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बिहार के 'चित्तौड़गढ़' में महासंग्राम, खिलेगा कमल या ढह जाएगा राजपुताना किला

राजपूतों की परंपरागत सीट रही औरंगाबाद में इस बार दिलचस्प मुकाबला होने वाला है. 11 अप्रैल को यहां पहले चरण का मतदान होना है. वर्तमान सांसद सुशील सिंह को इस बार महागठबंधन से हम के उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद वर्मा टक्कर दे रहे है.

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Published : Mar 28, 2019, 5:17 PM IST

Updated : Mar 28, 2019, 5:24 PM IST

औरंगाबाद: लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारी चरम पर है. सभी पार्टियां इस चुनाव में अपना दम खम दिखाने में जुट गई हैं. 11 अप्रैल को पहले चरण के चुनाव में औरंगाबाद लोकसभा सीट पर भी मतदान होना है. यहां इस बार मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद है, क्योंकि राजपूतों की परंपरागत सीट रही औरंगाबाद में इस बार वर्तमान सांसद सुशील सिंह को महागठबंधन से हम के उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद वर्मा चुनौती दे रहे हैं.

बात अगर 2014 में हुए लोकसभा चुनाव की करें तो इस सीट से बीजेपी के सुशील सिंह जीते थे. उन्हें 3 लाख 7 हजार 914 वोट मिले थे और उन्होंने कांग्रेस के निखिल कुमार को हराया था. लेकिन इस बार समीकरण बदल गया है. सुशील सिंह के सामने इस बार एनडीए के विरोध में विपक्षी दलों के बने महागठबंधन से हम के प्रत्याशी उपेंद्र प्रसाद हैं.

औरंगाबाद सीट पर जबरदस्त टक्कर

सुशील सिंह के मुख्य प्रतिद्वंदी माने जा रहे उपेंद्र प्रसाद ने तंजकसते हुये जीत का दावा किया और कहा कि इस बार औरंगाबाद की राजनीति महलों से निकलकर झोंपड़ी में आने वाली है.वहीं, जब सांसद से पूछा गया कि वे अपना निकटतम प्रतिद्वंदी किसे मानते हैं तो उन्होंने कहा कि यहां का मुकाबला एकतरफा है और दूर-दूर तक उनके सामने कोई है ही नहीं. सुशील सिंह ने अपने संसदीय क्षेत्र के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किये गये कार्यों का हवाला दिया और विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की बात भी कही.

मिनी चित्तौड़गढ़ के रूप में औरंगाबाद चर्चित

राजपूतों की बहुलता के कारण मिनी चित्तौड़गढ़ कहा जाने वाला औरंगाबाद की सीट पर 1952 के पहले चुनाव से अबतक सिर्फ राजपूत उम्मीदवार ही विजयी हुये हैं. यहां के लोकसभा चुनावों में सत्येंद्र नारायण सिंह और लूटन बाबू का परिवार ही आमने-सामने रहा है.इस सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या 13 लाख 76 हजार 323 है जिनमें से पुरुष मतदाता 7 लाख 38 हजार 617 हैं. जबकि महिला मतदाता 6 लाख 37 हजार 706 हैं. वहीं अगर जातीय समीकरण की बात करें तो औरंगाबाद में राजपूतों की संख्या सबसे ज्यादा है. दूसरे स्थान पर यादव वोटर हैं जिनकी संख्या 10% है. मुस्लिम वोटर 8.5 प्रतिशत, कुशवाहा 8.5 प्रतिशत और भूमिहार वोटरों की संख्या 6.8% है. एससी और महादलित वोटरों की संख्या इस लोकसभा क्षेत्र में 19% है. जो प्रत्याशी इस 19 फीसदी वोटरों को अपने पाले में लाने में सफल होता है, उसी के सिर पर यहां का ताज़ होता है.

औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या

  1. कुल मतदाता-13 लाख 76 हजार 323
  2. पुरुष मतदाता- 7 लाख 38 हजार 617
  3. महिला मतदाता- 6 लाख 37 हजार 706
  4. राजपूत वोटरों की है बहुलता
  5. दूसरे स्थान पर यादव वोटर
  6. मुस्लिम- 8.5%, कुशवाहा- 8.5%,
  7. भूमिहार- 6.8%, एससी और महादलित-19%

विधानसभा सीटों का समीकरण
औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं-

  1. कुटुम्बा
  2. औरंगाबाद
  3. रफीगंज
  4. गुरुआ
  5. इमामगंज
  6. टिकारी

इनमें से दो सीटें कुटुम्बा और इमामगंज रिजर्व हैं. तीन सीटें- औरंगाबाद, कुटुंबा और रफीगंज औरंगाबाद जिले में हैं जबकि गया जिले में इमामगंज, गुरुआ और कोच विधानसभा सीटें आती हैं. 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में इन 6 सीटों में से दो कांग्रेस, दो जेडीयू, 1 बीजेपी और एक सीट हम के खाते में गई थी.

औरंगाबाद लोक सभा क्षेत्र में विधानसभा सीटें (औरंगाबाद के मैप पर)

  1. कुटुम्बा
  2. औरंगाबाद
  3. रफीगंज
  4. गुरुआ
  5. इमामगंज
  6. टिकारी

बात वर्तमान सांसद की करें तो सुशील सिंह ने 1998 में समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और वीरेंद्र कुमार सिंह को पराजित किया. वर्ष 2014 में भाजपा और जदयू के अलग होने के बाद सुशील सिंह जदयू छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस उम्मीदवार निखिल कुमार को 66347 वोटों से हराया था.

वर्तमान सांसद सुशील सिंह की राजनीतिक यात्रा

  • 1998 में पहली बार समता पार्टी के टिकट पर सुशील सिंह बने सांसद
  • 2014 में जदयू छोड़ भाजपा से जुड़े और सांसद बने
  • पिछले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार निखिल कुमार को हराया

उपेंद्र प्रसाद वर्मा
वहीं बात अगर महागठबंधन के प्रत्याशी उपेंद्र प्रसाद की करें तो उनका रिकॉर्ड दल बदल वाला रहा है और महागठबंधन उम्मीदवार बनने से पहले वे जदयू के एमएलसी थे. उपेंद्र प्रसाद जदयू से औरंगाबाद की टिकट के लिए ज़ोर आजमाइश भी कर रहे थे. लेकिन औरंगाबाद की सीट भाजपा के खाते में जाने के बाद उन्होंने पार्टी बदल ली और जीतन राम मांझी की पार्टी से अपना औरंगाबाद का टिकट कन्फर्म करा लिया.

औरंगाबाद की प्रमुख समस्याएं और इस बार के चुनावी मुद्दे
नेता चाहे जितने भी कागज़ी दावे कर लें, चाहे जितने कार्य और उपलब्धियां गिना दें लेकिन जमीनी हकीकत तो वहां की जनता ही बताती है. औरंगाबाद के लोगों ने बताया कि जिले की अधूरी उत्तर कोयल नहर परियोजना, नक्सलवाद, गिरता जलस्तर, सिंचाई सुविधा और पेय जल, गन्ना किसानों से जुड़े मसले इस बार यहां के चुनाव के प्रमुख मुद्दे हैं.

औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र के मुख्य चुनावी मुद्दे

  • अधूरी उत्तर कोयल नहर परियोजना और नक्सलवाद
  • गिरता जलस्तर
  • सिंचाई सुविधा और पेय जल
  • गन्ना किसानों से जुड़े मुद्दे

औरंगाबाद: लोकसभा चुनाव 2019 की तैयारी चरम पर है. सभी पार्टियां इस चुनाव में अपना दम खम दिखाने में जुट गई हैं. 11 अप्रैल को पहले चरण के चुनाव में औरंगाबाद लोकसभा सीट पर भी मतदान होना है. यहां इस बार मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद है, क्योंकि राजपूतों की परंपरागत सीट रही औरंगाबाद में इस बार वर्तमान सांसद सुशील सिंह को महागठबंधन से हम के उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद वर्मा चुनौती दे रहे हैं.

बात अगर 2014 में हुए लोकसभा चुनाव की करें तो इस सीट से बीजेपी के सुशील सिंह जीते थे. उन्हें 3 लाख 7 हजार 914 वोट मिले थे और उन्होंने कांग्रेस के निखिल कुमार को हराया था. लेकिन इस बार समीकरण बदल गया है. सुशील सिंह के सामने इस बार एनडीए के विरोध में विपक्षी दलों के बने महागठबंधन से हम के प्रत्याशी उपेंद्र प्रसाद हैं.

औरंगाबाद सीट पर जबरदस्त टक्कर

सुशील सिंह के मुख्य प्रतिद्वंदी माने जा रहे उपेंद्र प्रसाद ने तंजकसते हुये जीत का दावा किया और कहा कि इस बार औरंगाबाद की राजनीति महलों से निकलकर झोंपड़ी में आने वाली है.वहीं, जब सांसद से पूछा गया कि वे अपना निकटतम प्रतिद्वंदी किसे मानते हैं तो उन्होंने कहा कि यहां का मुकाबला एकतरफा है और दूर-दूर तक उनके सामने कोई है ही नहीं. सुशील सिंह ने अपने संसदीय क्षेत्र के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किये गये कार्यों का हवाला दिया और विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की बात भी कही.

मिनी चित्तौड़गढ़ के रूप में औरंगाबाद चर्चित

राजपूतों की बहुलता के कारण मिनी चित्तौड़गढ़ कहा जाने वाला औरंगाबाद की सीट पर 1952 के पहले चुनाव से अबतक सिर्फ राजपूत उम्मीदवार ही विजयी हुये हैं. यहां के लोकसभा चुनावों में सत्येंद्र नारायण सिंह और लूटन बाबू का परिवार ही आमने-सामने रहा है.इस सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या 13 लाख 76 हजार 323 है जिनमें से पुरुष मतदाता 7 लाख 38 हजार 617 हैं. जबकि महिला मतदाता 6 लाख 37 हजार 706 हैं. वहीं अगर जातीय समीकरण की बात करें तो औरंगाबाद में राजपूतों की संख्या सबसे ज्यादा है. दूसरे स्थान पर यादव वोटर हैं जिनकी संख्या 10% है. मुस्लिम वोटर 8.5 प्रतिशत, कुशवाहा 8.5 प्रतिशत और भूमिहार वोटरों की संख्या 6.8% है. एससी और महादलित वोटरों की संख्या इस लोकसभा क्षेत्र में 19% है. जो प्रत्याशी इस 19 फीसदी वोटरों को अपने पाले में लाने में सफल होता है, उसी के सिर पर यहां का ताज़ होता है.

औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या

  1. कुल मतदाता-13 लाख 76 हजार 323
  2. पुरुष मतदाता- 7 लाख 38 हजार 617
  3. महिला मतदाता- 6 लाख 37 हजार 706
  4. राजपूत वोटरों की है बहुलता
  5. दूसरे स्थान पर यादव वोटर
  6. मुस्लिम- 8.5%, कुशवाहा- 8.5%,
  7. भूमिहार- 6.8%, एससी और महादलित-19%

विधानसभा सीटों का समीकरण
औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र के तहत विधानसभा की 6 सीटें आती हैं-

  1. कुटुम्बा
  2. औरंगाबाद
  3. रफीगंज
  4. गुरुआ
  5. इमामगंज
  6. टिकारी

इनमें से दो सीटें कुटुम्बा और इमामगंज रिजर्व हैं. तीन सीटें- औरंगाबाद, कुटुंबा और रफीगंज औरंगाबाद जिले में हैं जबकि गया जिले में इमामगंज, गुरुआ और कोच विधानसभा सीटें आती हैं. 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में इन 6 सीटों में से दो कांग्रेस, दो जेडीयू, 1 बीजेपी और एक सीट हम के खाते में गई थी.

औरंगाबाद लोक सभा क्षेत्र में विधानसभा सीटें (औरंगाबाद के मैप पर)

  1. कुटुम्बा
  2. औरंगाबाद
  3. रफीगंज
  4. गुरुआ
  5. इमामगंज
  6. टिकारी

बात वर्तमान सांसद की करें तो सुशील सिंह ने 1998 में समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और वीरेंद्र कुमार सिंह को पराजित किया. वर्ष 2014 में भाजपा और जदयू के अलग होने के बाद सुशील सिंह जदयू छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस उम्मीदवार निखिल कुमार को 66347 वोटों से हराया था.

वर्तमान सांसद सुशील सिंह की राजनीतिक यात्रा

  • 1998 में पहली बार समता पार्टी के टिकट पर सुशील सिंह बने सांसद
  • 2014 में जदयू छोड़ भाजपा से जुड़े और सांसद बने
  • पिछले चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार निखिल कुमार को हराया

उपेंद्र प्रसाद वर्मा
वहीं बात अगर महागठबंधन के प्रत्याशी उपेंद्र प्रसाद की करें तो उनका रिकॉर्ड दल बदल वाला रहा है और महागठबंधन उम्मीदवार बनने से पहले वे जदयू के एमएलसी थे. उपेंद्र प्रसाद जदयू से औरंगाबाद की टिकट के लिए ज़ोर आजमाइश भी कर रहे थे. लेकिन औरंगाबाद की सीट भाजपा के खाते में जाने के बाद उन्होंने पार्टी बदल ली और जीतन राम मांझी की पार्टी से अपना औरंगाबाद का टिकट कन्फर्म करा लिया.

औरंगाबाद की प्रमुख समस्याएं और इस बार के चुनावी मुद्दे
नेता चाहे जितने भी कागज़ी दावे कर लें, चाहे जितने कार्य और उपलब्धियां गिना दें लेकिन जमीनी हकीकत तो वहां की जनता ही बताती है. औरंगाबाद के लोगों ने बताया कि जिले की अधूरी उत्तर कोयल नहर परियोजना, नक्सलवाद, गिरता जलस्तर, सिंचाई सुविधा और पेय जल, गन्ना किसानों से जुड़े मसले इस बार यहां के चुनाव के प्रमुख मुद्दे हैं.

औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र के मुख्य चुनावी मुद्दे

  • अधूरी उत्तर कोयल नहर परियोजना और नक्सलवाद
  • गिरता जलस्तर
  • सिंचाई सुविधा और पेय जल
  • गन्ना किसानों से जुड़े मुद्दे
Intro:BH_AUR_RAJESH_RANJAN_STUDENT_VOICE_ON_ELECTION_PKG

औरंगाबाद- औरंगाबाद लोकसभा का चुनाव जैसे-जैसे पास आ रही है सरगर्मियां बढ़ती जा रही है। लोकसभा क्षेत्र में पिछले 5 वर्षों में कोई नया कॉलेज नहीं खुला है। छात्रों की कई मांगे हैं। जिसमें मगध विश्वविद्यालय का शाखा कार्यालय औरंगाबाद में खोलने की मांग सबसे प्रमुख है। इस संबंध में हमने छात्रों से चर्चा की । आइए जानते हैं छात्रों ने क्या कहा-


Body:औरंगाबाद लोकसभा का चुनाव 11 अप्रैल को प्रथम चरण में ही होना है । चुनाव में कई मुद्दे फिजा में तैर रहे हैं । इस संबंध में जब हमने छात्रों के बीच मुद्दों पर चर्चा की तो छात्रों ने बताया कि पिछले पांच साल से जो भी मांगे उन लोगों ने मांगी वह पूरी नहीं हुई है । छात्रों ने बताया कि मगध विश्वविद्यालय का सेशन लेट चल रहा है । वह चाहते हैं कि एडमिशन और सेशन बिल्कुल समय से हो, जो अभी तक पूरी नहीं हो सकी।
इसके अलावा मगध विश्वविद्यालय का शाखा कार्यालय औरंगाबाद में खोलने की बहुत पुरानी मांग है जो की पूरी नहीं हुई।
इस संबंध में छात्र नेता अवध प्रकाश ने बताया कि उन्होंने सांसद से मिलकर जिले में एक मेडिकल कॉलेज और मगध विश्वविद्यालय की शाखा कार्यालय खोलने की मांग की थी लेकिन उनकी मांगों को पूरा नहीं किया। छात्र नीतीश कुमार ने बताया कि मोदी सरकार छात्रों के हर मुद्दे पर विफल रहा है । चाहे हर वर्ष दो करोड़ लोगों को रोजगार देने की बात हो या नए यूनिवर्सिटी और कॉलेज खोलने की बात हो, यहां तक कि मेडिकल कॉलेजों में सीट बढ़ाने की बात पर भी मोदी सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है। सरकार ने कोई भी वादा पूरा नहीं किया है। उन्होंने बताया कि स्थानीय सांसद भी सरकार के अंग थे इस कारण उन्हें भी सफल नहीं कहा जा सकता है।


Conclusion:visual-1
photo-1,2,3

byte1-अवध प्रकाश, छात्र नेता, सिन्हा कॉलेज औरंगाबाद
byte2- नीतीश कुमार, छात्र
Last Updated : Mar 28, 2019, 5:24 PM IST
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