पटना: करीब 18 साल पहले बिहार की पृष्ठभूमि पर बनी मशहूर फिल्म गंगाजल की चर्चा एक बार फिर हो रही है. इस फिल्म के एक किरदार ने एक बार फिर बिहार की सियासत में पुराने दिनों की यादों को ताजा कर दिया है. साधु यादव (Sadhu Yadav) एक बार फिर चर्चा में हैं, इस बार अपने भांजे से नाराज साधु यादव बात-बात में पुराने दिनों की बात कर रहे हैं और यह भी दावा कर रहे हैं कि उन्हें तो बदनाम किया गया था और इसमें पूरा हाथ लालू परिवार का था. लालू परिवार से साधु यादव की नाराजगी तेजस्वी यादव की इंटर कास्ट मैरिज (Tejashwi Yadav Inter cast marriage) को लेकर है.
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उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी प्रकट की और तेजस्वी को धमकी भी दे दी, जिसके बाद तेज प्रताप यादव अपने छोटे भाई के सपोर्ट में खुलकर सामने आ गए. उन्होंने अपने मामा साधु यादव (Sadhu Yadav angry with Lalu family) को चैलेंज तक दे डाला. दोनों ने एक दूसरे को देख लेने की धमकी तक दे दी. इस पूरे वार-पलटवार और कहासुनी ने बिहार के लोगों को पुराने दिनों की याद दिला दी. लालू-राबड़ी के राज को जंगलराज बताकर बिहार में नीतीश कुमार की सरकार पिछले करीब 16 साल से सत्ता में है.
बिहार में फिल्म गंगाजल की चर्चा एक बार फिर हो रही है, जिसे बिहार के मशहूर फिल्मकार प्रकाश झा ने बनाया था और इसे लेकर बिहार के सिनेमाघरों में तब जमकर तोड़फोड़ भी हुई थी. इस फिल्म में एक किरदार जिसका नाम साधु यादव था. अपने दोनों भांजे और लालू पर हमला बोलते हुए साधु यादव ने मीडिया से गंगाजल की भी चर्चा की. उन्होंने आरोप लगाया कि गंगाजल में साधु यादव के किरदार को लेकर उनके समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन किया था और इस पूरे मामले में षड्यंत्र का आरोप साधु यादव ने तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव पर लगाया है.
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फिल्म गंगाजल को लेकर साधु यादव ने कहा कि 'जब गंगाजल रिलीज हुई थी, तब मैं सिंगापुर में था. मेरे समर्थकों ने पटना और बिहार के कई अन्य शहरों में उस फिल्म का विरोध किया था. फिर लालू प्रसाद यादव ने मुझे सिनेमाघरों से प्रदर्शनकारियों को हटाने और फिल्म की रिलीज की अनुमति देने के लिए बुलाया था.
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रिश्ता निभाना है तो कृष्ण बनो
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''लालू प्रसाद को कौन जानता..अगर मेरा परिवार उनके साथ खड़ा नहीं होता? लालू ने मेरी बहन के साथ शादी की. शादी के बाद ही पटना यूनिवर्सिटी में प्रेसिडेंट बने, राजनीति में कदम रखा. इंदिरा गांधी के आपातकाल लगाए जाने के बाद तीन साल लालू यादव मेरे घर रहे और यहीं से गिरफ्तार हुए. मेरे घर में रहते हुए, समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने उन्हें जनता पार्टी का टिकट दिया और वह गोपालगंज से सांसद बन गए. मैंने लालू को मुख्यमंत्री बनाया है.''- साधु यादव, पूर्व सांसद
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बिहार की सियासत को नजदीक से देखने वाले विनोद कुमार अनुपम से ईटीवी भारत ने बात की जो खुद एक फिल्म समीक्षक भी हैं. उन्होंने ना सिर्फ बिहार की सियासत को पिछले चार दशक से भी ज्यादा समय तक नजदीक से देखा है, बल्कि बिहार से जुड़ी फिल्म की बेबाक समीक्षा भी वो करते रहे हैं. विनोद कुमार अनुपम ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि फिल्म गंगाजल में भागलपुर के आंखफोड़वा कांड को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया गया है.
''गंगाजल फिल्म में जिस किरदार साधु यादव की चर्चा है, वह कहीं ना कहीं बिहार के उस साधु यादव से जरूर मेल खाता है, क्योंकि जब यह फिल्म बन रही थी तब साधु यादव के समर्थकों ने पटना के सिनेमाघरों में जमकर तोड़फोड़ की थी और जबरदस्त हंगामा हुआ था. कहीं ना कहीं साधु यादव को अपने किरदार से मिलता जुलता किरदार यह नजर आया होगा, तभी उन्होंने इस तरह से विरोध जताया था और इस बात से इंकार नहीं करना चाहिए कि अगर लालू यादव चाहते तो उसी वक्त उन पर कार्रवाई कर सकते थे''- विनोद कुमार अनुपम, फिल्म और राजनीतिक विश्लेषक
विनोद कुमार अनुपम ने कहा कि जिस तरह से वर्तमान में साधु यादव नाराजगी जता रहे हैं, वह उन लोगों का पारिवारिक विवाद है. लेकिन, पिछले दिनों की चर्चा करके वह लोगों के जहन में उन दिनों की यादें ताजा कर रहे हैं. निश्चित तौर पर गंगाजल के साधु का डायरेक्ट कनेक्शन इस साधु यादव से नहीं है, लेकिन उस दौर में साधु यादव के नाम का जो आतंक था, उसका चित्रण जरूर इस फिल्म के जरिए किया गया और यही वजह है कि लोगों को गंगाजल का वो साधु यादव एक बार फिर याद आ रहा है.
'सईयां भये कोतवाल तो अब डर काहे का' जब जीजी राबड़ी और जीजा लालू यादव ही बिहार के मुख्यमंत्री हों, तो फिर किस बात का डर. जीजी और जीजाजी की छत्रछाया में साधु यादव की बिहार में तूती बोला करती थी. साले साहब का रुआब ऐसा था कि उनके नाम से ही पूरा बिहार कांपता था. लेकिन, साल 2009 में साधु यादव का उनकी बहन और बहनोई के साथ रिश्ता पूरी तरह से खटास में बदल गया था. गोपालगंज की सीट को लेकर साले और बहनोई में ऐसी ठनी कि दोनों की राहें अलग हो गईं. उस वक्त वो सीट लोक जनशक्ति पार्टी को लालू प्रसाद यादव ने दे दी थी, इससे नाराज होकर दोनों के बीच दूरियां इतनी बढ़ी कि वो दूरियां आजतक पट नहीं पाई.
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किसी जमाने में बहन और बहनोई के बल पर बिहार में दबंगई दिखाने वाले साधु यादव का एक वक्त ऐसा भी आया जब वो अपनी बहन के खिलाफ ही चुनावी अखाड़े में उतर गए. आरजेडी से मतभेद होने के बाद साधु यादव ने कांग्रेस और फिर बसपा का भी सहारा लिया, लेकिन कुछ काम नहीं आया. अपनों से नाराजगी का हश्र ये हुआ कि साधु यादव राजनीति में अब तक अपनी खोई जमीन को तलाश रहे हैं.
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