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"बैटल ऑफ बक्सर" का बादशाह कौन? मुन्ना या परशुराम - बिहार का बक्सर से बीजेपी के परशुराम चतुर्वेदी उम्मीदवार

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में बक्सर विधानसभा सीट पर लड़ाई काफी रोचक माना जा रहा है. इस सीट पर भाजपा ने परशुराम चतुर्वेदी और महागठबंधन ने मुन्ना तिवारी को मैदान में उतारा है. इस क्षेत्र में ब्राह्मण वोटरों की बहुमत को देखते हुए दोनों बड़ी राजनीतिक खेमों ने अपने प्रत्याशियों पर दांव खेला है.

buxar seat fight quite interesting, "बैटल ऑफ बक्सर" पर सब की निगाहें, पूर्व DGP को पछाड़कर रेस में हैं पूर्व SI
परशुराम
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Published : Oct 12, 2020, 5:16 PM IST

बक्सरः इतिहार के पन्नों में बक्सर की लड़ाई सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. बक्सर की लड़ाई ने भारतीय इतिहास में नए युग की शुरुआत की थी. देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई भी चुनावी अभियान की शुरुआत बक्सर से करते थे. खास बात यह है कि बक्सर की लड़ाई जीतने वाली दल की सरकार केंद्र या राज्य में बनती ही है.

महागठबंधन और राजग की साख दांव पर

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही बक्सर की लड़ाई दिलचस्प हो चुकी थी. बक्सर निवासी पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने भी बक्सर से भाग्य आजमाने का फैसला ले लिया था और दूसरी बार वीआरएस लेने की हिम्मत जुटाई, लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया. 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी गुप्तेश्वर पांडेय पुलिस विभाग के एएसआई परशुराम चतुर्वेदी से शिकस्त खा गए. परशुराम चतुर्वेदी ने भी 2004 में एसआई पद पर रहते हुए नौकरी से वीआरएस लिया था. परशुराम चतुर्वेदी किसान मोर्चा राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य हैं. अपने शुरुआती दौर में वे डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी के नजदीकी थे, बाद में स्थानीय सांसद लालमणि चौबे से भी उनका रिश्ता रहा. लेकिन परशुराम चतुर्वेदी को कैसे विधानसभा के टिकट मिली यह भी एक दिलचस्प किस्सा है.

परशुराम चतुर्वेदी की लॉटरी

दरअसल पिछली बार भाजपा ने युवा मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके प्रदीप दुबे को मैदान में उतारा था और महागठबंधन के लहर में प्रदीप दुबे चुनाव हार गए थे. प्रदीप दुबे सुशील मोदी खेमे के माने जाते हैं और केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे से उनकी पुरानी दुश्मनी है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे, प्रदीप दुबे के नाम पर विरोध कर रहे थे. गुप्तेश्वर पांडेय को लेकर भी पार्टी में एक राय नहीं थी. बिहार के एक नेता को छोड़कर गुप्तेश्वर पांडेय के पक्ष में कोई आवाज बुलंद करने को तैयार नहीं था. ऐसे में परशुराम चतुर्वेदी की लॉटरी निकल गई और दो की लड़ाई में तीसरे को लाभ मिल गया.

ब्राह्मण उम्मीदवार पर ही दांव

इतिहास में अगर झांके तो बक्सर की लड़ाई में मैदान मारने वाले दल की सरकार केंद्र या राज्य में बनती है. पिछले विधानसभा चुनाव में वहां से महागठबंधन के उम्मीदवार मुन्ना तिवारी चुनाव जीते थे और महागठबंधन की सरकार बनी थी. उससे पहले तीन बार भाजपा नेत्री सुखदा पांडे विधायक रहीं और बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार रही. बक्सर की लड़ाई में ब्राह्मण वोटर ही निर्णायक होते हैं. लिहाजा पार्टी ब्राह्मण उम्मीदवार पर ही दांव लगाती है. कांग्रेस पार्टी ने जहां दूसरी बार मुन्ना तिवारी को मैदान में उतारा है, वहीं भाजपा की ओर से प्रसिद्ध संत त्रिदंडी स्वामी के पौत्र परशुराम चतुर्वेदी पर दांव लगाया है. अब देखना दिलचस्प होगा कि बक्सर की लड़ाई किस गठबंधन के लिए सरकार बनाने का रास्ता खोलती है.

बक्सरः इतिहार के पन्नों में बक्सर की लड़ाई सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. बक्सर की लड़ाई ने भारतीय इतिहास में नए युग की शुरुआत की थी. देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई भी चुनावी अभियान की शुरुआत बक्सर से करते थे. खास बात यह है कि बक्सर की लड़ाई जीतने वाली दल की सरकार केंद्र या राज्य में बनती ही है.

महागठबंधन और राजग की साख दांव पर

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही बक्सर की लड़ाई दिलचस्प हो चुकी थी. बक्सर निवासी पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने भी बक्सर से भाग्य आजमाने का फैसला ले लिया था और दूसरी बार वीआरएस लेने की हिम्मत जुटाई, लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया. 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी गुप्तेश्वर पांडेय पुलिस विभाग के एएसआई परशुराम चतुर्वेदी से शिकस्त खा गए. परशुराम चतुर्वेदी ने भी 2004 में एसआई पद पर रहते हुए नौकरी से वीआरएस लिया था. परशुराम चतुर्वेदी किसान मोर्चा राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य हैं. अपने शुरुआती दौर में वे डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी के नजदीकी थे, बाद में स्थानीय सांसद लालमणि चौबे से भी उनका रिश्ता रहा. लेकिन परशुराम चतुर्वेदी को कैसे विधानसभा के टिकट मिली यह भी एक दिलचस्प किस्सा है.

परशुराम चतुर्वेदी की लॉटरी

दरअसल पिछली बार भाजपा ने युवा मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके प्रदीप दुबे को मैदान में उतारा था और महागठबंधन के लहर में प्रदीप दुबे चुनाव हार गए थे. प्रदीप दुबे सुशील मोदी खेमे के माने जाते हैं और केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे से उनकी पुरानी दुश्मनी है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे, प्रदीप दुबे के नाम पर विरोध कर रहे थे. गुप्तेश्वर पांडेय को लेकर भी पार्टी में एक राय नहीं थी. बिहार के एक नेता को छोड़कर गुप्तेश्वर पांडेय के पक्ष में कोई आवाज बुलंद करने को तैयार नहीं था. ऐसे में परशुराम चतुर्वेदी की लॉटरी निकल गई और दो की लड़ाई में तीसरे को लाभ मिल गया.

ब्राह्मण उम्मीदवार पर ही दांव

इतिहास में अगर झांके तो बक्सर की लड़ाई में मैदान मारने वाले दल की सरकार केंद्र या राज्य में बनती है. पिछले विधानसभा चुनाव में वहां से महागठबंधन के उम्मीदवार मुन्ना तिवारी चुनाव जीते थे और महागठबंधन की सरकार बनी थी. उससे पहले तीन बार भाजपा नेत्री सुखदा पांडे विधायक रहीं और बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार रही. बक्सर की लड़ाई में ब्राह्मण वोटर ही निर्णायक होते हैं. लिहाजा पार्टी ब्राह्मण उम्मीदवार पर ही दांव लगाती है. कांग्रेस पार्टी ने जहां दूसरी बार मुन्ना तिवारी को मैदान में उतारा है, वहीं भाजपा की ओर से प्रसिद्ध संत त्रिदंडी स्वामी के पौत्र परशुराम चतुर्वेदी पर दांव लगाया है. अब देखना दिलचस्प होगा कि बक्सर की लड़ाई किस गठबंधन के लिए सरकार बनाने का रास्ता खोलती है.

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