ETV Bharat / state

बांका: आज भी सरकारी मदद को मोहताज हैं कुम्हारों की कला

कटोरिया प्रखंड अंतर्गत डोमकट्टा गांव कुम्हार समुदाय का सबसे बड़ा गांव है. यहां के लोग पुश्तैनी धंधे को आज ही जिंदा रखे हुए हैं. मिट्टी के बर्तन और दीपक बनाना ही इन कुम्हारों की रोजी-रोटी का जरिया है. जिसमें घर की महिलाओं के साथ-साथ बच्चे भी सहयोग करते हैं.

आज भी सरकारी मदद को मोहताज हैं कुम्हारों की कला
आज भी सरकारी मदद को मोहताज हैं कुम्हारों की कला
author img

By

Published : Nov 9, 2020, 12:22 PM IST

बांका(कटोरिया): बदलते परिवेश में भी कुम्हार के चाक से बने खास दीपक दीपावली में चार चांद लगाते हैं. अमीर हो या गरीब अमावस की रात में इससे सभी का घर रौशन होता है. लेकिन महंगाई के इस दौर में कुम्हार समुदाय आज उपेक्षा का दंश झेलने को विवश है. बाजार में चाइनीज झालरों के कब्जा के बाद से ही मिट्टी के दीपक की डिमांड काफी कम हो चुकी है. कड़ी धूप में मेहनत करने वाले कुम्हार का परिवार आज भी दोनों शाम घर का चूल्हा मुश्किल से ही जला पाता हैं.

पुश्तैनी धंधा जिंदा रखना हुआ मुश्किल
मिट्टी के दीपक को बाजार में ना तो वाजिब दाम मिल पा रहा है और न पर्याप्त खरीदार. कटोरिया प्रखंड अंतर्गत डोमकट्टा गांव कुम्हार समुदाय का सबसे बड़ा गांव है. यहां के लोग पुश्तैनी धंधे को आज ही जिंदा रखे हुए हैं. मिट्टी के बर्तन और दीपक बनाना ही इन कुम्हारों की रोजी-रोटी का जरिया है. जिसमें घर की महिलाओं के साथ-साथ बच्चे भी सहयोग करते हैं. लेकिन मिट्टी के दीपों से जितना पैसा मिलता है, उससे उनके घरों का गुजारा हो पाना संभव नहीं.

देखें पूरी रिपोर्ट

सरकार या प्रशासन नहीं ले रहा सुध
कटोरिया के डोमकट्टा गांव के कुम्हारों ने बताया कि आज तक किसी भी सरकार या जिला प्रशासन ने ना तो उनकी सुध ली, ना उनके हित में कोई योजना बनाई है. उन्होंने बताया कि शास्त्रों में भी मिट्टी के बर्तन और दीपक को सबसे शुद्ध माना गया है. दीपावली पर भी सरसों के तेल से मिट्टी का दीपक जलाने से पर्यावरण शुद्ध होता है, घर में लक्ष्मी का आगमन होता है.

बांका(कटोरिया): बदलते परिवेश में भी कुम्हार के चाक से बने खास दीपक दीपावली में चार चांद लगाते हैं. अमीर हो या गरीब अमावस की रात में इससे सभी का घर रौशन होता है. लेकिन महंगाई के इस दौर में कुम्हार समुदाय आज उपेक्षा का दंश झेलने को विवश है. बाजार में चाइनीज झालरों के कब्जा के बाद से ही मिट्टी के दीपक की डिमांड काफी कम हो चुकी है. कड़ी धूप में मेहनत करने वाले कुम्हार का परिवार आज भी दोनों शाम घर का चूल्हा मुश्किल से ही जला पाता हैं.

पुश्तैनी धंधा जिंदा रखना हुआ मुश्किल
मिट्टी के दीपक को बाजार में ना तो वाजिब दाम मिल पा रहा है और न पर्याप्त खरीदार. कटोरिया प्रखंड अंतर्गत डोमकट्टा गांव कुम्हार समुदाय का सबसे बड़ा गांव है. यहां के लोग पुश्तैनी धंधे को आज ही जिंदा रखे हुए हैं. मिट्टी के बर्तन और दीपक बनाना ही इन कुम्हारों की रोजी-रोटी का जरिया है. जिसमें घर की महिलाओं के साथ-साथ बच्चे भी सहयोग करते हैं. लेकिन मिट्टी के दीपों से जितना पैसा मिलता है, उससे उनके घरों का गुजारा हो पाना संभव नहीं.

देखें पूरी रिपोर्ट

सरकार या प्रशासन नहीं ले रहा सुध
कटोरिया के डोमकट्टा गांव के कुम्हारों ने बताया कि आज तक किसी भी सरकार या जिला प्रशासन ने ना तो उनकी सुध ली, ना उनके हित में कोई योजना बनाई है. उन्होंने बताया कि शास्त्रों में भी मिट्टी के बर्तन और दीपक को सबसे शुद्ध माना गया है. दीपावली पर भी सरसों के तेल से मिट्टी का दीपक जलाने से पर्यावरण शुद्ध होता है, घर में लक्ष्मी का आगमन होता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.