पटना: मगध विश्वविद्यालय वीसी (Magadh University VC) के घर से करोड़ों रुपए बरामद हुए और उसके बाद वे छुट्टी पर चले गए. अब तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. इधर, ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी वीसी (Lalit Narayan Mithila University VC) पर भी गंभीर आरोप लगे हैं. उनकी बर्खास्तगी की मांग दरभंगा में जोर शोर से उठ रही है. पूर्णिया यूनिवर्सिटी में भ्रष्टाचार (Corruption in Purnea University) को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. इन तमाम मामलों में अब तक कोई सीधी कार्रवाई देखने को नहीं मिली है. विपक्ष इस बात को लेकर सरकार पर हमलावर है.
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''इतना बड़ा मामला उजागर होने के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं हुई. कहीं ना कहीं जदयू और बीजेपी नेताओं की इस पूरे मामले में मिलीभगत है और इसलिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कार्रवाई करने से बच रहे हैं. ये छात्रों के जीवन के साथ खिलवाड़ है, क्योंकि हायर एजुकेशन में भ्रष्टाचार (Corruption in Higher Education) को रोकने के बजाय कार्रवाई नहीं करना अपने आप में एक बड़ा अपराध है.''- एजाज अहमद, प्रदेश प्रवक्ता, राजद
राष्ट्रीय जनता दल (Rashtriya Janata Dal) और कांग्रेस (Congress) का सीधा आरोप है कि सरकार कि इस पूरे मामले में सीधी संलिप्तता है, इसलिए टालमटोल का रवैया अपनाते हुए इस मामले को रफा-दफा करने की कोशिश हो रही है. कांग्रेस ने इस पूरे मामले में सीधे-सीधे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) को जिम्मेदार ठहराया है. हालांकि, बीजेपी ने इन तमाम आरोपों से इंकार किया है. उनका कहना है कि विपक्ष सिर्फ आरोप लगाना जानता है लेकिन हम क्राइम करप्शन और कॉम्यूनलिज्म से कोई समझौता नहीं करते हैं.
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''यूनिवर्सिटी में उजागर हुए भ्रष्टाचार के साथ बिहार के सभी महाविद्यालयों की सीबीआई जांच जरूरी है, तभी पूरा मामला सामने आएगा. इस मामले में अरबों रुपए का भ्रष्टाचार हुआ है, लेकिन इस पूरे मामले को खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सामने नहीं आने देना चाहते हैं, क्योंकि इसमें बीजेपी और जदयू नेताओं की भी मिलीभगत है.''- राजेश राठौड़, प्रदेश प्रवक्ता, कांग्रेस
''जिस व्यक्ति पर भ्रष्टाचार के आरोप साबित होंगे, उस पर निश्चित कार्रवाई होगी. सरकार इस मामले को गंभीरता से देख रही है और पूरे मामले की जांच चल रही है. जांच रिपोर्ट मिलने के बाद जो व्यक्ति गलत साबित होगा, उस पर कार्रवाई होना निश्चित है.''- प्रोफेसर अजफर शमशी, प्रदेश प्रवक्ता, बीजेपी
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बता दें कि पिछले कुछ सालों में विवादों के कारण कई कुलपति अपना टर्म भी पूरा नहीं कर सके हैं और बीच में ही कई कुलपतियों को अपना पद छोड़ना पड़ा है जिसमें पूर्णिया विश्वविद्यालय के राजेश कुमार, भागलपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नीलिमा गुप्ता, नालंदा खुला विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसएन प्रसाद, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गिरीश चंद्र जायसवाल शामिल हैं. जब कुलपतियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर मामले हो, निगरानी की छापेमारी हो, एफआईआर हो और कुलपति जेल जा रहे हो और कई पर निगरानी की जांच चल रही हो तो आसानी से समझा जा सकता है कि बिहार की उच्च शिक्षा का क्या हाल हो रहा है.
फिलहाल, कुलपतियों के भ्रष्टाचार के मामले में बिहार सरकार (Bihar Government) यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि वह गंभीर है. विश्वविद्यालय में जो कुछ भी हो रहा है उसके लिए राजभवन (Raj Bhavan) ही दोषी है और राजभवन को ही कार्रवाई करना चाहिए, लेकिन सच्चाई यह भी है कि कुलपति की नियुक्ति में राजभवन की अहम भूमिका है. मुख्यमंत्री की सहमति के बाद ही नियुक्ति होती है और विश्वविद्यालयों के वित्तीय मामलों को लेकर राज्य सरकार ही फैसला लेती है.
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