पटना: पाकिस्तान के साथ दो बार युद्ध करनेवाले शौर्य चक्र विजेता शुकदेव प्रसाद सहनी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. मुजफ्फरपुर के एक निजी अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली. उनके निधन पर मुख्यमंत्री समेत कई राजनीतिक और सामाजिक लोगों ने शोक जताया. मुजफ्फरपुर स्थित ब्रह्मपुरा स्थित नूनफर के उनके आवास पर शोक की लहर है.
निधन पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जताया शोक
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शौर्य चक्र विजेता शुकदेव प्रसाद सहनी के निधन पर शोक व्यक्त किया है. उन्होंने कहा कि शुकदेव प्रसाद सहनी ने इंडियन नेवी में अदम्य साहस और दूरदर्शिता का परिचय दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिवंगत आत्मा की चिरशांति तथा उनके परिजनों को दुख की इस घड़ी में धैर्य रखने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है.
1965 और 1971 के युद्ध में हुए थे शामिल
शुकदेव सहनी साल 1957 में इंडियन नेवी में भर्ती हुए और 1973 में रिटायर हुए. पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 के युद्ध में शामिल हो चुके सहनी को 26 जनवरी 1970 को ही तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने रक्षा अलंकरण समारोह में शौर्य चक्र से नवाजा था. उन्हें बंगाल की खाड़ी में आईएनएस कुठार में 250 जवानों की जान बचाने के लिए ये सम्मान दिया गया था.
बतौर पेटी अफसर इंजीनियरिंग मैकेनिक तैनात थे सहनी
17 जून 1969 को बंगाल की खाड़ी में आईएनएस कुठार जहाज का पूर्वाभ्यास जारी था. उस वक्त सभी विंग के नौ सेना पदाधिकारी मौजूद थे. इस जहाज में पेटी अफसर इंजीनियरिंग मैकेनिक शुकदेव सहनी भी शामिल थे. 27 जून को शुकदेव बॉयलर रूम में निगरानी की ड्यूटी पर तैनात थे. आईएनएस कुठार मुंबई से दूर बंगाल की खाड़ी में दोनों बॉयलरों का समुद्री परीक्षण कर रहा था. इसी दौरान स्टार बोर्ड बॉयलर से स्टीम लीक होने के कारण उसे बंद करना पड़ा. दोपहर 2 बजकर 50 मिनट के आस-पास तकनीकी खराबी के कारण बॉयलर का पाइप फट गया और आग लग गयी.
250 जवानों की जान बचाने पर मिला शौर्य चक्र
आग लगने से फौरन ही बॉयलर रूम धुएं से भर गया. शुकदेव सहनी आग पर काबू पाने के लिए तेल के रिसाव को हाथ से ही रोकन लगे. तेल का तापमान 172.0 फॉरेनहाइट के लगभग था और इतने गर्म तेल के कारण हाथ जल जाने का भी खतरा था. लेकिन, उन्होंने इसकी परवाह नहीं की. इससे सहनी झुलस भी गये. अपनी बहादुरी और धैर्य से उन्होंने करीब 250 सैनिकों की जान बचा ली. हालांकि, इस हादसे में एसके पाटिल सहित उनके दो सहयोगियों की मौत हो गयी थी. हादसे के बाद मुंबई के नौ सेना हॉस्पिटल में 16 दिनों तक शुकदेव सहनी का इलाज चला था.