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कल्पवास मेले में श्रद्धालुओं के जुटने का सिलसिला जारी,  27 नवंबर तक चलेगा अर्ध कुंभ

Simaria Dham Of Begusarai: बिहार में देश का एक ऐसा स्थान है, जहां आठ करोड़ लोगों के पुर्वजों की आत्मा बसती है. यहां सदियों से कल्पवास की परंपरा चली आ रही है. कहा जाता है कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए सबसे पहले राजा जनक ने यहां कल्पवास किया था. यहां 18 अक्टूबर से आयोजित मेले में कल्पवास को लेकर दूर-दराज के लोगों के पहुंचने का सिलसिला जारी है.

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सिमरिया धाम का कल्पवास मेला
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 16, 2023, 2:21 PM IST

बेगूसराय: बेगूसराय में समय के साथ-साथ कल्पवास मेले की रौनक दिनों दिन बढ़ती जा रही है. सिमरिया के गंगा तट पर 18 अक्टूबर से 27 नवंबर तक चलने वाले कल्पवास को लेकर दूर-दराज के लोगों के पहुंचने का सिलसिला जारी है. बताते चलें कि उत्तरवाहिनी गंगा तट पर स्थित सिमरिया धाम मिथिलावासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. यहां कल्पवास की परंपरा सदियों से चली आ रही है, ऐसे आयोजनों से इस स्थल को व्यापक प्रसिद्धि मिली है.

कल्पवास करने आईं महिला श्रद्धालु
कल्पवास करने आईं महिला श्रद्धालु

मेले की क्या है मान्यता: कल्पवास मेला एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, जो युगों-युगों से कल्प और कल्पान्तर से आ रही है. इस मेले के दौरान, भक्तजन पवित्र गंगा के किनारे बसकर तपस्या और पूजा करते हैं. इसका इतिहास राजा जनक जैसे प्रमुख व्यक्ति के धार्मिक कार्यों से जुड़ा है, जिन्होंने मोक्ष की प्राप्ति के लिए सिमरिया घाट पर कल्प किया था.

देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु: हर साल कार्तिक मास में लगने वाले प्रसिद्ध कल्पवास मेले में बिहार ही नहीं, कई अन्य राज्यों के अलावा नेपाल तक से श्रद्धालु आते हैं. बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सिमरिया कल्पवास मेले को वर्ष 2008 में राजकीय मेला का दर्जा दिया था. उसके बाद यहां 2011 में अर्ध कुंभ और 2017 में महाकुंभ का आयोजन हो चुका है, एक बार फिर यहां अर्ध कुंभ का आयोजन हो रहा है.

गंगा किनारे बनाई गई पर्ण कुटीर
गंगा किनारे बनाई गई पर्ण कुटीर

बसती है आठ करोड़ लोगों के पुर्वजों की आत्मा: बता दें कि यह एक ऐसा स्थान है जहां 8 करोड़ लोगों के पुर्वजों की आत्मा बसती है. देश में धार्मिक आस्था के इस प्रमुख केंद्र पर जाती, धर्म, अमीरी, गरीबी से अलग लोग पर्ण कुटीरों मे रहकर श्रद्धाभाव से गंगा की पूजा अर्चना और मोक्ष पाने के लिए तपस्या करते है. आस्था का यही स्वरूप कल्पवास की परंपरा को बेहद ही खास और अलग बनाता है. श्रद्धांलु पुरे एक महीने तक एक अलग और अनोखी दुनिया का एहसास करते है, जो देश विदेश के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है.

पर्ण कुटीर में रहते श्रद्धालु
पर्ण कुटीर में रहते श्रद्धालु

कल्पवास की क्या है मान्यता : मिथिलांचल के लोगों के लिए यह एक एक पुण्यभूमि है, जिसका अपना धार्मिक इतिहास रहा है. सिमरिया मगध का उत्तरी, अंग का पश्चिमी और मिथिला का दक्षिणी किनारा होने के कारण यह एक विशिष्ट स्थान है. कहा जाता है कि इसी स्थान से होकर भगवान राम, माता सीता के साथ अयोध्या गए थे. इसी स्थान पर राजा जनक ने माता सीता के पैर पखारने का काम किया था. कहा जाता है कि राजा जनक ने भी यहां कल्पवास किया था जिसके बाद सिमरिया में कल्पवास की अनोखी परंपरा आगे बढ़ी.

कल्पवास मेले का दृश्य
कल्पवास मेले का दृश्य

बड़ी संख्या मे लोग हर दिन करते हैं दाह संस्कार: माना जाता है कि इसी इलाके में समुद्र मंथन के साथ-साथ राजा कर्ण का दाह संस्कार किया गया था. सिमरिया देव कर्म और पितृ कर्म का स्थान है. जहां पूजा पाठ के अलावा कोशी और मिथिलांचल से बड़ी संख्या में लोग हर दिन दाह संस्कार के लिए आते हैं. बदलते वक्त और हालत के बावजूद इस स्थान पर धर्म-कर्म के अलावा कल्पवास की परंपरा ज्यो की त्यों चली आ रही है. हालांकि पहले लोग खुले आसमान और बालू की ढेर पर कल्पवास करते थे लेकिन अब आधुनिकता के रंग मे रंगकर रंग-बिरंग पंडाल और पर्ण कुटीरों में रहकर मोक्ष की कामना करते हैं.

श्रद्धालुओं की सुविधा का सरकार रखती है ख्याल: वहीं सरकार ने भी उनकी सुविधाओं का खास ख्याल रखा है. लोगों की श्रद्धा और इस स्थान की महत्ता को देखते हुए नीतीश कुमार की सरकार ने 2016 में कल्पवास को राजकीय मेला का दर्जा दिया. तब से लेकर आज तक यह स्थान आधुनिकता के रंग मे रंग गया.

भगवान की आदमकद प्रतिमा
भगवान की आदमकद प्रतिमा

गंगा नदी मोक्ष के लिए सर्वश्रेष्ठ: सिमरिया के संदर्भ में चिदात्मन जी महाराज ने बताया कि सिमरिया, देव और पितृ कर्म का संगम है. उन्होंने बताया की पूर्णिमा के पूर्णिमा पुरे एक महीने तक यहां लोग कल्पवास के लिए आते है. देश में सात मोक्षदानी नदियां हैं, जिनमें गंगा सर्वश्रेष्ठ है. सिमरिया में अनादि काल से कल्पवास की परंपरा चली आ रही है. प्रत्येक 12 वर्षों पर यहां कुंभ और 6 वर्षों पर अर्ध कुंभ लगाया जाता है. गंगा का दर्शन ही पाप से मुक्ति दिलाने वाला है.

भजन कीर्तन का आयोजन
भजन कीर्तन का आयोजन

"कार्तिक मास मे पूजा पाठ करने सिमरिया आये हैं. यहां जो लोग भी गंगा स्नान करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसीलिए हम लोग यहां कल्पवास करने आये हैं. इस दौरान एक महीने तक यहां रहकर सुबह 3 बजे से ही पुरे दिन भजन, कीर्तन, भागवत कथा का आनंद लेते है."- श्रद्धालू

पूजा करते भक्त
मंत्र जाप करते भक्त

"हम लोग मानते हैं कि सिमरिया से ही मिथिला की शुरुआत होती है. मिथिला और कोशी का कोई घर ऐसा नहीं है जिनके पूर्वज की आत्मा यहां नहीं बसती है. यह आठ करोड़ लोगों के आस्था का केंद्र है."- संजय झा, जल संसाधन मंत्री

पढ़ें: धार्मिक पर्यटन का बड़ा केंद्र बनेगा सिमरिया, कल्पवास मेले का जल संसाधन मंत्री ने लिया जायजा

बेगूसराय: बेगूसराय में समय के साथ-साथ कल्पवास मेले की रौनक दिनों दिन बढ़ती जा रही है. सिमरिया के गंगा तट पर 18 अक्टूबर से 27 नवंबर तक चलने वाले कल्पवास को लेकर दूर-दराज के लोगों के पहुंचने का सिलसिला जारी है. बताते चलें कि उत्तरवाहिनी गंगा तट पर स्थित सिमरिया धाम मिथिलावासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. यहां कल्पवास की परंपरा सदियों से चली आ रही है, ऐसे आयोजनों से इस स्थल को व्यापक प्रसिद्धि मिली है.

कल्पवास करने आईं महिला श्रद्धालु
कल्पवास करने आईं महिला श्रद्धालु

मेले की क्या है मान्यता: कल्पवास मेला एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, जो युगों-युगों से कल्प और कल्पान्तर से आ रही है. इस मेले के दौरान, भक्तजन पवित्र गंगा के किनारे बसकर तपस्या और पूजा करते हैं. इसका इतिहास राजा जनक जैसे प्रमुख व्यक्ति के धार्मिक कार्यों से जुड़ा है, जिन्होंने मोक्ष की प्राप्ति के लिए सिमरिया घाट पर कल्प किया था.

देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु: हर साल कार्तिक मास में लगने वाले प्रसिद्ध कल्पवास मेले में बिहार ही नहीं, कई अन्य राज्यों के अलावा नेपाल तक से श्रद्धालु आते हैं. बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सिमरिया कल्पवास मेले को वर्ष 2008 में राजकीय मेला का दर्जा दिया था. उसके बाद यहां 2011 में अर्ध कुंभ और 2017 में महाकुंभ का आयोजन हो चुका है, एक बार फिर यहां अर्ध कुंभ का आयोजन हो रहा है.

गंगा किनारे बनाई गई पर्ण कुटीर
गंगा किनारे बनाई गई पर्ण कुटीर

बसती है आठ करोड़ लोगों के पुर्वजों की आत्मा: बता दें कि यह एक ऐसा स्थान है जहां 8 करोड़ लोगों के पुर्वजों की आत्मा बसती है. देश में धार्मिक आस्था के इस प्रमुख केंद्र पर जाती, धर्म, अमीरी, गरीबी से अलग लोग पर्ण कुटीरों मे रहकर श्रद्धाभाव से गंगा की पूजा अर्चना और मोक्ष पाने के लिए तपस्या करते है. आस्था का यही स्वरूप कल्पवास की परंपरा को बेहद ही खास और अलग बनाता है. श्रद्धांलु पुरे एक महीने तक एक अलग और अनोखी दुनिया का एहसास करते है, जो देश विदेश के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है.

पर्ण कुटीर में रहते श्रद्धालु
पर्ण कुटीर में रहते श्रद्धालु

कल्पवास की क्या है मान्यता : मिथिलांचल के लोगों के लिए यह एक एक पुण्यभूमि है, जिसका अपना धार्मिक इतिहास रहा है. सिमरिया मगध का उत्तरी, अंग का पश्चिमी और मिथिला का दक्षिणी किनारा होने के कारण यह एक विशिष्ट स्थान है. कहा जाता है कि इसी स्थान से होकर भगवान राम, माता सीता के साथ अयोध्या गए थे. इसी स्थान पर राजा जनक ने माता सीता के पैर पखारने का काम किया था. कहा जाता है कि राजा जनक ने भी यहां कल्पवास किया था जिसके बाद सिमरिया में कल्पवास की अनोखी परंपरा आगे बढ़ी.

कल्पवास मेले का दृश्य
कल्पवास मेले का दृश्य

बड़ी संख्या मे लोग हर दिन करते हैं दाह संस्कार: माना जाता है कि इसी इलाके में समुद्र मंथन के साथ-साथ राजा कर्ण का दाह संस्कार किया गया था. सिमरिया देव कर्म और पितृ कर्म का स्थान है. जहां पूजा पाठ के अलावा कोशी और मिथिलांचल से बड़ी संख्या में लोग हर दिन दाह संस्कार के लिए आते हैं. बदलते वक्त और हालत के बावजूद इस स्थान पर धर्म-कर्म के अलावा कल्पवास की परंपरा ज्यो की त्यों चली आ रही है. हालांकि पहले लोग खुले आसमान और बालू की ढेर पर कल्पवास करते थे लेकिन अब आधुनिकता के रंग मे रंगकर रंग-बिरंग पंडाल और पर्ण कुटीरों में रहकर मोक्ष की कामना करते हैं.

श्रद्धालुओं की सुविधा का सरकार रखती है ख्याल: वहीं सरकार ने भी उनकी सुविधाओं का खास ख्याल रखा है. लोगों की श्रद्धा और इस स्थान की महत्ता को देखते हुए नीतीश कुमार की सरकार ने 2016 में कल्पवास को राजकीय मेला का दर्जा दिया. तब से लेकर आज तक यह स्थान आधुनिकता के रंग मे रंग गया.

भगवान की आदमकद प्रतिमा
भगवान की आदमकद प्रतिमा

गंगा नदी मोक्ष के लिए सर्वश्रेष्ठ: सिमरिया के संदर्भ में चिदात्मन जी महाराज ने बताया कि सिमरिया, देव और पितृ कर्म का संगम है. उन्होंने बताया की पूर्णिमा के पूर्णिमा पुरे एक महीने तक यहां लोग कल्पवास के लिए आते है. देश में सात मोक्षदानी नदियां हैं, जिनमें गंगा सर्वश्रेष्ठ है. सिमरिया में अनादि काल से कल्पवास की परंपरा चली आ रही है. प्रत्येक 12 वर्षों पर यहां कुंभ और 6 वर्षों पर अर्ध कुंभ लगाया जाता है. गंगा का दर्शन ही पाप से मुक्ति दिलाने वाला है.

भजन कीर्तन का आयोजन
भजन कीर्तन का आयोजन

"कार्तिक मास मे पूजा पाठ करने सिमरिया आये हैं. यहां जो लोग भी गंगा स्नान करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसीलिए हम लोग यहां कल्पवास करने आये हैं. इस दौरान एक महीने तक यहां रहकर सुबह 3 बजे से ही पुरे दिन भजन, कीर्तन, भागवत कथा का आनंद लेते है."- श्रद्धालू

पूजा करते भक्त
मंत्र जाप करते भक्त

"हम लोग मानते हैं कि सिमरिया से ही मिथिला की शुरुआत होती है. मिथिला और कोशी का कोई घर ऐसा नहीं है जिनके पूर्वज की आत्मा यहां नहीं बसती है. यह आठ करोड़ लोगों के आस्था का केंद्र है."- संजय झा, जल संसाधन मंत्री

पढ़ें: धार्मिक पर्यटन का बड़ा केंद्र बनेगा सिमरिया, कल्पवास मेले का जल संसाधन मंत्री ने लिया जायजा

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