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अररिया: दीपावली को लेकर लोगों में दिखा उत्साह, रंग-बिरंगे आकाशदीप से बाजार की बढ़ी रौनक

जिले में दीपावली को लेकर लोगों के अंदर काफी उत्साह देखने को मिल रहा है. वहीं दीपावली में दीप जलाये जाने की मान्यताओं के साथ-साथ आकाश दीप जलाए जाने की भी पुरानी परंपरा रही है.

akashdeep is being sold in market on festival of diwaliakashdeep is being sold in market on festival of diwali
आकाशदीप बेचता दुकानदार
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Published : Nov 14, 2020, 1:02 PM IST

अररिया: जिले के मिथिलांचल में दीपावली का अपना एक अलग महत्व है. घर में दीप जलाये जाने की मान्यताओं के साथ-साथ आकाश दीप जलाए जाने की भी पुरानी परंपरा रही है. कहते हैं कि दिवाली के मौके पर दीपों से जिस तरह धरती जगमग हो उठती है, उसी तरह देवी-देवताओं की दुनिया को आलोकित करने का यह एक प्रयास है.


जानिए आकाशदीप को लेकर क्या है मान्यता
आकाशदीप को लेकर ऐसी भी मान्यता रही है कि लोग किसी मन्नत को लेकर देवताओं को कबूलते हैं. इसके साथ ही इसकी अवधि पूरी होने पर इसे जलाये जाने का संकल्प लिया जाता है. इसके उपरान्त इसकी विधिवत पूर्णाहुति की जाती है. इसे तरह-तरह के आकार में सजाकर ऐसा रूप दिया जाता है, जिसपर आसानी से दीप टिक जाए और बाहर रंगीन और सुंदर प्रकाश निकले. इस दीप को बांस के सहारे अधिक उंचाई तक पहुंचाया जाता है.


प्रचलन में आ रही कमी
इस बदलते समय में ऊंची इमारतों के कारण इसके प्रचलन में कमी आती जा रही है. इस बदलते परिवेश में इसके जगह चीन निर्मित कैंडिल लेने का प्रचलन शुरू कर दिया गया है. इससे जुड़े कारीगर उमेश मालाकार का कहना है की अब कुछ ही लोग इस काम से जुड़े हैं. यही वजह है की इन कारीगरों को दीपावली से पहले कंधे पर लेकर गली-गली घूमना पड़ता है. ग्रामीण भी मानते है कि ये उनकी पुरानी परंपरा है और संस्कृति से जुड़ा है.

अररिया: जिले के मिथिलांचल में दीपावली का अपना एक अलग महत्व है. घर में दीप जलाये जाने की मान्यताओं के साथ-साथ आकाश दीप जलाए जाने की भी पुरानी परंपरा रही है. कहते हैं कि दिवाली के मौके पर दीपों से जिस तरह धरती जगमग हो उठती है, उसी तरह देवी-देवताओं की दुनिया को आलोकित करने का यह एक प्रयास है.


जानिए आकाशदीप को लेकर क्या है मान्यता
आकाशदीप को लेकर ऐसी भी मान्यता रही है कि लोग किसी मन्नत को लेकर देवताओं को कबूलते हैं. इसके साथ ही इसकी अवधि पूरी होने पर इसे जलाये जाने का संकल्प लिया जाता है. इसके उपरान्त इसकी विधिवत पूर्णाहुति की जाती है. इसे तरह-तरह के आकार में सजाकर ऐसा रूप दिया जाता है, जिसपर आसानी से दीप टिक जाए और बाहर रंगीन और सुंदर प्रकाश निकले. इस दीप को बांस के सहारे अधिक उंचाई तक पहुंचाया जाता है.


प्रचलन में आ रही कमी
इस बदलते समय में ऊंची इमारतों के कारण इसके प्रचलन में कमी आती जा रही है. इस बदलते परिवेश में इसके जगह चीन निर्मित कैंडिल लेने का प्रचलन शुरू कर दिया गया है. इससे जुड़े कारीगर उमेश मालाकार का कहना है की अब कुछ ही लोग इस काम से जुड़े हैं. यही वजह है की इन कारीगरों को दीपावली से पहले कंधे पर लेकर गली-गली घूमना पड़ता है. ग्रामीण भी मानते है कि ये उनकी पुरानी परंपरा है और संस्कृति से जुड़ा है.

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