ETV Bharat / state

बक्सर: देव दीपावली पर सवा लाख दीयों से जगमग हुए घाट, दिखा अद्भुत नजारा - विश्व की प्राचीन शहर

बता दें कि यह विश्व की प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा है. यह दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है. चूंकि बक्सर बनारस के बगल में स्थित है और यहां भी उत्तरायणी गंगा प्रवाहित होती है, इसलिए इसका धार्मिक महत्व भी विशेष माना जाता है.

दीया
author img

By

Published : Nov 12, 2019, 9:12 PM IST

Updated : Nov 12, 2019, 10:54 PM IST

बक्सर: मंगलवार को कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली के मौके पर जिले के बक्सर घाटों पर सवा लाख दिया जलाया गया. सवा लाख दीये से पूरा घाट जगमगा उठा. विशेषकर यह त्योहार वाराणसी में मनाया जाता है. लेकिन, बक्सर बनारस से सटे होने के कारण इसका असर बक्सर में भी खासा देखने को मिलता है. देव दीपावली के अवसर पर बुधवार को बक्सर के भी सभी घाटों पर अद्भुत नजारा देखने को मिला. इस कार्यक्रम में बक्सर के जिलाधिकारी राघवेंद्र सिंह और पुलिस अधीक्षक उपेंद्र नाथ वर्मा मौजूद रहे.

buxar
बक्सर डीएम और एसपी

विशेष है धार्मिक महत्व
बता दें कि यह विश्व की सबसे प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा है. यह दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है. चूंकि बक्सर बनारस के बगल में स्थित है और यहां भी उत्तरायणी गंगा प्रवाहित होती है, इसलिए इसका धार्मिक महत्व भी विशेष माना जाता है. यहीं कारण है कि बक्सर को मिनी काशी भी कहा जाता है.

जानिए पर्व की कहानी
धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी काशी के ऐतिहासिक घाटों पर कार्तिक पूर्णिमा को मां गंगा की धारा के समानांतर ही प्रवाहमान होती है. माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं और इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था. मान्यता यह भी है कि तीनों लोकों मे त्रिपुराशूर राक्षस का राज चलता था. देवतागणों ने भगवान शिव के समक्ष त्रिपुराशूर राक्षस से उद्धार की विनती की. जिसके बाद भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन राक्षस का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और त्रिपुरारी कहलाया.

buxar
घाट पर आरती

क्या हैं मान्यताएं?
कहा ये भी जाता है कि इससे प्रसन्न होकर देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था. तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाना शुरू हुआ. काशी में देव दीपावली उत्सव मनाए जाने के संबंध में मान्यता है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबन्धित कर दिया था. कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदल कर भगवान शिव काशी के पंचगंगा घाट पर आकर गंगा स्नान कर ध्यान किया. कहा जाता है कि यह बात जब राजा दिवोदास को पता चला तो उन्होंने देवताओं के प्रवेश प्रतिबन्ध को समाप्त कर दिया. जिसके बाद से इस दिन सभी देवताओं ने काशी में प्रवेश कर दीप जलाकर दिवाली मनाई थी.

बक्सर से ईटीवी भारत की रिपोर्ट

दिव्य त्योहार है देव दीपावली
बता दें कि देव दीपावली एक दिव्य त्योहार है. जिसमें मिट्टी के लाखों दीपक गंगा नदी के पवित्र जल पर तैरते हैं. एक समान संख्या के साथ विभिन्न घाटों और आसपास के राजसी आलीशान इमारतों की सीढ़ियां दीजों से जगमग रहती हैं. धूप और मंत्रों की पवित्र जप का सुगंध से भर जाता है. इस अवसर का अपना एक धार्मिक उत्साह होता है.

बक्सर: मंगलवार को कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली के मौके पर जिले के बक्सर घाटों पर सवा लाख दिया जलाया गया. सवा लाख दीये से पूरा घाट जगमगा उठा. विशेषकर यह त्योहार वाराणसी में मनाया जाता है. लेकिन, बक्सर बनारस से सटे होने के कारण इसका असर बक्सर में भी खासा देखने को मिलता है. देव दीपावली के अवसर पर बुधवार को बक्सर के भी सभी घाटों पर अद्भुत नजारा देखने को मिला. इस कार्यक्रम में बक्सर के जिलाधिकारी राघवेंद्र सिंह और पुलिस अधीक्षक उपेंद्र नाथ वर्मा मौजूद रहे.

buxar
बक्सर डीएम और एसपी

विशेष है धार्मिक महत्व
बता दें कि यह विश्व की सबसे प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा है. यह दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है. चूंकि बक्सर बनारस के बगल में स्थित है और यहां भी उत्तरायणी गंगा प्रवाहित होती है, इसलिए इसका धार्मिक महत्व भी विशेष माना जाता है. यहीं कारण है कि बक्सर को मिनी काशी भी कहा जाता है.

जानिए पर्व की कहानी
धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी काशी के ऐतिहासिक घाटों पर कार्तिक पूर्णिमा को मां गंगा की धारा के समानांतर ही प्रवाहमान होती है. माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं और इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था. मान्यता यह भी है कि तीनों लोकों मे त्रिपुराशूर राक्षस का राज चलता था. देवतागणों ने भगवान शिव के समक्ष त्रिपुराशूर राक्षस से उद्धार की विनती की. जिसके बाद भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन राक्षस का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और त्रिपुरारी कहलाया.

buxar
घाट पर आरती

क्या हैं मान्यताएं?
कहा ये भी जाता है कि इससे प्रसन्न होकर देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था. तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाना शुरू हुआ. काशी में देव दीपावली उत्सव मनाए जाने के संबंध में मान्यता है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबन्धित कर दिया था. कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदल कर भगवान शिव काशी के पंचगंगा घाट पर आकर गंगा स्नान कर ध्यान किया. कहा जाता है कि यह बात जब राजा दिवोदास को पता चला तो उन्होंने देवताओं के प्रवेश प्रतिबन्ध को समाप्त कर दिया. जिसके बाद से इस दिन सभी देवताओं ने काशी में प्रवेश कर दीप जलाकर दिवाली मनाई थी.

बक्सर से ईटीवी भारत की रिपोर्ट

दिव्य त्योहार है देव दीपावली
बता दें कि देव दीपावली एक दिव्य त्योहार है. जिसमें मिट्टी के लाखों दीपक गंगा नदी के पवित्र जल पर तैरते हैं. एक समान संख्या के साथ विभिन्न घाटों और आसपास के राजसी आलीशान इमारतों की सीढ़ियां दीजों से जगमग रहती हैं. धूप और मंत्रों की पवित्र जप का सुगंध से भर जाता है. इस अवसर का अपना एक धार्मिक उत्साह होता है.

Intro:देवदीवाली कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार है जो मुख्यतःउत्तर प्रदेश के वाराणसी (काशी) मे मनाया जाता है। यह विश्व के सबसे प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा है। यह दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है।चूंकि बक्सर बनारस के बगल में स्थित है और यहाँ भी उत्तरायणी गंगा प्रवाहित होती हैं इसलिये इसका धार्मिक महत्व भी विशेष माना जाता है ।यहीं कारण है कि बक्सर को मिनी काशी भी कहा जाता है। देवदीपावली के अवसर पर आज बक्सर के भी सभी घाटों पर अद्भुत नज़ारा था । सवा लाख दियों से घाटों को जगमग किया गया ।इस कार्यक्रम में यजमान बक्सर के जिलाधिकारी राघवेंद्र सिंह और पुलिस अधीक्षक उपेंद्र नाथ वर्मा थे ।

Body:धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी काशी के ऐतिहासिक घाटों पर कार्तिक पूर्णिमा को माँ गंगा की धारा के समान्तर ही प्रवाहमान होती है। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं व इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था। मान्यता है की तीनों लोको मे त्रिपुराशूर राक्षस का राज चलता था देवतागणों ने भगवान शिव के समक्ष त्रिपुराशूर राक्षस से उद्धार की विनती की। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन राक्षस का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और त्रिपुरारि कहलाये। इससे प्रसन्न देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देवदीवाली मनायी जाने लगी। काशी में देवदीवाली उत्सव मनाये जाने के सम्बन्ध में मान्यता है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबन्धित कर दिया था, कार्तिक पूर्णिमा के दिन रूप बदल कर भगवान शिव काशी के पंचगंगा घाट पर आकर गंगा स्नान कर ध्यान किया, यह बात जब राजा दिवोदास को पता चला तो उन्होंने देवताओं के प्रवेश प्रतिबन्ध को समाप्त कर दिया। इस दिन सभी देवताओं ने काशी में प्रवेश कर दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।देवदिवाली एक दिव्य त्योहार है। मिट्टी के लाखों दीपक गंगा नदी के पवित्र जल पर तैरते है। एक समान संख्या के साथ विभिन्न घाटों और आसपास के राजसी आलीशान इमारतों की सीढ़ियों धूप और मंत्रों की पवित्र जप का एक मजबूत सुगंध से भर जता है। इस अवसर पर एक धार्मिक उत्साह होता है।एक बाहरी व्यक्ति के लिए यह एक अद्भुत स्थल है, लेकिन जो भारतीयो के लिए यह पवित्र गंगा की पूजा करने का समय है। Conclusion:
Last Updated : Nov 12, 2019, 10:54 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.