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तेंदूपत्ता तोड़ने वाले मजदूरों का हाल-बेहाल, दिनभर में 100 रुपये भी नहीं होती कमाई

'हरा सोना' कहे जाने वाले तेंदूपत्ता को तोड़कर पेट पालने वाले मजदूरों की हालत काफी दयनीय है. जबकि ठेकेदार आज करोड़ों के मालिक हो चुके हैं. मजदूरों को आस है कि सरकार उन पर ध्यान दे.

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Published : Jun 14, 2020, 7:27 PM IST

औरंगाबाद: जिले के दक्षिणी क्षेत्र वन संपदा से भरपूर है. शुरुआती दिनों से यहां के निवासी 'हरा सोना' यानी तेंदूपत्ता के सहारे अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं. लेकिन, सरकारी अनदेखी के कारण इन मजदूरों का हाल-बेहाल है. तेंदूपत्ता का इस्तेमाल बीड़ी बनाने के लिए किया जाता है.

दरअसल, मजदूरों को देव प्रखंड के जंगलों से तेंदूपत्ता तोड़ कर अपना पेट पालने वाले मजदूरों की हालत आज इतनी दयनीय है कि वे दिनभर काम करके 100 रुपये भी नहीं कमा पा रहे हैं. इसका कारोबार करने वाले ठेकेदार मौजूदा समय ने करोड़पति बन गए हैं. लेकिन, मजदूरों के जीवन में कभी कोई बदलाव नहीं आया.

aurangabad
मजदूरों को नहीं हो रही आमदनी

जून के महीने में होती है सबसे ज्यादा खेती
तेंदूपत्ता तोड़ाई के लिए जून का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है. इसका करोड़ों का टर्न ओवर है. लेकिन, तेंदूपत्ता तोड़ने वाले मजदूर आज भी केवल मजदूर बनकर रह गए हैं. स्थानीय सोमरिया देवी बचपन से ही तेंदूपत्ता तोड़कर अतिरिक्त कमाई की कोशिश करती आ रही है. लेकिन, जीवन भर की मेहनत और कमाई से वे आजतक एक पक्का घर तक नहीं बना पाईं हैं.

aurangabad
सुखाया जा रहा तेंदूपत्ता

सैकड़ों महिलाओं की यही कहानी
दिन-रात एक कर तेंदूपत्ता के बंडल बनाने वाली सैकड़ों महिलाएं आज इसी दर्द से गुजर रही है. कई राज्यों ने इसके लिए विधिवत नियम कानून बना रखे हैं. उन्हें बोनस से लेकर श्रम कानूनों का लाभ मिलता है. लेकिन, बिहार में इसको लेकर कोई कानून नहीं है.

aurangabad
तेंदूपत्ता मजदूरों का जीवन बेहाल

राज्य सरकारों ने फिक्स कर दिया रेट
स्थानीय मजदूरों की मानें तो मध्यप्रदेश में तेंदूपत्ता की कीमत 250 रुपये प्रति सैकड़ा कट्टी निर्धारित है. जबकि बिहार में इसकी कीमत 120 रुपये ही है. एक कट्टी में 50 पत्ते होते हैं. इस तरह से देखा जाए तो 5 हजार पत्तों के बदले मजदूरों को केवल 120 रुपये ही मजदूरी मिलती है. लेकिन, 5000 पत्तों को तोड़ना और जमा करना कतई आसान काम नहीं है. सरकार ध्यान नहीं दे रही इस कारण वे दिनभर की मेहनत के बावजूद 120 रुपये तक नहीं कमा पाते हैं.

aurangabad
तेंदूपत्ता सुखाते मजदूर

क्या है पत्ते की खासियत?
इस पत्ते की खासियत है कि यह काफी मुलायम और साफ होता है. इसकी सप्लाई मुख्य रूप से तंबाकू उत्पादों में मिलावट से लेकर के बीड़ी बनाने के लिए की है. प्रबंधक के पास तेंदूपत्ता बेचने आए मजदूर ने बताया कि वे दिन भर में 60 से 70 रुपये ही कमा पाते हैं. यहां तक कि कई ऐसे भी मजदूर हैं जो पूरे सीजन में हजार रुपये भी नहीं कमा पाते हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

जाप ने लगाई सरकार से गुहार
प्रदेश में तेंदूपत्ता का रेट बढ़ाने और श्रम कानूनों को लागू करने को लेकर जनाधिकार पार्टी के नेता और दुलारे पंचायत के पैक्स अध्यक्ष बिजेन्द्र यादव ने सरकार से गुहार लगाई है. उन्होंने कहा कि सरकार इस कार्य में लगे मजदूरों को श्रम कानूनों के अंतर्गत लाए. बिजेंद्र यादव ने बिहार सरकार से यह भी मांग की है कि बिहार में भी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे ही रेट और बोनस लागू हो ताकि मजदूरों को उचित मजदूरी मिल सके.

औरंगाबाद: जिले के दक्षिणी क्षेत्र वन संपदा से भरपूर है. शुरुआती दिनों से यहां के निवासी 'हरा सोना' यानी तेंदूपत्ता के सहारे अपना जीवन यापन करते आ रहे हैं. लेकिन, सरकारी अनदेखी के कारण इन मजदूरों का हाल-बेहाल है. तेंदूपत्ता का इस्तेमाल बीड़ी बनाने के लिए किया जाता है.

दरअसल, मजदूरों को देव प्रखंड के जंगलों से तेंदूपत्ता तोड़ कर अपना पेट पालने वाले मजदूरों की हालत आज इतनी दयनीय है कि वे दिनभर काम करके 100 रुपये भी नहीं कमा पा रहे हैं. इसका कारोबार करने वाले ठेकेदार मौजूदा समय ने करोड़पति बन गए हैं. लेकिन, मजदूरों के जीवन में कभी कोई बदलाव नहीं आया.

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मजदूरों को नहीं हो रही आमदनी

जून के महीने में होती है सबसे ज्यादा खेती
तेंदूपत्ता तोड़ाई के लिए जून का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है. इसका करोड़ों का टर्न ओवर है. लेकिन, तेंदूपत्ता तोड़ने वाले मजदूर आज भी केवल मजदूर बनकर रह गए हैं. स्थानीय सोमरिया देवी बचपन से ही तेंदूपत्ता तोड़कर अतिरिक्त कमाई की कोशिश करती आ रही है. लेकिन, जीवन भर की मेहनत और कमाई से वे आजतक एक पक्का घर तक नहीं बना पाईं हैं.

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सुखाया जा रहा तेंदूपत्ता

सैकड़ों महिलाओं की यही कहानी
दिन-रात एक कर तेंदूपत्ता के बंडल बनाने वाली सैकड़ों महिलाएं आज इसी दर्द से गुजर रही है. कई राज्यों ने इसके लिए विधिवत नियम कानून बना रखे हैं. उन्हें बोनस से लेकर श्रम कानूनों का लाभ मिलता है. लेकिन, बिहार में इसको लेकर कोई कानून नहीं है.

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तेंदूपत्ता मजदूरों का जीवन बेहाल

राज्य सरकारों ने फिक्स कर दिया रेट
स्थानीय मजदूरों की मानें तो मध्यप्रदेश में तेंदूपत्ता की कीमत 250 रुपये प्रति सैकड़ा कट्टी निर्धारित है. जबकि बिहार में इसकी कीमत 120 रुपये ही है. एक कट्टी में 50 पत्ते होते हैं. इस तरह से देखा जाए तो 5 हजार पत्तों के बदले मजदूरों को केवल 120 रुपये ही मजदूरी मिलती है. लेकिन, 5000 पत्तों को तोड़ना और जमा करना कतई आसान काम नहीं है. सरकार ध्यान नहीं दे रही इस कारण वे दिनभर की मेहनत के बावजूद 120 रुपये तक नहीं कमा पाते हैं.

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क्या है पत्ते की खासियत?
इस पत्ते की खासियत है कि यह काफी मुलायम और साफ होता है. इसकी सप्लाई मुख्य रूप से तंबाकू उत्पादों में मिलावट से लेकर के बीड़ी बनाने के लिए की है. प्रबंधक के पास तेंदूपत्ता बेचने आए मजदूर ने बताया कि वे दिन भर में 60 से 70 रुपये ही कमा पाते हैं. यहां तक कि कई ऐसे भी मजदूर हैं जो पूरे सीजन में हजार रुपये भी नहीं कमा पाते हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

जाप ने लगाई सरकार से गुहार
प्रदेश में तेंदूपत्ता का रेट बढ़ाने और श्रम कानूनों को लागू करने को लेकर जनाधिकार पार्टी के नेता और दुलारे पंचायत के पैक्स अध्यक्ष बिजेन्द्र यादव ने सरकार से गुहार लगाई है. उन्होंने कहा कि सरकार इस कार्य में लगे मजदूरों को श्रम कानूनों के अंतर्गत लाए. बिजेंद्र यादव ने बिहार सरकार से यह भी मांग की है कि बिहार में भी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे ही रेट और बोनस लागू हो ताकि मजदूरों को उचित मजदूरी मिल सके.

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