अररिया: अररिया को जिला घोषित किए हुए करीब 28 साल बीत चुके हैं. लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि अनुमंडलीय पुस्तकालय को अभी तक जिला पुस्तकालय नहीं बनाया जा सका है. यहां की व्यवस्था भी लचर है. पुस्तकालय में साहित्य की किताबें तो हैं पर रख-रखाव ठीक नहीं है. कर्मचारियों को भी साल में एक बार वेतन मिलता है. जिस वजह से लाइब्रेरी को नियमित रूप से चलाने में परेशानी हो रही है.
पुस्तकालय की हो रही अनदेखी
बिहार सीमांचल का सबसे पिछड़ा जिला अररिया आजादी के बाद भी अपने आप को गुलाम समझता है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यहां नेता तो बहुत हुए पर सबने केवल अपनी राजनीति को चमकाने पर जोर दिया. जिला बने इसे एक अरसा बीत चुका है फिर भी यहां के पुस्तकालय की अनदेखी की जा रही है. इस पुस्तकालय में तीन भाषाओं में साहित्यिक किताबें मौजूद हैं, चार से पांच अखबार हर रोज आते हैं, पढ़ने वाले लोग और बच्चे सभी हैं.
दो कमरों में चल रही लाइब्रेरी
यहां के लाइब्रेरी असिस्टेंट उदय कुमार बताते हैं कि साल में एक बार पैसा 52 सौ रुपए मिलते हैं जो आज की महंगाई के हिसाब से बहुत ही कम हैं. इतने में घर चलाना मुश्किल है. जो बच्चे यहां पढ़ने आते हैं उनके लिए पूरी किताबें नहीं हैं. जब किसी किताब की जरूरत होती है उसे आर्डर देकर मंगवाया जाता है. शुद्ध पानी पीने की व्यवस्था एवं महिलाओं के लिए अलग से बैठने का व्यवस्था भी ठीक नहीं है. महज दो कमरों में लाइब्रेरी चलती है. देखरेख के लिए यहां गार्ड की व्यवस्था भी नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार से यही मांग है कि इसे ध्यान देकर सुव्यवस्थित किया जाए. साथ ही कर्मचारियों को भी समय पर वेतन दिया जाए.