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बेगूसराय सीट: त्रिकोणीय लड़ाई में लहराएगा 'लाल', फहराएगा 'भगवा' या जलेगी 'लालटेन' - मिनी मास्को

लोकसभा चुनाव का सबसे दिलचस्प बेगूसराय में देखने को मिल रहा है. सीपीआई की ओर से कन्हैया कुमार चुनावी मैदान में हैं. यहां दो धुर-विरोधी विचारधारा की लड़ाई हो रही है. वहीं, राजद के तनवीर हसन ने लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है.

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Published : Apr 26, 2019, 4:52 AM IST

बेगूसराय: देशभर में हो रही सियासी चर्चाओं के बीच बेगूसराय लोकसभा सीट सबसे हॉट सीट बनी हुई है. लोकसभा चुनाव का एक दिलचस्‍प मुकाबला बेगूसराय में होने जा रहा है. यहां से बीजेपी के फायरब्रांड नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह चुनावी मैदान में हैं, तो उनके सामने मजबूत विकल्‍प के रूप में खड़े हैं कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के कन्‍हैया कुमार. आरजेडी उम्‍मीदवार तनवीर हसन भी इस मुकाबले में कहीं से कम नहीं हैं. ऐसे में यहां मुकाबला त्रिकोणीय है.

बेगूसराय में वामपंथ
बेगूसराय और वामपंथ का बहुत पुराना नाता रहा है. एक समय में इसे मिनी मॉस्को के नाम से भी जाना जाता था. बिहार में वामपंथ ने यहीं से अपने पैर पसारे, लेकिन आज वह अपने अस्तित्व की लड़ाई में जुटा हुआ है. वापपंथी दलों को कन्हैया में वामपंथ की वापसी के लिए आशा की किरण नज़र आई है. एक दौर था जब बेगूसराय जिले में विधानसभा की सातों सीट पर वामपंथी दलों के प्रतिनिधि चुने गए थे. लेकिन सवाल ये है कि क्या कन्हैया बिहार में वामपंथ को फिर से स्थापित कर पाएंगे? क्या मिनी मॉस्को अपने अतीत की बुलंदियों को एक बार फिर हासिल कर पाएगा?

बेगूसराय से ईटीवी भारत संवाददाता आशीष की रिपोर्ट

गिरिराज सिंह की मजबूती
ये सभी जानते हैं कि कन्हैया कुमार तब चर्चा में आए जब उनपर देशद्रोह का आरोप लगा. वहीं, गिरिराज सिंह हमेशा राष्ट्रवाद और हिदुत्व की बातों से ओतप्रोत नजर आते हैं. अगर गिरिराज सिंह इस चुनाव प्रचार में राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व को मुद्दा बनाकर लोगों को अपने पक्ष में करते हैं तो उनकी राह आसान हो जाएगी. बेगूसराय भूमिहारों का गढ़ है और पिछले लोकसभा में बीजेपी के भोला सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी, ऐसे में बीजेपी का पक्ष यहां मजबूत नजर आता है.

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चुनावी रैली को संबोधित करते गिरिराज सिंह

कन्हैया कुमार की मजबूती
कन्हैया कुमार बेगूसराय के बीहट से आते हैं. चुनाव प्रचार के दौरान वे खुद को नेता नहीं बल्कि बेगूसराय का बेटा बता रहे हैं. अगर कन्हैया लोगों को ये समझाने में कामयाब हो जाते हैं कि उन्हें सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने के लिए साजिश के तहत फंसाया गया है तो वे लोगों को अपने पक्ष में कर सकते हैं. लगातार मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उन्हें मुस्लिम समुदाय का भी समर्थन मिल सकता है.

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रोड शो के दौरान शत्रुघ्न प्रसाद सिंह और जिग्नेश मेवानी के साथ कन्हैया

तनवीर हसन की जीत की संभावना
पिछले चुनाव में दिवंगत भोला सिंह को कड़ी चुनौती देने वाले तनवीर हसन चुनाव भले ही हार गए हों लेकिन 2014 में उन्हें करीब पौने चार लाख वोट मिले. पिछले चुनाव के आधार पर आरजेडी ने एक बार फिर उनपर भरोसा जताया है. तनवीर स्वच्छ छवि के नेता माने जाते हैं. अगर कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों के बीच भूमिहार वोट बंट जाये और आरजेडी को ओबीसी और मुस्लिम वोट एक मुश्त मिल जायें तो उनके जीत की संभावना बढ़ जाती है.

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तेजस्वी यादव और उपेंद्र कुशवाहा के साथ तनवीर हसन

बेगूसराय सीट पर जातीय समीकरण
बेगूसराय में भूमिहार वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों भूमिहार जाति से हैं. हालांकि यहां मुस्लिम और ओबीसी वोटरों की संख्या भी अच्छी खासी है. आंकड़ों पर नजर डालें तो बेगूसराय में 19 लाख वोटर हैं जिनमें 19 फीसदी भूमिहार, 15 फीसदी मुस्लिम, 12 फीसदी यादव और 7 फीसदी कुर्मी समुदाय के लोग हैं. ऐसे में एनडीए और कम्युनिस्ट पार्टी दोनों के लिए ही भूमिहार वोटरों को साधना अहम है. बात महागठबंधन की करें तो उसकी नजर मुस्लिम और ओबीसी वोटों पर टिकी है.

पिछले चुनाव का गणित
2014 लोकसभा चुनाव में भोला सिंह ने आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन को 58 हजार वोटों से शिकस्त दी थी. तब तनवीर हसन के 3.69 लाख वोटों के मुकाबले भोला सिंह को 4.28 लाख वोट मिले थे. सीपीआई उम्मीदवार राजेंद्र प्रसाद सिंह को 1.92 लाख वोट मिले थे.

राजनीति के बीच मुद्दे गायब
तमाम नारों और दावों के बीच बेगूसराय के जनता की मुख्य समस्याएं अभी भी बरकरार है. नेताओं को केवल चुनाव के समय बेगूसराय की याद आती है. बिहार की औद्यौगिक राजधानी कहे जाने वाले बेगूसराय के औद्योगिक क्षेत्र को विकसित करने की दिशा में वर्षों से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. राष्ट्रकवि दिनकर की धरती पर एक भी विश्वविद्यालय नहीं है. फर्टिलाइजर बंद पड़ा है. रोजगार लोगों के लिए बड़ी समस्या है. यहां लंबे समय से एम्स की स्थापना की मांग की जा रही है. लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.

23 मई को जनता करेगी फैसला
अब देखना होगा आगामी 23 मई को जब उम्मीदवारों की किस्मत का पिटारा खुलेगा तो जनता की उम्मीद पर कौन खड़ा हो पाएंगे. बहरहाल त्रिकोणीय लड़ाई में ये देखना बेहद दिलचस्प होगा कि क्या सीपीआई के कन्हैया कुमार लाल झंडा लहरा पाएंगे या दिग्गज गिरिराज सिंह 'भगवा' पताका फहराएंगे. या दोनों की लड़ाई के बीच आरजेडी के तलवीर हसन 'लालटेन' जलाकर बाजी मार लेंगे.

बेगूसराय: देशभर में हो रही सियासी चर्चाओं के बीच बेगूसराय लोकसभा सीट सबसे हॉट सीट बनी हुई है. लोकसभा चुनाव का एक दिलचस्‍प मुकाबला बेगूसराय में होने जा रहा है. यहां से बीजेपी के फायरब्रांड नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह चुनावी मैदान में हैं, तो उनके सामने मजबूत विकल्‍प के रूप में खड़े हैं कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के कन्‍हैया कुमार. आरजेडी उम्‍मीदवार तनवीर हसन भी इस मुकाबले में कहीं से कम नहीं हैं. ऐसे में यहां मुकाबला त्रिकोणीय है.

बेगूसराय में वामपंथ
बेगूसराय और वामपंथ का बहुत पुराना नाता रहा है. एक समय में इसे मिनी मॉस्को के नाम से भी जाना जाता था. बिहार में वामपंथ ने यहीं से अपने पैर पसारे, लेकिन आज वह अपने अस्तित्व की लड़ाई में जुटा हुआ है. वापपंथी दलों को कन्हैया में वामपंथ की वापसी के लिए आशा की किरण नज़र आई है. एक दौर था जब बेगूसराय जिले में विधानसभा की सातों सीट पर वामपंथी दलों के प्रतिनिधि चुने गए थे. लेकिन सवाल ये है कि क्या कन्हैया बिहार में वामपंथ को फिर से स्थापित कर पाएंगे? क्या मिनी मॉस्को अपने अतीत की बुलंदियों को एक बार फिर हासिल कर पाएगा?

बेगूसराय से ईटीवी भारत संवाददाता आशीष की रिपोर्ट

गिरिराज सिंह की मजबूती
ये सभी जानते हैं कि कन्हैया कुमार तब चर्चा में आए जब उनपर देशद्रोह का आरोप लगा. वहीं, गिरिराज सिंह हमेशा राष्ट्रवाद और हिदुत्व की बातों से ओतप्रोत नजर आते हैं. अगर गिरिराज सिंह इस चुनाव प्रचार में राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व को मुद्दा बनाकर लोगों को अपने पक्ष में करते हैं तो उनकी राह आसान हो जाएगी. बेगूसराय भूमिहारों का गढ़ है और पिछले लोकसभा में बीजेपी के भोला सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी, ऐसे में बीजेपी का पक्ष यहां मजबूत नजर आता है.

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चुनावी रैली को संबोधित करते गिरिराज सिंह

कन्हैया कुमार की मजबूती
कन्हैया कुमार बेगूसराय के बीहट से आते हैं. चुनाव प्रचार के दौरान वे खुद को नेता नहीं बल्कि बेगूसराय का बेटा बता रहे हैं. अगर कन्हैया लोगों को ये समझाने में कामयाब हो जाते हैं कि उन्हें सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने के लिए साजिश के तहत फंसाया गया है तो वे लोगों को अपने पक्ष में कर सकते हैं. लगातार मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उन्हें मुस्लिम समुदाय का भी समर्थन मिल सकता है.

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रोड शो के दौरान शत्रुघ्न प्रसाद सिंह और जिग्नेश मेवानी के साथ कन्हैया

तनवीर हसन की जीत की संभावना
पिछले चुनाव में दिवंगत भोला सिंह को कड़ी चुनौती देने वाले तनवीर हसन चुनाव भले ही हार गए हों लेकिन 2014 में उन्हें करीब पौने चार लाख वोट मिले. पिछले चुनाव के आधार पर आरजेडी ने एक बार फिर उनपर भरोसा जताया है. तनवीर स्वच्छ छवि के नेता माने जाते हैं. अगर कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों के बीच भूमिहार वोट बंट जाये और आरजेडी को ओबीसी और मुस्लिम वोट एक मुश्त मिल जायें तो उनके जीत की संभावना बढ़ जाती है.

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तेजस्वी यादव और उपेंद्र कुशवाहा के साथ तनवीर हसन

बेगूसराय सीट पर जातीय समीकरण
बेगूसराय में भूमिहार वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों भूमिहार जाति से हैं. हालांकि यहां मुस्लिम और ओबीसी वोटरों की संख्या भी अच्छी खासी है. आंकड़ों पर नजर डालें तो बेगूसराय में 19 लाख वोटर हैं जिनमें 19 फीसदी भूमिहार, 15 फीसदी मुस्लिम, 12 फीसदी यादव और 7 फीसदी कुर्मी समुदाय के लोग हैं. ऐसे में एनडीए और कम्युनिस्ट पार्टी दोनों के लिए ही भूमिहार वोटरों को साधना अहम है. बात महागठबंधन की करें तो उसकी नजर मुस्लिम और ओबीसी वोटों पर टिकी है.

पिछले चुनाव का गणित
2014 लोकसभा चुनाव में भोला सिंह ने आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन को 58 हजार वोटों से शिकस्त दी थी. तब तनवीर हसन के 3.69 लाख वोटों के मुकाबले भोला सिंह को 4.28 लाख वोट मिले थे. सीपीआई उम्मीदवार राजेंद्र प्रसाद सिंह को 1.92 लाख वोट मिले थे.

राजनीति के बीच मुद्दे गायब
तमाम नारों और दावों के बीच बेगूसराय के जनता की मुख्य समस्याएं अभी भी बरकरार है. नेताओं को केवल चुनाव के समय बेगूसराय की याद आती है. बिहार की औद्यौगिक राजधानी कहे जाने वाले बेगूसराय के औद्योगिक क्षेत्र को विकसित करने की दिशा में वर्षों से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. राष्ट्रकवि दिनकर की धरती पर एक भी विश्वविद्यालय नहीं है. फर्टिलाइजर बंद पड़ा है. रोजगार लोगों के लिए बड़ी समस्या है. यहां लंबे समय से एम्स की स्थापना की मांग की जा रही है. लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.

23 मई को जनता करेगी फैसला
अब देखना होगा आगामी 23 मई को जब उम्मीदवारों की किस्मत का पिटारा खुलेगा तो जनता की उम्मीद पर कौन खड़ा हो पाएंगे. बहरहाल त्रिकोणीय लड़ाई में ये देखना बेहद दिलचस्प होगा कि क्या सीपीआई के कन्हैया कुमार लाल झंडा लहरा पाएंगे या दिग्गज गिरिराज सिंह 'भगवा' पताका फहराएंगे. या दोनों की लड़ाई के बीच आरजेडी के तलवीर हसन 'लालटेन' जलाकर बाजी मार लेंगे.

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बेगूसराय: देशभर में हो रही सियासी चर्चाओं के बीच बेगूसराय लोकसभा सीट सबसे हॉट सीट बनी हुई है. लोकसभा चुनाव का एक दिलचस्‍प मुकाबला बेगूसराय में होने जा रहा है. यहां से बीजेपी के फायरब्रांड नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह चुनावी मैदान में हैं, तो उनके सामने मजबूत विकल्‍प के रूप में खड़े हैं कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के कन्‍हैया कुमार. आरजेडी उम्‍मीदवार तनवीर हसन भी इस मुकाबले में कहीं से कम नहीं हैं. ऐसे में यहां मुकाबला त्रिकोणीय है. 



बेगूसराय में वामपंथ 

बेगूसराय और वामपंथ का बहुत पुराना नाता रहा है. एक समय में इसे मिनी मॉस्को के नाम से भी जाना जाता था. बिहार में वामपंथ ने यहीं से अपने पैर पसारे, लेकिन आज वह अपने अस्तित्व की लड़ाई में जुटा हुआ है. वापपंथी दलों को कन्हैया में वामपंथ की वापसी के लिए आशा की किरण नज़र आई है. एक दौर था जब बेगूसराय जिले में विधानसभा की सातों सीट पर वामपंथी दलों के प्रतिनिधि चुने गए थे. लेकिन सवाल  ये है कि क्या कन्हैया बिहार में वामपंथ को फिर से स्थापित कर पाएंगे? क्या मिनी मॉस्को अपने अतीत की बुलंदियों को एक बार फिर हासिल कर पाएगा?



गिरिराज सिंह की मजबूती

ये सभी जानते हैं कि कन्हैया कुमार तब चर्चा में आए जब उनपर देशद्रोह का आरोप लगा. वहीं, गिरिराज सिंह हमेशा राष्ट्रवाद और हिदुत्व की बातों से ओतप्रोत नजर आते हैं. अगर गिरिराज सिंह इस चुनाव प्रचार में राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व को मुद्दा बनाकर लोगों को अपने पक्ष में करते हैं तो उनकी राह आसान हो जाएगी. बेगूसराय भूमिहारों का गढ़ है और पिछले लोकसभा में बीजेपी के भोला सिंह ने यहां से जीत दर्ज की थी, ऐसे में बीजेपी का पक्ष यहां मजबूत नजर आता है.



कन्हैया कुमार की मजबूती

कन्हैया कुमार बेगूसराय के बीहट से आते हैं. चुनाव प्रचार के दौरान वे खुद को नेता नहीं बल्कि बेगूसराय का बेटा बता रहे हैं. अगर कन्हैया लोगों को ये समझाने में कामयाब हो जाते हैं कि उन्हें सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने के लिए साजिश के तहत फंसाया गया है तो वे लोगों को अपने पक्ष में कर सकते हैं. लगातार मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उन्हें मुस्लिम समुदाय का भी समर्थन मिल सकता है. 



तनवीर हसन की जीत की संभावना

पिछले चुनाव में दिवंगत भोला सिंह को कड़ी चुनौती देने वाले तनवीर हसन चुनाव भले ही हार गए हों लेकिन 2014 में उन्हें करीब पौने चार लाख वोट मिले. पिछले चुनाव के आधार पर आरजेडी ने एक बार फिर उनपर भरोसा जताया है. तनवीर स्वच्छ छवि के नेता माने जाते हैं. अगर कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों के बीच भूमिहार वोट बंट जाये और आरजेडी को ओबीसी और मुस्लिम वोट एक मुश्त मिल जायें तो उनके जीत की संभावना बढ़ जाती है. 



बेगूसराय सीट पर जातीय समीकरण

बेगूसराय में भूमिहार वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों भूमिहार जाति से हैं. हालांकि यहां मुस्लिम और ओबीसी वोटरों की संख्या भी अच्छी खासी है. आंकड़ों पर नजर डालें तो बेगूसराय में 19 लाख वोटर हैं जिनमें 19 फीसदी भूमिहार, 15 फीसदी मुस्लिम, 12 फीसदी यादव और 7 फीसदी कुर्मी समुदाय के लोग हैं. ऐसे में एनडीए और कम्युनिस्ट पार्टी दोनों के लिए ही भूमिहार वोटरों को साधना अहम है. बात महागठबंधन की करें तो उसकी नजर मुस्लिम और ओबीसी वोटों पर टिकी है. 



पिछले चुनाव का गणित 

2014 लोकसभा चुनाव में भोला सिंह ने आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन को 58 हजार वोटों से शिकस्त दी थी. तब तनवीर हसन के 3.69 लाख वोटों के मुकाबले भोला सिंह को 4.28 लाख वोट मिले थे. सीपीआई उम्मीदवार राजेंद्र प्रसाद सिंह को 1.92 लाख वोट मिले थे.



राजनीति के बीच मुद्दे गायब 

तमाम नारों और दावों के बीच बेगूसराय के जनता की मुख्य समस्याएं अभी भी बरकरार है. नेताओं को केवल चुनाव के समय बेगूसराय की याद आती है. बिहार की औद्यौगिक राजधानी कहे जाने वाले बेगूसराय के औद्योगिक क्षेत्र को विकसित करने की दिशा में वर्षों से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. राष्ट्रकवि दिनकर की धरती पर एक भी विश्वविद्यालय नहीं है. फर्टिलाइजर बंद पड़ा है. रोजगार लोगों के लिए बड़ी समस्या है. यहां लंबे समय से एम्स की स्थापना की मांग की जा रही है. लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. 





23 मई को जनता करेगी फैसला

अब देखना होगा आगामी 23 मई को जब उम्मीदवारों की किस्मत का पिटारा खुलेगा तो जनता की उम्मीद पर कौन खड़ा हो पाएंगे. बहरहाल त्रिकोणीय लड़ाई में ये देखना बेहद दिलचस्प होगा कि क्या सीपीआई के कन्हैया कुमार लाल झंडा लहरा पाएंगे या दिग्गज गिरिराज सिंह 'भगवा' पताका  फहराएंगे. या दोनों की लड़ाई के बीच आरजेडी के तलवीर हसन 'लालटेन' जलाकर बाजी मार लेंगे. 

 


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