भोजपुर: बिहार पुलिस की लचर व्यवस्था एक बार फिर सामने आई है. जब शहीद को सलामी देने के दौरान कुछ ही पुलिसकर्मियों ने फायर किया. वहीं, दूसरी ओर बाकी जवान मूकदर्शक बने कंधे पर राइफल लिए खड़े रहे. इनकी बंदूकों से गोलियां निकलने का नाम ही नहीं ले रही थीं. यहां सवाल ये भी खड़ा होता है कि क्या इन्हें गोलियां चलानी ही नहीं आती?
श्रीनगर में आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ में शहीद हुए सीआरपीएफ जवान रमेश रंजन के पार्थिव शरीर को उनके पैतृक आवास जगदीशपुर अनुमंडल के देव टोला गांव में पुलिस सम्मान दिया जा रहा था. इस दौरान जैसे ही सलामी के लिए बंदूकों को हवा में उठाया गया, कुछ ही जवानों ने हरकत करते हुए फायर किया. बाकी पुलिस वाले सिर्फ हवा में बंदूके लहराते दिखाई दिए.
जवाब नहीं दे पाए एसडीओ
बंदूकें क्यों नहीं चलाई, क्या पुलिस जवानों को बंदूक चलाने में डर लग रहा था या उन्हें गोलिया चलानी नहीं आती? क्या बंदूकें खराब थीं? इन सवालों का जवाब जब एसडीओ अरुण कुमार से पूछा गया. तो वो कुछ भी बोलने से बचते नजर आए. उन्होंने कहा, गोलियां तो चली हैं. लेकिन शायद उन्हें 3 से 4 बंदूकों की आवाज वहां मौजूद दर्जनों सिपाही की बंदूकों के बराबर सुनाई दी.
पहले भी फुस्स हो चुकी है बंदूकें
बिहार पुलिस की नाकामी का ये कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले पूर्व सीएम डॉ. जगन्नाथ मिश्र की अंत्येष्टि के दौरान पुलिसकर्मियों की बंदूकें फुस्स हो गई थीं. राजकीय सम्मान के साथ डॉ. मिश्र को अंतिम विदाई में गोलियों के न चलने की चर्चा पूरे बिहार में कई दिनों तक चलती रही. इसके बाद बुधवार को फिर एक बार शहीद के सम्मान में गोलियां कम पड़ गईं.