बांका: सब्जी की खेती करने वाले किसानों के लिए लॉक डाउन आफत बनकर आई है. गांव में व्यापारी नहीं पहुंचने और स्थानीय स्तर पर बिक्री नहीं हो पाने से खेतों में ही खीरा सड़ने लगा है. किसान पानी के भाव में खीरा बेचने को मजबूर है. 10 रुपए किलो बिकने वाला खीरा किसान महज 1 रुपए किलो बेच रहे हैं. आमदनी की बात कौन कह किसानों का इस बार मूलधन भी वापस आ पाना मुश्किल नजर आ रहा है.
खीरा की खेती को लगी लॉकडाउन की नजर
जिले का कल्याणपुर गांव सब्जी की खेती का हब माना जाता है. इस गांव में हर तरह की सब्जियां उगाई जाती है, लेकिन खीरे की खेती के लिए इस गांव की एक अलग पहचान है. गांव में शायद ही कोई ऐसा किसान हो, जो खीरा न उगाता हो. इस गांव से खीरा बिहार के अन्य जिलों तक जाता है. लेकिन, हाल के दिनों में खीरा की खेती पर लॉकडाउन की नजर लग गई है. हमेशा व्यापारियों से गुलजार रहने वाले कल्याणपुर गांव में आलम यह है कि खरीदार नहीं मिलने से खेतों में ही खीरा सड़ने लगा है. लॉकडाउन की तारीख बढ़ा दिए जाने से किसान मायूस हो गए हैं.
सब्जी की खेती आजीविका का मुख्य साधन
कल्याणपुर के किसान मनोज महतो बताते हैं कि इस गांव में ग्रामीणों की आजीविका का मुख्य साधन सब्जी की खेती ही है. लेकिन, लॉक डाउन की वजह से परेशानी झेलनी पड़ रही है. व्यापारी गांव नहीं पहुंच पा रहे हैं और ना ही स्थानीय स्तर पर खीरा की बिक्री हो पा रही है. पानी के भाव में खीरा बेचना पड़ रहा है. स्थानीय व्यापारी सिर्फ 100 रुपए क्विंटल खीरा मांगते हैं. किसान योगेंद्र कापरी बताते हैं कि इस बार मूलधन भी वापस मिल पाना मुश्किल है. महज 100 रुपये क्विंटल खीरा बेचना पड़ रहा है.
'किसान पूरी तरह से हो चुका है बर्बाद'
किसान ज्योतिष मंडल बताते हैं कि इस बार 15 हजार की लागत से खीरा की खेती की थी. पहले इससे 60 से 70 हजार का मुनाफा हो जाता था, लेकिन इस बार अब तक 5 हजार की भी बिक्री नहीं कर पाए हैं. ऐन वक्त पर ही लॉक डाउन की वजह से समस्या पैदा हो गई है. किसान इससे पूरी तरह बर्बाद हो चुका है. इस गांव का खीरा जमालपुर, मुंगेर, बेगूसराय, पटना सहित बिहार के अन्य हिस्सों में जाता था. रोजाना 20 से अधिक वाहनों में खीरा लोड कर व्यापारी निकलते थे. अब कोई व्यापारी गांव नहीं आ रहा है. अगर थोड़ा खीरा लेकर हाट में बेचने जाते हैं तो पुलिस परेशान करने लगती है. कुछ बिकता है तो कुछ फेंक कर ही आना पड़ता है.