बांकाः जिले के कटोरिया प्रखंड स्थित मनिया गांव चांदी की मछली निर्माण के लिए देश के साथ विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुका है. भारत का शायद यह इकलौता गांव है, जहां घर-घर चांदी की मछली बनाई जाती है. गांव में 125 घर हैं जिसमें 1500 की आबादी बसती है. यहां का शायह ही ऐसा कोई घर है जहां मछली बनाने का काम नहीं किया जाता है.
कठपुतली बनकर रह गए हैं कारीगर
मनिया गांव के स्वर्णकार, यादव और कुशवाहा समाज के बुजुर्ग युवा और महिलाएं लगभग 40 सालों से इस कारोबार से जुड़े हुई हैं. यहां के कारीगर 10 ग्राम से लेकर ढाई किलो तक की मछली बनाने में पूरी तरह से माहिर हैं. कारीगरी भी बिल्कुल जिंदा मछली जैसी होती है. अपने हुनर के माहिर यह कारीगर पूंजी के अभाव में महाजनों के हाथ की कठपुतली बनकर रह गए हैं.
जिला प्रशासन के साथ-साथ सरकार ने भी इन पर कभी ध्यान नहीं दिया. यही वजह है कि गांव में अब युवाओं के पलायन का दौर जारी हो गया है. मछली बनाने का सारा ताना-बाना महाजनों पर ही निर्भर है.
10 ग्राम से ढाई किलो तक की बनती है मछली
ग्रामीण जयप्रकाश यादव बताते हैं कि मनिया में चांदी की मछली हाथ से बनाई जाती है, लेकिन उन्हें वाजिब मजदूरी नहीं मिल पाती है. उन्होंने बताया कि महाजन कच्चा माल भागलपुर, पटना, बनारस, कोलकाता सहित अन्य शहरों के उपलब्ध कराते हैं. कारीगर ऑर्डर के हिसाब से उन्हें मछली बनाकर सौंप देते हैं. यहां के कारीगरों के दम पर महाजन मालामाल हो रहे हैं.
कारीगरी का सर्टिफिकेट
जयप्रकाश यादव ने बताया कि महाजन ही मनिया की बनी चांदी की मछली का व्यापार विदेशों में करते हैं. यहां के कारीगरों को सबसे अधिक मलाल पूंजी नहीं होने का है. अगर उनके पास पूंजी हो जाए तो किसी के पास हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्होंने बताया कि पूर्व सांसद जयप्रकाश नारायण यादव की पहल पर बस एक कारीगिरी का सर्टिफिकेट मिल पाया है.
'नहीं मिलती मेहनत के हिसाब से मजदूरी'
कारीगर मनोज यादव बताते हैं कि पूंजी के अभाव में महाजन पर ही निर्भर रहना पड़ता है. दो दिन में एक सौ ग्राम की मछली बनकर तैयार होता है और 500 रुपए ही मजदूरी मिलती है. मेहनत के हिसाब से मजदूरी नहीं मिल पाती है.
महिलाओं के बिना अधूरा मछली का कारोबार
मनिया में मछली का कारोबार महिलाओं के बगैर अधूरा है. गांव की दो दर्जन से अधिक महिलाएं मछली साफ करने का काम करती हैं. रीना देवी सहित अन्य महिला ने बताया कि 10 ग्राम से लेकर ढाई किलो तक की मछली सफाई के लिए आती है. छोटी मछली पर एक रुपये और बड़ी मछली की सफाई पर मात्र सात रुपये मिलते हैं. उन्होंने बताया कि मछली को बहुत बारीकी से साफ करना पड़ता है.
लॉकडाउन में ठप पड़ा कारोबार
कारीगर विपिन यादव ने बताया कि महाजन से आर्डर मिलने पर काम चलता है. अभी लॉकडाउन में स्थिति पूरी तरह से चरमरा गई है. ऑर्डर नहीं मिल पा रहा है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार पूंजी उपलब्ध करा दे तो महाजन का काम करने के बजाए खुद का काम करेंगे और मुनाफा भी होगा.
शुरू हुआ पलायन का दौर
युवा पिंकू कुमार ने बताया कि मनिया गांव में 40 साल से मछली बनाने का काम हो रहा है. महाजन से कच्चा माल आता है और कारीगर मछली बनाकर महाजन को ही सौंप देते हैं. 125 घर के लगभग 1500 आबादी वाले इस गांव के सभी घर में कारीगर हैं, लेकिन कारीगिरी का उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता है.
रोजगार की तलाश में युवा
पूर्व सांसद हो या वर्तमान सांसद या फिर जिला प्रशासन हो या सरकार सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा है. जमीनी स्तर पर मनिया गांव के लिए किसी ने कुछ नहीं किया है। महाजन से काम नहीं मिलने की वजह से यहां के युवा पलायन करने लगे हैं. तीन दिन पहले भी गांव के एक दर्जन युवा रोजगार की तलाश में राजकोट, दिल्ली सहित अन्य शहरों के लिए निकल गए.
'उद्योग के तौर पर हुआ विकसित'
बिहार के राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री रामनारायण मंडल ने बताया कि मैंने मनिया गांव जाकर खुद चांदी की मछली बनते देखा है. सालों से इस गांव में चांदी की मछली बन रही है. यह छोटे उद्योग के तौर पर विकसित हुआ है. उन्होंने बताया कि इसको व्यापक विस्तार देने के लिए कार्य योजना पर काम चल रहा है.
'देश का बढ़ेगा मान'
मंत्री रामनारायण मंडल ने बताया कि मनिया में चल रहे चांदी के कारोबार को विकसित करने के लिए सरकार की नजर है. आने वाले दिनों में इसका व्यापक असर देखने को मिलेगा. यहां कारोबार विकसित होने से जिले के साथ-साथ बिहार और देश का भी मान बढ़ेगा. अब देखना होगा कि सरकार की यह योजना कब तक जमीन पर उतरती है.