औरंगाबाद: विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर जगह-जगह वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. पर्यावरण के प्रहरी अपने स्तर से वातावरण को साफ और स्वच्छ करने में जुटे हैं. इसी बीच जिले में एक ऐसी महिला प्रहरी मिली जिन्होंने वीरान हो चुके सोन तटीय इलाकों को फिर से हरा-भरा करने का ठाना है.
पेशे से डॉक्टर और समाजसेवी डॉ. नीलम ने सोन तटीय इलाकों के पर्यावरण को बचाने के लिए डेढ़ लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है. पिछले दस वर्षों से वह लगातार इस दिशा में कोशिश कर रही हैं. वह पौधारोपण और पर्यावरण संरक्षण को लेकर संकल्पित हैं.
रेत उत्खनन के कारण खत्म हुए जल स्त्रोत
मालूम हो कि औरंगाबाद जिले में जब से बालू उद्योग में पैसों का खेल शुरू हुआ तब से सोन नदी और आसपास के तटीय क्षेत्र की हरियाली समाप्त हो गई है. सोन तटीय क्षेत्र में नवीनगर, बारुण, ओबरा और दाउदनगर प्रखंड प्रमुख हैं. सोन नदी के क्षेत्र बंजर होते जा रहे हैं. यहां लगे हजारों की संख्या में पेड़ धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं. अत्याधिक रेत उत्खनन के कारण जल स्त्रोत भी खत्म होते जा रहा हैं.
निश्या फाउंडेशन के तहत कर रही काम
पर्यावरण को बचाने का जिम्मा समाजसेवी डॉक्टर नीलम ने उठाया है. वह अपने आसपास सोन तटीय क्षेत्रों के आसपास के गांवों और खाली स्थानों पर लगातार पौधारोपण करवा रही हैं. यह कार्य वह अपने संगठन निश्या फाउंडेशन के तहत कर रही हैं. इस कार्य में उन्हें डॉ. धर्मेंद सिंह, समाजसेवी धरमू चौधरी, हेमंत कुमार समेत दर्जनों कार्यकर्ता सहयोग कर रहे हैं.
इस वर्ष 1 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य
समाजसेवी डॉ. नीलम ने बताया कि उन्होंने बचपन में सोन नदी के तट पर हजारों की संख्या में पीपल के वृक्ष देखे थे, जो आजकल ना के बराबर हैं. ऐसे में अगर तापमान बढ़ता है या सोन नदी के जलधारा में कमी आती है तो उसका एकमात्र कारण यह बिगड़ता पर्यावरण ही है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण के दिवस के अवसर पर वह कृत संकल्पित है कि 1लाख पौधे सोन नदी के तटीय इलाकों में लगाएंगे. इससे भू-जलस्तर बढ़ेगा और वातावरण के बढ़ते तापमान में कमी आएगी.
10 सालों से लगातार कर रही हैं वृक्ष सेवा
नर्सरी की देखभाल करने वाले संतोष कुमार ने बताया कि समाजसेवी डॉ. नीलम उनके यहां से पिछले 10 वर्षों से लगातार हजारों की संख्या में पौधे ले जा रही हैं. इस बार उन्होंने 1 लाख पौधों की मांग की थी, जो कि उन्होंने अपनी नर्सरी में उगाए हैं. पौधे उन्हें समय-समय पर दिए जा रहे हैं.