पटना: बिहार बीजेपी (Bihar BJP) इन दिनों पुनर्गठन के दौर से गुजर रही है. संगठन महामंत्री के रूप में भीखुभाई दलसानिया (Bhikhubhai Dalsaniya) ने कार्यभार संभाल रखा है. पार्टी में सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव और प्रेम कुमार को किनारे कर दिया है. नई कोर कमेटी को आकार देने की कवायद चल रही है, लेकिन इन सब के बीच ऐसा लगता है कि पार्टी अपनी पुरानी मान्यताओं से समझौता करना भी सीख गई है.
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दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के जमाने में बीजेपी (BJP) ने 'एक व्यक्ति एक पद' (One Person One Post के सिद्धांत को अपनाया था, लेकिन आज की तारीख में बिहार प्रदेश में कई ऐसे नेता हैं, जिनके पास एक से ज्यादा पद है. वहीं, कई ऐसे नेता भी हैं, जो लंबे समय से पद के इंतजार में हैं.
राष्ट्रीय महामंत्री भूपेंद्र यादव अभी केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री भी हैं. बिहार प्रभारी का जिम्मा भी भूपेंद्र यादव के पास ही है. वहीं, बेतिया से सांसद संजय जायसवाल (Sanjay Jaiswal) प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ लोकसभा में मुख्य सचेतक रह चुके हैं. इसके अलावे वे जल संसाधन संसदीय स्थाई समिति के अध्यक्ष भी हैं.
मुजफ्फरपुर से बीजेपी सांसद अजय निषाद बिहार प्रदेश के उपाध्यक्ष हैं, इसके अलावे अजय निषाद पिछड़ा वर्ग मोर्चा में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं. शाहनवाज हुसैन बिहार सरकार में उद्योग मंत्री हैं. इसके साथ-साथ वे बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं.
वहीं, नितिन नवीन बिहार सरकार में पथ निर्माण मंत्री हैं. छत्तीसगढ़ के प्रभारी का जिम्मा भी उनके पास है. इसके अलावा वे सिक्किम के प्रभारी रह चुके हैं. दीघा से बीजेपी विधायक संजीव चौरसिया प्रदेश महामंत्री हैं. वे उत्तर प्रदेश के सह प्रभारी भी हैं. निखिल आनंद को बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी गई है. जबकि राष्ट्रीय कमेटी में भी निखिल ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं. इसके अलावे बेबी चंकी और अजय यादव बिहार में प्रदेश मंत्री हैं. दोनों नेताओं को रेलवे बोर्ड की कमेटी में भी जगह दी गई है.
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बीजेपी के वरिष्ठ नेता नवल किशोर यादव (Naval Kishore Yadav) का कहना है कि पार्टी सिद्धांत को मानती है, लेकिन परिस्थितियों के हिसाब से भी फैसले लिए जाते हैं. उचित व्यक्ति के चयन में समय लगता है, इस वजह से एक व्यक्ति के पास ज्यादा पद रह जाता है.
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का मानना है कि अब बीजेपी की प्राथमिकता बदल गई है. अटल बिहारी वाजपेयी के समय में पार्टी अपने सिद्धांतों को सर्वोपरि समझती थी, लेकिन आज सत्ता सबसे ऊपर है. पार्टी वैसे लोगों को जिम्मेदारी दे दी है, जिसके सहारे सत्ता मिल सके.