भागलपुर: बिहार के भागलपुर का कतरनी चावल और चूड़ा (Katrani Chuda of Bhagalpur) देश-विदेश में अपनी खास स्वाद और सुगंध के लिए प्रसिद्ध है. यही कारण है कि हर साल कतरनी चूड़ा और चावल राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भागलपुर से भेंट के स्वरूप भेजा जाता है. इस बार भागलपुर में कतरनी धान की उपज काफी कम (Production of katarni dhaan decreased in Bhagalpur) हुई है. यही कारण है कि यह भेंट राष्ट्रपति और पीएम तक नहीं जा सकेगा.
ये भी पढ़ेंः दिल्ली में भी भागलपुर के कतरनी चूड़ा और गया तिलकुट की डिमांड, जानिए कहां पर है उपलब्ध
कम बारिश के कारण उपज प्रभावितः भागलपुर जिले में इस वर्ष समय पर बारिश नहीं होने के कारण धान का उत्पादन कम हुआ है. विशेषकर प्रसिद्ध कतरनी धान की खेती इस वर्ष कम हुई है. साथ ही साथ अब इसके उत्पादन पर भी किसानों में संशय बरकरार है. आशंका है कि देश के महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत देश के कई गणमान्य भी इसका आनंद नहीं ले सकेंगे. दरअसल, बारिश नहीं होने के कारण पूर्वांचल के धान का कटोरा कहे जाने वाले जगदीशपुर में इस वर्ष 100 से डेढ़ सौ एकड़ में ही खेती हुई है. लगातार बारिश नहीं होने के कारण फसल को नुकसान हुआ है.
कतरनी धान को मिला हुआ है जीआई टैगः इस समय धान की बालियां लाल होकर झुक जाती थी या धान कटाई की तैयारियां शुरू हो जाती थी. इस वक्त खेतों में कतरनी धान हरे-भरे ही हैं या फिर कई खेतों में अब तक बालियां भी नहीं फूट सकी है. लिहाजा किसान परेशान हैं. जिले के जगदीशपुर, सुल्तानगंज व सन्हौला में धान की बेहतर पैदावार होती थी. इसके लिए भागलपुर को खास ख्याति मिली है. यहां की कतरनी की खासियत खुशबू व नैसर्गिक गुण को देखते हुए ही भारत सरकार ने 2017 में इसे भौगोलिक सूचकांक (जीआई टैग) प्रदान किया था.
इस बार कतरनी धान की आधे से भी कम हुई है खेतीः 2020-21 में कतरनी धान की खेती 1400 एकड़ में की गई थी. इस वर्ष महज 50 से 60% ही धान की खेती हो सकी है. किसानों से बात करने पर उन्होंने बताया कि हर वर्ष के मुकाबले इस वर्ष पैदावार बहुत कम होने वाली है. कई किसानों ने कर्ज लेकर खेती की थी. उनके सामने अब कर्ज चुका पाने की भी समस्या आ जाएगी. जगदीशपुर इलाके के किसानों की कमाई का जरिया धान है.किसान जितेंद्र ने बताया कि इस बार मौसम ने साथ नहीं दिया और सरकार ने भी ध्यान नहीं दिया है.
किसानों ने बताया कि कतरनी धान की उपज इस बार कम होगी. अभी पकने लगता था, लेकिन अब तक हरा भरा ही है. कर्ज लेकर खेती किये थे. हमलोग खेती पर ही निर्भर हैं. हर बार देश के गणमान्यों को जो चावल और चूड़ा भेजा जाता था, इस बार लग रहा है यहां का चूड़ा नहीं पहुंच पायेगा. मकरसंक्रांति तक तैयार होगा तो इस बार स्वाद भी सही नहीं होगा.
जगदीशपुर इलाके में होती है कतरनी धान की खेतीः जगदीशपुर इलाके में कतरनी धान की खेती के बाद वहां के ही चावल व चूड़ा मिलों में धान से चूड़ा बनाकर पैकेजिंग कर बाजारों में भेजा जाता है. इस वर्ष मिल तक धान नहीं पहुंच पाने के कारण कुछ मिल बन्द पड़ चुके हैं, तो कुछ मिलों के पुराने धान और दूसरे राज्यों से मंगवाये जा रहे धान से चूड़ा तैयार किया जा रहा है. चूड़ा मिल संचालक अरविंद प्रसाद साह ने बताया कि 75 प्रतिशत मारा हुआ है. हम लोग बंगाल से धान मंगाकर तैयारी कर रहे हैं, जबकि हमारे जगदीशपुर में इसकी बेहतर पैदावार होती है. इस बार स्थिति पहले के मुकाबले विपरीत है.
"बारिश नहीं हो पाई थी. इस कारण धान का आच्छादन कम हुआ और उत्पादन भी कम होगा. कतरनी चावल और कतरनी चूड़ा की डिमांड रहती है. बेहतर मार्केटिंग, पैकेजिंग और एक्सपोर्ट पर काम कर रहे हैं" - सुब्रत सेन, जिलाधिकारी, भागलपुर
कतरनी चूड़ा की रहती है भारी मांगः कतरनी चावल और चूड़ा की कीमत पिछले वर्ष से अधिक हो चुकी है. बिक्री भी इस वर्ष कम होगी. मकरसंक्रांति तक इसकी कीमत में और बढ़ोतरी होगी. वहीं जिलाधिकारी सुब्रत सेन ने बताया कि बारिश नहीं हो पाई थी. इस कारण धान का आच्छादन कम हुआ और उत्पादन भी कम होगा. कतरनी चावल और कतरनी चूड़ा की डिमांड रहती है. बेहतर मार्केटिंग, पैकेजिंग और एक्सपोर्ट पर काम कर रहे हैं. पिछले साल एपीडा के माध्यम से विदेशों में जर्दालु आम भेजा था. इस बार कतरनी चावल और चूड़ा को भेजने की तैयारी है.
"इस बार शुरू से ही खेती गड़बड़ा गया है. बारिश नहीं हो सकी. इस कारण कतरनी धान की उपज पर इसका असर पड़ा रहा है. इस बार आधा से भी कम में कतरनी की खेती हुई है और उसमें भी अभी तक धान की बाली नहीं आ पाई है"- देवेंद्र यादव, किसान