औरंगाबाद: औरंगाबाद सदर अनुमंडल में अधिवक्ताओं ने अपनी दशा और दिशा पर चिंतन करने के उद्देश्य से प्रमंडल स्तरीय अधिवेशन का आयोजन किया. जिला परिषद् सभागार में आयोजित इस सम्मलेन में अधिवक्ताओं ने वर्तमान परिवेश में अधिवक्ता वर्ग के प्रति केंद्र तथा राज्य सरकारों की उदासीनता विषय पर चर्चा की. इसमें कहा गया जिन अधिवक्ताओं को संविधान का व्याख्याता कहा जाता है, उनके साथ ही सरकारों का ऐसा उदासीन रवैया किसी भी देश या फिर समाज के लिए हितकारी नहीं है.
अधिवक्ताओं से एकजुट होने का आह्वान
अधिवेशन में कहा गया कि 18 लाख अधिवक्ता हैं लेकिन बंटे हुए हैं. जब तक ये एकजुट नहीं होंगे, सफलता का मिलना मुश्किल है. केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि कोरोना काल में 20 हजार करोड़ का पैकेज देगी लेकिन इस पैकेज में अधिवक्ताओं का नाम नहीं मिला. इसके लिए दोषी हम हैं. संविधान के रक्षक अधिवक्ता हैं. जनतंत्र के रक्षक भी अधिवक्ता ही हैं लेकिन उपेक्षित हैं.
विधानमंडल में अधिवक्ताओं की भागीदारी जरुरी
बिहार बार काउंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष धर्मनाथ प्रसाद यादव ने कहा कि आज ऐतिहासिक दिन है. विधानमंडल में अधिवक्ताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की जरूरत है. ऐसे लोग कानून बना रहे हैं जिन्हें कानून की कोई जानकारी नहीं है. शिक्षा मंत्री ऐसे लोगों को बना दिया जाता है जिनका शिक्षा से कोई लेना देना नहीं है. साजिश के तहत ऐसे लोगों को दूर रखा जाता है ताकि गलत कार्यों पर अंकुश नहीं लगे. स्वतंत्र राष्ट्र की पहचान अपना कानून, अपनी भाषा और अपना वेश है. लेकिन यह विडंबना है कि इन तीनों का यहां अभाव है. यहां ऐसी व्यवस्था हुई कि लोग शिक्षा और न्याय से वंचित हैं.