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भागलपुरी सिल्क कारोबार में तीन साल बाद आई तेजी, नवरात्रि में लाल और पीले साड़ियों की बढ़ी डिमांड - Bhagalpuri silk business boomed

बिहार के भागलपुर में सिल्क कारोबार (Bhagalpuri silk business) में लंबे समय बाद उछाल देखने को मिल रहा है. नवरात्रि के मौके पर बाजार में सिल्क की साड़ियों की डिमांड काफी बढ़ गई है. आगे पढ़ें पूरी खबर...

भागलपुरी सिल्क कारोबार
भागलपुरी सिल्क कारोबार
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Published : Sep 29, 2022, 7:03 AM IST

भागलपुर: बिहार के भागलपुरी सिल्क कारोबार (Bhagalpuri silk business of Bihar) में तीन साल बाद उछाल आई है. नवरात्रि में लाल और पीले सिल्क साड़ियों की काफी डिमांड हो रही है. मूल रूप से भागलपुर और आसपास के इलाकों में सिल्क का उत्पादन और व्यापार की वजह से भागलपुर का नाम सिल्क सिटी है. भागलपुर में दंगे के बाद भागलपुरी रेशम और यहां के बुनकरों की हालत ज्यादा बद से बदतर हो गई है.

ये भी पढ़ें- पटना में सोने से सजी सवा लाख की साड़ी.. महिलाओं को बनाया दीवाना.. आपने देखा क्या

भागलपुरी सिल्क कारोबार में तीन साल बाद उछाल: भागलपुर के बुनकरों को आए दिन कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, चाहे वह बिजली हो, सूत हो, मजदूरी हो या फिर व्यापार करने के लिए बाजार का अभाव, फिर भी काफी तल्लीनता से यहां के बुनकर अपने काम में लगे रहते हैं. सरकार की उदासीनता सरेआम बुनकरों के साथ देखी जाती है, सरकार की ओर से विशेष सुविधाएं नहीं मिल पाने के बाबजूद भी बुनकर अपने काम में अडिग रहते हैं.

कोरोनाकाल में स्थिति हुई खराब: कोरोना काल में यहाँ के बुनकरों की स्थिति बद से बदतर हो गई थी. बुनकर यहां से पलायन करने लगे थे. कोरोना का प्रकोप कम होने के दो साल बाद धीरे-धीरे सिल्क का कारोबार फिर से अस्तित्व में आना शुरू हुआ है. बताते चलें कि हाल के वर्षों में 2019 में 300 करोड़ 2020 में 10 करोड़ 2021 में 15 करोड़ रुपए का व्यापार हुआ था और सबको पीछे छोड़ते हुए इस बार 2022 में रिकॉर्ड तोड़ 350 करोड़ रुपए का व्यापार हुआ है.

पांच लाख सिल्क साड़ी के मिले ऑर्डर : कोरोनाकाल के 2 साल बाद इस बार फिर से सिल्क के कारोबार ने रफ्तार पकड़ी है. इस बार नवरात्रि के उपलक्ष पर बुनकरों को पांच लाख सिल्क साड़ियों का आर्डर मिला है. जिसकी कीमत तकरीबन 350 करोड़ रुपए बताई जा रही है. औसतन प्रत्येक कतान सिल्क साड़ी की कीमत 5000 से 15000 रुपए तक की आती है. वहीं, बूटी साड़ी 24000 रुपये से 30000 रुपये तक की आती है. इनमें लाल और पीले रंग की साड़ियों की मांग ज्यादा है.

छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा से मंगाया जा रहा धागा: भागलपुर में कोकून के धागे काफी महंगे हो गए हैं, इसलिए इसे छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा से मंगाया जा रहा है. धागे के दाम में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है. फिर भी खरीदारों के उत्साह में कमी नहीं आई है. पारंपरिक परिधान के शौकीन बड़े दाम पर भी जमकर खरीदारी कर रहे हैं. भागलपुरी सिल्क साड़ी का डिमांड ज्यादातर पश्चिम बंगाल में है.

नुकसान के भरपाई की उम्मीद: पश्चिम बंगाल के अलावे भारत के विभिन्न राज्यों में जैसे दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल आदि में भी दशहरा के मौके पर भागलपुर की सिल्क साड़ी महिलाओं की बेहद पसंदीदा पारंपरिक पोशाक है. इस बार भागलपुर के सिल्क व्यवसाइयों, बुनकरों में काफी खुशी है. उन्हें उम्मीद है कि पिछले 2 साल कोरोना की मार को झेल चुकी स्थिति में जो नुकसान हुआ है, शायद उसकी भरपाई इस डिमांड की वजह से पूरी हो जाए.

ये भी पढ़ें- रूस-यूक्रेन युद्ध के साये में कमजोर हुआ सिल्क सिटी का कारोबार, निर्यात हुआ आधा

भागलपुर: बिहार के भागलपुरी सिल्क कारोबार (Bhagalpuri silk business of Bihar) में तीन साल बाद उछाल आई है. नवरात्रि में लाल और पीले सिल्क साड़ियों की काफी डिमांड हो रही है. मूल रूप से भागलपुर और आसपास के इलाकों में सिल्क का उत्पादन और व्यापार की वजह से भागलपुर का नाम सिल्क सिटी है. भागलपुर में दंगे के बाद भागलपुरी रेशम और यहां के बुनकरों की हालत ज्यादा बद से बदतर हो गई है.

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भागलपुरी सिल्क कारोबार में तीन साल बाद उछाल: भागलपुर के बुनकरों को आए दिन कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, चाहे वह बिजली हो, सूत हो, मजदूरी हो या फिर व्यापार करने के लिए बाजार का अभाव, फिर भी काफी तल्लीनता से यहां के बुनकर अपने काम में लगे रहते हैं. सरकार की उदासीनता सरेआम बुनकरों के साथ देखी जाती है, सरकार की ओर से विशेष सुविधाएं नहीं मिल पाने के बाबजूद भी बुनकर अपने काम में अडिग रहते हैं.

कोरोनाकाल में स्थिति हुई खराब: कोरोना काल में यहाँ के बुनकरों की स्थिति बद से बदतर हो गई थी. बुनकर यहां से पलायन करने लगे थे. कोरोना का प्रकोप कम होने के दो साल बाद धीरे-धीरे सिल्क का कारोबार फिर से अस्तित्व में आना शुरू हुआ है. बताते चलें कि हाल के वर्षों में 2019 में 300 करोड़ 2020 में 10 करोड़ 2021 में 15 करोड़ रुपए का व्यापार हुआ था और सबको पीछे छोड़ते हुए इस बार 2022 में रिकॉर्ड तोड़ 350 करोड़ रुपए का व्यापार हुआ है.

पांच लाख सिल्क साड़ी के मिले ऑर्डर : कोरोनाकाल के 2 साल बाद इस बार फिर से सिल्क के कारोबार ने रफ्तार पकड़ी है. इस बार नवरात्रि के उपलक्ष पर बुनकरों को पांच लाख सिल्क साड़ियों का आर्डर मिला है. जिसकी कीमत तकरीबन 350 करोड़ रुपए बताई जा रही है. औसतन प्रत्येक कतान सिल्क साड़ी की कीमत 5000 से 15000 रुपए तक की आती है. वहीं, बूटी साड़ी 24000 रुपये से 30000 रुपये तक की आती है. इनमें लाल और पीले रंग की साड़ियों की मांग ज्यादा है.

छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा से मंगाया जा रहा धागा: भागलपुर में कोकून के धागे काफी महंगे हो गए हैं, इसलिए इसे छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा से मंगाया जा रहा है. धागे के दाम में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है. फिर भी खरीदारों के उत्साह में कमी नहीं आई है. पारंपरिक परिधान के शौकीन बड़े दाम पर भी जमकर खरीदारी कर रहे हैं. भागलपुरी सिल्क साड़ी का डिमांड ज्यादातर पश्चिम बंगाल में है.

नुकसान के भरपाई की उम्मीद: पश्चिम बंगाल के अलावे भारत के विभिन्न राज्यों में जैसे दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल आदि में भी दशहरा के मौके पर भागलपुर की सिल्क साड़ी महिलाओं की बेहद पसंदीदा पारंपरिक पोशाक है. इस बार भागलपुर के सिल्क व्यवसाइयों, बुनकरों में काफी खुशी है. उन्हें उम्मीद है कि पिछले 2 साल कोरोना की मार को झेल चुकी स्थिति में जो नुकसान हुआ है, शायद उसकी भरपाई इस डिमांड की वजह से पूरी हो जाए.

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