आरा: बिहार के भोजपुर में रेफरल अस्पताल जगदीशपुर में इलाजरत एक युवक की मौत (Youth Died during Treatment in Bhojpur) का मुद्दा काफी गरमा गया है. इसे लेकर बवाल हो रहा है. मृतक क्रांति के नायक बाबू वीर कुंवर सिंह का वंशज (Descendant Of Babu Veer Kunwar Singh) बताया जा रहा है. युवक की मौत की खबर पर सैकड़ों की संख्या में लोग रेफरल अस्पताल पहुंचे और अस्पताल प्रबंधन व स्थानीय प्रशासन पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए हंगामा करने लगे. लोगों का आरोप है कि पुलिस की पिटाई से यह मौत हुई है. घटना की सूचना मिलते ही पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे और लोगों को समझाया.
मृतक के नाराज परिजन दोषी अस्पताल प्रभारी और सीआईएटी (Counter Insurgency & Anti Terrorism) जवानों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग कर रहे थे. इस दौरान लगातार 8 घंटों तक अफरा-तफरी का माहौल बना रहा. मृतक जगदीशपुर नगर के वार्ड संख्या 18 वीर कुंवर सिंह किला गढ़ निवासी स्व. कुंवर विजय सिंह के 45 वर्षीय पुत्र कुंवर रोहित सिंह उर्फ बबलू सिंह बताए जा रहे हैं. इस मामले के तुल पकड़ते देख पुलिस ने तत्काल एसआईटी का गठन किया है.
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साजिश के तहत हत्या का आरोप: मिली जानकारी के अनुसार, युवक की मौत के बाद आक्रोशित भीड़ प्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाने लगी. वहीं मृतक की माता सह बीजेपी नेत्री पुष्पा सिंह (वीर कुंवर सिंह के वंशज) ने प्रशासन की मिलीभगत से बेटे की हत्या का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि प्रशासन द्वारा मेरे बेटे की साजिशन हत्या की गई है. वीर कुंवर सिंह किला प्रांगण में सीआईएटी जवानों द्वारा किये जा रहे गलत कार्यों का मेरे बेटे रोहित उर्फ बबलू सिंह ने विरोध किया था. इसके चलते जवानों ने मारपीट कर उसे रेफरल अस्पताल के गेट के सामने सोमवार की देर रात फेंक दिया. मंगलवार को करीब 2 बजे उसकी मौत हो गई. मृतक की मां ने रेफरल अस्पताल के प्रभारी पर बेहतर इलाज न कर जानबूझकर मारने का संगीन आरोप लगाया है.
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घंटों मची रही अफरातफरी: घटना से आक्रोशित मृतक के परिजनों और लोगों की भीड़ कुंवर रोहित सिंह के असामयिक मृत्यु को हत्या करार देते हुए आठ घंटे से अधिक समय तक शव को उठने नहीं दिया. सूचना मिलते ही एसडीपीओ श्याम किशोर रंजन, एसडीएम सीमा कुमारी, थानाध्यक्ष संजीव कुमार, अंचलाधिकारी कुमार कुंदन लाल, धनगाई थानाध्यक्ष कंचन कुमारी, आयर थानाध्यक्ष प्रदीप भास्कर, बीडीओ राजेश कुमार, नगर कार्यपालक पदाधिकारी विनय कुमार समेत काफी संख्या में पुलिस के जवान रेफरल अस्पताल पहुंचे और आक्रोशित लोगों को समझाया.
घंटों समझाने के बाद परिजन हुए शांत: अंततः एसडीएम सीमा कुमारी व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों, मृतक के भाई कुंवर अजय प्रताप सिंह, परिजनों तथा गणमान्य लोगों की मौजूदगी में बातचीत और जांच के पश्चात उचित कार्रवाई के आश्वासन के बाद आक्रोशित परिस्थिति कुछ शांत हुई. इसके बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल आरा ले जाया गया.
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एसपी बोले- दोषियों पर होगी कार्रवाई: भोजपुर के एसपी विनय तिवारी (Bhojpur SP Vinay Tiwari) भी अस्पताल पहुंचे थे. उन्होंने कहा जगदीशपुर में ऐसी घटना सामने आयी है. हमने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है. परिजनों से आवेदन ले रहे हैं. परिजन जिन पर शक जाहिर कर रहे हैं, हम उन पर एफआईआर दर्ज कर रहे हैं. उनके खिलाफ आगे की कानूनी कार्रवाई की जायेगी. एसआईटी अपना काम करेगी. इसमें जो भी दोषी होंगे, उन्हें जेल भेजा जायेगा. अगर किसी स्तर पर पुलिस से लापरवाही हुई है तो उसका भी हम आकलन कर रहे हैं. उसमें भी कार्रवाई की जायेगी. सभी आरोपों की जांच करेंगे. परिजन की डिमांड के मुताबिक मेडिकल बोर्ड का गठन, वीडियोग्राफी, परिजनों के सामने मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में पोस्टमार्टम की व्यवस्था की जा रही है. पोस्टमार्टम के आधार पर कार्रवाई की जायेगी. किसी के साथ रियायत नहीं बरती जायेगी.
कौन थे बाबू वीर कुंवर सिंह: 1857 का संग्राम ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ी और अहम घटना थी. इस क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 को मेरठ से हुई, जो धीरे-धीरे बाकी स्थानों पर फैल गई. वैसे तो संग्राम में कई लोगों ने अपनी जान की बाजी लगाई लेकिन अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए अपने क्षेत्र को आजाद करने वाले एकमात्र नायक बाबू वीर कुंवर सिंह थे. उन्होंने 23 अप्रैल, 1858 को शाहाबाद क्षेत्र को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराया था. उन्होंने जगदीशपुर के अपने किले पर फतह पाई थी और ब्रिटिश झंडे को उतारकर अपना झंडा फहराया था. उसी आजादी का पारंपरिक विजयोत्सव दिवस 23 अप्रैल को मनाया जाता है.
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कब उठाई बाबू वीर कुंवर सिंह ने तलवार? : 1857 के संग्राम के दौरान पटना एक अहम केंद्र था जिसकी शाखाएं चारों ओर फैली थीं. पटना के क्रांतिकारियों के मुख्य नेता पीर अली को अंग्रेजों ने फांस दे दी थी जिसके बाद दानापुर की देसी पलटनों ने स्वाधीनता की घोषणा कर दी. ये पलटनें जगदीशपुर की तरफ गईं और कुंवर सिंह ने इनका नेतृत्व संभाला. इसके बाद कुंवर सिंह ने कई कामयाब हासिल कीं. उन्होंने आरा में अंग्रेजी खजाने पर कब्जा किया. जेलखाने के कैदी रिहा किए. उन्होंने आजमगढ़ पर कब्जा किया. इतना ही नहीं लखनऊ से भागे कई क्रांतिकारी भी कुंवर सिंह की सेना में आ मिले थे.
जब एक हाथ से लड़े बाबू वीर कुंवर सिंह : अप्रैल 1958 में नाव के सहारे गंगा नदी पार करने के दौरान अंग्रेजों ने कुंवर सिंह पर हमला कर दिया था. वह नदी पार करते समय अपने पलटन के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों से घिर गए थे. इस क्रम में उनके हाथ में गोली लग गई. गोली उनकी बायीं बांह में लगी. गोली लगने के बाद उन्होंने अपने ही तलवार से हाथ काटकर उसे गंगा नदी में अर्पित कर दिया. हालांकि, घायल होने के बावजूद उनकी हिम्मत नहीं टूटी और जगदीशपुर किले को फतह कर ही दम लिया. एक ब्रिटिश इतिहासकार होम्स ने उनके बारे में लिखा है, ‘यह गनीमत थी कि युद्ध के समय उस कुंवर सिंह की उम्र 80 थी. अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता.'
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