानों ने 50 - 60% खेतों में धान की रोपनी की थी. लेकिन प्रकृति ने उनके उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. किसानों का कहना है कि मई,-जून जुलाई, और अगस्त महीने में न के बराबर बारिश होने के कारण अधिकांश धान के बिचड़े खेतों में ही सूख गए. वहीं कई किसानों ने पानी न मिलने की वजह से वैकल्पिक फसल लगाया है. जिले के चौसा, सिमरी , ब्रह्मपुर, चक्की प्रखंड के किसानों ने बड़े पैमाने पर सब्जी, बाजरे, मक्का की खेती कर दिये थे. लेकिन गंगा नदी के बढ़े जलस्तर ने सारे फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया.
खेतो में सूखने लगी फसल: पूरे साल पर्याप्त मात्रा में बारिश नहीं होने के कारण निजी संसाधनों और नहरों में पानी रहने से किसानों ने अपने खेत में धान के बीचडे डाले थे. उसके बाद भी समय पर बारिश नहीं होने के कारण 50 से 60% किसानों ने ही नहरों और ट्यूबेल के सहारे अपने खेतों में धान की रोपनी की थी. जबकि अधिकांश किसानों के बिचड़े खेतो में में ही सूख गये थे. इस तरह बारिश के मौसम में प्रतिकूल होने के बावजूद भी जिस तरह धान की फसलों को किसानों ने बचाया था. उसमें बाली आने से पहले ही बीमारी लग गई और फसल खेतों में ही सूखने लगे.
कृषि वैज्ञानिकों ने किया गांव का दौरा: किसानों के धान की फसल में लगे रोग की जानकारी मिलने पर जिलाधिकारी अमन समीर ने संज्ञान लेते हुए कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की टीम को प्रक्षेत्र भ्रमण कर किसानों की समस्याओं को दूर करने के निर्देश दिये हैं. प्रखंड के कुल्हड़िया, जगदीशपुर समेत अन्य गांव में पहुंचे. कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि धान की फसल में रसचूसक कीट बग (ब्रिवेनिया रेही) का प्रकोप पाया गया है जिसे किसान चतरा बता रहे थे.
कृषि वैज्ञानिकों ने बीमारी की जानकारी दी: कृषि वैज्ञानिकों का कहना था कि इस कीट का प्रकोप विशेषत: उपरी खेतों में लगता है. खेतों के निचले इलाके में यदि पानी की कमी होती है और वर्षा के अन्तराल अधिक होता है, तो इसका प्रकोप दिखाई देने लगता है. इसका प्रकोप होने पर खेतों में धान और भी पौधे की पतिया धीरे-धीरे पीला होकर सूखने लगती है. जिससे पौधे की वृद्धि रूक जाती है और उसमें बालियां नहीं बनती है. धान के तने में पतियों को हटाने पर सफेद रंग का चूना जैसा चिपचिपा लक्षण दिखाई देता है. उसमें छोटे-छोटे हल्के लाल रंग के रसचूसक कीट दिखाई देते है, जो तने के कोमल हिस्से से पौधे का रस चूस लेते है. जिलाधिकारी के निर्देश पर डॉ देवकरन, डॉ माधांता सिंह और कृषि वैज्ञानिक रामकेवल की तीन सदस्यीय टीम ने गांव का दौरा किया है.
कैसे करे उपचार: धान की फसल में तेजी से फैल रहे बीमारी को नियंत्रण में रखने के लिए वैज्ञानिकों ने बताया कि खेत को खर-पतवार मुक्त रखे, नाइट्रोजन उर्वरक का संतुलित प्रयोग करे. वहीं प्रकोप दिखाई देने पर डाइमेथोएट 30 EC नामक रसायन का 200 मिली मात्रा 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें या मिथाइल डिमेटान 25 EC नामक रसायन की 200 ml मात्रा 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. अधिक जानकारी के लिए kvk का भ्रमण कर उचित सलाह के बाद ही किसी दवा का प्रयोग करें. अनावश्यक दवाओं के प्रयोग से बचें.
'खेतों के निचले इलाके में यदि पानी की कमी होती है और वर्षा के अन्तराल अधिक होता है, तो इसका प्रकोप दिखाई देने लगता है. इसका प्रकोप होने पर खेतों में धान और भी पौधे की पतिया धीरे-धीरे पीला होकर सूखने लगती है. जिससे पौधे की वृद्धि रूक जाती है और उसमें बालियां नहीं बनती है. धान के तने में पतियों को हटाने पर सफेद रंग का चूना जैसा चिपचिपा लक्षण दिखाई देता है. उसमें छोटे-छोटे हल्के लाल रंग के रसचूसक कीट दिखाई देते है, जो तने के कोमल हिस्से से पौधे का रस चूस लेते है'- डॉ माधांता सिंह , कृषि वैज्ञानिक
गौरतलब है कि साल 2022 में जिले के 1 लाख 47 हजार 360 किसानों ने 97 हजार 300 हेक्टेयर भूमि पर धान फसल की रोपनी का लक्ष्य रखा था. लेकिन मौसम अनुकूल नहीं होने के कारण 50 से 60% खेतों में ही धान की रोपनी हो पाई. पहले सुखाड़ और फिर बाढ़ ने खेतों में लगी धान, सब्जी, मक्का, समेत अन्य फसल को बर्बाद किया है. वहीं किसानों को उम्मीद है कि महागठबंधन की नयी सरकार किसानों का हुए नुकसान की भरपाई करेगी.
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