औरंगाबादः शिक्षा विभाग के कई नियम इन दिनों शिक्षकों की गले की हड्डी बन कर रह गई है. इन्हीं नियमों में उलझ कर एक प्रधान शिक्षिका दो दिन से घर नहीं जा पा रही है. विद्यालय में ही रात बिताने को मजबूर है. महिला स्कूल प्रभारी ने एक ऊनी शॉल के सहारे कथित रूप से विद्यालय में ही रात गुजारी. जिसकी चर्चा शुक्रवार को जिले भर में होती रही.
क्या है मामलाः मामला दाउदनगर अनुमंडल मुख्यालय के मध्य विद्यालय का है. राजकीय प्राथमिक विद्यालय पटवा टोली का अपना भवन नहीं होने के कारण यह विद्यालय औरंगाबाद जिले के दाउदनगर शहर के लखन मोड़ स्थित राजकीय मध्य विद्यालय संख्या दो में चल रहा है. शिक्षा विभाग के नियम के अनुसार विद्यालय में बच्चों की उपस्थिति 75 प्रतिशत से कम रहने पर जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय में जाकर रिपोर्ट देनी होती है. जिला मुख्यालय, दाउदनगर से 35 किलोमीटर दूर है.
रात में घर जाने की सुविधा नहींः मिली जानकारी के अनुसार शिक्षिका बुधवार को 5:30 बजे तक विद्यालय कार्य के बाद रिपोर्ट लेकर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय औरंगाबाद गई थी. जहां से लौटने के क्रम में उन्हें रात के 9:00 बज गए. यहां से गांव जाने का कोई साधन नहीं मिला. उसकी तबीयत भी खराब हो रही थी. उसे लगा कि सुबह स्कूल आने में दिक्कत होगी तो उसने विद्यालय में ही रात बिताने का फैसला किया. दूसरे दिन छुट्टी मांगी. छुट्टी नहीं मिलने पर उसने सोचा फिर सुबह आने में परेशानी होगी तो स्कूल में ही रुक गयी.
"दिल की बीमारी है, ज्यादा बोलेंगे तो हर्ट अटैक आ सकता है. लगातार प्रखण्ड शिक्षा पदाधिकारी से छुट्टी मांग रही हूं, लेकिन उन्हें छुट्टी नहीं मिल रही है. स्पेशल लीव के लिए आवेदन दिया, लेकिन बीईओ ने आवेदन नहीं लिया. अस्वस्थ हैं, इसलिए कुछ काम नहीं कर पाएंगे. अगर छुट्टी मिल जाती तो कुछ हद तक कंट्रोल होता. छुट्टी नहीं मिलने के कारण मन चिड़चिड़ा हो गया है. पांच बजे तक स्कूल में रहना ही पड़ता है."- मीरा कुमारी, प्रधान शिक्षिका, प्राथमिक विद्यालय पटवा टोली, दाउदनगर
"स्कूल अवधि में आवेदन नहीं देना है, इसलिए प्रधान शिक्षिका को स्कूल अवधि के बाद बुलाया गया था. रात में विद्यालय में रहने का कोई औचित्य नहीं था. वे चाहती तो घर जा सकती थीं."- चंद्रशेखर सिंह, दाउदनगर बीईओ
विरोध का तरीका तो नहींः शिक्षिका के इस तरह विद्यालय में रुकने के बाद लोग तरह-तरह की चर्चा कर रहे हैं. कुछ लोगों का मानना है कि केके पाठक का खौफ का असर है. उनका मानना है कि केके पाठक के नये नये आदेश से शिक्षकों में रोष है. उनके ऊपर समय पर विद्यालय आने और जाने का प्रेशर है. बीमार होने के बाद भी शिक्षक कुछ नहीं कह पाते हैं. वहीं कुछ लोग यह भी चर्चा कर रहे थे कि शिक्षिका ने एक तरह से विरोध प्रदर्शन किया है.
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