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सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता को मिली बेल, वकीलों ने लिखा था ये पत्र - बिहार सरकार

अररिया में एक दुष्कर्म पीड़िता को जेल में बंद कर दिया गया था. वकीलों की हस्ताक्षेप के बाद मामला हाई लाइट हुआ. इसके बाद शुक्रवार को पीड़िता को जमानत पर रिहा कर दिया गया.

बिहार की खबर
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Published : Jul 17, 2020, 10:18 PM IST

पटना: बिहार के अररिया में एक दुष्कर्म पीड़िता को ही जेल भेज दिया गया था. इस मामले को लेकर 376 वकीलों ने हस्ताक्षर कर पटना हाईकोर्ट से दखल देने की मांग की थी. मामले में पीड़िता को अररिया सीजेएम ने जमानत पर रिहा कर दिया है.

दरअसल, दुष्कर्म पीड़िता और उनके दो सहयोगियों पर कोर्ट की अवमानना का आरोप लगाया गया था, जिसके बाद इन तीन लोगों को समस्तीपुर के दलसिंहसराय जेल भेज दिया गया. शुक्रवार को दुष्कर्म पीड़िता को जमानत पर रिहा कर दिया गया है.

376 वकीलों ने की कार्यवाही की मांग
इस मामले में इंदिरा जयसिंह, प्रशांत भूषण समेत 376 से अधिक नामी वकीलों ने पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और बाकी जजों को खत लिखकर मामले में दखल देने की मांग की. पत्र में लिखा गया है कि न्यायालय की अवमानना मामले में दुष्कर्म पीड़िता को जिन परिस्थितियों में न्यायिक हिरासत में भेजा गया है, वो बेहद कठोर है. पत्र में सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता प्रशांत भूषण, वृंदा ग्रोवर, रेबेका जौन सहित 376 वकीलों ने हस्ताक्षर किया.

'दुर्व्यवहार को संवेदना के साथ देखने की जरूरत'
पत्र में कहा गया है कि इस घटना को संवेदनशील होकर देखना चाहिए. पीड़िता मानसिक रूप से बहुत तनाव में थी. बयान दर्ज होने वाले दिन सुबह से पीड़िता ने कुछ खाया-पीया नहीं था. कुछ दिनों से ठीक से उसे नींद भी नहीं आ रही थी और उसे बार-बार उस घटना को पुलिस और अन्य लोगों को बताना पड़ रहा था इसलिए उसके कथित दुर्व्यवहार को संवेदना के साथ देखने की जरूरत है.

'पीड़िता का नहीं हुआ कोरोना जांच'
पत्र में कहा गया कि, नाजुक स्थिति को समझने की बजाय पीड़िता और उसके दो साथियों को जेल भेज दिया गया. यह भी उल्लेखनीय है कि दुष्कर्म पीड़िता का कोरोना जांच नहीं हुआ. 11 जुलाई की सुबह तक किसी स्थानीय अखबार में एफआईआर दर्ज होने का जिक्र नहीं मिलता है. लेकिन दोपहर 12.30 बजे दो लोगों से खाली फार्म पर हस्ताक्षर ले लिया जाता है. एफआईआर में कोर्ट की अवमानना की धारा भी लगाई जाती है जो मान्य नहीं है. धारा 353, 228, 188 लगा कर पीड़िता और उसकी मदद कर रहे दो सहयोगियों को 240 किलोमीटर दूर जेल भेज दिया जाता है. हम मानते हैं कि इन्हें जेल भेजना ज्यादती है.

क्या है पूरा मामला
बिहार के अररिया जिले के महिला थाने में दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि बीते 6 जुलाई को पीड़ित युवती एक परिचित युवक के साथ मोटरसाइकिल चलाना सीखने गई थी. घर लौटने के दौरान चार अज्ञात लोगों ने उसके साथ कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया था. पीड़िता ने भय के कारण एक एनजीओ में अपनी एक परिचित फोन किया. उसके बाद संगठन की अन्य सहयोगियों की मदद से अररिया के महिला थाने में मामले को लेकर 7 जुलाई को प्राथमिकी दर्ज कराई थी.

चार घंटे तक किया गया बयान दर्ज
बताया जाता है कि इसके बाद सात और आठ जुलाई को पीड़िता का मेडिकल जांच कराया गया. 10 जुलाई को बयान दर्ज कराने के लिए पीड़िता को ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में ले जाया गया. यहां करीब चार घंटे तक पीड़िता का बयान दर्ज किया गया. इस दौरान पीड़िता उत्तेजित हो गई. हालांकि, बाद में पीड़िता ने बयान पर हस्ताक्षर किया. रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता की सहयोगियों ने बयान को पढ़कर सुनाए जाने की मांग की, जिस पर काफी गर्मा-गर्मी होने लगी. इसके बाद पीड़िता और उसके दो सहयोगियों को हिरासत में लिया गया और 11 जुलाई को जेल भेज दिया गया.

पटना: बिहार के अररिया में एक दुष्कर्म पीड़िता को ही जेल भेज दिया गया था. इस मामले को लेकर 376 वकीलों ने हस्ताक्षर कर पटना हाईकोर्ट से दखल देने की मांग की थी. मामले में पीड़िता को अररिया सीजेएम ने जमानत पर रिहा कर दिया है.

दरअसल, दुष्कर्म पीड़िता और उनके दो सहयोगियों पर कोर्ट की अवमानना का आरोप लगाया गया था, जिसके बाद इन तीन लोगों को समस्तीपुर के दलसिंहसराय जेल भेज दिया गया. शुक्रवार को दुष्कर्म पीड़िता को जमानत पर रिहा कर दिया गया है.

376 वकीलों ने की कार्यवाही की मांग
इस मामले में इंदिरा जयसिंह, प्रशांत भूषण समेत 376 से अधिक नामी वकीलों ने पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और बाकी जजों को खत लिखकर मामले में दखल देने की मांग की. पत्र में लिखा गया है कि न्यायालय की अवमानना मामले में दुष्कर्म पीड़िता को जिन परिस्थितियों में न्यायिक हिरासत में भेजा गया है, वो बेहद कठोर है. पत्र में सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता प्रशांत भूषण, वृंदा ग्रोवर, रेबेका जौन सहित 376 वकीलों ने हस्ताक्षर किया.

'दुर्व्यवहार को संवेदना के साथ देखने की जरूरत'
पत्र में कहा गया है कि इस घटना को संवेदनशील होकर देखना चाहिए. पीड़िता मानसिक रूप से बहुत तनाव में थी. बयान दर्ज होने वाले दिन सुबह से पीड़िता ने कुछ खाया-पीया नहीं था. कुछ दिनों से ठीक से उसे नींद भी नहीं आ रही थी और उसे बार-बार उस घटना को पुलिस और अन्य लोगों को बताना पड़ रहा था इसलिए उसके कथित दुर्व्यवहार को संवेदना के साथ देखने की जरूरत है.

'पीड़िता का नहीं हुआ कोरोना जांच'
पत्र में कहा गया कि, नाजुक स्थिति को समझने की बजाय पीड़िता और उसके दो साथियों को जेल भेज दिया गया. यह भी उल्लेखनीय है कि दुष्कर्म पीड़िता का कोरोना जांच नहीं हुआ. 11 जुलाई की सुबह तक किसी स्थानीय अखबार में एफआईआर दर्ज होने का जिक्र नहीं मिलता है. लेकिन दोपहर 12.30 बजे दो लोगों से खाली फार्म पर हस्ताक्षर ले लिया जाता है. एफआईआर में कोर्ट की अवमानना की धारा भी लगाई जाती है जो मान्य नहीं है. धारा 353, 228, 188 लगा कर पीड़िता और उसकी मदद कर रहे दो सहयोगियों को 240 किलोमीटर दूर जेल भेज दिया जाता है. हम मानते हैं कि इन्हें जेल भेजना ज्यादती है.

क्या है पूरा मामला
बिहार के अररिया जिले के महिला थाने में दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि बीते 6 जुलाई को पीड़ित युवती एक परिचित युवक के साथ मोटरसाइकिल चलाना सीखने गई थी. घर लौटने के दौरान चार अज्ञात लोगों ने उसके साथ कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया था. पीड़िता ने भय के कारण एक एनजीओ में अपनी एक परिचित फोन किया. उसके बाद संगठन की अन्य सहयोगियों की मदद से अररिया के महिला थाने में मामले को लेकर 7 जुलाई को प्राथमिकी दर्ज कराई थी.

चार घंटे तक किया गया बयान दर्ज
बताया जाता है कि इसके बाद सात और आठ जुलाई को पीड़िता का मेडिकल जांच कराया गया. 10 जुलाई को बयान दर्ज कराने के लिए पीड़िता को ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में ले जाया गया. यहां करीब चार घंटे तक पीड़िता का बयान दर्ज किया गया. इस दौरान पीड़िता उत्तेजित हो गई. हालांकि, बाद में पीड़िता ने बयान पर हस्ताक्षर किया. रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता की सहयोगियों ने बयान को पढ़कर सुनाए जाने की मांग की, जिस पर काफी गर्मा-गर्मी होने लगी. इसके बाद पीड़िता और उसके दो सहयोगियों को हिरासत में लिया गया और 11 जुलाई को जेल भेज दिया गया.

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