बांका (कटोरिया): आदिवासी समाज का सबसे बड़ा सोहराय पर्व का शुभारंभ हो चुका है. पांच दिवसीय सोहराय पर्व के प्रथम दिन 'उम-पूजा' यानी 'गोट पूजा' का आयोजन हुआ. कटोरिया प्रखंड के भोरसार-भेलवा पंचायत अंतर्गत कचनार-डुमरिया मैदान पर आदिवासी संथाल जन जागरुकता समाज सुसार कमेटी के बैनर तले रविवार को भव्य कार्यक्रम का आयोजन हुआ.
पहले दिन इष्ट देवता की हुई पूजा
सोहराय पर्व के प्रथम दिन घरों की साफ-सफाई व नदी में स्नान के बाद इष्ट देवता की आराधना हुई. फिर सामूहिक रूप से प्रसाद ग्रहण किया गया. कचनार-डुमरिया मैदान पर आसपास के लगभग दो दर्जन से भी अधिक गांवों से जुटे महिला-पुरुषों ने सामूहिक रूप से संथाली गीत पर मृदंग, ढोल, नगाड़ा, मानर व झाल बजाते हुए दिनभर नृत्य किया. इस उत्सवी माहौल में समूचा आदिवासी समुदाय थिरक उठा.
सोहराय पर छुट्टी घोषित करे राज्य सरकार
कचनार-डुमरिया मैदान पर सोहराय पर्व के प्रथम दिन आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों ने बिहार सरकार से सोहराय पर्व के मौके पर सरकारी छुट्टी घोषित करने की मांग भी उठाई. वक्ताओं ने कहा कि आदिवासी समाज के सबसे बड़ा पर्व सोहराय का लेखा-जोखा या गिनती सरकार की नजर में नहीं है. जिससे सरकारी छुट्टी नहीं मिल पाती.
कमेटी के सदस्य रहे मौजूद
सैकड़ों की संख्या में उपस्थित महिला-पुरुषों ने एकजुटता का परिचय देते हुए बिहार सरकार से सोहराय पर्व पर राजकीय छुट्टी घोषित कराने की मांग की. इस मौके पर आदिवासी संथाल जन जागरूक समाज सुसार कमेटी के अध्यक्ष सुंदर सोरेन, जिला मंत्री शिवलाल हांसदा, सचिव रसिकलाल मुर्मू, उपाध्यक्ष दिनेश मुर्मू, भोरसार-भेलवा पंचायत के पंचायत समिति सदस्य सुरेंद्र प्रसाद उर्फ पप्पू यादव, भूपेंद्र यादव, ज्योतिष कुमार आदि मौजूद थे.
दूसरे दिन गोहाल पूजा
पांच दिवसीय सोहराय पर्व के दूसरे दिन यानी सोमवार को गोहल पूजा का आयोजन होगा. जिसमें आदिवासी समुदाय द्वारा अपने कृषि यंत्र की पूजा की जाएगी. दूसरा दिन खाने-पीने का होता है.
तीसरे दिन होती है प्रतियोगिता
तीसरे दिन मंगलवार को हाकू काटकम यानी बरधखुट्टा प्रतियोगिता का आयोजन होगा. इस दिन सभी मेहमान जमा होते हैं. खासकर शादीशुदा बेटियों व बहनों को आमंत्रित किया जाता है. खूंटा के उपर बंधे इनाम की राशि को जीतने के लिए मेहमानों के बीच प्रतियोगिता करायी जाती है.
शिकार के साथ होगा पर्व का समापन
सोहराय पर्व का चौथा दिन नदी तालाब में मछली पकड़ने की होती है. जिसे संक्रांति भी कहा जाता है. पर्व के पांचवें दिन जंगल में सामूहिक रूप से जंगली जीव जंतुओं का शिकार किया जाता है. फिर शिकार किए गए जानवरों को सामूहिक रूप से पकाकर खाया जाता है.