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बांका: इस गांव के बच्चों ने आजतक नहीं देखा स्कूलों का मुंह, सूअर और बकरी पालन है मुख्य रोजगार - amgachi village of banka

आदिवासी बहुल आमगाछी गांव में सभी घरों में सूअर और बकरी पालन ही एकमात्र रोजगार का साधन है. ग्रामीणों की मानें तो यहां स्कूल, आंगनवाड़ी, चिकित्सा, पानी की कोई सुविधा नहीं है.

आदिवासी बहुल आमगाछी गांव
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Published : Sep 23, 2019, 3:09 PM IST

बांका: जिले के चांदन प्रखंड के आदिवासी बहुल आमगाछी गांव में सरकारी उदासीनता अपने चरम पर है. हालात ऐसे है कि यहां आज तक कोई बच्चा स्कूल नहीं गया. इलाके में ना ही स्कूल है, ना सड़क, ना बिजली और ना ही पीने के पानी की व्यवस्था की गई है.

सूअर और बकरी पालन रोजगार का साधन
आमगाछी गांव में करीब 50 आदिवासी परिवार रहते हैं. सभी घरों में सूअर और बकरी पालन ही एकमात्र रोजगार का साधन है. कुछ परिवार जंगल से दतवन और पत्तल बना कर उसे शहरों में बेचकर अपना और परिवार का पेट पालते हैं. ग्रामीणों की मानें तो यहां स्कूल, आंगनवाड़ी, चिकित्सा, पानी की कोई सुविधा नहीं है. एक स्कूल इस गांव से 2 किलोमीटर दूर बाबूकुरा गांव में है,जहां तक जाने का पूरा रास्ता जंगली है. आंगनवाड़ी केंद्र 4 किलोमीटर पर है. इस गांव का कोई भी बच्चा कभी स्कूल नहीं गया.

पेश है रिपोर्ट

किसी घर में शौचालय नहीं
इस गांव की हालत यह है कि यहां किसी घर में शौचालय नहीं है. गंदगी के अंबार के बीच सारा परिवार दिन-रात सूअर के घरों के पास ही रहता है. स्थानीय लोगों के अनुसार चुनाव के वक्त यहां सभी आते हैं लेकिन चुनाव के बाद गांव की सुध लेने वाला कोई नहीं होता. कई बार स्थानीय अधिकारियों से गुहार लगाने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई.

बांका
ग्रामीण

मुखिया ने ग्रामीणों पर फोड़ा ठीकरा
सरकार की सारी घोषणा और योजना इस गांव के लिए बेकार है. मुखिया की ओर से भी उदासीन रवैया देखने को मिलता है. वे सारा ठीकरा गांव वालों पर फोड़ते नजर आते हैं. उनका कहना है कि मेरी सारी कोशिशें बेकार गयी. कई बार जाकर स्थानीय लोगों से मुलाकात कर उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन किसी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.

बांका: जिले के चांदन प्रखंड के आदिवासी बहुल आमगाछी गांव में सरकारी उदासीनता अपने चरम पर है. हालात ऐसे है कि यहां आज तक कोई बच्चा स्कूल नहीं गया. इलाके में ना ही स्कूल है, ना सड़क, ना बिजली और ना ही पीने के पानी की व्यवस्था की गई है.

सूअर और बकरी पालन रोजगार का साधन
आमगाछी गांव में करीब 50 आदिवासी परिवार रहते हैं. सभी घरों में सूअर और बकरी पालन ही एकमात्र रोजगार का साधन है. कुछ परिवार जंगल से दतवन और पत्तल बना कर उसे शहरों में बेचकर अपना और परिवार का पेट पालते हैं. ग्रामीणों की मानें तो यहां स्कूल, आंगनवाड़ी, चिकित्सा, पानी की कोई सुविधा नहीं है. एक स्कूल इस गांव से 2 किलोमीटर दूर बाबूकुरा गांव में है,जहां तक जाने का पूरा रास्ता जंगली है. आंगनवाड़ी केंद्र 4 किलोमीटर पर है. इस गांव का कोई भी बच्चा कभी स्कूल नहीं गया.

पेश है रिपोर्ट

किसी घर में शौचालय नहीं
इस गांव की हालत यह है कि यहां किसी घर में शौचालय नहीं है. गंदगी के अंबार के बीच सारा परिवार दिन-रात सूअर के घरों के पास ही रहता है. स्थानीय लोगों के अनुसार चुनाव के वक्त यहां सभी आते हैं लेकिन चुनाव के बाद गांव की सुध लेने वाला कोई नहीं होता. कई बार स्थानीय अधिकारियों से गुहार लगाने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई.

बांका
ग्रामीण

मुखिया ने ग्रामीणों पर फोड़ा ठीकरा
सरकार की सारी घोषणा और योजना इस गांव के लिए बेकार है. मुखिया की ओर से भी उदासीन रवैया देखने को मिलता है. वे सारा ठीकरा गांव वालों पर फोड़ते नजर आते हैं. उनका कहना है कि मेरी सारी कोशिशें बेकार गयी. कई बार जाकर स्थानीय लोगों से मुलाकात कर उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन किसी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.

Intro:बांका जिले के चांदन प्रखंड के आदिवासी बहुल आम गाछी गांव की उपेक्षा का आलम यह है कि आज तक कोई बच्चा स्कूल नही जाता और न ही कोई पांचवा पास है।
Body:बिहार सरकार चाहे अपने स्कूल, शिक्षा, और शौचालय की जितनी भी तारीफ कर ले, लेकिन बांका जिले में आज भी एक ऐसा गांव है जहां एक भी बच्चा स्कूल नहीं जाता हैं। इतना ही नहीं आजादी के बाद से आज तक उस गांव में कोई भी व्यक्ति पाँचवा तक की पढ़ाई भी पूरी नहीं किया है। इससे उस गांव के विकास की स्थिति का अंदाजा आप स्वंय भी लगा सकते हैं। गांव में बच्चे नहीं है, ऐसी बात नहीं, जो भी हैं दिनभर सूअर औऱ बकरी चराकर किसी तरह अपना और समय पूरा कर लेता है। यह गांव बांका जिले के सीमावर्ती चांदन प्रखंड के चांदन पंचायत भीषण जंगलो के बीच में अवस्थित है। इस गांव का नाम आमगाछी है गांव में सिर्फ आदिवासी परिवार के लोग निवास करते हैं। यहां परिवारों की संख्या करीब 50 के लगभग है। लेकिन सभी घरों में सूअर औऱ बकरी का पालन ही एकमात्र साधन है । कुछ परिवार जंगल से दतवन और पत्तल बना कर उसे अन्य शहरों में बेच कर भी अपना और परिवार का पेट पालते हैं। ग्रामीणों की मानें तो यहां स्कूल, आंगनबाड़ी, चिकित्सा, पानी, की कोई सुविधा नहीं है। एक स्कूल इस गांव से 2 किलोमीटर दूर बाबूकुरा गांव में है। जहां तक जाने का पूरा रास्ता जंगली है, जबकि आंगनबाड़ी केंद्र 4 किलोमीटर पर अवस्थित है। इस गांव का कोई भी बच्चा कभी स्कूल नहीं जाता। इतना ही नहीं आज इस गांव में पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई भी किसी छात्र ने नहीं किया है। सरकार पढ़ने वाले छात्रों को भोजन, कपड़ा, छात्रवृत्ति की बात करती है। इस गांव की स्थिति यह है कि यहां किसी घर में शौचालय नही है। इतना ही नही बल्कि गंदगी के अंबार के बीच सूअर के घरों के पास सारा परिवार दिन-रात रहता है। स्थानीय लोगों के अनुसार चुनाव के वक्त यहां सभी आते हैं लेकिन चुनाव के बाद गांव की सुध लेने वाला कोई नहीं होता। जिससे आज तक गांव कुव्यवस्था के बीच चल रहा है। इस गांव में एक भी आदमी सरकारी नौकरी में नही है। ग्रामीण कहते है कि गांव के बच्चे को बार बार समझाने के बावजूद भी उसके बच्चे को स्कूल नही जाना चाहते है।Conclusion:सरकार की सारी घोषणा इस गांव के लिए बेकार हो रही है।मुखिया कहते है मेरा सारा प्रयास बेकार गया।जबकि अविभावक कहते है जंगल होकर स्कूल भेजना संभव नही है।
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