बक्सरः बिहार के बक्सर जिले का गौरवपूर्ण पांच दिवसीय पंचकोशी परिक्रमा मेला आज से शुरू हो गया. 2 दिसंबर से पांच दिनों तक चलने वाले इस मेले का समापन चरित्रवन में लिट्टी चोखा भोग के साथ 6 दिसंबर को होगा. ठंड होने के बावजूद भी पंचकोशी परिक्रमा मेला में आये हजारों श्रद्धालु और संत समाज पांच दिनों तक मेला के भक्तिमय माहौल से आनंदित होते हैं.
पंचकोशी परिक्रमा मेला आज से शुरूः इस सिलसिले में संत त्रिदंडी स्वामी गंगापुत्र ने बताया कि बक्सर के इस पंचकोशी परिक्रमा मेला के महत्व का वर्णन वराह पुराण के श्लोक एक से लेकर 197 श्लोक तक में विस्तृत रूप से हुआ है. यहीं नहीं श्रीमद्भागवत महापुराण में भी इसके महत्व की चर्चा खूब बताई गई है. पांच दिनों तक चलने वाले इस परिक्रमा मेला में बिहार ही नहीं उतर प्रदेश और झारखंड के भी हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं.
मेले में पूरी है प्रशासनिक व्यवस्थाः वहीं, जिलाधिकारी अंशुल अग्रवाल ने बताया कि मेले में आए श्रद्धालुओं की सुविधा और सहूलियत की पूरी व्यवस्था कर ली गई है. ठंठ या बारिश की स्थिति से निपटने के लिए भी स्थानीय समिति के साथ मिलकर जिला प्रशासन तैयारी किये हुए है. वहीं पुलिस अधीक्षक मनीष कुमार ने बताया कि इस आध्यात्मिक मेले में दूर-दूर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा और ट्रैफिक की व्यवस्था कर ली गई है, ताकि किसी भी श्रद्धालु को कोई दिक्कत नहीं हो.
त्रेता युग से चली आ रही परंपराः गौरतलब है कि पंचकोशी परिक्रमा मेला यात्रा को लेकर कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण, महर्षि विश्वामित्र के साथ बक्सर आये थे. उस समय बक्सर में ताड़का, सुबाहू, मारीच समेत कई राक्षसों का आतंक था. इन राक्षसों का वध कर भगवान राम ने महर्षि विश्वामित्र से यहां शिक्षा ग्रहण की थी. ताड़का वध करने के बाद भगवान राम ने नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित्त स्वरूप अपने भ्राता लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ यात्रा कर बक्सर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पांच ऋषियों के आश्रम गये और आशीर्वाद प्राप्त किये.
मेले से जुड़ी क्या है मान्यताः इस यात्रा के पहले पड़ाव में गौतम ऋषि के आश्रम अहिरौली भगवान राम पहुंचे, जहां पत्थर रूपी अहिल्या को अपने चरणों से स्पर्श कर उनका उद्धार किया और उत्तरायणी गंगा में स्नान कर पुआ-पकवान खाये. यात्रा के दूसरे पड़ाव में भगवान राम नारद मुनि के आश्रम नादांव पहुंचे, जहां सरोवर में स्नान करने के बाद सत्तू और मूली का उन्होंने भोग लगाया. इसी तरह तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर, चूड़ा दही, चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम नुआव में खिचड़ी और पांचवें एवं अंतिम पड़ाव चरित्र वन में पहुंचकर लिट्टी चोखा का भोग लगाया. तभी से इस परंपरा का लोग निर्वहन करते आ रहे हैं.
क्या है परिक्रमा मेले का अर्थः हर साल अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से इस यात्रा की शुरुआत होती है. लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से बक्सर आते हैं. इस मेले के अंतिम दिन को लेकर मान्यता रही है कि अंतिम दिन प्रसाद अत्यंत पवित्र होता है, क्योंकि यह उस पवित्र धरती पर तैयार होता है, जिसके रजकण में अनन्त यज्ञ किये गए हैं. जिस धरा पर यज्ञ रक्षा हेतु श्री राम लक्ष्मण के कदम चलें और उनके चरणों की पवित्रता उसमें समाहित हुई. मेला के बारे में कहा जाता है कि इस परिक्रमा मेला का अर्थ यह है कि अंतनिहिर्त भाव, संकल्प और इसी विश्वास के साथ पूर्ण होती है, पंचकोशी यात्रा, जो जीव के पांचो तत्वों को पवित्र करती है.
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