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भागलपुरी सिल्क: 600 करोड़ का कारोबार 150 करोड़ में सिमटा, इस वजह से बड़े ऑर्डर लेने से कतरा रहे हैं बुनकर

एक तरफ भारत के साथ ही बिहार को भी आत्मनिर्भर बनाने की कवायद जारी है. वहीं दूसरी ओर भागलपुर के बुनकर आत्मनिर्भर बनने की बजाय संकट से जूझते नजर आ रहे हैं. मजबूरी में भागलपुर के बुनकरों ने करोड़ों का ऑर्डर लेने से मना कर दिया है.

SILK OF BHAGALPUR
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Published : Mar 29, 2021, 3:19 PM IST

Updated : Mar 29, 2021, 4:16 PM IST

भागलपुर: भागलपुरी सिल्क देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी अलग पहचान बना चुका है. बावजूद भागलपुरी सिल्क कपड़े का कारोबार घटता जा रहा है. एक समय जहां छह सौ करोड़ का सालाना कारोबार यहां से हुआ करता था. वह घटकर अब डेढ़ सौ करोड़ पर सिमट गया है.

देखें रिपोर्ट

यह भी पढ़ें- पूर्णिया के किसानों की किस्मत बदल रहा ड्रैगन फ्रूट, एक एकड़ में 20 लाख तक कमाई

क्यों घट रहा कारोबार
भागलपुरी सिल्क कारोबार के घटने की पीछे की कई वजह हैं. इनमें से एक है वजह है भागलपुर से हवाई सेवा शुरू नहीं होना. अभी विदेशों में कपड़े निर्यात नहीं हो रहे हैं. जबकि भागलपुर का सिल्क व्यवसाय अमेरिका, रूस, जापान, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया जैसे विदेशी बाजारों पर भी निर्भर है. हवाई सेवा नहीं होने से चीन और कोरिया से धागे की आपूर्ति भी नहीं हो रही है.

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ईटीवी भारत GFX

25 हजार केंद्र ठप
इसके अलावा 25 हजार पावर लूम, हैंडलूम ,रंगाई केंद्र ठप पड़े हैं. इससे जुड़े 80 हजार से अधिक बुनकर बेरोजगार हो गए हैं. एक समय बड़े पैमाने पर मुंबई, दिल्ली और कोलकाता की मंडियों में कपड़े निर्यात किए जाते थे. लेकिन अब इन शहरों से भी धीरे-धीरे आर्डर कम आने लगा है.

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प्रशिक्षण का अभाव
भागलपुर में वस्त्र मंत्रालय भारत सरकार द्वारा बुनकरों के प्रशिक्षण के लिए ऑटोमेटिक पावर लूम, रिपेयर ऑटोमेटिक चेंजिंग लूम, सेमी ऑटोमेटिक, ड्रॉप बॉक्स लूम दिए हैं. लेकिन बुनकरों को सही प्रशिक्षण नहीं दिया जा रहा है. जिसका लाभ बुनकर नहीं ले पा रहे हैं. यही वजह है कि आधुनिक पावर लूम से कपड़ा बुनाई कर अपने हुनर का जलवा अन्य राज्यों की तुलना में यहां के बुनकर नहीं दे पा रहे हैं.

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आर्थिक संकट से जूझ रहे भागलपुर के बुनकर

'बाजार में धागा उपलब्ध नहीं है. इससे कपड़ा उत्पाद प्रभावित हुआ है. यहां से कपड़ा पटना, मुंबई ,दिल्ली आदि भेजे जाते थे. जहां से विदेश भेजा जाता था. लेकिन ट्रांसपोर्ट का खर्च बढ़ जाने के कारण अब वहां के व्यवसाई लेने को तैयार नहीं हैं. हवाई सेवा शुरू नहीं होने के कारण देश से बाहर के व्यापारी यहां नहीं आ पाते हैं. जबकि भागलपुरी सिल्क का नाम विदेशों में खूब है.'- हसनैन अंसारी, अध्यक्ष, अब्दुल कयूम अंसारी बुनकर मंच

कॉटन के धागे के बढ़े दाम
भागलपुरी सिल्क के लिए धागा चाइना और कोरिया से आता था. अब वह भी अब आना बंद हो गया है. बताया जा रहा है कि जिस कॉटन धागे की कीमत 300 रूपये प्रति किलो थी. वह अब 450 रूपये प्रति किलो मिल रहा है. ऐसे में सिल्क के दाम भी बढ़ाने को बुनकर मजबूर हैं. लेकिन देश के कई बड़े शहरों के व्यापारी पुरानी कीमत पर ही माल खरीदना चाह रहे हैं. जो संभव नहीं हो पा रहा.

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बुनकरों ने 50 करोड़ का ऑर्डर ठुकराया

बुनकरों ने ठुकराया करोड़ों का ऑर्डर
आने वाले लगन को देखते हुए देश भर से लगभग 50 करोड़ के आर्डर भागलपुर को मिलने थे. लेकिन यहां बुनकरों ने मजबूरी की वजह से ऑर्डर को ठुकरा दिया है. उन्होंने कहा कि एक समय सालाना कारोबार 600 करोड़ का था. अब वह घटकर डेढ़ सौ करोड़ रूपए पर सिमट गया है. कॉर्टन धागों की बढ़ी कीमत की वजह से पहले जो सिल्क की साड़ी 2000 में तैयार होती थी उसे बनाने में अब लगभग 2400 रूपये खर्च हो रहे हैं. धागे की कीमत में इजाफा हुआ है जिस कॉटन धागे की कीमत 300 किलो थी वह अब 450 रुपये किलो मिल रहा है. लेकिन देश के कई बड़े शहरों के व्यापारी पुरानी कीमत पर ही माल खरीदना चाह रहे हैं.

'धागे का दाम बढ़ गया है. उस हिसाब से आय कम है, मजदूरी, साधन सब घटते चले जा रहे हैं. इस काम के प्रति लोगों का झुकाव कम हो गया है. कोरोना ने धंधे को काफी नुकसान पहुंचाया. काम नहीं मिलने से मजदूर पलायन कर गए.'- संजय, दुकानदार

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25 हजार पावरलूम, हैंडलूम ,रंगाई केंद्र ठप पड़े हैं

2000 बुनकर बुनाई का काम करते हैं. 5 बड़े व्यवसाई हैं जो इन बुनकरों को धागा उपलब्ध कराते हैं. बिचौलिये भी इस कारोबार को नुकसान पहुंचा रहे हैं. सरकार द्वारा भागलपुर में कुकूण बैंक और धागे की व्यवस्था की जाए तो बुनकरों का कल्याण होगा. सरकारी नियम के अनुसार बुनकरों को 45 दिन के लिए धागा उधार दिया जाता है. बुनकर धागा तैयार कर उसे बाजार में बेचने के बाद पैसा वापस करता है. बहुत सारी योजनाएं हैं जिसका लाभ बुनकर नहीं ले पा रहे हैं.- राम चरण राम, महाप्रबंधक, भागलपुर उद्योग विभाग

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घट रहा भागलपुरी सिल्क का कारोबार

भागलपुरी सिल्क का बाजार मंदा
भागलपुरी सिल्क का बाजार पटना ,दिल्ली ,कोलकाता, चेन्नई, मुंबई सहित विदेशों में भी है. लेकिन हवाई सेवा शुरू नहीं होने के कारण बुनकरों की स्थिति नहीं सुधर रही है. भागलपुर में बुनकरों के पास संसाधन का अभाव है. पुराने तकनीक के मशीन से ही यहां के बुनकर काम कर रहे हैं. जिससे लागत अधिक और समय भी अधिक लग रहा है.

बुनकरों का पलायन
बदलते समय के साथ बुनकरों को सरकार द्वारा आर्थिक मदद नहीं की गई. जिस वजह से बुनकर अपने आप को बदलते काम के रूप के अनुसार ढाल नहीं सके. यही कारण रहा कि एक समय भागलपुर में कोलकाता, बेंगलुरु, बनारस ,मुंबई सहित बड़े-बड़े शहर के कारोबारी आकर अपना कारोबार करते थे, लेकिन धीरे-धीरे सभी पलायन कर गए. बुनकरों के पलायन की वजह से कारोबार मंदा पड़ गया है.

गुणवत्ता और उत्पादन में पिछड़ रहा 'भागलपुरी सिल्क'
भागलपुर सहित आसपास के बुनकर दिन रात पसीना बहाने के बाद भी गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों को टक्कर नहीं दे पा रहे हैं. इन राज्यों में तैयार कपड़ों की गुणवत्ता की तुलना में भागलपुर काफी हद तक पिछड़ गया है. उत्पादन के मामले में भी भागलपुर इन राज्यों से काफी पीछे चल रहा है. जरूरत है सरकारी मदद की. अगर ऑटोमेटिक पावर लूम स्थापित कर अनुदान राशि देकर बुनकरों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाए तो भागलपुरी सिल्क एक बार फिर से अपनी पुरानी चमक वापस हासिल कर सकती है.

यह भी पढ़ें- आज भी सिल्क के दीवानों की पहली पसंद 'भागलपुरी सिल्क', लेकिन ये है बड़ी परेशानी

यह भी पढ़ें- भागलपुर: बाजार से ओझल हो रहे रेशमी कपड़े, सुनिए बुनकरों का दर्द

भागलपुर: भागलपुरी सिल्क देश ही नहीं विदेशों में भी अपनी अलग पहचान बना चुका है. बावजूद भागलपुरी सिल्क कपड़े का कारोबार घटता जा रहा है. एक समय जहां छह सौ करोड़ का सालाना कारोबार यहां से हुआ करता था. वह घटकर अब डेढ़ सौ करोड़ पर सिमट गया है.

देखें रिपोर्ट

यह भी पढ़ें- पूर्णिया के किसानों की किस्मत बदल रहा ड्रैगन फ्रूट, एक एकड़ में 20 लाख तक कमाई

क्यों घट रहा कारोबार
भागलपुरी सिल्क कारोबार के घटने की पीछे की कई वजह हैं. इनमें से एक है वजह है भागलपुर से हवाई सेवा शुरू नहीं होना. अभी विदेशों में कपड़े निर्यात नहीं हो रहे हैं. जबकि भागलपुर का सिल्क व्यवसाय अमेरिका, रूस, जापान, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया जैसे विदेशी बाजारों पर भी निर्भर है. हवाई सेवा नहीं होने से चीन और कोरिया से धागे की आपूर्ति भी नहीं हो रही है.

SILK OF BHAGALPUR
ईटीवी भारत GFX

25 हजार केंद्र ठप
इसके अलावा 25 हजार पावर लूम, हैंडलूम ,रंगाई केंद्र ठप पड़े हैं. इससे जुड़े 80 हजार से अधिक बुनकर बेरोजगार हो गए हैं. एक समय बड़े पैमाने पर मुंबई, दिल्ली और कोलकाता की मंडियों में कपड़े निर्यात किए जाते थे. लेकिन अब इन शहरों से भी धीरे-धीरे आर्डर कम आने लगा है.

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ईटीवी भारत GFX

प्रशिक्षण का अभाव
भागलपुर में वस्त्र मंत्रालय भारत सरकार द्वारा बुनकरों के प्रशिक्षण के लिए ऑटोमेटिक पावर लूम, रिपेयर ऑटोमेटिक चेंजिंग लूम, सेमी ऑटोमेटिक, ड्रॉप बॉक्स लूम दिए हैं. लेकिन बुनकरों को सही प्रशिक्षण नहीं दिया जा रहा है. जिसका लाभ बुनकर नहीं ले पा रहे हैं. यही वजह है कि आधुनिक पावर लूम से कपड़ा बुनाई कर अपने हुनर का जलवा अन्य राज्यों की तुलना में यहां के बुनकर नहीं दे पा रहे हैं.

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आर्थिक संकट से जूझ रहे भागलपुर के बुनकर

'बाजार में धागा उपलब्ध नहीं है. इससे कपड़ा उत्पाद प्रभावित हुआ है. यहां से कपड़ा पटना, मुंबई ,दिल्ली आदि भेजे जाते थे. जहां से विदेश भेजा जाता था. लेकिन ट्रांसपोर्ट का खर्च बढ़ जाने के कारण अब वहां के व्यवसाई लेने को तैयार नहीं हैं. हवाई सेवा शुरू नहीं होने के कारण देश से बाहर के व्यापारी यहां नहीं आ पाते हैं. जबकि भागलपुरी सिल्क का नाम विदेशों में खूब है.'- हसनैन अंसारी, अध्यक्ष, अब्दुल कयूम अंसारी बुनकर मंच

कॉटन के धागे के बढ़े दाम
भागलपुरी सिल्क के लिए धागा चाइना और कोरिया से आता था. अब वह भी अब आना बंद हो गया है. बताया जा रहा है कि जिस कॉटन धागे की कीमत 300 रूपये प्रति किलो थी. वह अब 450 रूपये प्रति किलो मिल रहा है. ऐसे में सिल्क के दाम भी बढ़ाने को बुनकर मजबूर हैं. लेकिन देश के कई बड़े शहरों के व्यापारी पुरानी कीमत पर ही माल खरीदना चाह रहे हैं. जो संभव नहीं हो पा रहा.

SILK OF BHAGALPUR
बुनकरों ने 50 करोड़ का ऑर्डर ठुकराया

बुनकरों ने ठुकराया करोड़ों का ऑर्डर
आने वाले लगन को देखते हुए देश भर से लगभग 50 करोड़ के आर्डर भागलपुर को मिलने थे. लेकिन यहां बुनकरों ने मजबूरी की वजह से ऑर्डर को ठुकरा दिया है. उन्होंने कहा कि एक समय सालाना कारोबार 600 करोड़ का था. अब वह घटकर डेढ़ सौ करोड़ रूपए पर सिमट गया है. कॉर्टन धागों की बढ़ी कीमत की वजह से पहले जो सिल्क की साड़ी 2000 में तैयार होती थी उसे बनाने में अब लगभग 2400 रूपये खर्च हो रहे हैं. धागे की कीमत में इजाफा हुआ है जिस कॉटन धागे की कीमत 300 किलो थी वह अब 450 रुपये किलो मिल रहा है. लेकिन देश के कई बड़े शहरों के व्यापारी पुरानी कीमत पर ही माल खरीदना चाह रहे हैं.

'धागे का दाम बढ़ गया है. उस हिसाब से आय कम है, मजदूरी, साधन सब घटते चले जा रहे हैं. इस काम के प्रति लोगों का झुकाव कम हो गया है. कोरोना ने धंधे को काफी नुकसान पहुंचाया. काम नहीं मिलने से मजदूर पलायन कर गए.'- संजय, दुकानदार

SILK OF BHAGALPUR
25 हजार पावरलूम, हैंडलूम ,रंगाई केंद्र ठप पड़े हैं

2000 बुनकर बुनाई का काम करते हैं. 5 बड़े व्यवसाई हैं जो इन बुनकरों को धागा उपलब्ध कराते हैं. बिचौलिये भी इस कारोबार को नुकसान पहुंचा रहे हैं. सरकार द्वारा भागलपुर में कुकूण बैंक और धागे की व्यवस्था की जाए तो बुनकरों का कल्याण होगा. सरकारी नियम के अनुसार बुनकरों को 45 दिन के लिए धागा उधार दिया जाता है. बुनकर धागा तैयार कर उसे बाजार में बेचने के बाद पैसा वापस करता है. बहुत सारी योजनाएं हैं जिसका लाभ बुनकर नहीं ले पा रहे हैं.- राम चरण राम, महाप्रबंधक, भागलपुर उद्योग विभाग

SILK OF BHAGALPUR
घट रहा भागलपुरी सिल्क का कारोबार

भागलपुरी सिल्क का बाजार मंदा
भागलपुरी सिल्क का बाजार पटना ,दिल्ली ,कोलकाता, चेन्नई, मुंबई सहित विदेशों में भी है. लेकिन हवाई सेवा शुरू नहीं होने के कारण बुनकरों की स्थिति नहीं सुधर रही है. भागलपुर में बुनकरों के पास संसाधन का अभाव है. पुराने तकनीक के मशीन से ही यहां के बुनकर काम कर रहे हैं. जिससे लागत अधिक और समय भी अधिक लग रहा है.

बुनकरों का पलायन
बदलते समय के साथ बुनकरों को सरकार द्वारा आर्थिक मदद नहीं की गई. जिस वजह से बुनकर अपने आप को बदलते काम के रूप के अनुसार ढाल नहीं सके. यही कारण रहा कि एक समय भागलपुर में कोलकाता, बेंगलुरु, बनारस ,मुंबई सहित बड़े-बड़े शहर के कारोबारी आकर अपना कारोबार करते थे, लेकिन धीरे-धीरे सभी पलायन कर गए. बुनकरों के पलायन की वजह से कारोबार मंदा पड़ गया है.

गुणवत्ता और उत्पादन में पिछड़ रहा 'भागलपुरी सिल्क'
भागलपुर सहित आसपास के बुनकर दिन रात पसीना बहाने के बाद भी गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों को टक्कर नहीं दे पा रहे हैं. इन राज्यों में तैयार कपड़ों की गुणवत्ता की तुलना में भागलपुर काफी हद तक पिछड़ गया है. उत्पादन के मामले में भी भागलपुर इन राज्यों से काफी पीछे चल रहा है. जरूरत है सरकारी मदद की. अगर ऑटोमेटिक पावर लूम स्थापित कर अनुदान राशि देकर बुनकरों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाए तो भागलपुरी सिल्क एक बार फिर से अपनी पुरानी चमक वापस हासिल कर सकती है.

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Last Updated : Mar 29, 2021, 4:16 PM IST
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