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ऐसा है कतकौली गांव: न पुलिस पहुंची यहां, न लोग जाते कचहरी, जानिए इतिहास - Katakuli village of Buxar

बक्सर का कतकौली गांव एक ऐसा आदर्श गांव हैं जहां आजादी के 74 साल बाद अब तक एक भी एफआईआर भी दर्ज नहीं हुई है. गावं के लोग आज तक न थाने गए और न कोर्ट कचहरी.

katkauli village
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Published : Aug 25, 2020, 7:08 PM IST

बक्सर: 23 अक्टूबर 1764 में शहर से 3 किलोमीटर दूर कतकौली गांव के मैदान में ईस्ट इंडिया कंपनी के हेक्टर मुनरो, मुगलों और नवाबों की सेनाओं के बीच एक युद्ध लड़ा गया था. बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउदौला, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना और अंग्रेजी सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था. इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई. परिणाम स्वरूप पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड ,उड़ीसा, और बांग्लादेश की दीवानी और राजस्व अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चला गया.

युद्ध में हुआ था भारी रक्तपात
इस युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों में हिंदू भी थे और मुसलमान भी. आसपास के ग्रामीणों ने मारे गए सैनिकों के शवों का उनके मजहब के अनुसार अंतिम संस्कार किया. मुसलमान सैनिकों के शव को गांव के बाहर विशालकाय कुएं में दफनाया गया. हिंदू सैनिकों के शवों को उत्तर दिशा में 2 किलोमीटर पर स्थित जीवनदायिनी गंगा में प्रवाहित कर दिया गया. शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में उस समय एक बरगद का वृक्ष उसी कुएं पर लगाया गया जिसमें मुसलमान सैनिकों के शव को दफनाया गया था. आज भी वह वृक्ष लोगों को उस युद्ध की याद दिलाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

12 साल पहले चर्चा में आया गांव
यह गांव उस समय चर्चा में आया जब 12 साल पहले पाकिस्तान में रहने वाले कुछ मुसलमान अपने परिजनों से मिलने औद्योगिक थाना क्षेत्र के इस कतकौली गांव पहुंचे. इसकी सूचना चौकीदार ने स्थानीय पुलिस प्रशासन को दी. जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों में हड़कंप मच गया. आनन-फानन में जब अधिकारियों ने गांव के इतिहास को खंगालना शुरू किया तो पता चला कि सैकड़ों साल पहले बक्सर का युद्ध इसी गांव के मैदान में लड़ा गया था. आजादी के बाद से लेकर अब तक ना तो उस गांव के लोग कभी थाना और कोर्ट कचहरी गए और ना ही कभी पुलिस उस गांव में गई.

katkauli village
इसी कुएं में मुस्लिम सैनिकों को दफनाया गया

एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को विवाद से दूर रहने की सीख
ग्रामीणों ने बताया कि इस गांव ने इतना खून-खराबा देखा है कि उसके बाद से यहां रहने वाले हर जाति धर्म के लोग लड़ाई झगड़े से नफरत करते हैं. आजादी के 74 साल बीत जाने के बाद भी इस गांव में किसी भी व्यक्ति का किसी से कोई विवाद नहीं है. ना तो इस गांव के लोग आज तक कोर्ट कचहरी गए हैं. ना ही कभी पुलिस इस गांव में आई है. ऐसा नहीं है कि ये गांव किसी की नजरों में नहीं है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस गांव में आ चुके हैं. गांव के लोग एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को ये संदेश देते हैं की लड़ाई-झगड़े या किसी विवाद से दूर रहना है.

katkauli village
बक्सर की लड़ाई की स्मृति चिन्ह

आजादी के बाद से कोई विवाद नहीं
बक्सर पुलिस कप्तान उपेंद्र नाथ वर्मा ने भी बताया कि उस गांव के मामले थाने तक नहीं पहुंचते हैं. ना ही कभी पुलिस को गांव में जाने की जरूरत पड़ी है. जिले का यह एक ऐसा आदर्श गांव हैं, जिससे न केवल बक्सर बल्कि पूरी दुनिया को सीख लेने की जरूरत है. कभी जिस गांव में इतना भयंकर युद्ध हुआ उसके बाद से गांव के लोग हिंसा से इतनी नफरत करते हैं कि आज तक उस गांव में कोई विवाद ही नहीं हुआ. आपसी मन मुटाव को लोगों ने आपस में गांव में ही सुलझा लिया.

katkauli village
इसी कुएं में मुस्लिम सैनिकों को दफनाया गया

विकास की रफ्तार में पिछड़ता गांव
आजादी के इतने सालों बाद शांतिप्रिय गांव के लिहाज से भले ही कतकौली गांव की अलग पहचान हो, लेकिन विकास की रफ्तार में अब यह गांव रोजाना पिछड़ता जा रहा है. इस ओर ना तो जनप्रतिनिधियों का ध्यान है और ना ही जिला प्रशासन का. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आश्वासन के बाद भी आज भी गांव में जाने के लिए, लोगों को दूसरों की निजी जमीन से होकर जाना पड़ता है, जिसके एवज में ग्रामीणों को उस जमीन मालिक को लगान देना पड़ता है.

बक्सर: 23 अक्टूबर 1764 में शहर से 3 किलोमीटर दूर कतकौली गांव के मैदान में ईस्ट इंडिया कंपनी के हेक्टर मुनरो, मुगलों और नवाबों की सेनाओं के बीच एक युद्ध लड़ा गया था. बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउदौला, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना और अंग्रेजी सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था. इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई. परिणाम स्वरूप पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड ,उड़ीसा, और बांग्लादेश की दीवानी और राजस्व अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चला गया.

युद्ध में हुआ था भारी रक्तपात
इस युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों में हिंदू भी थे और मुसलमान भी. आसपास के ग्रामीणों ने मारे गए सैनिकों के शवों का उनके मजहब के अनुसार अंतिम संस्कार किया. मुसलमान सैनिकों के शव को गांव के बाहर विशालकाय कुएं में दफनाया गया. हिंदू सैनिकों के शवों को उत्तर दिशा में 2 किलोमीटर पर स्थित जीवनदायिनी गंगा में प्रवाहित कर दिया गया. शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में उस समय एक बरगद का वृक्ष उसी कुएं पर लगाया गया जिसमें मुसलमान सैनिकों के शव को दफनाया गया था. आज भी वह वृक्ष लोगों को उस युद्ध की याद दिलाता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

12 साल पहले चर्चा में आया गांव
यह गांव उस समय चर्चा में आया जब 12 साल पहले पाकिस्तान में रहने वाले कुछ मुसलमान अपने परिजनों से मिलने औद्योगिक थाना क्षेत्र के इस कतकौली गांव पहुंचे. इसकी सूचना चौकीदार ने स्थानीय पुलिस प्रशासन को दी. जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों में हड़कंप मच गया. आनन-फानन में जब अधिकारियों ने गांव के इतिहास को खंगालना शुरू किया तो पता चला कि सैकड़ों साल पहले बक्सर का युद्ध इसी गांव के मैदान में लड़ा गया था. आजादी के बाद से लेकर अब तक ना तो उस गांव के लोग कभी थाना और कोर्ट कचहरी गए और ना ही कभी पुलिस उस गांव में गई.

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इसी कुएं में मुस्लिम सैनिकों को दफनाया गया

एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को विवाद से दूर रहने की सीख
ग्रामीणों ने बताया कि इस गांव ने इतना खून-खराबा देखा है कि उसके बाद से यहां रहने वाले हर जाति धर्म के लोग लड़ाई झगड़े से नफरत करते हैं. आजादी के 74 साल बीत जाने के बाद भी इस गांव में किसी भी व्यक्ति का किसी से कोई विवाद नहीं है. ना तो इस गांव के लोग आज तक कोर्ट कचहरी गए हैं. ना ही कभी पुलिस इस गांव में आई है. ऐसा नहीं है कि ये गांव किसी की नजरों में नहीं है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस गांव में आ चुके हैं. गांव के लोग एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को ये संदेश देते हैं की लड़ाई-झगड़े या किसी विवाद से दूर रहना है.

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बक्सर की लड़ाई की स्मृति चिन्ह

आजादी के बाद से कोई विवाद नहीं
बक्सर पुलिस कप्तान उपेंद्र नाथ वर्मा ने भी बताया कि उस गांव के मामले थाने तक नहीं पहुंचते हैं. ना ही कभी पुलिस को गांव में जाने की जरूरत पड़ी है. जिले का यह एक ऐसा आदर्श गांव हैं, जिससे न केवल बक्सर बल्कि पूरी दुनिया को सीख लेने की जरूरत है. कभी जिस गांव में इतना भयंकर युद्ध हुआ उसके बाद से गांव के लोग हिंसा से इतनी नफरत करते हैं कि आज तक उस गांव में कोई विवाद ही नहीं हुआ. आपसी मन मुटाव को लोगों ने आपस में गांव में ही सुलझा लिया.

katkauli village
इसी कुएं में मुस्लिम सैनिकों को दफनाया गया

विकास की रफ्तार में पिछड़ता गांव
आजादी के इतने सालों बाद शांतिप्रिय गांव के लिहाज से भले ही कतकौली गांव की अलग पहचान हो, लेकिन विकास की रफ्तार में अब यह गांव रोजाना पिछड़ता जा रहा है. इस ओर ना तो जनप्रतिनिधियों का ध्यान है और ना ही जिला प्रशासन का. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आश्वासन के बाद भी आज भी गांव में जाने के लिए, लोगों को दूसरों की निजी जमीन से होकर जाना पड़ता है, जिसके एवज में ग्रामीणों को उस जमीन मालिक को लगान देना पड़ता है.

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