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बाढ़ पीड़ितों को छोड़ा उनके हाल पर, पानी में डूबे हैं घर फिर भी राहत शिविर बंद

बिहार के भागलपुर के सैकड़ों गांव अभी भी बाढ़ प्रभावित हैं. इधर सरकार ने राहत शिविरों को बंद करना शुरू कर दिया है. इसके चलते बाढ़ पीड़ितों को खाने के लाले पड़ गए हैं. पढ़ें पूरी खबर...

flood relief camp closed
बाढ़ पीड़ित बच्चे
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Published : Aug 29, 2021, 11:10 PM IST

भागलपुर: बिहार के भागलपुर (Bhagalpur) में गंगा और कोसी नदी का जलस्तर खतरे के निशान से नीचे जाने के कारण बाढ़ राहत शिविर (Flood Relief Camp) बंद कर दिया गया है. गंगा और कोसी में पिछले 1 महीने से आई बाढ़ (Bihar Flood) के कारण जिला प्रशासन की ओर से दर्जनों की संख्या में बाढ़ राहत शिविर चलाए जा रहे थे.

यह भी पढ़ें- बिहार की कई नदियां अभी भी खतरे के निशान से ऊपर, बारिश ने बढ़ाई लोगों की चिंता

जिले में अब बाढ़ जैसे हालात नहीं हैं. इसलिए जिला प्रशासन ने शिविर में रह रहे बाढ़ पीड़ितों को घर लौटने को बोल दिया है. भागलपुर हवाई अड्डा में नाथनगर प्रखंड के शहजादपुर पंचायत के अमरी और बिशनपुर गांव के सैकड़ों बाढ़ पीड़ित रह रहे हैं. पीड़ितों का कहना है कि उनके घरों में अब भी दो से 3 फीट पानी है. घर में कीचड़ है. बाढ़ का पानी नहीं निकला है. वहां पशु चारा भी उपलब्ध नहीं है. ऐसे में वहां रहना मुश्किल है.

देखें रिपोर्ट

इधर जिला प्रशासन ने शिविर में मिलने वाली सभी सेवाओं को बंद कर लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया है, जिससे बाढ़ पीड़ितों के सामने खाने-पीने की समस्या खड़ी हो गई है. राहत शिविर बंद होने से सबसे अधिक परेशान वैसी महिलाएं हैं, जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं. पहले शिविर में बच्चों के लिए दूध मिल जाता था अब इन्हें दूध के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है.

सियापति देवी और सुग्गा देवी ने कहा, 'हमलोग बिशनपुर गांव से यहां आए हैं. अभी भी हमारे घरों में पानी भरा हुआ है. हम लोग वहां कैसे जाएंगे? यहां जो राहत शिविर चल रहा था उसे बंद कर दिया गया. सारा पंडाल खोल लिया. खाना पीना बंद कर दिया. हम लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं है. सत्तू खाकर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं.'

रीना देवी, सविता देवी और जाबो देवी ने कहा, 'हमलोग तो सत्तू और सूखा खाना खाकर रह रहे हैं, लेकिन छोटे बच्चे जिन्हें दूध की जरूरत है उन्हें क्या खिलाएंगे. पहले यहां छोटे बच्चों के लिए दूध मिलता था. हम लोगों के लिए खाना मिलता था. अब सब बंद कर दिया. हम लोग पॉलिथीन के तंबू में रहने को विवश हैं. सरकार ने हमलोगों पर कोई ध्यान नहीं दिया. घर में अभी भी पानी बह रहा है.'

"बाढ़ का पानी खतरे के निशान से काफी नीचे पहुंच गया है. राहत शिविर और समुदाय किचन के लिए आपदा प्रबंधन की गाइडलाइन के तहत आकलन करने की जवाबदेही अंचल अधिकारी और एसडीओ को दी गई है. वह तरह करेंगे कि कहां शिविर चलाना है, कहां सामुदायिक किचन चलाना है और कहां बंद करना है. अंचल अधिकारी और एसडीओ के मुताबिक ही राहत शिविरों को बंद किया जा रहा है."- सुब्रत कुमार सेन, डीएम, भागलपुर

बता दें कि भागलपुर में गंगा खतरे के निशान से 41 सेंटीमीटर नीचे है फिर भी जिले के 346 गांव पानी से घिरे हैं. बाढ़ प्रभावित 14 प्रखंडों की 139 पंचायत की 9.318 लाख आबादी की मुश्किलें अभी भी कम नहीं हुईं हैं. जिले में 9 बाढ़ आपदा राहत केंद्र में से 5 को बंद कर दिया गया है. 254 सामुदायिक रसोई में 244 को बंद कर दिया गया है. अब केवल 10 सामुदायिक किचन चल रहे हैं. ऐसे में लोगों की परेशानी बढ़ गई है.

यह भी पढ़ें- नीतीश PM 'मैटेरियल' लेकिन दावेदार नहीं, JDU की राष्ट्रीय परिषद में प्रस्ताव पास

भागलपुर: बिहार के भागलपुर (Bhagalpur) में गंगा और कोसी नदी का जलस्तर खतरे के निशान से नीचे जाने के कारण बाढ़ राहत शिविर (Flood Relief Camp) बंद कर दिया गया है. गंगा और कोसी में पिछले 1 महीने से आई बाढ़ (Bihar Flood) के कारण जिला प्रशासन की ओर से दर्जनों की संख्या में बाढ़ राहत शिविर चलाए जा रहे थे.

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जिले में अब बाढ़ जैसे हालात नहीं हैं. इसलिए जिला प्रशासन ने शिविर में रह रहे बाढ़ पीड़ितों को घर लौटने को बोल दिया है. भागलपुर हवाई अड्डा में नाथनगर प्रखंड के शहजादपुर पंचायत के अमरी और बिशनपुर गांव के सैकड़ों बाढ़ पीड़ित रह रहे हैं. पीड़ितों का कहना है कि उनके घरों में अब भी दो से 3 फीट पानी है. घर में कीचड़ है. बाढ़ का पानी नहीं निकला है. वहां पशु चारा भी उपलब्ध नहीं है. ऐसे में वहां रहना मुश्किल है.

देखें रिपोर्ट

इधर जिला प्रशासन ने शिविर में मिलने वाली सभी सेवाओं को बंद कर लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया है, जिससे बाढ़ पीड़ितों के सामने खाने-पीने की समस्या खड़ी हो गई है. राहत शिविर बंद होने से सबसे अधिक परेशान वैसी महिलाएं हैं, जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं. पहले शिविर में बच्चों के लिए दूध मिल जाता था अब इन्हें दूध के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है.

सियापति देवी और सुग्गा देवी ने कहा, 'हमलोग बिशनपुर गांव से यहां आए हैं. अभी भी हमारे घरों में पानी भरा हुआ है. हम लोग वहां कैसे जाएंगे? यहां जो राहत शिविर चल रहा था उसे बंद कर दिया गया. सारा पंडाल खोल लिया. खाना पीना बंद कर दिया. हम लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं है. सत्तू खाकर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं.'

रीना देवी, सविता देवी और जाबो देवी ने कहा, 'हमलोग तो सत्तू और सूखा खाना खाकर रह रहे हैं, लेकिन छोटे बच्चे जिन्हें दूध की जरूरत है उन्हें क्या खिलाएंगे. पहले यहां छोटे बच्चों के लिए दूध मिलता था. हम लोगों के लिए खाना मिलता था. अब सब बंद कर दिया. हम लोग पॉलिथीन के तंबू में रहने को विवश हैं. सरकार ने हमलोगों पर कोई ध्यान नहीं दिया. घर में अभी भी पानी बह रहा है.'

"बाढ़ का पानी खतरे के निशान से काफी नीचे पहुंच गया है. राहत शिविर और समुदाय किचन के लिए आपदा प्रबंधन की गाइडलाइन के तहत आकलन करने की जवाबदेही अंचल अधिकारी और एसडीओ को दी गई है. वह तरह करेंगे कि कहां शिविर चलाना है, कहां सामुदायिक किचन चलाना है और कहां बंद करना है. अंचल अधिकारी और एसडीओ के मुताबिक ही राहत शिविरों को बंद किया जा रहा है."- सुब्रत कुमार सेन, डीएम, भागलपुर

बता दें कि भागलपुर में गंगा खतरे के निशान से 41 सेंटीमीटर नीचे है फिर भी जिले के 346 गांव पानी से घिरे हैं. बाढ़ प्रभावित 14 प्रखंडों की 139 पंचायत की 9.318 लाख आबादी की मुश्किलें अभी भी कम नहीं हुईं हैं. जिले में 9 बाढ़ आपदा राहत केंद्र में से 5 को बंद कर दिया गया है. 254 सामुदायिक रसोई में 244 को बंद कर दिया गया है. अब केवल 10 सामुदायिक किचन चल रहे हैं. ऐसे में लोगों की परेशानी बढ़ गई है.

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