बेगूसराय: कभी वामपंथ का गढ़ रहा बखरी विधानसभा सीट पर पिछली वार आरजेडी के उपेंद्र पासवान ने जीत दर्ज की थी. हालांकि इस बार महागठबंधन ने इस सीट से उपेंद्र पासवान का टिकट काटकर सीपीआई को दिया है.
विधायक से नाखुश स्थानीय लोग
बखरी क्षेत्र के लोगों की माने तो पिछले 5 सालों में यहां स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में जितना काम होना चाहिए था वो नहीं हो पाया है. लोगों की नाराजनी यहां के विधायक से है जिनके कार्यकाल में उच्च शिक्षण संस्थान नहीं बन पाया. जिसके अभाव में यहां के छात्र-छात्राओं को पढ़ने के लिए बेगुसराय या मंझौल जाना पड़ता है.
एक मात्र सुरक्षित सीट बखरी
समस्तीपुर और खगड़िया जिले की सीमा पर स्थित बखरी विधानसभा आजादी के 73 सालों बाद भी पिछड़ा क्षेत्र ही बना हुआ है. 1952 के प्रथम चुनाव में ये सामान्य सीट थी. लेकिन 1957 के चुनाव में इसे सुरक्षित घोषित कर दिया गया. यहां चुनाव लड़ने के लिए जिलेभर के दलित नेताओं की नजर बनी रहती है. इस बार के चुनाव में ग्रामीण इलाकों की सड़क, उच्च शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और बेरोजगारी प्रमुख समस्या है.
वामपंथ का किला ध्वस्त
दलित के लिए सुरक्षित इस विधानसभा क्षेत्र में दलितों के अंदर की जातिगत समीकरण बहुत हद तक प्रभावित करने लगा है. इसी का परिणाम है कि अब यहां का मुकाबला पासवान बनाम मोची जाति के बीच होने लगा है. जिससे वामपंथ का ये किला ध्वस्त हो गया.
नीतीश कुमार ने किए कई बड़े काम
अन्य विधानसभा की तरह ही यहां नीतीश कुमार की सरकार ने कई बड़े काम किये है. जानकारी के मुताबिक यहां वर्तमान में 5 विद्युत पावर स्टेशन है. गांव-गांव शुद्व पेयजल की व्यवस्था की जा रही है. वहीं, सात निश्चय योजना के तहत काम किये जा रहे हैं. सबसे बड़ी समस्या उच्च शिक्षा के लिए डिग्री कॉलेज और प्रचुर संसाधन रहने के बावजूद बेरोजगारी की समस्या लोगों के लिए बाधक है. स्थानीय लोगों की माने तो कभी यहां मिर्च, मकई और हल्दी की फसल दूसरे प्रदेशों में जाती थी.
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र रहा बखरी विधानसभा कभी वीआईपी सीट नहीं बन पाया है. लेकिन अयोध्या राम मंदिर के निर्माण के लिए पहला ईंट लगाने वाले कामेश्वर चौपाल ने 1995 में जब यहां से चुनाव लड़ा था तो ये सीट सुर्खियों में आ गया था.