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'शराबबंदी के नए प्रावधान से बिहार में भ्रष्टाचार रोकना होगी बड़ी चुनौती..', जानें क्यों कहा जा रहा है ऐसा

तमाम आलोचनाओं के बीच आखिरकार बिहार में शराबबंदी कानून में संशोधन (Amendment in Prohibition Law) किया गया है. बिहार विधानसभा से विधेयक को हरी झंडी मिल गई है. अब शराबबंदी कानून में सबसे बड़ा बदलाव यह हुआ है कि शराब पीकर पहली बार पकड़े जाने वालों को जेल नहीं जाना पड़ेगा. मजिस्ट्रेट को जुर्माना देकर आरोपी छूट सकते हैं. लेकिन जानकारों का कहना है कि इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

बिहार में शराबबंदी
बिहार में शराबबंदी
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Published : Mar 31, 2022, 7:33 PM IST

पटना: बिहार में शराबबंदी (Liquor Ban in Bihar) के पूरे 6 साल हो चुके हैं. शराबबंदी कानून में यह कोई पहला बदलाव नहीं हुआ है. इससे पहले भी कई बदलाव हो चुके हैं. फिर भी पूर्ण शराब बंदी कानून बिहार में लागू नहीं हो पाया है. या यूं कहें कि कई बार बदलाव करने के बावजूद भी इसका असर बिहार में देखने को नहीं मिल रहा है, तो यह सवाल उठता है कि इस बार के किए शराबबंदी कानून में संशोधन के बाद असर देखने को मिलेगा.

ये भी पढ़ें- सख्ती भी, राहत भी: शराब बेचने वालों पर चलेगा बुलडोजर, इस शर्त पर छूट सकेंगे शराबी

कानून में मजबूरी में किए बदलाव!: विशेषज्ञों की माने तो कहीं ना कहीं नीतीश सरकार सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद इस बार बदलाव करने पर मजबूर हुई है. इसका एक और कारण माना जा रहा है कि कड़े प्रावधान की वजह से ज्यादातर गरीब और दलित समाज के लोग जेलों में बंद हैं. शराबबंदी कानून के वजह से अब तकरीबन पौने चार लाख लोगे जेल जा चुके हैं और अभी मौजूदा वक्त में भी जेलों में क्षमता से अधिक कैदी बंद हैं. इनमें से ज्यादा कैदी ऐसे हैं, जिनके पास पैसे नहीं होने की वजह से वह अपनी बेल तक नहीं करवा पा रहे हैं.

पहले भी हो चुका कानून में बदलाव: दरअसल, शराबबंदी कानून के तहत साल 2016 से अब तक कई तरह के बदलाव किए गए हैं. सबसे पहले बात करें तो 1 अप्रैल 2016 को राज्य में देसी शराब को बंद किया गया था. केवल निगम क्षेत्र में विदेशी शराब की बिक्री की अनुमति दी गई थी. वहीं, राज्य सरकार ने 5 अप्रैल 2016 से पूरे राज्य में पूर्ण शराबबंदी कर दिया. 2 अक्टूबर 2016 को 1915 के आधार पर लागू शराबबंदी के बदले नया कानून 23 जुलाई 2018 को सरकार ने पहली बार अहम बदलाव किया.

जुर्माना लेकर छोड़ने का प्रावधान: फिर साल 2018 में यह बदला हुआ कि पहली बार पीते हुए पकड़े गए तो 3 महीने की सजा और ₹50000 का जुर्माना होगा और घर में शराब पकड़े जाने पर अब सभी बाली की बजाय जिम्मेदार ही पकड़े जाएंगे. बता दें कि परिसर जब्ती और सामूहिक जुर्माना हटाकर वाहन जब्ती के नए नियम बनाए गए हैं. इसके बावजूद भी शराबबंदी कानून में नए प्रावधान किए गए हैं. कहीं ना कहीं अब शराबबंदी कानून को कुछ मामलों में लचर बनाया गया है. इसके तहत अब पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने पर उसे जुर्माना लेकर छोड़ने का प्रावधान किया गया है.

बिहार में शराबबंदी के 6 साल: आपको बता दें कि नीतीश सरकार ने 6 साल पहले कल के ही दिन बिहार विधानसभा में शराबबंदी कानून को पेश किया था. 1 अप्रैल 2016 से बिहार में शराबबंदी आंशिक तौर पर लागू की गई थी, लेकिन उसके बाद में परिवर्तन करते हुए बिहार में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू कर दिया गया. 6 साल पहले विधानसभा में सदस्यों ने शराब न पीने की शपथ भी ली थी. 30 मार्च को 6 साल बाद शराबबंदी कानून में बड़े बदलाव किए गए हैं.

जुर्माना देकर छूट सकता है आरोपी: इस बदलाव में नजदीकी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष शराब पीने वाले लोगों को पेश किया जाएगा. पकड़ा गया आरोपी जुर्माना देकर छूट सकता है. बार-बार पकड़े जाने पर जेल और जुर्माना दोनों होगा. जुर्माने की राशि राज्य सरकार तय करेगी. पुलिस को मजिस्ट्रेट के सामने जब्त सामान नहीं पेश करना होगा. पुलिस पदाधिकारी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पेश कर सकते हैं. नमूना सुरक्षित रखकर जब्त सामान को नष्ट किया जा सकेगा. इसके लिए परिवहन की चुनौती और विभागीय की समस्या दिखाना होगी. इसके साथ-साथ कई तरह के बदलाव भी किए गए हैं.

40 शराब तस्करों की जमानत रद्द: बता दें कि पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ 40 शराब तस्करों की जमानत रद्द कराने सुप्रीम कोर्ट पहुंची बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी फटकार लगाई थी और कहा था कि इनसे जुड़े मामलों की वजह से पटना हाईकोर्ट का कामकाज बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. गौरतलब है कि एक ओर जहां बिहार सरकार शराबबंदी कानून को प्रभावी बनाने के लिए लगातार काम कर रही है. राज्य सरकार लगातार शराब तस्करों और शराब पीने वालों पर कार्रवाई कर रही है. पुलिस शराब तस्करों की लगातार गिरफ्तारी कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने जाहिर की नाराजगी: वहीं, दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के शराबबंदी कानून की वजह से बढ़ने वाले मुकदमों को लेकर कड़ी नाराजगी जाहिर की है. हाईकोर्ट में केस को सूचीबद्ध करने में 1 साल का समय लग रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के 40 अपील को एक साथ खारिज कर दिया था. दरअसल, बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट में उन लोगों की जमानत खारिज कराने गई थी, जिन्हें बिहार पुलिस ने शराब के मामले में गिरफ्तार किया था, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने उन्हें बेल दे दी थी.

ड्राई स्टेट में जहरीली शराब से मौत: अप्रैल 2016 से दिसंबर 2021 तक बिहार में शराबबंदी कानून के तहत से लगभग 2,03,000 मामले सामने आए हैं, जिसमें पौने चार लाख लोग जेल की हवा खा चुके हैं. इनमें से 1,08,000 मामलों का ट्रायल शुरू हो गया है और 94,639 मामलों का ट्रायल शुरू होना अभी बाकी है. दिसंबर तक 1636 मामलों का ट्रायल पूरा हो चुका है, जिसमें से 1019 मामलों में आरोपियों को सजा मिल चुकी है, जबकि 610 मामलों में आरोपी बरी हो चुके हैं. एनएफएचएस की रिपोर्ट के अनुसार ड्राई स्टेट होने के बावजूद भी महाराष्ट्र से ज्यादा शराब की खपत बिहार में हो रही है. यही नहीं बिहार में शराबबंदी कानून के बावजूद भी जहरीली शराब से अब तक सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है.

विश्लेषक डॉक्टर नवल किशोर चौधरी (Doctor Naval Kishore Chowdhary) की माने तो बिहार सरकार ने शराबबंदी कानून के तहत कई बार हम बदलाव किए गए हैं. इसके बावजूद भी जहरीली शराब से लोगों की मौत हो रही है. उन्होंने यह भी कहा कि कहीं ना कहीं शराबबंदी कानून का असर थोड़ा देखने को बिहार में मिला है, लेकिन जहरीली शराब से मौत पहले भी होती रही है और अब भी होती है. जब शराबबंदी कानून लागू नहीं था तो यही राज्य सरकार थी जिसने गली मोहल्ले में भी शराब की दुकान खुलवाने का काम किया था. उस वक्त भी गरीब, दलित और समाज में शिक्षा से वंचित लोग विदेशी शराब की जगह पर देसी शराब का सेवन करते थे. अब तो शराब बिहार में गैर कानूनी रूप से मिल रही है. कम पैसे कमाने वाले लोग अभी भी देसी शराब जो कि गलत तरीके से बनाए जाने की वजह से जहरीली हो जाती है, वह पीने को मजबूर हैं, जिस वजह से उनकी मौतें हो रही हैं.

''बिहार सरकार के शराबबंदी कानून में किए गए नए प्रावधान में कहीं ना कहीं यह फायदा जरूर होगा कि अब लोगों की संख्या नहीं बढ़ेगी और शराबबंदी कानून के मामले में बढ़ोतरी नहीं होगी. इसके साथ-साथ भ्रष्टाचार में कहीं ना कहीं बढ़ावा होगा. स्वाभाविक है बिहार में लोग शराब की आदी हो चुके हैं. वर्तमान सरकार ने ही शहर तो छोड़िए गांव मोहल्ले गली में शराब की दुकान खुलवाने का काम किया था. जिसका कारण था कि लोग शराब के आदी हो चुके थे. उसके बाद वर्तमान सरकार शराबबंदी कानून में कड़े प्रावधान लाई. हालांकि, शराबबंदी कानून का कुछ न कुछ असर जरूर राज्य की जनता का पड़ा है.''- डॉक्टर नवल किशोर चौधरी, विश्लेषक

शराबबंदी कानून से भ्रष्ट हुई मशीनरी: डॉक्टर नवल किशोर चौधरी ने कहा कि शराबबंदी कानून पूर्ण रूप से नहीं लागू होने के पहला कारण यह है कि लोग शराब के आदी हो चुके हैं. दूसरा बड़ा कारण यह है कि राज्य सरकार शराबबंदी कानून के तहत काम करने वाले मशीनरी पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुकी है. उन्होंने कहा कि शासन और प्रशासन दोनों में भ्रष्टाचार भरा हुआ है. कहीं ना कहीं मंत्रियों में भी अब भ्रष्टाचार देखने को मिल रहा है. नए प्रावधान करने से पहले थोड़ी कड़ाई हुआ करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं दिखता है. अब लोगों के मन से थोड़ा डर भी कम होगा. नए प्रवधान में जिस तरह से पैसे लेकर छोड़ने की बात कही गई है, यह उसी तरह से होगा जैसे हर चौक चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस कुछ पैसे लेकर लोगों को छोड़ने का काम करते हैं, भले उस वाहन में अवैध सामग्री क्यों ना हो या विस्फोटक पदार्थ ही क्यों ना हो.

नए प्रावधान से जेल प्रशासन पर कम होगा दबाव: शराबबंदी फेल होने का मुख्य कारण उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने जहां शराब बनती है या जहां से सप्लाई की जाती है, उस पर थोड़ी भी कार्रवाई नहीं की. जिसका परिणाम है कि बॉर्डर इलाकों से शराब की सप्लाई हो रही है. राज्य सरकार जब राज्य की चौहद्दी पर ही शराब को लेकर कार्रवाई करते तो यह नौबत नहीं आती. पुलिस प्रशासन कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार में लिप्त है. जिसका कारण है कि भारी संख्या में ट्रकों से शराब बिहार में आती है. नए प्रावधान को लेकर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद राज्य सरकार ने प्रावधान में ढील देने का निर्णय लिया है, जिसका असर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना होगा. इसका एक फायदा होगा कि जेलों में कैदियों की संख्या कम होगी शराबबंदी कानून के तहत मामले कम आएंगे और जेल प्रशासन पर दबाव कम होगा.

हालांकि, उन्होंने कहा कि पहले भी जिनके पास पैसा होता था उन्हें पुलिस छोड़ देती थी और आज भी यही होगा कि पैसे लेकर शराब पीने वालों को छोड़ दिया जाएगा. नए कानून के आने से तकनीकी रूप से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. पुलिस पैसे लेकर शराबियों को छोड़ नहीं रही थी, बल्कि शराबी तक शराब की बोतल पहुंचा रही थी. उन्होंने यह भी कहा कि नए कानून के प्रावधान आने से पुलिस भी अब यह महसूस करेगी कि सरकार शराबबंदी कानून को लेकर गंभीर नहीं है.

ये भी पढ़ें- शराब पीने वाला हिन्दुस्तानी नहींं, महापापी है : नीतीश कुमार

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पटना: बिहार में शराबबंदी (Liquor Ban in Bihar) के पूरे 6 साल हो चुके हैं. शराबबंदी कानून में यह कोई पहला बदलाव नहीं हुआ है. इससे पहले भी कई बदलाव हो चुके हैं. फिर भी पूर्ण शराब बंदी कानून बिहार में लागू नहीं हो पाया है. या यूं कहें कि कई बार बदलाव करने के बावजूद भी इसका असर बिहार में देखने को नहीं मिल रहा है, तो यह सवाल उठता है कि इस बार के किए शराबबंदी कानून में संशोधन के बाद असर देखने को मिलेगा.

ये भी पढ़ें- सख्ती भी, राहत भी: शराब बेचने वालों पर चलेगा बुलडोजर, इस शर्त पर छूट सकेंगे शराबी

कानून में मजबूरी में किए बदलाव!: विशेषज्ञों की माने तो कहीं ना कहीं नीतीश सरकार सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद इस बार बदलाव करने पर मजबूर हुई है. इसका एक और कारण माना जा रहा है कि कड़े प्रावधान की वजह से ज्यादातर गरीब और दलित समाज के लोग जेलों में बंद हैं. शराबबंदी कानून के वजह से अब तकरीबन पौने चार लाख लोगे जेल जा चुके हैं और अभी मौजूदा वक्त में भी जेलों में क्षमता से अधिक कैदी बंद हैं. इनमें से ज्यादा कैदी ऐसे हैं, जिनके पास पैसे नहीं होने की वजह से वह अपनी बेल तक नहीं करवा पा रहे हैं.

पहले भी हो चुका कानून में बदलाव: दरअसल, शराबबंदी कानून के तहत साल 2016 से अब तक कई तरह के बदलाव किए गए हैं. सबसे पहले बात करें तो 1 अप्रैल 2016 को राज्य में देसी शराब को बंद किया गया था. केवल निगम क्षेत्र में विदेशी शराब की बिक्री की अनुमति दी गई थी. वहीं, राज्य सरकार ने 5 अप्रैल 2016 से पूरे राज्य में पूर्ण शराबबंदी कर दिया. 2 अक्टूबर 2016 को 1915 के आधार पर लागू शराबबंदी के बदले नया कानून 23 जुलाई 2018 को सरकार ने पहली बार अहम बदलाव किया.

जुर्माना लेकर छोड़ने का प्रावधान: फिर साल 2018 में यह बदला हुआ कि पहली बार पीते हुए पकड़े गए तो 3 महीने की सजा और ₹50000 का जुर्माना होगा और घर में शराब पकड़े जाने पर अब सभी बाली की बजाय जिम्मेदार ही पकड़े जाएंगे. बता दें कि परिसर जब्ती और सामूहिक जुर्माना हटाकर वाहन जब्ती के नए नियम बनाए गए हैं. इसके बावजूद भी शराबबंदी कानून में नए प्रावधान किए गए हैं. कहीं ना कहीं अब शराबबंदी कानून को कुछ मामलों में लचर बनाया गया है. इसके तहत अब पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने पर उसे जुर्माना लेकर छोड़ने का प्रावधान किया गया है.

बिहार में शराबबंदी के 6 साल: आपको बता दें कि नीतीश सरकार ने 6 साल पहले कल के ही दिन बिहार विधानसभा में शराबबंदी कानून को पेश किया था. 1 अप्रैल 2016 से बिहार में शराबबंदी आंशिक तौर पर लागू की गई थी, लेकिन उसके बाद में परिवर्तन करते हुए बिहार में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू कर दिया गया. 6 साल पहले विधानसभा में सदस्यों ने शराब न पीने की शपथ भी ली थी. 30 मार्च को 6 साल बाद शराबबंदी कानून में बड़े बदलाव किए गए हैं.

जुर्माना देकर छूट सकता है आरोपी: इस बदलाव में नजदीकी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष शराब पीने वाले लोगों को पेश किया जाएगा. पकड़ा गया आरोपी जुर्माना देकर छूट सकता है. बार-बार पकड़े जाने पर जेल और जुर्माना दोनों होगा. जुर्माने की राशि राज्य सरकार तय करेगी. पुलिस को मजिस्ट्रेट के सामने जब्त सामान नहीं पेश करना होगा. पुलिस पदाधिकारी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पेश कर सकते हैं. नमूना सुरक्षित रखकर जब्त सामान को नष्ट किया जा सकेगा. इसके लिए परिवहन की चुनौती और विभागीय की समस्या दिखाना होगी. इसके साथ-साथ कई तरह के बदलाव भी किए गए हैं.

40 शराब तस्करों की जमानत रद्द: बता दें कि पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ 40 शराब तस्करों की जमानत रद्द कराने सुप्रीम कोर्ट पहुंची बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी फटकार लगाई थी और कहा था कि इनसे जुड़े मामलों की वजह से पटना हाईकोर्ट का कामकाज बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. गौरतलब है कि एक ओर जहां बिहार सरकार शराबबंदी कानून को प्रभावी बनाने के लिए लगातार काम कर रही है. राज्य सरकार लगातार शराब तस्करों और शराब पीने वालों पर कार्रवाई कर रही है. पुलिस शराब तस्करों की लगातार गिरफ्तारी कर रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने जाहिर की नाराजगी: वहीं, दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के शराबबंदी कानून की वजह से बढ़ने वाले मुकदमों को लेकर कड़ी नाराजगी जाहिर की है. हाईकोर्ट में केस को सूचीबद्ध करने में 1 साल का समय लग रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के 40 अपील को एक साथ खारिज कर दिया था. दरअसल, बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट में उन लोगों की जमानत खारिज कराने गई थी, जिन्हें बिहार पुलिस ने शराब के मामले में गिरफ्तार किया था, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने उन्हें बेल दे दी थी.

ड्राई स्टेट में जहरीली शराब से मौत: अप्रैल 2016 से दिसंबर 2021 तक बिहार में शराबबंदी कानून के तहत से लगभग 2,03,000 मामले सामने आए हैं, जिसमें पौने चार लाख लोग जेल की हवा खा चुके हैं. इनमें से 1,08,000 मामलों का ट्रायल शुरू हो गया है और 94,639 मामलों का ट्रायल शुरू होना अभी बाकी है. दिसंबर तक 1636 मामलों का ट्रायल पूरा हो चुका है, जिसमें से 1019 मामलों में आरोपियों को सजा मिल चुकी है, जबकि 610 मामलों में आरोपी बरी हो चुके हैं. एनएफएचएस की रिपोर्ट के अनुसार ड्राई स्टेट होने के बावजूद भी महाराष्ट्र से ज्यादा शराब की खपत बिहार में हो रही है. यही नहीं बिहार में शराबबंदी कानून के बावजूद भी जहरीली शराब से अब तक सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है.

विश्लेषक डॉक्टर नवल किशोर चौधरी (Doctor Naval Kishore Chowdhary) की माने तो बिहार सरकार ने शराबबंदी कानून के तहत कई बार हम बदलाव किए गए हैं. इसके बावजूद भी जहरीली शराब से लोगों की मौत हो रही है. उन्होंने यह भी कहा कि कहीं ना कहीं शराबबंदी कानून का असर थोड़ा देखने को बिहार में मिला है, लेकिन जहरीली शराब से मौत पहले भी होती रही है और अब भी होती है. जब शराबबंदी कानून लागू नहीं था तो यही राज्य सरकार थी जिसने गली मोहल्ले में भी शराब की दुकान खुलवाने का काम किया था. उस वक्त भी गरीब, दलित और समाज में शिक्षा से वंचित लोग विदेशी शराब की जगह पर देसी शराब का सेवन करते थे. अब तो शराब बिहार में गैर कानूनी रूप से मिल रही है. कम पैसे कमाने वाले लोग अभी भी देसी शराब जो कि गलत तरीके से बनाए जाने की वजह से जहरीली हो जाती है, वह पीने को मजबूर हैं, जिस वजह से उनकी मौतें हो रही हैं.

''बिहार सरकार के शराबबंदी कानून में किए गए नए प्रावधान में कहीं ना कहीं यह फायदा जरूर होगा कि अब लोगों की संख्या नहीं बढ़ेगी और शराबबंदी कानून के मामले में बढ़ोतरी नहीं होगी. इसके साथ-साथ भ्रष्टाचार में कहीं ना कहीं बढ़ावा होगा. स्वाभाविक है बिहार में लोग शराब की आदी हो चुके हैं. वर्तमान सरकार ने ही शहर तो छोड़िए गांव मोहल्ले गली में शराब की दुकान खुलवाने का काम किया था. जिसका कारण था कि लोग शराब के आदी हो चुके थे. उसके बाद वर्तमान सरकार शराबबंदी कानून में कड़े प्रावधान लाई. हालांकि, शराबबंदी कानून का कुछ न कुछ असर जरूर राज्य की जनता का पड़ा है.''- डॉक्टर नवल किशोर चौधरी, विश्लेषक

शराबबंदी कानून से भ्रष्ट हुई मशीनरी: डॉक्टर नवल किशोर चौधरी ने कहा कि शराबबंदी कानून पूर्ण रूप से नहीं लागू होने के पहला कारण यह है कि लोग शराब के आदी हो चुके हैं. दूसरा बड़ा कारण यह है कि राज्य सरकार शराबबंदी कानून के तहत काम करने वाले मशीनरी पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुकी है. उन्होंने कहा कि शासन और प्रशासन दोनों में भ्रष्टाचार भरा हुआ है. कहीं ना कहीं मंत्रियों में भी अब भ्रष्टाचार देखने को मिल रहा है. नए प्रावधान करने से पहले थोड़ी कड़ाई हुआ करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं दिखता है. अब लोगों के मन से थोड़ा डर भी कम होगा. नए प्रवधान में जिस तरह से पैसे लेकर छोड़ने की बात कही गई है, यह उसी तरह से होगा जैसे हर चौक चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस कुछ पैसे लेकर लोगों को छोड़ने का काम करते हैं, भले उस वाहन में अवैध सामग्री क्यों ना हो या विस्फोटक पदार्थ ही क्यों ना हो.

नए प्रावधान से जेल प्रशासन पर कम होगा दबाव: शराबबंदी फेल होने का मुख्य कारण उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने जहां शराब बनती है या जहां से सप्लाई की जाती है, उस पर थोड़ी भी कार्रवाई नहीं की. जिसका परिणाम है कि बॉर्डर इलाकों से शराब की सप्लाई हो रही है. राज्य सरकार जब राज्य की चौहद्दी पर ही शराब को लेकर कार्रवाई करते तो यह नौबत नहीं आती. पुलिस प्रशासन कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार में लिप्त है. जिसका कारण है कि भारी संख्या में ट्रकों से शराब बिहार में आती है. नए प्रावधान को लेकर उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद राज्य सरकार ने प्रावधान में ढील देने का निर्णय लिया है, जिसका असर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना होगा. इसका एक फायदा होगा कि जेलों में कैदियों की संख्या कम होगी शराबबंदी कानून के तहत मामले कम आएंगे और जेल प्रशासन पर दबाव कम होगा.

हालांकि, उन्होंने कहा कि पहले भी जिनके पास पैसा होता था उन्हें पुलिस छोड़ देती थी और आज भी यही होगा कि पैसे लेकर शराब पीने वालों को छोड़ दिया जाएगा. नए कानून के आने से तकनीकी रूप से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. पुलिस पैसे लेकर शराबियों को छोड़ नहीं रही थी, बल्कि शराबी तक शराब की बोतल पहुंचा रही थी. उन्होंने यह भी कहा कि नए कानून के प्रावधान आने से पुलिस भी अब यह महसूस करेगी कि सरकार शराबबंदी कानून को लेकर गंभीर नहीं है.

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