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जातीय जनगणना के बहाने बिहार में वोट बैंक की सियासत, आखिर फायदा किसको ?

बिहार में जातीय जनगणना पर राजनीति तेज (Politics on Caste Census in Bihar) है. 1 जून को सर्नदलीय बैठक बुलाई गई है. उसके बाद फैसला होगा कि कैसे जातीय जनगणना कराई जाए. जो भी फैसला हो, लेकिन उसके पहले बिहार की सियासत में तपिश बढ़ गई है. क्या अब ये...मान लिया जाए कि जातीय जनगणना के बहाने जेडीयू और आरजेडी बिहार में सियासत की नई परिभाषा लिखने में जुट गई है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

बिहार में जातीय जनगणना पर राजनीति तेज
बिहार में जातीय जनगणना पर राजनीति तेज
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Published : May 31, 2022, 7:57 PM IST

पटना: जातीय जनगणना को लेकर बिहार में 1 जून को सर्वदलीय बैठक (All Party Meeting in Bihar) होने जा रही है. उसके बाद फैसला होगा कि कैसे जातीय जनगणना कराई जाए. कैबिनेट से भी स्वीकृति ली जाएगी. जातीय जनगणना को लेकर पिछले काफी समय से बिहार में सियासत हो रही है. जदयू और आरजेडी के तरफ से जातीय जनगणना को लेकर क्रेडिट लेने की कोशिश भी की जाती रही है. बिहार में जाति की राजनीति किसी से छिपी नहीं है. पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट बैंक सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, जातीय जनगणना कराने के पीछे भी इस वोट बैंक पर दलों की नजर है.

ये भी पढ़ें- आज RJD विधानमंडल दल की बैठक, लालू की मौजूदगी में आगामी रणनीति पर होगा मंथन

जातीय जनगणना पर सियासत तेज: बिहार में जातीय जनगणना हो इसके लिए लगातार बयानबाजी होती रही. जदयू का हमेशा यह कहना रहा है कि सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) लंबे समय से जातीय जनगणना के पक्ष में मांग करते रहे हैं. वहीं, आरजेडी का भी कमोबेश यही कहना रहा है. पिछले साल जब जनगणना की चर्चा शुरू हुई तो बिहार से नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल जिसमें सभी दल के नेता शामिल थे, प्रधानमंत्री से जाकर मुलाकात की थी. पहल नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने ही की थी लेकिन केंद्र सरकार ने बाद में साफ कर दिया कि जातीय जनगणना कराना संभव नहीं है लेकिन राज्य चाहें तो जातीय जनगणना कराने के लिए स्वतंत्र हैं.

1 जून को सर्वदलीय बैठक: नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Leader of Opposition Tejashwi Yadav) की ओर से उसके बाद जातीय जनगणना को लेकर आक्रमक रूख अपनाया गया. विधानसभा में भी कई बार तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार से मुलाकात की और पिछले दिनों तो 48 घंटे का अल्टीमेटम भी दे दिया था. बाद में नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को समय भी दे दिया और दोनों के बीच आधे घंटे से भी अधिक समय तक अकेले में मुलाकात भी हुई. उसीको लेकर कई तरह के कयास भी लगाए जाते रहे बाद में मुख्यमंत्री ने इस को लेकर सफाई भी दी कि जातीय जनगणना को लेकर हमारा शुरू से पक्ष रहा है और सभी दलों की राय लेकर बैठक करेंगे और फिर उसमें कैसे जातीय जनगणना कराई जाए, इस पर फैसला होगा. फिर कैबिनेट से अनुमति लेकर काम शुरू किया जाएगा.

जातीय जनगणना को लेकर बीजेपी का अलग रुख: अब 1 जून को मुख्यमंत्री सचिवालय संवाद में सर्वदलीय बैठक होने जा रही है, जातीय जनगणना को लेकर बीजेपी का शुरू से अलग रुख रहा है. बीजेपी जातीय जनगणना से अधिक जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने पर जोर देती रही है. जातीय जनगणना पर हो रही सर्वदलीय बैठक के संयोजक शिक्षा मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी है. विजय चौधरी ने सबको लेटर भी भेज दिया है और सभी दलों ने सहमति भी दे दी है. जातीय जनगणना कराने के पीछे मकसद क्या है.

'मकसद तो जातीय जनगणना में ही छिपा है. सभी जातियों की संख्या कितनी है इससे पता चल जाएगा क्योंकि अभी जिस प्रकार से दावे होते हैं. उस हिसाब से तो 300 से 400% आबादी हो जाए तो मकसद साफ है कि किस जाति की कितनी आबादी है. उसकी पारदर्शिता से जानकारी हो जाए.' - विजय कुमार चौधरी, मंत्री, संसदीय कार्य विभाग

'जब पेड़-पौधा पशु, मकान, जमीन, मशीन की गिनती हो सकती है तो जातियों की गिनती क्यों नहीं हो सकती, एक बार गिनती हो जाए तो उस हिसाब से योजनाओं को बनाने में मदद मिलेगी.' - श्रवण कुमार, मंत्री, बिहार सरकार

'जातीय जनगणना कराने के पीछे एकमात्र मकसद वोट बैंक है. आरजेडी जैसी पार्टियां पिछड़ा और अति पिछड़ा की बात तो करती है लेकिन जब हिस्सेदारी देने की बात होती है तो परिवार से बाहर नहीं निकल पाते हैं.' - विनोद शर्मा, बीजेपी प्रवक्ता

जाति जनगणना पर रार क्यों: बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census In Bihar) कराने को लेकर 1 जून यानी कि कल सर्वदलीय बैठक होगी लेकिन उससे पहले ही बिहार का सियासी पारा चढ़ गया है. सर्वदलीय बैठक से पहले राजद ने लालू यादव की अध्यक्षता में विधानमंडल दल की बैठक बुलायी है. कहा जा रहा है कि इस बैठक के जरिए राजद आने वाले वक्त के लिए अपनी रणनीति तैयार करेगा. वहीं जदयू के नेता भी जातीय जनगणना के जरिए सियासत की नई इबारत लिखने की कोशिश में लगे है. बीजेपी के तो पहले जातीय जनगणना पर सुर बदले हुए थे लेकिन बाद वो भी हामी भरती नजर आ रही है. जो भी हो, जब जातीय जनगणना हो जाती है तो क्या ये बिहार की राजनीतिक दलों के लिए संजीवनी बन जाएगी. इससे किसको क्या फायदा होगा, ये तो आने वाला समय ही बताएगा.

राजद में जातीय जनगणना को लेकर बैठक: राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (RJD President Lalu Prasad Yadav) जब से पटना आए हैं तब से पार्टी में एक नया जोश-ओ-खरोश देखने को मिल रहा है. इसी क्रम में 1 जून को होने वाले सियासी उठापटक पर भी सबकी नजरें हैं. खुद लालू प्रसाद की पैनी निगाहें इन घटनाक्रम पर लगी हुई है. बता दें कि अगले एक जून को यानी की बुधवार को जातीय जनगणना पर बहुप्रतिक्षत सर्वदलीय बैठक (All Party Meeting On June 1st ) होने वाली है. सर्वदलीय बैठक का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. कल चार बजे मुख्यमंत्री सचिवालय के संवाद कक्ष में यह बैठक निर्धारित की गयी है. इसमें विभिन्न दलों के नेता शामिल होंगे.

जातीय जनगणना को लेकर सरगर्मी तेज: बिहार में वोट के लिहाज से ओबीसी और ईबीसी बड़ा वोट बैंक है. दोनों की कुल आबादी 52 फीसदी के आसपास माना जाता है. और इसमें सबसे अधिक यादव जाति का वोट है जो 13 से 14% के आसपास अभी मान जा रहा है. जहां तक जातियों की बात करें तो 33 से 34 जातियां इस वर्ग में आती है. ऐसे तो जातीय जनगणना सभी जातियों की होगी लेकिन जेडीयू और आरजेडी की नजर ओबीसी और ईबीसी जाति पर ही है. दोनों अपना वोट बैंक इसे मानती रही है.

1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ: 1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ है. इसलिए अनुमान पर ही बिहार में जातियों की आबादी का प्रतिशत लगाया जाता रहा है. बिहार में ओबीसी में 33 जातियां शामिल है तो वही ईबीसी में सवा सौ से अधिक जातियां हैं. ओबीसी और ईबीसी की आबादी में यादव 14 फीसदी, कुर्मी तीन से चार फीसदी, कुशवाहा 6 से 7 फीसदी, बनिया 7 से 8 फीसदी ओबीसी का दबदबा है. इसके अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग में कानू, गंगोता, धानुक, नोनिया, नाई, बिंद बेलदार, चौरसिया, लोहार, बढ़ई, धोबी, मल्लाह सहित कई जातियां चुनाव के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं .

जातीय जनगणना को लेकर बिहार में अब तक हुए प्रयास...


1. बिहार विधानसभा से दो बार सर्वसम्मति प्रस्ताव कराया गया पास


2. तेजस्वी यादव नीतीश कुमार से जातीय जनगणना कराने को लेकर विधानसभा में भी मुलाकात की और प्रधानमंत्री से शिष्टमंडल जाकर मिले, और इसको कराने का अनुरोध किया

3. बिहार के 13 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से जाकर मुलाकात की


4. तेजस्वी यादव ने जातीय जनगणना को लेकर देश के 33 दलों के नेताओं को पत्र लिखकर इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश की


5. केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना करने से इंकार कर दिया लेकिन राज्यों को जातीय जनगणना कराने की छूट दे दी


6. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक कर जातीय जनगणना पर फैसला करने की घोषणा की


7. जातीय जनगणना के बैठक में हो रही देरी पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया और पदयात्रा शुरू करने की धमकी भी दी


8. मुख्यमंत्री ने तेजस्वी यादव से इस मुद्दे पर फिर से मुख्यमंत्री आवास में मुलाकात की और जल्द ही बैठक बुलाने का आश्वासन दिया


9. सभी दलों के नेताओं से बातचीत के बाद 1 जून को सर्वदलीय बैठक करने पर सहमति बनी और उसके लिए सभी दलों के नेताओं को पत्र भी भेजा गया

जातीय जनगणना कराने के पीछे तर्क-

जब पेड़ पौधों और जानवरों की गिनती हो सकती है तो जातियों की क्यों नहीं

1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुई है इसके कारण योजना बनाने में दिक्कत हो रही


जातीय जनगणना से किसको होगा फायदा?: जातीय जनगणना होने के बाद जातियों के हिसाब से योजना तैयार की जा सकेगी जिससे उनके विकास में मदद मिलेगा. जातीय जनगणना को लेकर कई राज्यों में आवाज उठी है. कुछ राज्यों ने जातीय जनगणना कराई भी है इसमें कर्नाटक शामिल है लेकिन वहां भी जातीय जनगणना का आंकड़ा जारी नहीं किया गया. इसका बड़ा कारण कई तरह की त्रुटियों को बताया गया है. जातियों में उपजातियां और कई तरह की समस्या है, उसके कारण जातीय जनगणना कराना आसान भी नहीं है. लेकिन अब बिहार में जातीय जनगणना की ओर सरकार ने कदम बढ़ाया है और नीतीश कुमार का दावा भी रहा है कि बिहार जो करता है उसका अनुसरण दूसरे राज्य करते हैं, तो जातीय जनगणना को लेकर भी पूरे देश में बिहार एक मॉडल देगा. लेकिन जदयू और आरजेडी का मकसद ओबीसी-ईबीसी वोट बैंक को साधना है और दोनों दल इसमें कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

ये भी पढे़ं- बिहार: जातीय जनगणना को लेकर एक जून को होगी सर्वदलीय बैठक

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पटना: जातीय जनगणना को लेकर बिहार में 1 जून को सर्वदलीय बैठक (All Party Meeting in Bihar) होने जा रही है. उसके बाद फैसला होगा कि कैसे जातीय जनगणना कराई जाए. कैबिनेट से भी स्वीकृति ली जाएगी. जातीय जनगणना को लेकर पिछले काफी समय से बिहार में सियासत हो रही है. जदयू और आरजेडी के तरफ से जातीय जनगणना को लेकर क्रेडिट लेने की कोशिश भी की जाती रही है. बिहार में जाति की राजनीति किसी से छिपी नहीं है. पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट बैंक सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है, जातीय जनगणना कराने के पीछे भी इस वोट बैंक पर दलों की नजर है.

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जातीय जनगणना पर सियासत तेज: बिहार में जातीय जनगणना हो इसके लिए लगातार बयानबाजी होती रही. जदयू का हमेशा यह कहना रहा है कि सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) लंबे समय से जातीय जनगणना के पक्ष में मांग करते रहे हैं. वहीं, आरजेडी का भी कमोबेश यही कहना रहा है. पिछले साल जब जनगणना की चर्चा शुरू हुई तो बिहार से नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल जिसमें सभी दल के नेता शामिल थे, प्रधानमंत्री से जाकर मुलाकात की थी. पहल नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने ही की थी लेकिन केंद्र सरकार ने बाद में साफ कर दिया कि जातीय जनगणना कराना संभव नहीं है लेकिन राज्य चाहें तो जातीय जनगणना कराने के लिए स्वतंत्र हैं.

1 जून को सर्वदलीय बैठक: नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Leader of Opposition Tejashwi Yadav) की ओर से उसके बाद जातीय जनगणना को लेकर आक्रमक रूख अपनाया गया. विधानसभा में भी कई बार तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार से मुलाकात की और पिछले दिनों तो 48 घंटे का अल्टीमेटम भी दे दिया था. बाद में नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को समय भी दे दिया और दोनों के बीच आधे घंटे से भी अधिक समय तक अकेले में मुलाकात भी हुई. उसीको लेकर कई तरह के कयास भी लगाए जाते रहे बाद में मुख्यमंत्री ने इस को लेकर सफाई भी दी कि जातीय जनगणना को लेकर हमारा शुरू से पक्ष रहा है और सभी दलों की राय लेकर बैठक करेंगे और फिर उसमें कैसे जातीय जनगणना कराई जाए, इस पर फैसला होगा. फिर कैबिनेट से अनुमति लेकर काम शुरू किया जाएगा.

जातीय जनगणना को लेकर बीजेपी का अलग रुख: अब 1 जून को मुख्यमंत्री सचिवालय संवाद में सर्वदलीय बैठक होने जा रही है, जातीय जनगणना को लेकर बीजेपी का शुरू से अलग रुख रहा है. बीजेपी जातीय जनगणना से अधिक जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने पर जोर देती रही है. जातीय जनगणना पर हो रही सर्वदलीय बैठक के संयोजक शिक्षा मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री विजय चौधरी है. विजय चौधरी ने सबको लेटर भी भेज दिया है और सभी दलों ने सहमति भी दे दी है. जातीय जनगणना कराने के पीछे मकसद क्या है.

'मकसद तो जातीय जनगणना में ही छिपा है. सभी जातियों की संख्या कितनी है इससे पता चल जाएगा क्योंकि अभी जिस प्रकार से दावे होते हैं. उस हिसाब से तो 300 से 400% आबादी हो जाए तो मकसद साफ है कि किस जाति की कितनी आबादी है. उसकी पारदर्शिता से जानकारी हो जाए.' - विजय कुमार चौधरी, मंत्री, संसदीय कार्य विभाग

'जब पेड़-पौधा पशु, मकान, जमीन, मशीन की गिनती हो सकती है तो जातियों की गिनती क्यों नहीं हो सकती, एक बार गिनती हो जाए तो उस हिसाब से योजनाओं को बनाने में मदद मिलेगी.' - श्रवण कुमार, मंत्री, बिहार सरकार

'जातीय जनगणना कराने के पीछे एकमात्र मकसद वोट बैंक है. आरजेडी जैसी पार्टियां पिछड़ा और अति पिछड़ा की बात तो करती है लेकिन जब हिस्सेदारी देने की बात होती है तो परिवार से बाहर नहीं निकल पाते हैं.' - विनोद शर्मा, बीजेपी प्रवक्ता

जाति जनगणना पर रार क्यों: बिहार में जातीय जनगणना (Caste Census In Bihar) कराने को लेकर 1 जून यानी कि कल सर्वदलीय बैठक होगी लेकिन उससे पहले ही बिहार का सियासी पारा चढ़ गया है. सर्वदलीय बैठक से पहले राजद ने लालू यादव की अध्यक्षता में विधानमंडल दल की बैठक बुलायी है. कहा जा रहा है कि इस बैठक के जरिए राजद आने वाले वक्त के लिए अपनी रणनीति तैयार करेगा. वहीं जदयू के नेता भी जातीय जनगणना के जरिए सियासत की नई इबारत लिखने की कोशिश में लगे है. बीजेपी के तो पहले जातीय जनगणना पर सुर बदले हुए थे लेकिन बाद वो भी हामी भरती नजर आ रही है. जो भी हो, जब जातीय जनगणना हो जाती है तो क्या ये बिहार की राजनीतिक दलों के लिए संजीवनी बन जाएगी. इससे किसको क्या फायदा होगा, ये तो आने वाला समय ही बताएगा.

राजद में जातीय जनगणना को लेकर बैठक: राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (RJD President Lalu Prasad Yadav) जब से पटना आए हैं तब से पार्टी में एक नया जोश-ओ-खरोश देखने को मिल रहा है. इसी क्रम में 1 जून को होने वाले सियासी उठापटक पर भी सबकी नजरें हैं. खुद लालू प्रसाद की पैनी निगाहें इन घटनाक्रम पर लगी हुई है. बता दें कि अगले एक जून को यानी की बुधवार को जातीय जनगणना पर बहुप्रतिक्षत सर्वदलीय बैठक (All Party Meeting On June 1st ) होने वाली है. सर्वदलीय बैठक का काउंटडाउन शुरू हो चुका है. कल चार बजे मुख्यमंत्री सचिवालय के संवाद कक्ष में यह बैठक निर्धारित की गयी है. इसमें विभिन्न दलों के नेता शामिल होंगे.

जातीय जनगणना को लेकर सरगर्मी तेज: बिहार में वोट के लिहाज से ओबीसी और ईबीसी बड़ा वोट बैंक है. दोनों की कुल आबादी 52 फीसदी के आसपास माना जाता है. और इसमें सबसे अधिक यादव जाति का वोट है जो 13 से 14% के आसपास अभी मान जा रहा है. जहां तक जातियों की बात करें तो 33 से 34 जातियां इस वर्ग में आती है. ऐसे तो जातीय जनगणना सभी जातियों की होगी लेकिन जेडीयू और आरजेडी की नजर ओबीसी और ईबीसी जाति पर ही है. दोनों अपना वोट बैंक इसे मानती रही है.

1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ: 1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुआ है. इसलिए अनुमान पर ही बिहार में जातियों की आबादी का प्रतिशत लगाया जाता रहा है. बिहार में ओबीसी में 33 जातियां शामिल है तो वही ईबीसी में सवा सौ से अधिक जातियां हैं. ओबीसी और ईबीसी की आबादी में यादव 14 फीसदी, कुर्मी तीन से चार फीसदी, कुशवाहा 6 से 7 फीसदी, बनिया 7 से 8 फीसदी ओबीसी का दबदबा है. इसके अलावा अत्यंत पिछड़ा वर्ग में कानू, गंगोता, धानुक, नोनिया, नाई, बिंद बेलदार, चौरसिया, लोहार, बढ़ई, धोबी, मल्लाह सहित कई जातियां चुनाव के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं .

जातीय जनगणना को लेकर बिहार में अब तक हुए प्रयास...


1. बिहार विधानसभा से दो बार सर्वसम्मति प्रस्ताव कराया गया पास


2. तेजस्वी यादव नीतीश कुमार से जातीय जनगणना कराने को लेकर विधानसभा में भी मुलाकात की और प्रधानमंत्री से शिष्टमंडल जाकर मिले, और इसको कराने का अनुरोध किया

3. बिहार के 13 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से जाकर मुलाकात की


4. तेजस्वी यादव ने जातीय जनगणना को लेकर देश के 33 दलों के नेताओं को पत्र लिखकर इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश की


5. केंद्र सरकार ने जातीय जनगणना करने से इंकार कर दिया लेकिन राज्यों को जातीय जनगणना कराने की छूट दे दी


6. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक कर जातीय जनगणना पर फैसला करने की घोषणा की


7. जातीय जनगणना के बैठक में हो रही देरी पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया और पदयात्रा शुरू करने की धमकी भी दी


8. मुख्यमंत्री ने तेजस्वी यादव से इस मुद्दे पर फिर से मुख्यमंत्री आवास में मुलाकात की और जल्द ही बैठक बुलाने का आश्वासन दिया


9. सभी दलों के नेताओं से बातचीत के बाद 1 जून को सर्वदलीय बैठक करने पर सहमति बनी और उसके लिए सभी दलों के नेताओं को पत्र भी भेजा गया

जातीय जनगणना कराने के पीछे तर्क-

जब पेड़ पौधों और जानवरों की गिनती हो सकती है तो जातियों की क्यों नहीं

1931 के बाद जातीय जनगणना नहीं हुई है इसके कारण योजना बनाने में दिक्कत हो रही


जातीय जनगणना से किसको होगा फायदा?: जातीय जनगणना होने के बाद जातियों के हिसाब से योजना तैयार की जा सकेगी जिससे उनके विकास में मदद मिलेगा. जातीय जनगणना को लेकर कई राज्यों में आवाज उठी है. कुछ राज्यों ने जातीय जनगणना कराई भी है इसमें कर्नाटक शामिल है लेकिन वहां भी जातीय जनगणना का आंकड़ा जारी नहीं किया गया. इसका बड़ा कारण कई तरह की त्रुटियों को बताया गया है. जातियों में उपजातियां और कई तरह की समस्या है, उसके कारण जातीय जनगणना कराना आसान भी नहीं है. लेकिन अब बिहार में जातीय जनगणना की ओर सरकार ने कदम बढ़ाया है और नीतीश कुमार का दावा भी रहा है कि बिहार जो करता है उसका अनुसरण दूसरे राज्य करते हैं, तो जातीय जनगणना को लेकर भी पूरे देश में बिहार एक मॉडल देगा. लेकिन जदयू और आरजेडी का मकसद ओबीसी-ईबीसी वोट बैंक को साधना है और दोनों दल इसमें कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

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