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बक्सर: जनता कर्फ्यू को याद कर सहम गए लोग, अपनों के खोने का दर्द नहीं भूल पाए - Migrant

बिहार की स्थापना दिवस 22 मार्च को बिहार दिवस के रूप में मनाया जाता है. हर साल इस मौके पर कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि का आयोजन प्रशासनिक एवं विभागीय अधिकारियों के द्वारा कराया जाता था. जिसकी तैयारी काफी पहले से ही शुरू कर दी जाती थी. इस साल स्थितियां बदली -बदली सी दिखाई दे रही है. राज्य में कोरोना का संकट छाया हुआ है. लोगों के चेहरे पर जनता कर्फ्यू का दर्द साफ झलक रहा है. आज भी अपनों के खोने का दर्द लोग नहीं भूल पाए है.

buxar
मजदूर
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Published : Mar 23, 2021, 12:26 AM IST

Updated : Mar 23, 2021, 7:50 AM IST

बक्सर: 22 मार्च की तारीख पर नजर पड़ते ही नगरवासी सहम उठते हैं. आज से एक साल पहले जनता कर्फ्यू का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषण किया था. उस समय सड़कों पर पसरी सन्नाटा एवं पुलिस की गाड़ियों में बजते सायरन को सुन चारदीवारी के अंदर इंसान कैद हो गया था. आज भी लोग अपनों के खोने का दर्द नहीं भूल पाए हैं.

प्रवासी मजदूर
प्रवासी मजदूर

पढ़ें: जब लगा था जनता कर्फ्यू, एक साल पहले की तस्वीर आज भी लोगों के जेहन में

बता दें कि 22 मार्च को बिहार दिवस के अवसर जनता कर्फ्यू को याद किया गया. इस दिन 2020 में पीएम मोदी ने कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए जनता कर्फ्यू का ऐलान किया था. वहीं, बिहार समेत पूरा भारत में कोरोना का संकट छाया हुआ है. आज के दिन लोगों के चेहरे पर जनता कर्फ्यू का दर्द साफ झलक रहा था. इस वैश्विक महामारी के कारण हजारों किलोमीटर दूर से भूखे प्यासे पैदल चलकर आने वालों प्रवासी श्रमिकों ने कहा कि मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन कोरोना बना. यह महामारी इंसान को इंसान से नफरत करने पर मजबूर कर दिया. मृत पड़े परिजनों को कंधा न दे पाने का मलाल है.

आज ही के दिन जनता कर्फ्यू का हुआ था घोषणा
आज से एक साल पहले कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच 22 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू की घोषणा किया था. इस मौके पर भारतवासियों को अपने-अपने घरों में बंद होने के लिए कहा था. इसके साथ ही लोगों को मास्क पहनने, शारीरिक दूरी का पालन करने, हाथ को साफ रखने जैसी तमाम गाइडलाइन पालन करने के निर्देश दिए गए थे. यह एक तरह से कोरोना के प्रसार को रोकने की कोशिश और इस घातक बीमारी के खिलाफ आधिकारिक जंग की शुरुआत थी. जनता कर्फ्यू के दौरान एक तरह का अजीब सन्नाटा था. न हॉर्न की आवाज और न ही कोई और हलचल. सिर्फ पक्षियों की आवाज सुनाई दे रही थी.

अपने घरों को लौटते श्रमिक
अपने घरों को लौटते श्रमिक

अपनो से बिछड़ने का दर्द से नहीं उबर पाये है लोग
उस समय कहा गया था कि यह लॉकडाउन का ट्रायल है. तब किसी को अंदाजा भी नहीं था कि लॉकडाउन कब खुलेगा. लोगों की आंखों के सामने इस भयानक वायरस की चपेट में आने से उनके अपनों की जान भी जा रही थी. क्या छोटा-क्या बड़ा, क्या जवान और क्या वृद्ध, कोरोना हर किसी को अपना शिकार बना रहा था. ऐसे में एकमात्र उपाय घरों में बंद रहना ही था. लोग लॉकडाउन के बीच इस घातक बीमारी की दवा का इंतजार करने लगे. तब तक हजारों लोगों की जान जा चुकी थी.

लॉडाउन के दौरान जांच
लॉडाउन के दौरान जांच

पढ़ें: बिहार के गौरवशाली इतिहास को मिलकर हासिल करेंगे: CM नीतीश

नहीं भर पाया है अब प्रवासियों के पांव के छाले
लॉकडाउन के दौरान भूखे, प्यासे अपने बच्चों को कंधो पर उठाकर हजारों किलोमीटर दूर से पैदल चलकर अपने घर आने वाले प्रवासी श्रमिकों के पैर के छाले अब तक ठीक नहीं हो पाया है. आंखों में दर्द एवं चेहरे पर बेबसी 1 साल बाद भी साफ दिखाई दे रहा है. इस कोरोना वैश्विक महामारी ने मेहनतकश इंसान को भी हाथ फैलाने पर मजबूर कर दिया.

प्रवासी मजदूर
बाल-बच्चों के साथ प्रवासी मजदूर.

क्या कहते है प्रवासी
लॉकडाउन के दौरान घर आये प्रवासी टेंगर गोंड़ ने बताया कि 8 सालों तक दिल्ली में नौकरी करने के बाद जब लॉकडाउन लगा तो ऐसा लगा कि अब अपनों से कभी मिल नही पाएंगे. 15 दिनों तक रेलवे लाइन की पटरी पकड़कर दिन रात चलते हुए अपने घर आया. आज भी सोचकर ही दिल दहल जाता है. आज भी हालात वैसा ही है न रोजगार मिल रहा है और ना ही कोरोना के दर्द से कोई उबर पाया है.

गौरतलब है कि जनता कर्फ्यू के एक साल बीत जाने के बाद भी लोगों के आंखों में दर्द एवं चेहरे पर भय का भाव साफ झलक रहा है. जिसे सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता है.

बक्सर: 22 मार्च की तारीख पर नजर पड़ते ही नगरवासी सहम उठते हैं. आज से एक साल पहले जनता कर्फ्यू का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषण किया था. उस समय सड़कों पर पसरी सन्नाटा एवं पुलिस की गाड़ियों में बजते सायरन को सुन चारदीवारी के अंदर इंसान कैद हो गया था. आज भी लोग अपनों के खोने का दर्द नहीं भूल पाए हैं.

प्रवासी मजदूर
प्रवासी मजदूर

पढ़ें: जब लगा था जनता कर्फ्यू, एक साल पहले की तस्वीर आज भी लोगों के जेहन में

बता दें कि 22 मार्च को बिहार दिवस के अवसर जनता कर्फ्यू को याद किया गया. इस दिन 2020 में पीएम मोदी ने कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए जनता कर्फ्यू का ऐलान किया था. वहीं, बिहार समेत पूरा भारत में कोरोना का संकट छाया हुआ है. आज के दिन लोगों के चेहरे पर जनता कर्फ्यू का दर्द साफ झलक रहा था. इस वैश्विक महामारी के कारण हजारों किलोमीटर दूर से भूखे प्यासे पैदल चलकर आने वालों प्रवासी श्रमिकों ने कहा कि मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन कोरोना बना. यह महामारी इंसान को इंसान से नफरत करने पर मजबूर कर दिया. मृत पड़े परिजनों को कंधा न दे पाने का मलाल है.

आज ही के दिन जनता कर्फ्यू का हुआ था घोषणा
आज से एक साल पहले कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच 22 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू की घोषणा किया था. इस मौके पर भारतवासियों को अपने-अपने घरों में बंद होने के लिए कहा था. इसके साथ ही लोगों को मास्क पहनने, शारीरिक दूरी का पालन करने, हाथ को साफ रखने जैसी तमाम गाइडलाइन पालन करने के निर्देश दिए गए थे. यह एक तरह से कोरोना के प्रसार को रोकने की कोशिश और इस घातक बीमारी के खिलाफ आधिकारिक जंग की शुरुआत थी. जनता कर्फ्यू के दौरान एक तरह का अजीब सन्नाटा था. न हॉर्न की आवाज और न ही कोई और हलचल. सिर्फ पक्षियों की आवाज सुनाई दे रही थी.

अपने घरों को लौटते श्रमिक
अपने घरों को लौटते श्रमिक

अपनो से बिछड़ने का दर्द से नहीं उबर पाये है लोग
उस समय कहा गया था कि यह लॉकडाउन का ट्रायल है. तब किसी को अंदाजा भी नहीं था कि लॉकडाउन कब खुलेगा. लोगों की आंखों के सामने इस भयानक वायरस की चपेट में आने से उनके अपनों की जान भी जा रही थी. क्या छोटा-क्या बड़ा, क्या जवान और क्या वृद्ध, कोरोना हर किसी को अपना शिकार बना रहा था. ऐसे में एकमात्र उपाय घरों में बंद रहना ही था. लोग लॉकडाउन के बीच इस घातक बीमारी की दवा का इंतजार करने लगे. तब तक हजारों लोगों की जान जा चुकी थी.

लॉडाउन के दौरान जांच
लॉडाउन के दौरान जांच

पढ़ें: बिहार के गौरवशाली इतिहास को मिलकर हासिल करेंगे: CM नीतीश

नहीं भर पाया है अब प्रवासियों के पांव के छाले
लॉकडाउन के दौरान भूखे, प्यासे अपने बच्चों को कंधो पर उठाकर हजारों किलोमीटर दूर से पैदल चलकर अपने घर आने वाले प्रवासी श्रमिकों के पैर के छाले अब तक ठीक नहीं हो पाया है. आंखों में दर्द एवं चेहरे पर बेबसी 1 साल बाद भी साफ दिखाई दे रहा है. इस कोरोना वैश्विक महामारी ने मेहनतकश इंसान को भी हाथ फैलाने पर मजबूर कर दिया.

प्रवासी मजदूर
बाल-बच्चों के साथ प्रवासी मजदूर.

क्या कहते है प्रवासी
लॉकडाउन के दौरान घर आये प्रवासी टेंगर गोंड़ ने बताया कि 8 सालों तक दिल्ली में नौकरी करने के बाद जब लॉकडाउन लगा तो ऐसा लगा कि अब अपनों से कभी मिल नही पाएंगे. 15 दिनों तक रेलवे लाइन की पटरी पकड़कर दिन रात चलते हुए अपने घर आया. आज भी सोचकर ही दिल दहल जाता है. आज भी हालात वैसा ही है न रोजगार मिल रहा है और ना ही कोरोना के दर्द से कोई उबर पाया है.

गौरतलब है कि जनता कर्फ्यू के एक साल बीत जाने के बाद भी लोगों के आंखों में दर्द एवं चेहरे पर भय का भाव साफ झलक रहा है. जिसे सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता है.

Last Updated : Mar 23, 2021, 7:50 AM IST
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