भागलपुर: जिले के नाथनगर अंतर्गत बहबलपुर में बम काली की 32 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है. बताया जाता है कि मां काली की यह प्रतिमा पूर्वी बिहार की सबसे बड़ी प्रतिमा है. पट खुलते ही श्रद्धालुओं की भीड़ मां शक्ति स्वरूपा की पूजा-आराधना के लिए उमड़ पड़ी.श्रद्धालु मां काली का दर्शन कर अभिभूत हुए. भक्तों ने महाआरती में भाग लेने के बाद मां की स्तुति-आराधना की.
400 सालों से जारी है बलि प्रथा
नाथनगर प्रखंड के रामपुर खुर्द पंचायत के बहवलपुर गांव में स्थापित मां काली की इस प्रतिमा की ऊंचाई करीब 32 फुट से ज्यादा होती है. मां के दर्शन के लिए जिलेभर से हजारों की तादाद में भक्त यहां पहुंचते है. इस बाबात पूजा व्यवस्थापक सुनील सिंह का कहना है कि माता को इस स्थान पर रक्तिम बलि दी जाती है. श्रद्धालु बड़े पैमाने पर बलि चढ़ाने पहुंचते हैं, जिसमें 501 बलि ही मां को चढ़ायी जाती है. ऐसी मान्यता है की इस शक्तिपीठ में जो भी फरियादी मां के पास अपनी फरियाद लेकर आते हैं. वो कभी खाली हाथ नहीं लौटते. यहां पर लगभग 400 सालों से अनवरत रूप से बलि प्रथा जारी है.
गांव के बगीचे के बीच पीपल के पेड़ के नीचे
गांव के बगीचे के बीच पीपल के पेड़ के नीचे मां का स्थान स्थापित है. मां काली यहां पर पिंडी स्वरूप में विराजमान हैं. हर साल इस स्थान पर 32 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई जाती है. इस शक्तिघाम की प्रसिद्धि आसपास के इलाके में फैली हुई है. सबसे खास बात यह है कि गांव के लोग ही माता काली की प्रतिमा का निर्माण करते है.
बदल गया है इस बार का विसर्जन रूट
मां काली की विसर्जन शोभायात्रा देखने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. बताया जा रहा है कि इस बार विसर्जन शोभायात्रा का रूट बदल दिया गया है. क्षेत्र में रेलवे के इलेक्ट्रिफिकेशन होने की वजह से रूट को बदला गया है. इस बार विसर्जन शोभायात्रा बाईपास होते हुए चंपा नदी तक जाएगी.
400 साल पूर्व गांव के साधक के सपनें में आई थी मां काली
क्षेत्र के लोगों की मानें तो 400 साल पूर्व गांव के काली सिंह के सपने में मां काली आई थी. स्वप्न में मां काली नें अपने साधक को गांव के बगीचे में स्थापित कर पूजा करने का आदेश दिया. जिसके बाद भक्त काली सिंह नें मां के आदेशानुसार माता काली की पिंडी स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू किया. मां काली को प्रसन्न करने के लिए इस स्थान पर 501 बकड़ो की बलि दी जाती है. बलि के बाद बकड़े कि सिर को भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित कर दिया जाता है. मां के इस स्थान के बारे में इलाके के जानकार व्यास देव बताते है कि यहां कई बार मां की मंदिर बनाने का प्रयास किया गया. लेकिन गांव में कई बार अनहोनी घटना हो गई, जिसके बाद इस स्थान पर मां का मंदिर बनाने का प्रयास छोड़ दिया गया.