बांका: लॉकडाउन के कारण दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी इस उम्मीद से अपने राज्य वापस लौटे थे कि उनकी परेशानियां कुछ कम हो जाएंगी. राज्य सरकार उनकी मुसीबतों को समझते हुए उनकी सुविधाओं पर गौर करेगी. लेकिन, ये आस लिए बिहार लौटो प्रवासी मजदूरों के दर्द कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है.
कोरोना महामारी को लेकर उपजे हालात के बाद कमोवेश पूरे देश में यही स्थिति पनपी है. बांका जिले में लगभग 22 हजार प्रवासी देश के विभिन्न शहरों से पहुंचे हैं, यह सिलसिला लगातार जारी है. मजदूरों को मिल रही सरकारी मदद और प्रशासनिक सहूलियत की बात करें तो क्वॉरेंटाइन सेंटरों में प्रवासी मजदूरों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है. इसको लेकर लगातार आवाजें उठने लगी हैं. सरकारी व्यवस्था से परिजनों का भी विश्वास उठ चुका है. प्रशासनिक नाकामियों के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए जिला प्रशासन ने कार्रवाई शुरू कर दी है.
मजदूर बोले- नहीं मिल रही कोई सुविधा
संक्रमण के खतरे को रोकने के लिए जिले में बाहर से आने वाले प्रवासियों के लिए 125 से अधिक क्वॉरेंटाइन सेंटर संचालित हैं. जिनमें आपदा के तहत मिलने वाली सुविधाओं का घोर अभाव है. मूलभूत सुविधाओं की मांग को लेकर प्रवासी मजदूरों को आंदोलन करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है. इसके बाद भी स्थिति सुधारने के बजाय बिगड़ता ही जा रही है. मजदूरों की मानें तो क्वॉरेंटाइन सेंटर पहुंचने के बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है.
मूलभूत सुविधाओं से भी रखा जा रहा वंचित
हैदराबाद से बौंसी स्थित क्वॉरेंटाइन सेंटर पहुंचे गोपाल प्रसाद साह ने बताया कि वे रात को ही यहां पहुंचे हैं. सिर्फ मेडिकल चेकअप होने के बाद से बैठे हुए हैं. उन्हें ना तो नाश्ता मिल पाया है और ना ही खाना-पानी नसीब हुआ है. वहीं, मो. तबरेज ने बताया कि सेटरों पर मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. सोने के लिए बिस्तर नहीं है और ना ही गर्मी से बचने के लिए कोई व्यवस्था की गई है. जब बोला जाता है तो या तो घर चले जाने के लिए कहा जाता है या फिर अपने स्तर पर व्यवस्था करने को कहा जाता है.
सरकारी व्यवस्था से उठने लगा विश्वास
ढुलमुल रवैया की स्थिति में लोगों का सरकारी व्यवस्था से विश्वास उठना लाजमी है. हैदराबाद से लौटे बेटे के लिए जान जोखिम में डालकर पिता शब्बीर अंसारी घर से खाना लेकर लिए क्वारंटाइन पहुंचे. उन्होंने बताया कि खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है. मजबूरन खाना लाकर देना पड़ रहा है. प्रवासी के परिजन अब्दुल जलील ने बताया कि बेटा रात को 2 बजे ही आया है. अब तक न खाना और न ही पानी नसीब हो पाया है इसलिए बाजार से कुछ रुखा-सुखा खरीद कर खाने के लिए दिए हैं. उन्होंने रुआंसी आवाज में कहा कि सरकारी व्यवस्था के इंतजार में अपने बच्चे को कैसे भूखे छोड़ सकते हैं.
बदहाल स्थिति में क्वारेंटाइन सेंटर
यह तस्वीर सिर्फ बांका के बौंसी स्थित क्वॉरेंटाइन सेंटर की ही नहीं है. बल्कि बारहाट प्रखंट के पंजवारा की स्थिति भी ऐसी ही है. यहां भी प्रवासी मजदूरो के लिए भोजन और पानी की व्यवस्था नहीं है.
डीएम दे रहे रटा-रटाया जवाब
इधर, डीएम सुहर्ष भगत का कहना है प्रवासी मजदूरों को व्यवस्था दिलाने की हरसंभव कार्रवाई की जा रही है. जिले के कुछ क्वॉरेंटाइन सेंटर पर प्रवासियों की ओर से धांधली की जा रही है. ऐसे लोगों को चिन्हित भी किया गया है और किया भी जा रहा है. क्वॉरेंटाइन सेंटर पर हुड़दंग और बदमाशी बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी. उन्हें सरकार की ओर से मिलने वाली सुविधाओं से भी वंचित कर दिया जाएगा.