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बच्चों के अडॉप्शन के लिए जागरूक हो रहे लोग, ताकि जीवन में मिले सुकून... - etv news

किसी कपल का बच्चा नहीं होना और किसी बच्चे के पेरेंट्स का नहीं होना, दोनों ही मामलों में दर्द बराबर रहता है. बच्चों को अगर पेरेंट्स नहीं हो तो वो अपनी बात किस से कहें और वो कपल जिनके बच्चे नहीं हो वो अपना दर्द किससे साझा करें. शायद इन्हीं कारणों को लेकर लोग बच्चों को अडॉप्ट करते हैं, उन्हें पालते हैं और अपना वारिस बनाते हैं. राजधानी पटना में बच्चों को गोद लेने की ट्रेडेंसी (Tradition Of Adopting Children Increased In Patna) बढ़ी है. पढ़ें पूरी खबर...

बिहार में बच्चों के अडॉप्शन के लिए जागरूक हो रहे लोग
बिहार में बच्चों के अडॉप्शन के लिए जागरूक हो रहे लोग
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Published : Oct 5, 2022, 6:25 PM IST

पटना: बच्चों को एडॉप्ट (Adopt Child In Bihar) करने को लेकर समाज में कई तरह की रूढ़िवादी भ्रांतियां थी तो कई तरह की सोच भी थी. शायद इन्हीं सोच के कारण बच्चों के एडॉप्शन में लोग ज्यादा तत्पर नहीं होते थे लेकिन अब इसमें बदलाव हो रहा है. बदलाव भी ऐसा कि अगर किसी को बच्चा अडॉप्ट करना है तो उसे 2 से ढाई साल तक का इंतजार करना पड़ता था. यह बिल्कुल सच है. लेकिन अब बच्चों के एडॉप्ट करने को लेकर लोगों में जागरूकता आ रही है, अब वह खुले दिल से बच्चों को अपने जीवन में स्वागत कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- देश में बच्चे गोद लेने की प्रक्रिया 'बहुत कठिन', इसे सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता: SC

बच्चों को गोद लेने के प्रति लोग हुए जागरुक : दरअसल राजधानी पटना में राज्य सरकार द्वारा संचालित विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्थान अरुणोदय और सृजनी में बच्चों को गोद लेने को लेकर लोगों में रुचि बढ़ी है. तीन-चार साल पहले तक बच्चों को गोद लेने को लेकर इतनी रुचि नहीं देखी जाती थी लेकिन अब यह संख्या काफी हद तक बढ़ गई है. जिला बाल संरक्षण इकाई की माने तो केवल पटना में ही 2019 से लेकर अब तक 80 बच्चों को वैधानिक तौर पर एडॉप्शन में दिया जा चुका है. इनमें लड़के और लड़कियां दोनों है. खास बात यह है कि इन 80 बच्चों में 13 बच्चों का एडॉप्शन विदेश के लोगों ने किया है.

पटना में बच्चों को गोद लेने की ट्रेडेंसी बढ़ी : जिला बाल संरक्षण इकाई के अधिकारियों की माने तो लोगों में जागरूकता का एक सबसे बड़ा कारण सब कुछ ऑनलाइन और पारदर्शी होना है. बाल संरक्षण इकाई के द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, अगर किसी को दत्तक ग्रहण करना होता है तो उसे carings.nic.in पर जाकर पूरे डाक्यूमेंट्स के साथ रजिस्ट्रेशन करना होता है. इसमें बच्चों को ग्रहण करने वालों को अपने बारे में पूरी जानकारी देनी होती है. बच्चों के अडॉप्ट करने को लेकर दो तरह की प्रक्रिया होती है. पहली प्रक्रिया वैसे लोगों की होती है जो विदेशी होते हैं और भारतीय बच्चों को गोद लेना चाहते हैं. जबकि दूसरी प्रक्रिया वैसे लोगों के लिए होती है जो देश के किसी अन्य राज्य के हैं और अपनी चॉइस के आधार पर किसी भी राज्य से बच्चे को ऑडप्ट करने की तमन्ना रखते हैं.

विदेशी भी भारतीय बच्चों को लेना चाहते हैं गोद : कोई विदेशी दंपति भारतीय बच्चे को गोद लेना चाहते हैं तो उन्हें CARA यानी केंद्रीय दत्तक ग्रहण संस्थान प्राधिकरण पर आवेदन करना होता है. उसके बाद CARA उस देश में स्थित इंडियन एंबेसी से संपर्क करता है फिर आवेदन करने वाले दंपति के बारे में पूरी जानकारी एकत्र की जाती है. फिर इंडियन एंबेसी से संपर्क किया जाता है. उसके बाद फिर CARA (Central Adoption Resource Authority) को वह सूचना दी जाती है. इसके बाद जहां भी अडॉप्ट करने लायक बच्चे उपलब्ध होते हैं, वहां के बारे में जानकारी विदेशी दंपति को दे दी जाती है.

बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया सरल : इसी प्रकार अगर कोई देश के दूसरे राज्य के दत्तक ग्रही माता-पिता बच्चे को गोद लेना चाहते हैं तो उनको भी पहले CARA में आवेदन करना होता है. उसके बाद किसी तीन राज्य को ऑप्शन के रूप में देना होता है. साथ ही वहां बच्चों की कैटेगरी भी देनी होती है. इसके बाद जिस जगह से दंपती ने आवेदन किया है, वहां की एजेंसी दंपति के बारे में पूरी जानकारी एकत्र करती है फिर उसे caring.nic.in पर वेरीफाई रिपोर्ट के साथ अपलोड कर दिया जाता है.

अप्लाई करने वालों को यूनिक ID और पासवर्ड मिलता है : दंपत्ति जो अप्लाई करते हैं उनको एक यूनिक आईडी और पासवर्ड दे दिया जाता है. इसके बाद दंपति के द्वारा दिए गए 3 राज्यों के ऑप्शन में इंक्वायरी शुरू हो जाती है. जब वेटिंग लिस्ट में आवेदन करने वाले दंपति का सीरियल नंबर टॉप फाइव में आ जाता है तो उस दंपति के मोबाइल नंबर पर एक मैसेज आता है, जिसमें यह बताया जाता है कि एक तय समय सीमा के अंदर बच्चे को दिखाया जाएगा. जिसमें बच्चे की तस्वीर के साथ ही एमईआर यानी मेडिकल स्टडी रिपोर्ट और सीएसआर यानी चाइल्ड स्टडी रिपोर्ट दोनों शामिल होता है. अगर वह बच्चा दंपति को पसंद आ गया तो वह एक्सेप्ट कर लेता हैं फिर आगे की कार्रवाई की जाती है.

पहले से ज्यादा आ रही इंक्वायरी : जिला बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक उदय कुमार झा के अनुसार पहले जागरूकता की कमी और कई जटिलताओं के कारण बच्चों के एडप्शन की इंक्वायरी कम आती थी लेकिन अब यह पूरा तरीका पारदर्शी हो गया है तो बड़ी संख्या में लोगों की इंक्वायरी आ रही है. कई मामलों में तो लोगों को दो-दो साल तक इंतजार करना पड़ रहा है. अभी हाल ही में जिस बच्ची को एक कपल ने गोद लिया है. उनको गोद लेने के लिए 3 साल तक का इंतजार करना पड़ा था.

कई कारणों से लोग बच्चों को ले रहे गोद : जिला बाल संरक्षण इकाई के अधिकारियों की माने तो बच्चों के गोद लिए जाने को लेकर कई कारण सामने आ रहे हैं. कई बार कपल शादी तो कर लेते हैं लेकिन बच्चों की प्लानिंग नहीं करते हैं. कई कपल ऐसे भी होते हैं जिनकी शादी तो हो जाती है लेकिन किसी भी कारणवश बच्चे नहीं होते हैं. कई ऐसे भी कपल होते हैं, जिनकी ज्यादा उम्र में शादी हो जाती है और वह मां या पिता नहीं बन पाते हैं. इन सब मामलों में जो दंपति होते हैं, वह बच्चों को एडॉप्ट करने को ही सबसे बेहतर समझते हैं. इसके अलावा कई ऐसे भी कपल होते हैं जो बच्चों को एडॉप्ट कर के उसे नया जीवन देना चाहते हैं.

अनाथ बच्चे ज्यादा लोग लेते हैं गोद : जिला बाल संरक्षण इकाई के अधिकारियों के अनुसार इनमें ज्यादातर परित्यक्त होते हैं, जिन्हें हॉस्पिटल या फिर स्टेशन पर छोड़ दिया जाता है या जिन्हें किसी भी कारणवश लोग सड़क के किनारे या फिर झाड़ियों में छोड़ कर चले जाते हैं. जब स्थानीय पुलिस को इसकी जानकारी मिलती है तो 1098 पर संपर्क करने के बाद चाइल्ड वेलफेयर कमिटी को इसकी जानकारी दी जाती है. फिर एक्सपर्ट टीम उस जगह जाती है और बच्चे की हेल्थ की जांच की जाती है. उसके बाद बच्चे को चाइल्ड होम में भेज दिया जाता है. जब कोई बच्चा चाइल्ड वेलफेयर कमिटी को मिलता है और अगर उसकी उम्र 0 से 2 साल तक का है तो उसके पूरे डिटेल्स के साथ पेपर में विज्ञापन देना होता है. जिसमें किसी को भी दावा, आपत्ति के लिए 2 महीने का वक्त दिया जाता है. मिले हुए बच्चे की उम्र 2 साल से ज्यादा होती है तो ऐसे हालत में दावा, आपत्ति के लिए 120 दिन का वक्त दिया जाता है.

2019 से अब तक 80 बच्चों को मिला सहारा : जिला बाल संरक्षण इकाई द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 2009 में कुल 23 बच्चों को गोद लिया गया जिनमें 9 लड़के और 14 लड़कियां शामिल हैं. 23 में 16 बच्चों को अपने ही देश में दंपतियों ने गोद लिया जबकि 7 को विदेशी दंपतियों ने गोद लिया. वहीं 2020 में 22 बच्चों को गोद लिया गया. इनमें 5 बच्चे और 17 बच्चियां थी. इनमें 13 को देश के ही दंपतियों ने गोद लिया जबकि दो को विदेशी दंपतियों ने गोद लिया. इसी प्रकार 2020 में 24 बच्चों को गोद लिया गया. इनमें 14 लड़के और 10 लड़कियां शामिल थी. इनमें सात देसी दंपतियों ने गोद लिया जबकि दो विदेशी दंपतियों ने गोद लिया. 2022 में अब तक 11 बच्चों को गोद लिया जा चुका है. जिनमें 5 लड़के और 6 लड़कियां शामिल हैं. इनमें छह देसी दंपतियों ने गोद लिया है जबकि 2 विदेशी दंपतियों ने बच्चों को गोद लिया है.

'भारत सरकार के द्वारा इसके लिए 21 साल तय किया गया है. उसके पीछे यह कारण है कि शरीर 21 साल के बाद इस तरह से तैयार हो जाता है कि हमारी जो महिलाएं हैं, वह मां बन सके, गर्भ धारण कर सके या पुरुषों के शुक्राणु में इस तरह की मैच्योरिटी हो सके लेकिन आज के समाज में 21 साल बहुत जल्दी उम्र है. बच्चे पैदा करने से लेकर परिवार का डेवलपमेंट सब कुछ शादी पर डिपेंड करता है. शादी के लिए मेंटल मैच्योरिटी भी बहुत अहम है. आज के वक्त में जॉब की एज या अर्निंग का एज 25 से 30 साल के बीच में है. मेडिकल के तौर पर देरी से शादी या देरी से बच्चे पैदा होने पर कई सारी बीमारियां होने का खतरा रहता है. औरतों के लिए 35 साल तक एक एवरेज उम्र निर्धारित की गई है. 35 साल के बाद बच्चे होने पर उनमें बहुत सारे अनुवांशिक, जेनेटिक डिजीज होने के खतरे हो जाते हैं.' - डॉक्टर पंकज तिवारी, असिस्टेंट प्रोफेसर, पीएमसीएच

'आज की भागदौड़ के जीवन में लोगों के बीच सामाजिक रूप से एक हद तक प्रतिस्पर्धा देखी जा रही है. लोग एक-दूसरे से तुलना करते हैं. हर व्यक्ति अपनी उपलब्धियों को दूसरे से ज्यादा दिखाना चाहता हैं. सामाजिक रूप से अगर देखा जाए तो हर व्यक्ति अपना नया अचीवमेंट पाने की ललक रख रहा है. हमारे समाज में आर्थिक विषमता भी एक बड़ी खाई है. उसे लेकर भी इन लोगों के मन में यह होता है कि हम पहले सारी सुविधाओं को पूरा कर लें. उसके बाद शादी-विवाह करें. बच्चे को पैदा करने की जो जिम्मेदारी होती है, उसे लोग नहीं उठाना चाहते हैं. हस्बैंड और वाइफ दोनों की आपसी सहमति होती है कि बच्चे को अडॉप्ट कर लें. एडॉप्शन की प्रक्रिया काफी आसान हो गई है. इसमें मनचाहा बच्चा भी मिल जाता है. महिलाओं में भी कई तरह के कॉम्प्लिकेशन होते हैं, जिससे वह बचना चाहती हैं. मनोसामाजिक कारण एक यह भी है कि जिनके माता-पिता बचपन से अपने बच्चे की इस जिम्मेदारी को बढ़िया से नहीं निभाते हैं, वह सेल्फमेड होना चाहते हैं. ऐसे लोग आगे चलकर बच्चे को एडॉप्ट कर लें, ये साधारण प्रक्रिया मानते है.' - डॉ मनोज कुमार, समाजशास्त्री और मनोचिकित्सक

'पहले की तुलना में बच्चे को एडॉप्ट करने को लेकर लोगों में काफी जागरूकता आई है. अब पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन है और निष्पक्ष है. इसके कारण प्रोसेस काफी सरल हो गया है. पहले की तुलना में लोग अब ज्यादा जानकारी हासिल कर रहे हैं. हम लोग भी इन लोगों को पूरी जानकारी दे रहे हैं.' - उदय कुमार झा, सहायक निदेशक, जिला बाल संरक्षण इकाई

पटना: बच्चों को एडॉप्ट (Adopt Child In Bihar) करने को लेकर समाज में कई तरह की रूढ़िवादी भ्रांतियां थी तो कई तरह की सोच भी थी. शायद इन्हीं सोच के कारण बच्चों के एडॉप्शन में लोग ज्यादा तत्पर नहीं होते थे लेकिन अब इसमें बदलाव हो रहा है. बदलाव भी ऐसा कि अगर किसी को बच्चा अडॉप्ट करना है तो उसे 2 से ढाई साल तक का इंतजार करना पड़ता था. यह बिल्कुल सच है. लेकिन अब बच्चों के एडॉप्ट करने को लेकर लोगों में जागरूकता आ रही है, अब वह खुले दिल से बच्चों को अपने जीवन में स्वागत कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- देश में बच्चे गोद लेने की प्रक्रिया 'बहुत कठिन', इसे सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता: SC

बच्चों को गोद लेने के प्रति लोग हुए जागरुक : दरअसल राजधानी पटना में राज्य सरकार द्वारा संचालित विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्थान अरुणोदय और सृजनी में बच्चों को गोद लेने को लेकर लोगों में रुचि बढ़ी है. तीन-चार साल पहले तक बच्चों को गोद लेने को लेकर इतनी रुचि नहीं देखी जाती थी लेकिन अब यह संख्या काफी हद तक बढ़ गई है. जिला बाल संरक्षण इकाई की माने तो केवल पटना में ही 2019 से लेकर अब तक 80 बच्चों को वैधानिक तौर पर एडॉप्शन में दिया जा चुका है. इनमें लड़के और लड़कियां दोनों है. खास बात यह है कि इन 80 बच्चों में 13 बच्चों का एडॉप्शन विदेश के लोगों ने किया है.

पटना में बच्चों को गोद लेने की ट्रेडेंसी बढ़ी : जिला बाल संरक्षण इकाई के अधिकारियों की माने तो लोगों में जागरूकता का एक सबसे बड़ा कारण सब कुछ ऑनलाइन और पारदर्शी होना है. बाल संरक्षण इकाई के द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, अगर किसी को दत्तक ग्रहण करना होता है तो उसे carings.nic.in पर जाकर पूरे डाक्यूमेंट्स के साथ रजिस्ट्रेशन करना होता है. इसमें बच्चों को ग्रहण करने वालों को अपने बारे में पूरी जानकारी देनी होती है. बच्चों के अडॉप्ट करने को लेकर दो तरह की प्रक्रिया होती है. पहली प्रक्रिया वैसे लोगों की होती है जो विदेशी होते हैं और भारतीय बच्चों को गोद लेना चाहते हैं. जबकि दूसरी प्रक्रिया वैसे लोगों के लिए होती है जो देश के किसी अन्य राज्य के हैं और अपनी चॉइस के आधार पर किसी भी राज्य से बच्चे को ऑडप्ट करने की तमन्ना रखते हैं.

विदेशी भी भारतीय बच्चों को लेना चाहते हैं गोद : कोई विदेशी दंपति भारतीय बच्चे को गोद लेना चाहते हैं तो उन्हें CARA यानी केंद्रीय दत्तक ग्रहण संस्थान प्राधिकरण पर आवेदन करना होता है. उसके बाद CARA उस देश में स्थित इंडियन एंबेसी से संपर्क करता है फिर आवेदन करने वाले दंपति के बारे में पूरी जानकारी एकत्र की जाती है. फिर इंडियन एंबेसी से संपर्क किया जाता है. उसके बाद फिर CARA (Central Adoption Resource Authority) को वह सूचना दी जाती है. इसके बाद जहां भी अडॉप्ट करने लायक बच्चे उपलब्ध होते हैं, वहां के बारे में जानकारी विदेशी दंपति को दे दी जाती है.

बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया सरल : इसी प्रकार अगर कोई देश के दूसरे राज्य के दत्तक ग्रही माता-पिता बच्चे को गोद लेना चाहते हैं तो उनको भी पहले CARA में आवेदन करना होता है. उसके बाद किसी तीन राज्य को ऑप्शन के रूप में देना होता है. साथ ही वहां बच्चों की कैटेगरी भी देनी होती है. इसके बाद जिस जगह से दंपती ने आवेदन किया है, वहां की एजेंसी दंपति के बारे में पूरी जानकारी एकत्र करती है फिर उसे caring.nic.in पर वेरीफाई रिपोर्ट के साथ अपलोड कर दिया जाता है.

अप्लाई करने वालों को यूनिक ID और पासवर्ड मिलता है : दंपत्ति जो अप्लाई करते हैं उनको एक यूनिक आईडी और पासवर्ड दे दिया जाता है. इसके बाद दंपति के द्वारा दिए गए 3 राज्यों के ऑप्शन में इंक्वायरी शुरू हो जाती है. जब वेटिंग लिस्ट में आवेदन करने वाले दंपति का सीरियल नंबर टॉप फाइव में आ जाता है तो उस दंपति के मोबाइल नंबर पर एक मैसेज आता है, जिसमें यह बताया जाता है कि एक तय समय सीमा के अंदर बच्चे को दिखाया जाएगा. जिसमें बच्चे की तस्वीर के साथ ही एमईआर यानी मेडिकल स्टडी रिपोर्ट और सीएसआर यानी चाइल्ड स्टडी रिपोर्ट दोनों शामिल होता है. अगर वह बच्चा दंपति को पसंद आ गया तो वह एक्सेप्ट कर लेता हैं फिर आगे की कार्रवाई की जाती है.

पहले से ज्यादा आ रही इंक्वायरी : जिला बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक उदय कुमार झा के अनुसार पहले जागरूकता की कमी और कई जटिलताओं के कारण बच्चों के एडप्शन की इंक्वायरी कम आती थी लेकिन अब यह पूरा तरीका पारदर्शी हो गया है तो बड़ी संख्या में लोगों की इंक्वायरी आ रही है. कई मामलों में तो लोगों को दो-दो साल तक इंतजार करना पड़ रहा है. अभी हाल ही में जिस बच्ची को एक कपल ने गोद लिया है. उनको गोद लेने के लिए 3 साल तक का इंतजार करना पड़ा था.

कई कारणों से लोग बच्चों को ले रहे गोद : जिला बाल संरक्षण इकाई के अधिकारियों की माने तो बच्चों के गोद लिए जाने को लेकर कई कारण सामने आ रहे हैं. कई बार कपल शादी तो कर लेते हैं लेकिन बच्चों की प्लानिंग नहीं करते हैं. कई कपल ऐसे भी होते हैं जिनकी शादी तो हो जाती है लेकिन किसी भी कारणवश बच्चे नहीं होते हैं. कई ऐसे भी कपल होते हैं, जिनकी ज्यादा उम्र में शादी हो जाती है और वह मां या पिता नहीं बन पाते हैं. इन सब मामलों में जो दंपति होते हैं, वह बच्चों को एडॉप्ट करने को ही सबसे बेहतर समझते हैं. इसके अलावा कई ऐसे भी कपल होते हैं जो बच्चों को एडॉप्ट कर के उसे नया जीवन देना चाहते हैं.

अनाथ बच्चे ज्यादा लोग लेते हैं गोद : जिला बाल संरक्षण इकाई के अधिकारियों के अनुसार इनमें ज्यादातर परित्यक्त होते हैं, जिन्हें हॉस्पिटल या फिर स्टेशन पर छोड़ दिया जाता है या जिन्हें किसी भी कारणवश लोग सड़क के किनारे या फिर झाड़ियों में छोड़ कर चले जाते हैं. जब स्थानीय पुलिस को इसकी जानकारी मिलती है तो 1098 पर संपर्क करने के बाद चाइल्ड वेलफेयर कमिटी को इसकी जानकारी दी जाती है. फिर एक्सपर्ट टीम उस जगह जाती है और बच्चे की हेल्थ की जांच की जाती है. उसके बाद बच्चे को चाइल्ड होम में भेज दिया जाता है. जब कोई बच्चा चाइल्ड वेलफेयर कमिटी को मिलता है और अगर उसकी उम्र 0 से 2 साल तक का है तो उसके पूरे डिटेल्स के साथ पेपर में विज्ञापन देना होता है. जिसमें किसी को भी दावा, आपत्ति के लिए 2 महीने का वक्त दिया जाता है. मिले हुए बच्चे की उम्र 2 साल से ज्यादा होती है तो ऐसे हालत में दावा, आपत्ति के लिए 120 दिन का वक्त दिया जाता है.

2019 से अब तक 80 बच्चों को मिला सहारा : जिला बाल संरक्षण इकाई द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार 2009 में कुल 23 बच्चों को गोद लिया गया जिनमें 9 लड़के और 14 लड़कियां शामिल हैं. 23 में 16 बच्चों को अपने ही देश में दंपतियों ने गोद लिया जबकि 7 को विदेशी दंपतियों ने गोद लिया. वहीं 2020 में 22 बच्चों को गोद लिया गया. इनमें 5 बच्चे और 17 बच्चियां थी. इनमें 13 को देश के ही दंपतियों ने गोद लिया जबकि दो को विदेशी दंपतियों ने गोद लिया. इसी प्रकार 2020 में 24 बच्चों को गोद लिया गया. इनमें 14 लड़के और 10 लड़कियां शामिल थी. इनमें सात देसी दंपतियों ने गोद लिया जबकि दो विदेशी दंपतियों ने गोद लिया. 2022 में अब तक 11 बच्चों को गोद लिया जा चुका है. जिनमें 5 लड़के और 6 लड़कियां शामिल हैं. इनमें छह देसी दंपतियों ने गोद लिया है जबकि 2 विदेशी दंपतियों ने बच्चों को गोद लिया है.

'भारत सरकार के द्वारा इसके लिए 21 साल तय किया गया है. उसके पीछे यह कारण है कि शरीर 21 साल के बाद इस तरह से तैयार हो जाता है कि हमारी जो महिलाएं हैं, वह मां बन सके, गर्भ धारण कर सके या पुरुषों के शुक्राणु में इस तरह की मैच्योरिटी हो सके लेकिन आज के समाज में 21 साल बहुत जल्दी उम्र है. बच्चे पैदा करने से लेकर परिवार का डेवलपमेंट सब कुछ शादी पर डिपेंड करता है. शादी के लिए मेंटल मैच्योरिटी भी बहुत अहम है. आज के वक्त में जॉब की एज या अर्निंग का एज 25 से 30 साल के बीच में है. मेडिकल के तौर पर देरी से शादी या देरी से बच्चे पैदा होने पर कई सारी बीमारियां होने का खतरा रहता है. औरतों के लिए 35 साल तक एक एवरेज उम्र निर्धारित की गई है. 35 साल के बाद बच्चे होने पर उनमें बहुत सारे अनुवांशिक, जेनेटिक डिजीज होने के खतरे हो जाते हैं.' - डॉक्टर पंकज तिवारी, असिस्टेंट प्रोफेसर, पीएमसीएच

'आज की भागदौड़ के जीवन में लोगों के बीच सामाजिक रूप से एक हद तक प्रतिस्पर्धा देखी जा रही है. लोग एक-दूसरे से तुलना करते हैं. हर व्यक्ति अपनी उपलब्धियों को दूसरे से ज्यादा दिखाना चाहता हैं. सामाजिक रूप से अगर देखा जाए तो हर व्यक्ति अपना नया अचीवमेंट पाने की ललक रख रहा है. हमारे समाज में आर्थिक विषमता भी एक बड़ी खाई है. उसे लेकर भी इन लोगों के मन में यह होता है कि हम पहले सारी सुविधाओं को पूरा कर लें. उसके बाद शादी-विवाह करें. बच्चे को पैदा करने की जो जिम्मेदारी होती है, उसे लोग नहीं उठाना चाहते हैं. हस्बैंड और वाइफ दोनों की आपसी सहमति होती है कि बच्चे को अडॉप्ट कर लें. एडॉप्शन की प्रक्रिया काफी आसान हो गई है. इसमें मनचाहा बच्चा भी मिल जाता है. महिलाओं में भी कई तरह के कॉम्प्लिकेशन होते हैं, जिससे वह बचना चाहती हैं. मनोसामाजिक कारण एक यह भी है कि जिनके माता-पिता बचपन से अपने बच्चे की इस जिम्मेदारी को बढ़िया से नहीं निभाते हैं, वह सेल्फमेड होना चाहते हैं. ऐसे लोग आगे चलकर बच्चे को एडॉप्ट कर लें, ये साधारण प्रक्रिया मानते है.' - डॉ मनोज कुमार, समाजशास्त्री और मनोचिकित्सक

'पहले की तुलना में बच्चे को एडॉप्ट करने को लेकर लोगों में काफी जागरूकता आई है. अब पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन है और निष्पक्ष है. इसके कारण प्रोसेस काफी सरल हो गया है. पहले की तुलना में लोग अब ज्यादा जानकारी हासिल कर रहे हैं. हम लोग भी इन लोगों को पूरी जानकारी दे रहे हैं.' - उदय कुमार झा, सहायक निदेशक, जिला बाल संरक्षण इकाई

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