बेगूसराय: देश के 52 शक्तिपीठों में से एक, माता जय मंगला गढ़ मंदिर पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार काफी प्रसिद्ध देव स्थल है. भक्त मानते हैं कि माता के दरबार में जो भी मुरादें लेकर आया है माता ने उसे पूरी की है.
बेगूसराय जिला मुख्यालय से 22 किलोमीटर दूर मंझौल में एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की कांवर झील है. इस झील के मध्य में स्थित है माता जयमंगला गढ़ मंदिर. देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक इस मंदिर को जागृत स्थल और सिद्ध शक्तिपीठ माना जाता है.
पाल राजाओं ने कराई मंदिर की स्थापना
जयमंगला गढ़ मंदिर के दक्षिणी द्वार के पास खुदाई में नवग्रह की मूर्तियां भी मिली थी. इसकी स्थापना को लेकर कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे पता चलता है कि इसका निर्माण पाल वंश के शासकों द्वारा किया गया होगा. कुछ अवशेष इस बात को प्रमाणित करता है कि इस इलाके में महात्मा बुद्ध की भी गतिविधि रही है. यह निर्विवाद है कि अतीत में इस गढ़ का निर्माण किसी शक्तिशाली एवं प्रभावशाली राजा के द्वारा कराया गया होगा. गढ़ के चारों तरफ झील का पानी होना किसी सुरक्षित दुर्ग का प्रतीक है.
इसी स्थान पर गिरा था देवी सती का स्तन
स्थानीय लोगों और पंडा समाज के मुताबिक मंदिर की स्थापना और पाल वंश के शासन काल की कड़ियां एक दूसरे से जुड़ी हुई है. पाल वंश के द्वारा इस मंदिर की स्थापना से लेकर संरक्षण में योगदान के प्रमाण मिले हैं. स्थानीय पंडा के मुताबिक कई देवी ग्रंथ में माता जयमंगला का जिक्र है. मान्यताओं के अनुसार जब सती का शव लेकर भगवान भोले शंकर तांडव नृत्य कर रहे थे. तब देवी का स्तन इसी स्थान पर गिरा था. दूसरी कहावत यह है की त्रिपुर राक्षस का जब पृथ्वी पर आतंक बढ़ गया था. तब उसके अंत के लिए भगवान भोले शंकर ने यहीं आकर माता का आह्वान किया था. जिसके उपरान्त माता प्रकट होकर उस राक्षस का वध की थीं. तब से माता जयमंगला की पूजा अर्चना यहां शुरू हो गई.
मंगलवार के दिन होती है देवी की पूजा
माता की पूजा मुख्य रूप से मंगलवार के दिन की जाती है. अंग जनपद के राजा कर्ण भी गंगा नदी के जरिए माता जयमंगला के दरबार मे माथा टेकने आते थे. 14 कोसों में फैले विशाल कांवर झील के बीच लगभग 400 बीघे का ये द्वीप जंगलों से भरा हुआ है. हालांकि सम्पन्नता और ख्याति के बाबजूद भी पर्यटन के हिसाब से यह क्षेत्र आज भी पिछड़ा हुआ है.
उपेक्षा का शिकार है यह मंदिर
जबकि माता के दर्शन के लिए यहां देश के बड़े-बड़े अधिकारी, न्यायाधीश, राज्य और केंद्र सरकारों के मंत्री और कई मुख्यमंत्री यहां माथा टेकने आते रहे हैं. इस दर्शनीय स्थल के प्रति जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की लापरवाही से यहां का पंडा समाज के साथ आमलोग भी हताश और निराश हैं. इस मंदिर के विकास में सबसे बड़ा बाधक जमीन की मालिकाना हक के लिए सरकार और पैतृक रूप से जमीन के मालिकों के बीच न्यायालय में चल रहा विवाद है.
सड़क, पानी और बिजली की समुचित व्यवस्था नहीं
हालांकि यह जरूर कह सकते हैं कि एक तरफ राज्य सरकार पर्यटन को व्यवसाय के रूप में विकसीत करना चाहती है. लेकिन इस मंदिर के प्रति उदासीन रवैया अपनाये हुए है. देश के प्रमुख धरोहरों में से एक जय मंगला गढ़ मंदिर अपने ख्याति के अनुरूप सुविधाओं से महरूम है. यहां पर सड़क, पानी और बिजली की समुचित व्यवस्था कर इस प्रसिद्ध स्थल को बड़े पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है.
इस मंदिर की विशेषता
- देश के 52 शक्तिपीठों में से है माता जय मंगला गढ़ मंदिर.
- देवी सती के शव का स्तन इसी स्थान पर गिरा था.
- त्रिपुर राक्षस के वध के लिए भगवान भोले शंकर ने यहीं से माता का आह्वान किया था.
- माता प्रकट होकर राक्षस का वध की थी. तब से माता जयमंगला की पूजा अर्चना यहां शुरू हो गई.
- राजा कर्ण भी गंगा माता जयमंगला के दरबार में माथा टेकने आते थे.
- पाल वंश के द्वारा इस मंदिर का किया गया है स्थापना
- इस इलाके में महात्मा बुद्ध की भी रही है गतिविधि
- विशाल कांवर झील के बीच स्थित है यह मंदिर