बांका: प्रवासी मजदूरों को घर वापसी कराने को लेकर सरकार जितना भी दवा कर ले वह फेल ही साबित हो रहा है. मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया जा रहा है. यही स्थिति बांका के सड़कों पर भी देखने को मिला. यहां अहमदाबाद से 40 युवाओं की टोली ट्रेन में से वापस दानापुर पहुंचे. यहां से उनको बस के माध्यम से बांका लाया गया. लेकिन उन्हें बीच में ही बांका से बाहरी क्षेत्र में ही उतार दिया गया.
पैदल जाने के मजबूर
बांका आने के क्रम में सभी लोगों को बांका के बाहरी क्षेत्र में ही उतार दिया गया. कोई मदद नहीं मिलने की वजह से युवा पैदल ही घर की ओर कूच कर गए. ऐसे में सवाल यह उठता है कि अहमदाबाद जैसे रेड जोन से आए इन युवाओं को जिला प्रशासन ने सड़क पर पैदल चलने के लिए कैसे छोड़ दिया. युवाओं की ना तो स्क्रीनिंग कराई गई और ना ही उन्हें संबंधित प्रखंड के क्वॉरेंटाइन सेंटर भेजने की व्यवस्था की गई.
अहमदाबाद के होटल में करते थे कार्य
अहमदाबाद से आ रहे प्रवासियों ने बताया कि वे सभी होटल में काम करते थे. लॉकडाउन की वजह से काम बंद हो गया और खाने पर आफत होने लगी. किसी तरह ट्रेन के माध्यम से किराया देकर दानापुर पहुंचे. दानापुर में भी सही से खाना नहीं मिला और बस से बांका लाने के क्रम में रास्ते में ही उतार दिया गया. जिला प्रशासन की ओर से कोई व्यवस्था नहीं देख पैदल ही चांदन अपने की ओर निकल पड़े हैं. प्रवासी मजदूरों ने बताया कि कमाने के लिए प्रदेश जाने के बजाय अब घर पर ही रहकर कुछ रोजगार करेंगे.
'जिला प्रशासन से नहीं मिला सहयोग'
प्रवासी मजदूरों ने बताया कि काम बंद हो जाने के बाद किसी तरह 6 सौ 85 रुपये किराया देकर ट्रेन से दानापुर पहुंचे. बस चालक ने बांका के बाहरी क्षेत्र में ही उतार दिया. अपने गृह जिला में आकर भी बेगाने जैसा व्यवहार देखने को मिला. इस बात का मलाल है कि जिला प्रशासन की ओर से कोई सहयोग नहीं मिला. खाना तो दूर की बात है, पानी भी मुहैया नहीं कराया गया. हालांकि इस बात का संतोष जरूर है कि कोरोना संक्रमण के दौरान भी तमाम मुश्किलात के बावजूद घर पहुंच गए हैं