पटना: कोरोना काल में जब बिहार के स्वास्थ्य सिस्टम की कलई खुली और बिहार में चिकित्सकों की कमी (Shortage of doctors in Bihar) के कारण स्वास्थ्य विभाग की देशभर में बदनामी हुई, तब आनन-फानन में स्वास्थ्य विभाग में 1000 चिकित्सकों की 1 साल के लिए अनुबंध पर वैकेंसी निकाली. अनुबंध में था कि एक साल के बाद चिकित्सकों के कार्यों की समीक्षा की जाएगी और फिर समीक्षा के आधार पर चिकित्सकों का कार्य आगे के लिए विस्तारित किया जाएगा. कोरोना का समय चल रहा था और दूसरी लहर अपने पीक पर थी, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की इस वैकेंसी में महज 500 के करीब चिकित्सकों ने ही योगदान दिया.
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300 चिकित्सक पहले ही दे चुके थे इस्तीफा: बिहार के चिकित्सक स्वास्थ्य विभाग के रवैये से पहले से अवगत थे. इस वजह से अधिकांश एमबीबीएस अभ्यर्थियों ने इस वैकेंसी में शामिल होना उचित नहीं समझा. वही अभ्यर्थी शामिल हुए जो मानवता को बचाने की लड़ाई में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कराना चाहते थे. इन 500 चिकित्सकों में से लगभग 300 चिकित्सकों ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही अपना इस्तीफा विभाग को सौंप दिया क्योंकि उन्हें पहले से पता था कि उन्हें विभाग की ओर से हटाया जा सकता है, जिससे उनकी बेइज्जती हो जाएगी.
200 चिकित्सक लगाए हुए थे उम्मीद: लेकिन, 200 चिकित्सक उम्मीद लगाए हुए थे कि उन्होंने कोरोना के दौरान पूरी शिद्दत से अपनी सेवा दी है, कोरोना के बाद भी अस्पतालों में ओपीडी की सेवा दे रहे हैं और प्रदेश में नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भी चिकित्सकों की भारी कमी है. इन सब स्थिति को देखते हुए विभाग उनके कार्यकाल को आगे बढ़ाएगा. इसी बीच शॉर्ट नोटिस पर सरकार का निर्देश आ गया है कि जिला सिविल सर्जन यह सुनिश्चित करेंगे कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा अनुबंध पर लाए गए चिकित्सक 9 मई के बाद अपनी सेवा स्वास्थ्य विभाग को नहीं देंगे. ऐसे में इन चिकित्सकों के सामने रोजगार का भीषण संकट उत्पन्न हो गया है.
प्रत्यय अमृत के रवैए से चिकित्सक क्षुब्ध: प्रदेशभर से यह चिकित्सक बीते 1 महीने से स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत से मुलाकात करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इनकी मुलाकात नहीं हो रही है. इन्हें अपॉइंटमेंट नहीं मिल रहा है और बुधवार को जब इन चिकित्सकों ने स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय के बाहर निकलते हुए विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत को रोककर अपनी समस्या बतानी चाही तो प्रत्यय अमृत ने साफ तौर पर चिकित्सकों को कह दिया कि विभाग को अब उनकी कोई आवश्यकता नहीं है. स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव के इस रवैए से चिकित्सक काफी क्षुब्ध हैं.
स्वास्थ्य विभाग के लगाए चक्कर: पटना में 24 शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चलते हैं और इन्हीं में से एक केंद्र राजापुल शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के इकलौते मेडिकल ऑफिसर इन चार्ज डॉक्टर सतीश कुमार ने बताया कि वह अपने शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इकलौते चिकित्सक हैं और स्वास्थ्य विभाग का आदेश आ गया है कि 9 मई के बाद स्वास्थ्य विभाग में उनकी सेवा नहीं ली जाएगी. अपनी सेवा अवधि के विस्तार के मामले को लेकर उन्होंने कई दिनों तक स्वास्थ्य विभाग के चक्कर लगाए, लेकिन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत से मिल सके, लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो पाई.
'..अब उनकी आवश्यकता नहीं': बुधवार को विभाग की सीढ़ी पर उन्हें प्रत्यय अमृत नजर आ गए, जिसके बाद वह अपने मामले को लेकर उनके पास गए जिसके बाद प्रत्यय अमृत की तरफ से यह जवाब मिला कि उन लोगों की अब उन्हें कोई आवश्यकता नहीं है. कोरोना के समय उनकी आवश्यकता थी, अब उनकी आवश्यकता नहीं है इसलिए उन्हें निकाला जा रहा है. कोरोना की दूसरी और तीसरी लहर में उन्होंने कोरोना ड्यूटी की है. सरकार की तरफ से बनाए गए आइसोलेशन सेंटर में ड्यूटी की है और कोरोना के बाद अस्पतालों में बतौर चिकित्सक कार्य किए हैं. नियमित ओपीडी कर रहे हैं, लेकिन बावजूद इन सबके उन्हें हटाया जा रहा है.
स्वास्थ्य केंद्रों पर लटक जाएंगे ताले: डॉक्टर सतीश कुमार ने बताया कि 9 मई के बाद पटना के दर्जनभर यूपीएचसी डॉक्टर विहीन हो जाएंगे और इस वजह से शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ताला लटक जाएगा. इन सभी जगह पर एकमात्र चिकित्सक वही मौजूद है जो कोरोना के समय अनुबंध पर 1 साल के लिए लाए गए थे, लेकिन सरकार की तरफ से रवैया उन लोगों को लेकर बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. प्रदेश में 10,500 स्थाई चिकित्सकों के पद सेंक्शन है, लेकिन इसके अपेक्षाकृत 40% भी चिकित्सक प्रदेश में नहीं है. लेकिन विभाग की ओर से कहा जा रहा है कि अब उनकी कोई आवश्यकता नहीं है. जबकि बहाली मार्क्स और वॉक इन इंटरव्यू के माध्यम से हुई थी.
''मैं विभाग के सामने अपनी बात रखने के लिए आया हूं. लेकिन, कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही. जब उन लोगों की बहाली की गई थी तो उस वक्त निर्देश में साफ था कि उनके कार्यों की समीक्षा की जाएगी और समीक्षा के आधार पर कार्य अवधि विस्तारित की जाएगी, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कोई समीक्षा बैठक नहीं हुई. एक साल का जो कॉन्ट्रेक्ट था, उसे भी पूरा नहीं करा रहे हैं. 10-15 दिन के बहुत ही शॉर्ट नोटिस पर उन लोगों को टर्मिनेशन का लेटर दे दिया गया है.''- डॉक्टर प्रीतम राज, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, गया
सरकार का दोहरा रवैया: डॉक्टर प्रीतम राज ने कहा कि जब 1000 चिकित्सकों की बहाली (1000 Doctors Vacancies on Contract for one year) निकाली गई तो सरकार को चिकित्सक नहीं मिल रहे थे और 10 मई से बहाली के लिए इंटरव्यू की प्रक्रिया शुरू हुई, जो लगभग 1 महीने चली और उन लोगों की जॉइनिंग अलग-अलग दिन हुई. सभी जिलों के सिविल सर्जन को नियोजन का अधिकार दिया गया था और सभी जिलों में अलग-अलग नियोजन इकाई थी. विभाग का जो आदेश आया है उसके अनुसार 9 मई तक ही चिकित्सक विभाग में अपनी सेवा देंगे और इस वजह से चिकित्सकों के 1 साल का कॉन्ट्रैक्ट नहीं पूरा हो पा रहा है.
''संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान राज्य स्वास्थ्य समिति ने चिकित्सकों की अलग वैकेंसी निकाली और स्वास्थ्य विभाग ने 1000 चिकित्सकों की अलग वैकेंसी निकाली. राज्य स्वास्थ्य समिति ने 3 महीने के लिए चिकित्सकों की बहाली निकाली और स्वास्थ्य विभाग ने 1 साल के अनुबंध के लिए बहाली निकाली. राज्य स्वास्थ्य समिति की तरफ से जो चिकित्सक बहाल किए गए, उनका हर 3 महीने पर एक्सटेंशन हो रहा है. अभी उन लोगों की सेवा अवधि 30 जून तक के लिए बढ़ाई जा चुकी है, लेकिन उन लोगों की सेवा अवधि विस्तारित नहीं की जा रही है. जबकि नीति आयोग भी कहता है कि प्रदेश में चिकित्सकों की भारी कमी है.''- डॉक्टर किशोर कुणाल, चिकित्सक, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जहानाबाद
'कॉन्ट्रैक्ट वाले चिकित्सकों की कोई नहीं सुनता': डॉक्टर किशोर कुणाल ने कहा कि कोरोना के समय कार्य करने वाले सभी चिकित्सकों के लिए मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया था कि 1 महीने की प्रोत्साहन राशि उन लोगों को दी जाएगी, लेकिन यह प्रोत्साहन राशि भी उन्हें विभाग की तरफ से नहीं मिली और शॉर्ट नोटिस में उन्हें ड्यूटी से हटाया जा रहा है. सचिवालय में वह दौड़ते रह जाते हैं, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट वाले चिकित्सकों से कोई भी अधिकारी बात करने के लिए तैयार नहीं होते हैं.
'सरकार के खिलाफ चिकित्सक करेंगे आंदोलन': अब प्रदेश में कोरोना नियंत्रण में आ गया तो सरकार ने उनके जैसे चिकित्सकों को रोड पर लाकर छोड़ दिया है. उन्होंने अब उन लोगों के पास एकमात्र चारा आंदोलन का ही बच गया है, क्योंकि सरकार ने उन लोगों के पेट पर लात मारी है. ऐसे में या तो वह आंदोलन करेंगे या फिर खुदकुशी करेंगे, क्योंकि उनके पास अब रोजगार संकट उत्पन्न हो गया है. 5 दिन और 10 दिन की कमी की वजह से किसी का भी 1 साल पूरा नहीं हो रहा है और ऐसे में इसका वर्क एक्सपीरियंस भी नहीं मिलेगा. उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में वह सभी सरकार के खिलाफ आंदोलन का रूख अख्तियार करेंगे और इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ सरकार है.
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