पटना: सड़कें सुनी और शहरें वीरान हैं, क्योंकि देश में लॉकडाउन है. कोरोना के संक्रमण ने ऐसे हालात उत्पन्न कर दिए हैं कि लगता है जिंदगी मानो थम गई है. जब लोग घरों में कैद हैं तो जाहिर है कि गाड़ियां भी नहीं चल रही. डेढ़ महीने से जारी लॉकडाउन के कारण गैरेज में रखी-रखी गाड़ियां खराब न हो इसका भी ख्याल रखना पड़ रहा है.
इनको देखिये बाल्टी भर पानी से स्कूटी को धो रहे हैं. और ये जनाब कार पर लगी धूल को पोछ रहे हैं. और ये भाई साबह बाइक को खुद से दुरुस्त करने में जुटे हैं. कहते हैं, मेंटेनेंस के अभाव में कई तरह की खराबी आने लगी है. लिहाजा ध्यान देना पड़ता है, लेकिन मुश्किल ये है कि बड़ी दिक्कत होने पर ठीक भी नहीं करा सकते. क्योंकि मिस्त्री मिल नहीं रहे हैं.
स्टैंड में खड़ी हैं बसें
ये तो हो गई दो पहिए और चार पहिए वाहनों की बात, अब जरा बड़ी गाड़ियों के संचालकों की परेशानी समझिए. पटना के गांधी मैदान के दक्षिणी छोर पर स्थित बांकीपुर सरकारी बस स्टैंड में लगी इन दर्जनों बसों को देखिए, जिनके चक्के डेढ़ महीने से थमे हुए हैं. यहां से कुल 117 बसें पटना के विभिन्न दिशाओं में जाती हैं, लेकिन करीब डेढ़ महीने से सभी बसें स्टैंड में खड़ी हैं.
गाड़ियों की मेंटेनेंस में दिक्कत
बस स्टैंड के कंट्रोल रूम के अधिकारी गंगानाथ झा कहते हैं कि बसों को हर 2 दिन के बाद मेंटेन किया जाता है. कैंपस के अंदर ही चालक बसों को चलाकर मेंटेनेंस को दुरुस्त रखने की कोशिश करते हैं. लॉकडाउन में मिस्त्री कहां से मिलता है तो वे बताते हैं कि बस स्टैंड के अंदर ही सर्विस सेंटर के कर्मचारी मौजूद हैं. उन्हीं के सहयोग से मेंटेनेंस पर ध्यान दिया जाता है.
मिस्त्री के लिए गुजारा भी मुश्किल
जो मिस्त्री गाड़ियों में आई छोटी-बड़ी खराबियों को दुरूस्त पैसे कमाते थे और उन पैसों से अपनी घर-गृहस्थी को चलाते थे, उनके लिए तो ये लॉकडाउन मुसीबतों का पहाड़ साबित हो रहा है. कहते हैं, पहले 500 से 700 रुपए रोजाना कमा लेते थे, लेकिन अब बेकार पड़ा हूं.
करोड़ों का कारोबार प्रभावित
वहीं, पटना के जिस एग्जीबिशन रोड और भट्टाचार्य रोड को गाड़ियों के पार्ट्स का हब कहा जाता है, वहां इन दिनों सन्नाटा पसरा है. कारोबार शून्य हो गया है. सामान्य दिनों में यहां एक दुकानदार प्रतिदिन करीब 10 से 15 हजार रुपए की बिक्री करते थे, जबकि बड़ी दुकानों में लाखों का कारोबार होता था. ऐसे में ये समझा जा सकता है कि डेढ़ महीने में इन्हें कितना घाटा उठाना पड़ा है.
खत्म हो लॉकडाउन ताकि जिंदगी पटरी पर आए
लॉकडाउन ने सबकुछ लॉक कर दिया है. इंसानों की जिंदगी के साथ-साथ वाहनों की रफ्तार भी थम गई है. निजी वाहन रखने वालों की परेशानी तो फिर भी बहुत कम है, असल परेशानी तो व्यवसायिक वाहन संचालकों के लिए है. वहीं, मुसीबत मिस्त्री और पार्ट्स दुकानदारों की बहुत अधिक है, क्योंकि कमाई बिल्कुल बंद हो गई है. अब तो यही चाहते हैं कि लॉकडाउन खत्म हो ताकि जिंदगी फिर से वाहनों की रफ्तार की तरह चल पड़े.