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गरुड़ पक्षी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है बिहार का यह जिला, महाभारत में भी जिक्र

प्राचीन भारत के 16 जनपदों में से एक महत्वपूर्ण जनपद के तौर पर अंग प्रदेश को जाना जाता है. शरदचंद्र चट्टोपाध्याय का ननिहाल भागलपुर है.सुल्तानगंज से लेकर विक्रमशिला तक के गंगा नदी को डॉल्फिन आश्रयनी के तौर पर जाना जाता है.

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Published : Mar 23, 2019, 3:43 PM IST

भागलपुर: गंगा किनारे बसे बिहार का महत्वपूर्ण जिला भागलपुर का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है. न सिर्फ बिहार में बल्कि भारत के इतिहास में भी भागलपुर का स्वर्णिम इतिहास है.

ऐतिहासिक विशेषता
प्राचीन काल के तीन विश्वविद्यालयों में एक विक्रमशिला विश्वविद्यालय भी है. आठवीं सदी के पाल वंश में निर्मित इस विश्वविद्यालय में तंत्र-मंत्र एवं बौद्धिक शिक्षा की पढ़ाई होती थी. बिहार राजनीति में अद्वितीय पहचान रखने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद ने ही विक्रमशिला खुदाई स्थल को आर्किलॉजिक्ल सर्वे ऑफ इंडिया से जोड़कर इतिहास के रहस्य को सबके समक्ष लाने में योगदान दिया.

प्रख्यात जनपद
प्राचीन भारत के 16 जनपदों में से एक महत्वपूर्ण जनपद के तौर पर अंग प्रदेश को जाना जाता है. वर्तमान काल के उड़ीसा, बंगाल और बिहार प्राचीन समय के अंग, बंग और कलिंग हुआ करते थे. भागलपुर की पहचान व्याव्सायिक दृष्टिकोण के साथ-साथ सांस्कृतिक रूप में रही है. प्रदेश की प्रसिद्ध दन्त कथा आधारित बिहुला विषहरी पूजा पूरे अंग प्रदेश के साथ-साथ पूर्वी बिहार में काफी धूमधाम से मनाई जाती है. बेला विषहरी की गाथा पर आधारित चित्र गाथा मंजूषा को पूरे देश में अच्छी खासी पहचान मिल चुकी है. इन दिनों मंजूषा भागलपुर के उत्कृष्ट उत्पाद रेशम पर उकेरी जा रही है, जिसकी मांग आज पूरे देश में है ।

प्रख्यात उपन्यासकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय का भागलपुर
शरदचंद्र का ननिहाल भागलपुर है. शरदचंद्र चट्टोपाध्याय की पढ़ाई इसी भागलपुर में हुई है. चट्टोपाध्याय की रचना देवदास और परिणीता में भागलपुर की तमाम गली-मुहल्लों और किरदारों का जिक्र मिलता है. बताया जाता है देवदास की कहानी शरदचंद्र के निजी जीवन और भागलपुर से ही जुड़ी हुई थी.

स्वच्छता के साथ-साथ समृद्धि का प्रतीक
सुल्तानगंज से लेकर विक्रमशिला तक के गंगा नदी को डॉल्फिन आश्रयनी के तौर पर जाना जाता है. यह पानी की स्वच्छता के साथ-साथ समृद्धि का भी प्रतीक माना जाता है. इन दिनों सरकार ने डॉल्फिन की सुरक्षा को लेकर कड़े नियम वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई का प्रावधान कर दिया है. ज्ञात हो कि सरकार डॉल्फिन की जनगणना भी प्रति वर्ष कराती है.

भागलपुर का रेशम
भागलपुर का रेशम उद्योग पूरे भारत में प्रसिद्ध है. देश-विदेश में इस रेशमी उत्पाद की डिमांड है. भागलपुर में अभी भी परंपरागत तौर पर रेशम को तैयार किया जाता है. साथ ही यह व्यवसाय का एक महत्वपूर्ण जरिया है. इन दिनों सरकार रेशम उत्पाद को लेकर भले ही काफी गंभीर नहीं हो लेकिन बुनकरों के हौसले अभी भी बुलंद है और अपने परंपरागत पेशे पर बड़ा गर्व से करते हैं.

महाभारत में भी भागलपुर का जिक्र
इन तमाम चीजों के अलावा भी भागलपुर की अपनी एक अलग पहचान अंग प्रदेश के रूप में भी है. यह वही प्रदेश है जहां पर महाभारत कथाओं के अनुसार राजा कर्ण को अपने मित्र दुर्योधन से उपहार स्वरूप मिली थी. प्राचीन काल में अंग प्रदेश की चर्चा महाभारत के कई अध्यायों में सुनने को मिलती है.

यहां देखे जाते हैं दुर्लभ पक्षी
पूरे विश्व में दुर्लभ पक्षियों की प्रजाति गरुड़ का प्रजनन क्षेत्र भागलपुर से ही सटा गंगा का तटीय क्षेत्र कदवा दियारा है. आपको बता दें गरुड़ जिसे अंग्रेजी में ग्रेट आरजू डेंट के नाम से जाना जाता है वह पूरे विश्व में सिर्फ दो ही देशों में पाया जाता है. पूरे विश्व में कंबोडिया के अलावा भारत के असम एवं बिहार के भागलपुर में गरुड़ देखा जाता है. यहां वन विभाग लगातार विलुप्त हो रहे दुर्लभ पक्षियों की प्रजाति को बढ़ाने के लिए कदवा दियारा के लोगों को प्रोत्साहन के तौर पर कुछ राशि देता है. साथ ही साथ सामूहिक तौर पर उन्हें सम्मानित भी किया जाता है. ताकि वे गरुड़ को बचाने एवं प्रजनन कर उनकी जनसंख्या बढ़ाने में सरकार की मदद कर सकें. महत्वपूर्ण बात यह है कि गरुड़ के प्रजनन व्यवस्था के बाद कदवा दियारा के क्षेत्र में काफी विकास हुआ है. साथ ही उनकी संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है.

भागलपुर: गंगा किनारे बसे बिहार का महत्वपूर्ण जिला भागलपुर का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है. न सिर्फ बिहार में बल्कि भारत के इतिहास में भी भागलपुर का स्वर्णिम इतिहास है.

ऐतिहासिक विशेषता
प्राचीन काल के तीन विश्वविद्यालयों में एक विक्रमशिला विश्वविद्यालय भी है. आठवीं सदी के पाल वंश में निर्मित इस विश्वविद्यालय में तंत्र-मंत्र एवं बौद्धिक शिक्षा की पढ़ाई होती थी. बिहार राजनीति में अद्वितीय पहचान रखने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद ने ही विक्रमशिला खुदाई स्थल को आर्किलॉजिक्ल सर्वे ऑफ इंडिया से जोड़कर इतिहास के रहस्य को सबके समक्ष लाने में योगदान दिया.

प्रख्यात जनपद
प्राचीन भारत के 16 जनपदों में से एक महत्वपूर्ण जनपद के तौर पर अंग प्रदेश को जाना जाता है. वर्तमान काल के उड़ीसा, बंगाल और बिहार प्राचीन समय के अंग, बंग और कलिंग हुआ करते थे. भागलपुर की पहचान व्याव्सायिक दृष्टिकोण के साथ-साथ सांस्कृतिक रूप में रही है. प्रदेश की प्रसिद्ध दन्त कथा आधारित बिहुला विषहरी पूजा पूरे अंग प्रदेश के साथ-साथ पूर्वी बिहार में काफी धूमधाम से मनाई जाती है. बेला विषहरी की गाथा पर आधारित चित्र गाथा मंजूषा को पूरे देश में अच्छी खासी पहचान मिल चुकी है. इन दिनों मंजूषा भागलपुर के उत्कृष्ट उत्पाद रेशम पर उकेरी जा रही है, जिसकी मांग आज पूरे देश में है ।

प्रख्यात उपन्यासकार शरदचंद्र चट्टोपाध्याय का भागलपुर
शरदचंद्र का ननिहाल भागलपुर है. शरदचंद्र चट्टोपाध्याय की पढ़ाई इसी भागलपुर में हुई है. चट्टोपाध्याय की रचना देवदास और परिणीता में भागलपुर की तमाम गली-मुहल्लों और किरदारों का जिक्र मिलता है. बताया जाता है देवदास की कहानी शरदचंद्र के निजी जीवन और भागलपुर से ही जुड़ी हुई थी.

स्वच्छता के साथ-साथ समृद्धि का प्रतीक
सुल्तानगंज से लेकर विक्रमशिला तक के गंगा नदी को डॉल्फिन आश्रयनी के तौर पर जाना जाता है. यह पानी की स्वच्छता के साथ-साथ समृद्धि का भी प्रतीक माना जाता है. इन दिनों सरकार ने डॉल्फिन की सुरक्षा को लेकर कड़े नियम वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई का प्रावधान कर दिया है. ज्ञात हो कि सरकार डॉल्फिन की जनगणना भी प्रति वर्ष कराती है.

भागलपुर का रेशम
भागलपुर का रेशम उद्योग पूरे भारत में प्रसिद्ध है. देश-विदेश में इस रेशमी उत्पाद की डिमांड है. भागलपुर में अभी भी परंपरागत तौर पर रेशम को तैयार किया जाता है. साथ ही यह व्यवसाय का एक महत्वपूर्ण जरिया है. इन दिनों सरकार रेशम उत्पाद को लेकर भले ही काफी गंभीर नहीं हो लेकिन बुनकरों के हौसले अभी भी बुलंद है और अपने परंपरागत पेशे पर बड़ा गर्व से करते हैं.

महाभारत में भी भागलपुर का जिक्र
इन तमाम चीजों के अलावा भी भागलपुर की अपनी एक अलग पहचान अंग प्रदेश के रूप में भी है. यह वही प्रदेश है जहां पर महाभारत कथाओं के अनुसार राजा कर्ण को अपने मित्र दुर्योधन से उपहार स्वरूप मिली थी. प्राचीन काल में अंग प्रदेश की चर्चा महाभारत के कई अध्यायों में सुनने को मिलती है.

यहां देखे जाते हैं दुर्लभ पक्षी
पूरे विश्व में दुर्लभ पक्षियों की प्रजाति गरुड़ का प्रजनन क्षेत्र भागलपुर से ही सटा गंगा का तटीय क्षेत्र कदवा दियारा है. आपको बता दें गरुड़ जिसे अंग्रेजी में ग्रेट आरजू डेंट के नाम से जाना जाता है वह पूरे विश्व में सिर्फ दो ही देशों में पाया जाता है. पूरे विश्व में कंबोडिया के अलावा भारत के असम एवं बिहार के भागलपुर में गरुड़ देखा जाता है. यहां वन विभाग लगातार विलुप्त हो रहे दुर्लभ पक्षियों की प्रजाति को बढ़ाने के लिए कदवा दियारा के लोगों को प्रोत्साहन के तौर पर कुछ राशि देता है. साथ ही साथ सामूहिक तौर पर उन्हें सम्मानित भी किया जाता है. ताकि वे गरुड़ को बचाने एवं प्रजनन कर उनकी जनसंख्या बढ़ाने में सरकार की मदद कर सकें. महत्वपूर्ण बात यह है कि गरुड़ के प्रजनन व्यवस्था के बाद कदवा दियारा के क्षेत्र में काफी विकास हुआ है. साथ ही उनकी संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है.

Intro:SPECIAL ON BIHAR DIWAS BIHAR KE GAURAVASHALI ITIHAAS ME HAI BHAGALPUR KA HAI MAHATWAPURN YOGDAAN


गंगा किनारे बसा बिहार का महत्वपूर्ण जिला भागलपुर का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है ना सिर्फ बिहार में बल्कि भारत के इतिहास में भी भागलपुर कि काफी अहमियत है प्राचीन काल के तीन विश्वविद्यालयों में एक विक्रमशिला का भी अपना महत्वपूर्ण योगदान है आठवीं सदी के पाल वंश में निर्मित इस विश्वविद्यालय में तंत्र मंत्र एवं बौद्धिक शिक्षा की पढ़ाई होती थी बिहार राजनीति में अद्वितीय पहचान रखने वाले तत्कालीन मुख्य-मंत्री भागवत झा आजाद ने ही विक्रमशिला खुदाई स्थल को आर्कीर्लॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से जोड़कर इतिहास के रहस्य को प्रस्तुत करने में योगदान दिया । अब का थे लोग इसे बुद्धि सर्किट से जोडने का कोशिश कर रहे हैं ताकि पूरी क्षेत्र को टूरिज्म के दृष्टिकोण से विकसित किया जा सके ।

प्राचीन भारत के 16 जनपदों में से एक महत्वपूर्ण जनपद के तौर पर अंग प्रदेश को जाना जाता था , वर्तमान काल का उड़ीसा बंगाल और बिहार प्राचीन काल का अंग, बंग और कलिंग हुआ करता था, अंग प्रदेश की अपनी पहचान व्यसायिक दृष्टिकोण के साथ साथ सांस्कृतिक रूप में रही है प्रदेश की प्रसिद्ध दन्त कथा आधारित बिहुला विषहरी पूजा पूरे अंग प्रदेश के साथ-साथ पूर्वी बिहार में काफी धूमधाम से मनाई जाती है बेला विषहरी की गाथा पर आधारित चित्र गाथा मंजूषा को पूरे देश में अच्छी खासी पहचान मिल चुकी है इन दिनों मंजूषा भागलपुर के उत्कृष्ट उत्पाद रेशम पर उकेरी जा रही है जिसकी मांग पूरे देश में इन दिनों काफी ज्यादा बढ़ गई है ।




Body:देश के प्रख्यात उपन्यासकार शरद चंद्र चट्टोपाध्याय का भागलपुर मैं अपने ननिहाल गांगुली परिवार से काफी गहरा संबंध है शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की बचपन की पढ़ाई इसी भागलपुर में हुई है रतन चट्टोपाध्याय की रचना देवदास और परिणीता में भागलपुर के ही कई गली मोहल्लों और किरदारों का वर्णन है बताया जाता है देवदास की कहानी शरद उपाध्याय के अपने निजी जिंदगी से भागलपुर से ही जुड़ी हुई थी ।

भागलपुर से सुल्तानगंज से लेकर विक्रमशिला तक के गंगा नदी को डॉल्फिन आश्रयनी के तौर पर जाना जाता है जो पानी की स्वच्छता के साथ साथ समृद्धि का भी प्रतीक है इन दिनों सरकार ने डॉल्फिन की सुरक्षा को लेकर कड़े नियम वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई का प्रावधान कर दिया है सरकार डॉल्फिन की जनगणना भी प्रति वर्ष करवाती रहती है ,




Conclusion:उसी प्रकार भागलपुर का रेशम उद्योग पूरे भारत में काफी प्रसिद्ध है पूरे देश विदेश में भागलपुर के रेशम के उत्पाद की डिमांड है अभी भी भागलपुर में परंपरागत तौर पर रेशम को तैयार किया जा रहा है और पूरे देश में व्यवसाय का एक महत्वपूर्ण जरिया है इन दिनों सरकार रेशम उत्पाद को लेकर भले ही काफी गंभीर नहीं हो लेकिन बुनकरों के हौसले अभी भी बुलंद है और अपने परंपरागत पेशा को बड़े गर्व से करते हैं ।

इन तमाम चीजों के अलावा भी भागलपुर की अपनी एक अलग पहचान अंग प्रदेश के रूप में भी है यह वही प्रदेश है जहां पर महाभारत कथाओं के अनुसार राजा कर्ण को अपने मित्र दुर्योधन से उपहार स्वरूप मिली थी प्राचीन काल में अंग प्रदेश की चर्चा महाभारत के कई अध्यायों में सुनने को मिलती है ।

पूरे विश्व में दुर्लभ पक्षियों की प्रजाति गरुड़ का प्रजनन क्षेत्र भागलपुर के से ही सटा गंगा का तटीय क्षेत्र कदवा दियारा है आपको बता दें गरुड़ जिसे अंग्रेजी में ग्रेट आरजू डेंट के नाम से जाना जाता है पूरे विश्व में सिर्फ दो ही देशों में पाया जाता है पूरे विश्व में कंबोडिया के अलावा भारत के असम एवं बिहार में भागलपुर में भी गरुड़ का प्रजनन क्षेत्र है जहां पर लगातार वन विभाग विलुप्त हो रहे दुर्लभ पक्षी की प्रजाति को बढ़ाने के लिए कदवा दियारा के लोगों को प्रोत्साहन के तौर पर कुछ राशि देते हैं और साथ ही साथ सामूहिक तौर पर उन्हें सम्मान के लिए आता है ताकि गरुड़ को बचाने एवं प्रजनन कर उनकी जनसंख्या बढ़ाने में उनका सहयोग सरकार को मिल सके, सबसे खुशी की बात यह है की गरुड़ का प्रजनन मैं कदवा दियारा के क्षेत्र में काफी विकास हुआ है और पहले से गर्व की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है ।
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