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विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष: जिले की डॉक्टर ने उठाया वातावरण को हरा-भरा करने का बीड़ा

डॉ. नीलम ने बताया कि उन्होंने बचपन में सोन नदी के तट पर हजारों की संख्या में पीपल के वृक्ष देखे थे, जो आजकल ना के बराबर हैं. ऐसे में तापमान बढ़ने का एकमात्र कारण यह बिगड़ता पर्यावरण ही है.

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Published : Jun 5, 2019, 10:39 PM IST

वृक्षारोपण

औरंगाबाद: विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर जगह-जगह वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. पर्यावरण के प्रहरी अपने स्तर से वातावरण को साफ और स्वच्छ करने में जुटे हैं. इसी बीच जिले में एक ऐसी महिला प्रहरी मिली जिन्होंने वीरान हो चुके सोन तटीय इलाकों को फिर से हरा-भरा करने का ठाना है.

पेशे से डॉक्टर और समाजसेवी डॉ. नीलम ने सोन तटीय इलाकों के पर्यावरण को बचाने के लिए डेढ़ लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है. पिछले दस वर्षों से वह लगातार इस दिशा में कोशिश कर रही हैं. वह पौधारोपण और पर्यावरण संरक्षण को लेकर संकल्पित हैं.

रेत उत्खनन के कारण खत्म हुए जल स्त्रोत
मालूम हो कि औरंगाबाद जिले में जब से बालू उद्योग में पैसों का खेल शुरू हुआ तब से सोन नदी और आसपास के तटीय क्षेत्र की हरियाली समाप्त हो गई है. सोन तटीय क्षेत्र में नवीनगर, बारुण, ओबरा और दाउदनगर प्रखंड प्रमुख हैं. सोन नदी के क्षेत्र बंजर होते जा रहे हैं. यहां लगे हजारों की संख्या में पेड़ धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं. अत्याधिक रेत उत्खनन के कारण जल स्त्रोत भी खत्म होते जा रहा हैं.

डॉक्टर नीलम का बयान

निश्या फाउंडेशन के तहत कर रही काम
पर्यावरण को बचाने का जिम्मा समाजसेवी डॉक्टर नीलम ने उठाया है. वह अपने आसपास सोन तटीय क्षेत्रों के आसपास के गांवों और खाली स्थानों पर लगातार पौधारोपण करवा रही हैं. यह कार्य वह अपने संगठन निश्या फाउंडेशन के तहत कर रही हैं. इस कार्य में उन्हें डॉ. धर्मेंद सिंह, समाजसेवी धरमू चौधरी, हेमंत कुमार समेत दर्जनों कार्यकर्ता सहयोग कर रहे हैं.

aurangabad
वृक्षारोपण करती डॉक्टर नीलम

इस वर्ष 1 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य
समाजसेवी डॉ. नीलम ने बताया कि उन्होंने बचपन में सोन नदी के तट पर हजारों की संख्या में पीपल के वृक्ष देखे थे, जो आजकल ना के बराबर हैं. ऐसे में अगर तापमान बढ़ता है या सोन नदी के जलधारा में कमी आती है तो उसका एकमात्र कारण यह बिगड़ता पर्यावरण ही है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण के दिवस के अवसर पर वह कृत संकल्पित है कि 1लाख पौधे सोन नदी के तटीय इलाकों में लगाएंगे. इससे भू-जलस्तर बढ़ेगा और वातावरण के बढ़ते तापमान में कमी आएगी.

10 सालों से लगातार कर रही हैं वृक्ष सेवा
नर्सरी की देखभाल करने वाले संतोष कुमार ने बताया कि समाजसेवी डॉ. नीलम उनके यहां से पिछले 10 वर्षों से लगातार हजारों की संख्या में पौधे ले जा रही हैं. इस बार उन्होंने 1 लाख पौधों की मांग की थी, जो कि उन्होंने अपनी नर्सरी में उगाए हैं. पौधे उन्हें समय-समय पर दिए जा रहे हैं.

औरंगाबाद: विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर जगह-जगह वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. पर्यावरण के प्रहरी अपने स्तर से वातावरण को साफ और स्वच्छ करने में जुटे हैं. इसी बीच जिले में एक ऐसी महिला प्रहरी मिली जिन्होंने वीरान हो चुके सोन तटीय इलाकों को फिर से हरा-भरा करने का ठाना है.

पेशे से डॉक्टर और समाजसेवी डॉ. नीलम ने सोन तटीय इलाकों के पर्यावरण को बचाने के लिए डेढ़ लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है. पिछले दस वर्षों से वह लगातार इस दिशा में कोशिश कर रही हैं. वह पौधारोपण और पर्यावरण संरक्षण को लेकर संकल्पित हैं.

रेत उत्खनन के कारण खत्म हुए जल स्त्रोत
मालूम हो कि औरंगाबाद जिले में जब से बालू उद्योग में पैसों का खेल शुरू हुआ तब से सोन नदी और आसपास के तटीय क्षेत्र की हरियाली समाप्त हो गई है. सोन तटीय क्षेत्र में नवीनगर, बारुण, ओबरा और दाउदनगर प्रखंड प्रमुख हैं. सोन नदी के क्षेत्र बंजर होते जा रहे हैं. यहां लगे हजारों की संख्या में पेड़ धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं. अत्याधिक रेत उत्खनन के कारण जल स्त्रोत भी खत्म होते जा रहा हैं.

डॉक्टर नीलम का बयान

निश्या फाउंडेशन के तहत कर रही काम
पर्यावरण को बचाने का जिम्मा समाजसेवी डॉक्टर नीलम ने उठाया है. वह अपने आसपास सोन तटीय क्षेत्रों के आसपास के गांवों और खाली स्थानों पर लगातार पौधारोपण करवा रही हैं. यह कार्य वह अपने संगठन निश्या फाउंडेशन के तहत कर रही हैं. इस कार्य में उन्हें डॉ. धर्मेंद सिंह, समाजसेवी धरमू चौधरी, हेमंत कुमार समेत दर्जनों कार्यकर्ता सहयोग कर रहे हैं.

aurangabad
वृक्षारोपण करती डॉक्टर नीलम

इस वर्ष 1 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य
समाजसेवी डॉ. नीलम ने बताया कि उन्होंने बचपन में सोन नदी के तट पर हजारों की संख्या में पीपल के वृक्ष देखे थे, जो आजकल ना के बराबर हैं. ऐसे में अगर तापमान बढ़ता है या सोन नदी के जलधारा में कमी आती है तो उसका एकमात्र कारण यह बिगड़ता पर्यावरण ही है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण के दिवस के अवसर पर वह कृत संकल्पित है कि 1लाख पौधे सोन नदी के तटीय इलाकों में लगाएंगे. इससे भू-जलस्तर बढ़ेगा और वातावरण के बढ़ते तापमान में कमी आएगी.

10 सालों से लगातार कर रही हैं वृक्ष सेवा
नर्सरी की देखभाल करने वाले संतोष कुमार ने बताया कि समाजसेवी डॉ. नीलम उनके यहां से पिछले 10 वर्षों से लगातार हजारों की संख्या में पौधे ले जा रही हैं. इस बार उन्होंने 1 लाख पौधों की मांग की थी, जो कि उन्होंने अपनी नर्सरी में उगाए हैं. पौधे उन्हें समय-समय पर दिए जा रहे हैं.

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औरंगाबाद- आज विश्व पर्यावरण दिवस है और पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज हम चर्चा करेंगे पर्यावरण के एक ऐसी महिला सिपाही का जिसने निर्जन हो चुके सोन तटीय इलाकों को पुनः हरा भरा करने को ठाना है। प्रसिद्ध समाजसेवी
डॉ नीलम, जिन्होंने सोन तटीय इलाकों के पर्यावरण को बचाने के लिए डेढ़ लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। पिछले दस वर्षों से लगातार पौधारोपण कर रही डॉ नीलम पर्यावरण संरक्षण के प्रति कृत संकल्पित हैं।


Body:औरंगाबाद जिले में जब से बालू उद्योग में अनाप-शनाप पैसों का खेल शुरू हुआ तब से सोन नदी और आसपास के तटीय क्षेत्र की हरियाली समाप्त हो गई है। सोन तटीय क्षेत्र जिसमें नवीनगर, बारुण,ओबरा और दाउदनगर प्रखंड प्रमुख हैं । सोन नदी के क्षेत्र निर्जन होते जा रहे हैं । यहां हजारों की संख्या में पेड़ धीरे धीरे खत्म कर दिए गए और अत्यधिक रेत उत्खनन के कारण पानी का स्रोत भी खत्म होते जा रहा है। इसी पर्यावरण को बचाने के लिए प्रसिद्ध समाजसेवी डॉ नीलम ने एक बीड़ा उठाया है और वह पिछले 10 वर्षों से इसके लिए कार्य कर रहे हैं । डॉक्टर नीलम अपने आसपास सोन तटीय क्षेत्रों के आसपास के गांवों और खाली स्थानों पर लगातार पौधारोपण करवा रही हैं। यह कार्य वे अपने संगठन निश्या फाउंडेशन के तहत कर रही हैं। इस कार्य में उन्हें डॉ धर्मेंद सिंह, समाजसेवी धरमू चौधरी, हेमंत कुमार समेत दर्जनों कार्यकर्ता सहयोग कर रहे हैं।

इस बार इस वर्ष का लक्ष्य 1 लाख पौधे लगाने का है।

समाजसेवी डॉ नीलम ने बताया कि उन्होंने बचपन में सोन नदी के तट पर हजारों की संख्या में पीपल के वृक्ष देखे थे जो आजकल ना के बराबर है । ऐसी स्थिति इसलिए आई कि पेड़ का कटाव होता रहा लेकिन पुनः पेड़ नहीं लगाए गए । ऐसे में अगर तापमान बढ़ता है या सोन नदी के जलधारा में कमी आती है तो उसका एकमात्र कारण यह बिगड़ता पर्यावरण ही है । उन्होंने कहा कि आज अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण के दिवस के अवसर पर वह कृत संकल्पित है कि 1लाख पौधे सोन नदी के तटीय इलाकों में लगाएंगे । इससे भूजलस्तर बढ़ेगा और वातावरण के बढ़े तापमान में कमी आएगी।
उन्होंने कहा कि अगर ग्रीन हाउस गैसों का प्रदूषण कम नहीं किया गया तो जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव बेकाबू हो सकता है। ग्रीनहाउस गैस से धरती की गर्मी को वायुमंडल में अवरुद्ध कर लेती हैं जिससे वायुमंडल का तापमान बढ़ जाता है और ऋतु चक्र में बदलाव देखे जा सकते हैं । जलवायु परिवर्तन को प्रकृति को संतुलित करके ही रोका जा सकता है और प्रकृति के संतुलन के लिए ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाने होंगे।

दस सालों से लगातार कर रही हैं वृक्ष सेवा

नर्सरी की देखभाल करने वाले संतोष कुमार ने बताया कि समाजसेवी डॉ नीलम उनके यहां से पिछले 10 वर्षों से लगातार हजारों की संख्या में पौधे ले जा रही हैं और इस बार उन्होंने 1 लाख पौधों की मांग की थी । जो कि उन्होंने अपनी नर्सरी में उगाए हैं और उन्हें समय-समय पर दिए जा रहे हैं।

चारों तरफ बढ़ रहे प्रदूषण और वातावरण के तापमान में हो रहे अत्यधिक वृद्धि पर कंट्रोल करने के लिए डॉक्टर नीलम जैसे सैकड़ों समाजसेवियों को आगे आना पड़ेगा तभी जाकर धरती हरी भरी और स्वच्छ हो पाएगी।



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